'थप्पड़'
'थप्पड़'
आज मिसेज खापेकर विमला को काफी शर्मिंदगी महसूस हो रही थी अपने ही नज़रों में गिरने जैसा महसूस हो रहा था। वह अपने ही विचारों में उलझी थीं तभी बहू की पुकार भी न सुन सकीं फिर पास आकर बहू ने उनके कंधे पर हाथ रखा तब उनकी चेतना लौटी। बहू खाने के लिए बुलाने आई थी पर, उन्हें भूख बिल्कुल भी नहीं थी। बहू से एक गिलास दूध मांगकर वो अपने बिस्तर पर आ बैठीं। फिर वही सब बातें उन्हें याद आने लगीं जिससे उन्हें चिढ़ थी। बहू ने उन्हें दूध का गिलास थमाया और उनके माथे पर हाथ रखा। लेकिन बुखार नहीं था यह सोचकर वो निश्चित हो गई। सास से पूछा कि , "कुछ और चाहिए"?सास के नहीं कहने पर वह सोने चली गई। इधर मिसेज खापेकर तो समझ ही नहीं पा रही थीं कि वो क्या कहकर अपने मन को समझायें।
उनके पति और सिन्हां जी एक ही कम्पनी में काम करते थे। धीरे-धीरे दोनों की दोस्ती हो गई और आपस में सुख-दुख बांटने लगे। मिस्टर खापेकर ने अपने माता-पिता की बात मानकर एक स्वजातिय लड़की से बिवाह कर ली। अब तो सिन्हां जी को जब भी घर का खाना खाने का मन होता वो बड़े अधिकार से मिस्टर खापेकर के यहां आते और दावत का मज़ा लेते। यह खापेकर दम्पति को भी अच्छा लगता। एक साल के बाद सिन्हां जी ने अपने ही अॉफिस में काम करने वाली लड़की नीलू से शादी करली उनके माता-पिता को कोई एतराज़ नहीं था। मिसेज खापेकर की पत्नी विमला भी बहुत ही खूबसूरत लेडी थी और नीलू भी उनके ही टक्कर की थी।
लेकिन दोनों का स्वभाव बहुत ही अच्छा था इसलिए इनकी दोस्ती , दोस्ती न रहकर पारिवारिक सम्बन्ध बन गये थे। जब खापेकर को लड़का पैदा हुआ तो नीलू ने बहुत ध्यान रखा। और जब नीलू की बिटिया हुई तो विमला ने काफी मदद की। संयोगवश जहां-जहां भी ट्रास्फर हुआ दोनों एक ही साथ गये। दोनों के दो-दो बच्चे और हुए और वे सब एक साथ बढ़ने लगे, एक ही स्कूल में पढ़ने लगे।
खापेकर के बच्चों को बाहर विदेश का कोई लालच नहीं था पर, सिन्हां जी के बच्चों को विदेश में नौकरी करने कि बड़ी लालसा थी। सिन्हा जी ने अपनी सारी जमा-पूंजी लगाकर उन्हें विदेश भेज दिया। तीनों बच्चों ने शादी करके अपनी गृहस्थी वहीं अमेरिका में बसा ली। हाँ माँ-बाप को तगड़ी मोटी रकम वे जरुर भेजते थे। साल दो साल में उनका भारत आना भी हो ही जाता था पर आकर भी रहते होटल में ही थे। अपने माता-पिता से मिलने जरूर आते पर सिन्हां दम्पति को यह नागवार गुजरता। इधर खापेकर दम्पति के तीनों बच्चों ने पढ़ाई कर मनपसंद नौकरी पकड़ी। दोनों लड़कियों ने प्रेम विबाह किया और वहीं मुम्बई में फ्लैट लेकर रहने लगीं। लड़का खापेकर जी के साथ ही रहता था। बहू भी अच्छी थी जो दोनों का खूब ध्यान रखती। खापेकर जी और सिन्हां जी ने एक ही जगह आमने-सामने फ्लैट लिया था।
अब तो फुर्सत ही फुर्सत थी। खापेकर दम्पति और सिन्हां दम्पति अब साथ-साथ खूब घुमते-फिरते, जगह-जगह तीर्थ यात्र
