बांझ
बांझ
![](https://cdn.storymirror.com/static/1pximage.jpeg)
![](https://cdn.storymirror.com/static/1pximage.jpeg)
सब गांव बाले फूलवा पर फूल बरसा रहे थे। फूलवा गांव की डगरिन (यानी बच्चे पैदा कराने बाली धाय) थी। गांव के अधिकांश बच्चे उसके ही हाथों से धरा पर अवतरित हुए थे। उसकी उम्र लगभग साठ साल की तो जरूर होगी। सभी उसे मान देते थे। अब लेकिन जमाना बदल रहा था लोग अस्पताल में बच्चों की जचगी कराने लगे थे। फूलवा भी अब थक गयी थी, आंखों से भी कम दिखता था। हाथ भी कांपते थे।
कल ठाकुर की पतोहु को अस्पताल ले गए थे। जुड़वां बच्चे थे पेट में वह भी उल्टे
फूलवा को बहुत साल बच्चे नहीं हुये तब ससुराल बालों ने उसे बांझ कहकर पहले तो बहुत प्रताड़ित किया,बेटे की दूसरी शादी करा दी और फूलवा को बांझ कहकर मैके पटक आये। ससुराल से कोई नाता नहीं रह गया था। मैंके में मां-बाप के रहते वह सुखी रही पर, उनके मरते ही भाई-भावज ने उसका जीना हराम कर रखा था। अपने हुनर के बल पर उसने गांव में थोड़ी सी जमीन खरीदी और झोपड़ी बनाकर अलग रहने लगी।
वैसे वो बांझ नहीं थी कभी उम्र के बहाव में वह चौधरी से प्रेम करने लगी थी लेकिन जब उसने चौधरी को अपने पेट में पलते बच्चे के बारे में बताया तो उन्होंने बहुत समझा -बुझा कर उसका गर्भपात करा दिया था। उसके बाद फूलवा ने उनकी तरफ़ देखा भी नहीं। उसे बार-बार लगता कि वह चौधरी की बहू को देख आये पर,मन मारकर रह जाती। अचानक चौधरी को अपने दरवाजे पर देख वह चौंक उठी।
ठाकुर ने गिड़गिड़ाते हुए फूलवा को बताया कि डॉक्टर ने उसकी बहू को ज़बाब दे दिया है। एकबार फूलवा देख लेती तो उन्हें संतोष हो जाता। पिछली बाते भूल जा फूलवा और चल।
फूलवा चौधरी के साथ उनके घर गयी और बहू को दर्द से कराहते देखकर उसे भी रोना आ गया। उसने जल्दी-जल्दी कुछ कपड़े, गर्मपानी और थोड़ा गर्म घी मंगवाया।
गर्म घी से हल्के-हल्के मालिस करते हुए उसने बहू को बल लगाने को कहा तकरीबन आधे घण्टे के बाद दोनों बच्चे सही- सलामत धरती पर आगये और बहू भी निढाल थी पर,स्वस्थ थी। दोनों बच्चों को कपड़े में लपेटकर उसने गोद में लिया और दरवाजा खोल दिया। जुड़वां पोते-पोती को देखकर चौधरी बहुत खुश हुये। फूलवा जो चाहती है मांग ले। फूलवा ने कहा ये दोनों मेरे पोते-पोती हैं। और चौधरी आप जानते हैं कि मैं बांझ नहीं हूं। सही कहा न चौधरी ? और एक भेद भरी मुस्कान लिए वो घर चल दी।