Priyanka Gupta

Abstract Drama Inspirational

4.5  

Priyanka Gupta

Abstract Drama Inspirational

पत्नी के प्रति फ़र्ज़ कैसे निभाओगे !

पत्नी के प्रति फ़र्ज़ कैसे निभाओगे !

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"अरे, मम्मी बार-बार फ़ोन क्यों कर रही हो? वही 4 बातें, खाना ही खा रहा हूँ। बाद में फ़ोन करता हूँ।" ऋतु के साथ बाहर डिनर कर रहे शाश्वत ने अपनी मम्मी से फ़ोन पर बात करते हुए कहा और फ़ोन रख दिया।

ऋतु की प्रश्नवाचक नज़रों का जवाब देते हुए शाश्वत ने कहा कि, "मम्मी का फ़ोन था, समय-असमय कभी भी कर देती हैं।"

"माँ को बच्चों की चिंता रहती है, इसलिए बार-बार फ़ोन करती हैं" ऋतु ने मुस्कुराते हुए कहा।

"अरे यार, तुम भी किन बातों को लेकर बैठ गयी। छोड़ो इन बातों को। तो कब मुझे अपने मम्मी-पापा से मिलवा रही हो ?" शाश्वत ने मुस्कुराते हुए कहा।

शाश्वत और ऋतु पिछले 2 महीने से एक-दूसरे को डेट कर रहे हैं। डेट भले ही 2 महीने से कर रहे हैं, लेकिन एक दूसरे को जानते दो सालों से हैं। दोनों के ऑफिस एक ही बिल्डिंग में जो थे। दो साल पहले बिल्डिंग की लिफ्ट में कुछ खराबी हो जाने के कारण दोनों लगभग आधा घंटे अकेले उसमें फँस गए थे। बुरे तरीके से डरी हुई सांवली-सलोनी ऋतु को शाश्वत ने ही हिम्मत दी थी और साथ ही अपने पी जे सुना-सुनाकर उसका डर दूर करने की कोशिश की थी।

आज भी ऋतु मजाक-मजाक में कहती है कि, " उस दिन मुझे लिफ्ट बंद होने से भी ज्यादा डर तुम्हारे पी जे का लग रहा था। सोच रही थी कि कब लिफ्ट चले और तुम्हारे पी जे से मुक्ति मिले। "

तब शाश्वत हँसते हुए कहता था कि, " मैडम, उस दिन उन्ही पी जे की वजह से तम्हारे डरे हुए चेहरे पर हंसी की रेखाएं दिखाई दी थी। "

लिफ्ट की घटना के बाद एक ही बिल्डिंग में होने के कारण दोनों का मिलना-जुलना होता ही रहता था। दोनों उस समय नए-नए ही इसी शहर बैंगलोर में अपने घर से दूर नौकरी के लिए आये थे। दोनों ही नए शहर में अकेले थे, अतः धीरे-धीरे दोनों अच्छे दोस्त बन गए। यह दोस्ती कब प्यार में बदली ?इसका पता 2 महीने पहले तब चला, जबकि शाश्वत ने ऋतु को प्रोपोज़ किया।

ऋतु ने न तो शाश्वत को हाँ किया और न ही न किया। बस इतना कहा कि, " शाश्वत यह फैसला मैं अपने मम्मी-पापा की सहमति से ही लूंगी। अगर उन्होंने भी तुम्हे पसंद कर लिया तो मेरी भी हाँ ही समझो। "

शाश्वत की एप्लीकेशन पिछले दो महीनों से ऋतु के पास पेंडिंग पढ़ी हुई थी। शाश्वत कई बार मज़ाक में कहता भी कि, " यार, मेरी एप्लीकेशन आगे बढ़ाने के लिए तुम्हें भी कुछ रिश्वत देनी पड़ेगी क्या। ",

तब ऋतु कहती, " तुम्हारी एप्लीकेशन विचाराधीन है। "

आज जब शाश्वत ने पूछा तो, ऋतु ने कहा कि, " मम्मी-पापा अगले सप्ताह ही आ रहे हैं। तुम्हारी एप्लीकेशन पर फाइनल जवाब मिलने का वक़्त आ गया है। "

ऋतु के मम्मी-पापा काफी सुलझे विचारों के थे। जब ऋतु ने उन्हें शाश्वत से मिलवाया तो वह अपनी बेटी की मन की बात समझ ही गए थे और उनकी बेटी ने उन्हें अपने निर्णय में शामिल किया था, इससे वे अपनी बेटी पर गर्व भी महसूस कर रहे थे। उन्हें शाश्वत में कोई कमी नज़र नहीं आयी, तो उन्होंने अपनी बेटी की पसंद पर मुहर लगा दी। साथ ही शाश्वत को भी कह दिया कि वह भी अपने मम्मी-पापा से बात करे और उनकी रज़ामंदी होने पर बात आगे बढ़ाएंगे।