ा पर जाते। शायद ईश्वर को कुछ और मंजूर था सिन्हा जी की पत्नी को अचानक पेट में दर्द उठा और अस्पताल ले जाते-जाते उनकी मृत्यु हो गई। सिन्हां जी के बच्चे दस दिन के लिए आकर पुनः विदेश लौट गये। पिता को तीनों बच्चों ने साथ चलने को कहा पर, सिन्हां जी नहीं माने। अपने मित्र खापेकर के बिना रहना उन्हें गवारा नहीं था। इधर खापेकर जी की भी तबियत खराब रहने लगी थी डॉक्टर को दिखाया गया और कुछ टेस्ट कराये गये डॉक्टर ने कैंसर का शक बताया। इलाज शुरू हुआ किमोथैरेपी हुई पर कोई फायदा दिख नहीं रहा था।
विमला जी अंदर ही अंदर चिंतीत रहने लगीं थीं पर, उपर से वह खुश दिखती थी। अचानक एक दिन खापेकर जी को भी मौत ने दबोच लिया60 साल की उम्र में अपना साथी खोना विमला जी सहन नहीं कर पा रही थीं। पर, धीरे-धीरे समय से उनका दूख दूर होने लगा। अब खाली समय में वो सिन्हा जी के पास जा बैठतीं और दोनों पूराने समय को याद करते। एक दिन बातों -बातों में सिन्हा जी ने कहा , "भाभी आप तो शादी के समय पटाखा थीं मेरा तो दिल ही आगया था आपपर"। विमला जी को कुछ अटपटा सा लगा पर, वह बात को टाल गयीं। साठ साल की उम्र में यह सब बातें बचकानी लगती थी। इधर सिन्हां जी भी बीमार रहने लगे थे, विमला जी निरंतर उनकी देखभाल कर रही थीं पर, थोड़ी दूरी बरतकर। एक दिन सिन्हां जी ज्यादा अस्वस्थ होगये। विमला जी उनके पास ही थीं तभी सिन्हां जी उठकर वासरूम जाने लगे और लड़खड़ा कर गिरने जैसे हो गये तभी विमला जी ने जल्दी से उन्हें पकड़ लिया और उन्हें बिस्तर तक ले जाने लगीं।
विमला जी को महसूस हुआ कि सिन्हां जी के हाथ उनके कंधों से नीचे जा रहे हैं , वो चौंक गयीं और जल्दी से उन्हें बिस्तर पर बैठा दिया लेकिन सिन्हां जी ने उनका हाथ पकड़ा और कहा, "विमला हम-दोनों अकेले हैं, मैं तो शुरू से ही तुम्हारे करीब आना चाह रहा था पर, तुम्हारी तरफ से कोई हलचल नहीं थी। आज सच कहुंगा, अपनी पत्नी के नजदीक मैं जब-जब गया तो उसमें तुम्हें ही महसूस किया। "विमला जी शून्य पड़ती जा रही थीं । अपनी पत्नी से इतना बड़ा धोखा वह भी पूरी जिंदगी। अब विमला जी का विवेक समाप्त हो गया।
उन्होंने तडा़तड़ सिन्हा जी को चार-पांच थप्पड़ लगा दिया और बोलीं, "ये रहा तुम्हारे चाहत का परिणाम। और तुम सारे मर्द एक ही होते हो क्या ? शायद मेरा पति भी मेरे शरीर में तुम्हारी पत्नी को भोगता होगा। थू है तुम जैसे लोगों पर जो इतनी गन्दी सोच रखते हैं। "कहकर विमला जी अपने घर चली आई।
उनकी बहू को न जाने कैसे पता लग गया। अब उसे विमला जी के चिंतीत रहने का रहस्य पता चल गया। वह विमला जी के कमरे में आकर सास से लिपट गयी और कहा, "माँ आपने बहुत बहादुरी का काम किया है मुझे आपपर गर्व है। "विमला जी का सारा तनाव बहू की इन बातों ने दूर कर दिया। और वह अपनी पोती को लोरी गाकर सुलाने लगीं।