'छल'
'छल'


कुमुद पर मां छिन्नमस्तिका आ गईं, कुमुद पर मां छिन्नमस्तिका आ गईं।यह ख़बर जंगल के आग की तरह पूरे हजारीबाग में फैल गई। तिवारी जी की सबसे छोटी संतान थी यह कुमुद।उनके दो बेटे और दो बेटियां थीं। कुसुम और कुमुद थीं बेटियां और बेटे थे अजय और अभय ।घटना दिसम्बर महीने की थी जब कुमुद पर मां छिन्नमस्तिका आ गईं थीं।झुंड के झुंड लोग फूलमाला प्रसाद आदि लेकर देवी को प्रसन्न करने और दर्शन के लिए आने लगे।चौदह साल की कुमुद के तो मज़े ही मज़े थे। उससे भी ज़्यादा मज़ा उसकी अपाहिज बड़ी बहन कुसुम को आ रहा था, जो सालों से बिस्तर पर पड़ी हुई थी। श्रद्धालुओं में होड़- सी लगी थी कि कुमुद के रूप में मां छिन्नमस्तिका की पूजा पहले कौन करेगा? ज़्यादा भीड़-भाड़ न हो इसके लिए नम्बर लगा दिया गया। माता दिन के नौ बजे से एक बजे तक दर्शन देती थीं ,फिर पांच बजे से रात के आठ बजे तक।
देवी ने मिठाइयां खाने में अरुचि दिखाई तो सूखे फल-मेवों का चढ़ावा चढ़ने लगा। घर के और सब इन सबों से चिढ़ रहे थे ।वे सब पढ़े-लिखे सभ्य लोग थे सो, ये ढोंग-ढकोसला उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं आया था पर, करते भी क्या?ख़ुद उन्हीं की बेटी ने यह सब रचा था।
बहुत लोगों ने इसके ख़िलाफ़ आवाज़ भी उठाई पर, भक्तजन कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थे,।जब कुमुद द्वारा कही कुछ बातें सच हो गईं तब तो और भी उनकी भक्ति बढ़ गई।
पड़ोसी वर्मा जी भी उस दिन दर्शन को आये थे। उन्होंने माता से एक अनर्थक प्रश्न उस समय कर दिया, जब कुमुद रूपी माता जंगल-पहाड़ ,नदी को लांघते-फलांघते उन सभी को दर्शन देने आई थीं और बहुत थकावट महसूस कर रही थीं।माता के भक्तों में अठारह-बीस साल का एक नवयुवक भी था जो प्रतिदिन माता के पैर दबाता था ,कारण माता की उस पर विशेष कृपा थी।अब वर्मा जी से प्रश्न पूछने को कहा गया।
वर्मा जी ने हाथ जोड़कर पूछा,"मां!आप जब चलीं तब आपके रास्ते में कौन-कौन -सा शहर या गांव आया"?माता वर्मा जी पर आग-बबूला हो उठीं और उन्हें तरह-तरह के श्राप देने लगीं। वो गुस्से में कहने लगीं,"वर्मा तुमने प्रश्न पूछकर बहुत बड़ी ग़लती की है ।अब तुम बस पांच दिन के मेहमान हो"।
वर्मा जी ने भी उस दिन कमर कस लिया था उन्होंने आगे कहा,"ठीक है मैं मर जाउंगा ,पर मां मेरी समझ में यह नहीं आता कि आपकी भक्ति में इतने संत-महात्मा डूबे रहते हैं, उनको आप दर्शन नहीं देतीं और इस कुमुद को जो मात्र चौदह साल की बच्ची है उसे दर्शन दिया!"
तभी कुमुद का बड़ा भाई उसका नौवीं कक्षा का रिज़ल्ट लेकर आया ,जिसमें माता कुमुद फेल थी। उसने कहा,"माताजी आप तो जगत-जननी हैं फिर आप फेल कैसे हो गईं?।अब माता जी का स्वांग खुल कर बिखरने लगा ।
कुमुद ने सबके सामने ही पिटाई के डर से अपने बड़े भाई का पैर पकड़ा और रोना शुरू किया।उसके बाद उन्होंने माता बनने की गाथा सुनाई। कुमुद बोली,"मैं रतन से प्यार करने लगी थी इसलिए पढा़ई नहीं कर सकी और फेल हो गई। मुझे घर में मार पड़ती और रतन को भी, इसलिए रतन ने सुझाया कि मैं अगर इस तरह से सबको भ्रम में डाले रखूं तो मार नहीं पड़ेगी।बस इसलिए मैंने यह सब किया।"
भाई ने पूछा ,"ये रतन कौन है?"
" वही जो मेरा पैर दबाता था"। कुमुद ने कहा। रतन की तलाश हुई पर वह मौका देखकर रफ़ूचक्कर हो गया था। अब भक्त जन मायूस होकर कुमुद को बुरा-भला कहते हुए जाने लगे।सभी के चले जाने के बाद वर्मा जी भी यह कहकर उठने लगे कि ,"चलूं कुछ ज़रूरी काम निपटा लूं ,क्योंकि माता ने बस पांच दिन की मोहलत दी है"।और ठठाकर हंस पड़े। घरवालों ने राहत की सांस ली, लेकिन इस छल के समाप्त हो जाने से सबसे ज्यादा दुखी कोई था तो वह थी कुमुद की बड़ी बहन कुसुम।उसका मन अब कैसे लगेगा,यही सोच-सोच वो परेशान थी।