रहस्यमयी लाइब्रेरी
रहस्यमयी लाइब्रेरी
सुनील एम ए करने के लिए राजस्थान विश्वविद्यालय में आया था। इतिहास में उसने एडमिशन लिया था। उसका मनपसंद विषय था इतिहास। बी ए में उसके सबसे अधिक अंक भी इतिहास में ही आए थे। वह प्रोफेसर बनना चाहता था।
पिता किसान थे इसलिए घर में ज्यादा गुंजाइश थी नहीं। हॉस्टल मिल गया रहने को और मैस में खाना मिल जाता था। खाने की गुणवत्ता ऐसी थी कि उसे जानवर भी नहीं खायें , मगर मरता क्या न करता वाली कहावत यहां लागू हो रही थी। इसलिए झख मारकर खाना पड़ता।
किताबें बहुत मंहगी मंहगी थी। केवल एक किताब से काम नहीं चलता इसलिए सुनील ने एक एक बेसिक किताब खरीद ली पुरानी वाली 40% कीमत पर। बाकी की व्यवस्था वह लाइब्रेरी में से कर रहा था। चार किताबें महीने भर के लिए वह ले जा सकता था। बाकी किताबें वहीं बैठकर पढ़नी पड़ती थीं। उसने यही किया। किताबों पर ज्यादा पैसा खर्च करने के बजाय लाइब्रेरी में पढ़ना ज्यादा मुफीद लगा उसे। इसलिए वह सुबह नाश्ता करके लाइब्रेरी आ जाता था। लाइब्रेरी नौ बजे खुली जाती थी। वह सवा नौ बजे तक आ जाता था लाइब्रेरी में। उसकी कक्षाएं सवा बारह बजे से शुरू होकर शाम सवा पांच बजे तक लगती थीं। बीच में वह हॉस्टल जाकर लंच भी कर आता था। क्लास से निकलकर वह सीधा लाइब्रेरी में घुस जाता और रात के नौ बजे तक वहीं बैठकर पढ़ता रहता था।
एक दिन वह रात को नौ बजे तक पढ़ता रहा। समय का उसे ध्यान ही नहीं रहा। जब लाइब्रेरी में काम करने वाला एक कार्मिक उसके पास आया और कहने लगा "साहब, अब जाइए। लाइब्रेरी बंद करने का समय हो गया है "। तब वह लाइब्रेरी से बाहर आया। हॉस्टल जाकर खाना खाया और सो गया। सुबह सात बजे नींद खुली।
तैयार होकर नाश्ता कर वह सही नौ बजे लाइब्रेरी पहुंच गया। कल का अध्याय जो अधूरा रह गया था , उसे आज पूरा करना था उसे। वह उसी रैक पर गया। वो किताब उसने ढूंढी। जहां कल रखी थी , वहां वह नहीं थी। उसने इधर-उधर निगाह दौड़ाई तो उसे नीचे के रैक में वह मिल गई। उसे लेकर वह एक सुनसान टेबल पर बैठ गया।
कल जब वह यहां से गया था तो वह पन्ना मोड़कर गया था। आज उसने पूरी किताब छान मारी , एक भी पन्ना मुड़ा हुआ नहीं मिला उसे। वह हैरत में पड़ गया कि जब वह लाइब्रेरी बंद होने के समय पर गया था और सुबह ठीक नौ बजे आ गया था। फिर इस किताब को किसने पढ़ा " ? यह प्रश्न उसके दिमाग में घूमने लगा। उसे यह भी याद आया कि वह किताब उस स्थान पर नहीं थी जहां वह रखकर गया था।
सुनील सोच में पड़ गया। उसके जाने के बाद और वापस आने के पहले किसी ने तो वह किताब अवश्य देखी थी। क्या कोई विद्यार्थी ऐसा है जो उसके जाने के बाद वहां आया था ? लेकिन तब तो लाइब्रेरी का समय भी समाप्त हो गया था। इसलिए उसके बाद तो कोई आ ही नहीं सकता है वहां पर। उसने अपने सिर को झटका दिया और सारे खयालों को वहीं झटक कर फेंक दिया।
वह पढ़ने बैठ गया। पढ़ते पढ़ते शाम हो गई। फिर से लाइब्रेरी का कारिंदा आया। उसे बताया कि लाइब्रेरी का समय समाप्त हो गया है। वह चला गया। दूसरे दिन लाइब्रेरी खुलने से पहले ही वह पहुंच गया। लाइब्रेरी खुलने पर वह सबसे पहले अंदर दाखिल हुआ।
