नाद
नाद


मालकिन थोड़ा माड-भात दीजिए न। दरवाजे से आती माधुरी की करुण आवाज सुनकर भी मालकिन चुप रहीं।और दूसरा कोई समय होता तो माधुरी को दस काम बता दिये जाते ।बीस साल की माधुरी काम को चुटकी में निपटाती थी, साथ ही साथ बड़ी मालकिन को नहलाना-धुलाना, मालिशऔर
कंघी -चोटी सब वही करती थी बदले में भरपेट खाने को मिलता था।कभी मालकिन उदार होतीं तो फटे-पुराने कपड़े भी मिल जाते। लेकिन अभी उसे कोई अपने दरवाजे पर खड़ा नहीं होने देता था कारण, माधुरी का आदमी कोरोनावायरस की मार के कारण कलकत्ते से मजदूरी छोड़ कर आया था। बस यही बात थी। लेकिन, ग़रीब
क्या करे न वहां कोई काम था और न यहां। भूख तो सबको लगती है ,यह अमीर-गरीब कहां पहचानती है।वह क्या करे। सारे गाँव के लोग अछूत जैसा व्यवहार कर रहे थे। माधुरी तीन-चार दिनों से पूरे गाँव में जाकर सभी के दरवाज़े पर माड़-भात की गुहार लगा रही थी लेकिन कोई उसकी गुहार को सुन नहीं रहा था।
माधुरी बड़ी आशा लेकर इस दरवाजे पर आई थी पर,वह निराश होकर जाने लगी। अचानक उसने देखा कि उस घर का बड़ा बेटा एक कठौती में मांड़-भात लाकर गाय की नाद में डाल रहा है बस माधुरी ने आव न देखा ताव और उसने नाद में अपना मुंह डाल दिया।और सपड़-सपड़ माड़ पीने लगी।