आज भी उसने अपनी किताब ढूंढी। किताब उसी स्थान पर थी लेकिन पन्ना मुड़ा हुआ नहीं था। अब तो उसे विश्वास हो गया था कि रात में यहां पर कोई रहता है और वह किताबें पढ़ता है। इसका मतलब यह हुआ कि लाइब्रेरी वालों का कोई परिचित व्यक्ति यहां रात में रहता है। उसके दिमाग में आया कि यदि और कोई वहां रह सकता है तो वह भी वहां पर रह सकता है। उसने लाइब्रेरी के कारिंदे से कहा कि यहां रात को कोई रुकता है क्या ? कारिंदे ने साफ इंकार कर दिया।
सवाल पेचीदा होता जा रहा था। सुनील ने आज सोच लिया था कि इस रहस्य पर से पर्दा उठाना ही होगा। पर इसके लिए उसे आज की रात उस लाइब्रेरी में रुकना होगा। वह योजना बनाने लगा।
आज रात के नौ बजे के आसपास जैसे ही कारिंदा आया वह उसके साथ ही चल दिया काउंटर पर और अपना आई कार्ड ले लिया। काउंटर पर उसने कहा कि वहां पीछे की ओर एक रैक के पास कोई छुपा हुआ है। यह कहकर वह तुरंत गेट से बाहर निकल गया। चुपके चुपके से वह गतिविधियां देखने लगा। पहले कारिंदा वहां गया। थोड़ी देर बाद आकर उसने काउंटर पर बैठे व्यक्ति को कहा होगा कि वहां पर तो कोई नहीं है। फिर काउंटर पर बैठा व्यक्ति उसके साथ चल दिया। तब वह चुपके से लाइब्रेरी में घुस गया और कहीं रैक के पीछे छिप गया।
दोनों व्यक्ति थक गये पर उन्हें कोई भी व्यक्ति नजर नहीं आया। तब परेशान होकर दोनों व्यक्ति वहां से चल दिए।
सुनील दूर से छुपकर उस स्थान पर निगाह रख रहा था। रात के करीब बारह बजे के आसपास उसे महसूस हुआ कि उस रैक से एक किताब उठकर टेबल की ओर जा रही है। फिर वह टेबल पर रख दी गई। किताब खुली और उसके मुड़े हुए पन्ने सीधे कर दिये गए। इसी प्रकार धीरे धीरे सारी किताबों के साथ ऐसा ही हुआ। नजर कोई भी आदमी नहीं आया लेकिन सारी किताबों के मुडे हुए पन्ने सीधे हो गए।
अब उसके समझ में आ गया कि लाइब्रेरी में कोई आत्मा अवश्य निवास करती है जिसे किताब के मुड़े हुए पन्ने कतई पसंद नहीं हैं। सुनील का आधा काम हो गया था।
दूसरे दिन जब लाइब्रेरी खुली तो उसने काउंटर पर बैठे व्यक्ति से पूछा कि इस लाइब्रेरी में पहले ऐसा कोई व्यक्ति था क्या जो किताबों को अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करता था। काउंटर वाले व्यक्ति ने मना कर दिया। उसने फिर उसी कारिंदा से वही सवाल पूछा। कारिंदा काफी देर तक सोचता रहा फिर उसने कहा "हां, ज्ञान सिंह था। उसे मुड़े हुए पन्ने अच्छे नहीं लगते थे इसलिए वह बैठा बैठा उन्हें सीधा करता रहता था। पर उसे तो मरे लगभग 16 साल हो चुके हैं।
सुनील को विश्वास हो गया कि ज्ञान सिंह की आत्मा इसी लाइब्रेरी में रहती हैं और वह रात को ये काम करती है। उसने इसका उपाय सोचा।
दूसरे दिन वह लाइब्रेरियन से मिला और सारी बात विस्तार से बता दी। लाइब्रेरियन को विश्वास ही नहीं हुआ कि ऐसा भी हो सकता है ? तब सुनील ने कहा "अगर आप एक बंदा इस लाइब्रेरी में लगा दो जो वह चैक करता रहे कि किसी किताब का कोई पन्ना मुड़ा हुआ तो नहीं है ? इस प्रकार जब ज्ञान सिंह की आत्मा को विश्वाश हो जाएगा कि अब यहां उसकी जरूरत नहीं है तो वह यह लाइब्रेरी छोड़कर चली जाएगी।
लाइब्रेरियन ने अनमने मन से उसकी बात मान ली और एक व्यक्ति इसी कार्य के लिए नियुक्त कर दिया। अब ज्ञान सिंह की आत्मा को करने के लिए कुछ नहीं बचा था। इसलिए वह आत्मा अब उस रहस्यमई लाइब्रेरी को छोड़कर चली गई और अब वह आत्मा वहां नहीं रहती है।