" अंकल-आंटी, मेरे मम्मी-पापा मेरी किसी बात को नहीं टालते। उनकी तो हाँ ही होगी। ",शाश्वत ने ख़ुशी-ख़ुशी कहा।

"नहीं बेटा,फिर भी तुम्हारे मम्मी-पापा भी एक बार ऋतु से मिल लेते और अपनी रजामंदी दे दे तो फिर हम लोग भी उनसे मिलकर बात आगे बढ़ायेंगे। ", ऋतु की मम्मी ने कहा।

"नहीं आंटी, आप लोग बता दीजिये, मम्मी-पापा से कब मिल सकते हैं, मैं उन्हें बुला लूँगा। आप कहें तो मैं उन्हें कल ही बुलवा लेता हूँ। ", शाश्वत ने कहा।

" नहीं बेटा, कल तो हमें लौटना है। जल्द ही मिलने का प्लान बनाते हैं। ",ऋतु के पापा ने कहा।

शाश्वत द्वारा अपने मम्मी-पापा की इच्छा ज़रा भी न जानना ऋतु को थोड़ा अजीब सा लगा। मम्मी-पापा कई बार हमारे निर्णयों को नहीं मानते, लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि उन्हें हम अपने निर्णयों में शामिल ही नहीं करें। बल्कि शामिल करके उनके जो संदेह हैं, शकाएँ हैं, डर हैं, उनका निराकरण करने की कम से कम कोशिश तो करनी ही चाहिए। वह हमारे माँ-बाप हैं और उनसे बेहतर हमारे लिए कोई नहीं सोच सकता।

शास्वत द्वारा अपनी मम्मी के फ़ोन की उपेक्षा करना और उनकी बातें न सुंनना, ऐसा शाश्वत ने 2-4 बार ऋतु के सामने भी किया था। ऋतु को यह बात भी अजीब लगती थी। लेकिन ऋतु ने इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया।

दोनों के मम्मी-पापा अभी तक मिल नहीं पाए थे, तो शादी की बात आगे भी नहीं बढ़ रही थी। शाश्वत ऋतु को कई बार बोल भी चुका था कि वह अपने मम्मी-पापा से बात करे।

एक दिन ऋतु अपने ऑफिस में बैठी हुई थी, तब ही ऋतु का फ़ोन बजा ट्रिंग.... ट्रिंग..... ट्रिंग...... ट्रिंग......| ऋतु ने देखा तो अनजान नंबर से फ़ोन था, ऋतु ने फ़ोन नहीं उठाया। ऋतु का फ़ोन 2-3 बार बजा तो ऋतु ने फ़ोन उठा लिया। उधर से एक महिला की आवाज़ आयी, " बेटा, तुम ऋतु बोल रही हो न। मैं शाश्वत की मम्मी बोल रही हूँ। शाश्वत का फ़ोन स्विच ऑफ आ रहा था, इसलिए तुम्हें फ़ोन कर रही हूँ। इमर्जेन्सी नहीं होती तो, तुम्हें कभी फ़ोन नहीं करती। "


"नमस्ते आंटी, कोई बात नहीं .आपके फ़ोन से मुझे अच्छा ही लगा .आज शाश्वत का कोई प्रेजेंटेशन है, शायद इसलिए फ़ोन स्विच ऑफ होगा या बैटरी डिस्चार्ज हो गयी होगी। आप बताइये क्या हुआ ?",ऋतु ने कहा।

" 2 दिन पहले शाश्वत के पापा को हॉस्पिटल में एडमिट करवाया था। उन्हें हार्ट अटैक आया था। शाश्वत को बताया भी था, लेकिन उसने ऑफिस में कोई ज़रूरी काम होने की वजह से आने से मना कर दिया। कल डॉक्टर ने ऑपरेशन के लिए बोला था, शाश्वत ने कहा था कि वह पैसे अकाउंट में ट्रांसफर कर देगा, लेकिन उसका अभी तक कोई फ़ोन नहीं आया। वह कन्फर्म कर देता तो मैं किसी को बैंक भेजकर पैसे निकलवा लेती। हमारे पड़ौसी ही 2 दिन से मेरी मदद कर रहे हैं, लेकिन इतनी बड़ी रकम किसी से माँगना थोड़ा अच्छा नहीं लगता। ", शाश्वत की मम्मी ने रुआंसे होते हुए कहा।

"आंटी। मैं अभी जाकर शाश्वत को आपका मेसेज देती हूँ और आपकी बात भी करवाती हूँ। आप ज़रा भी चिंता न करें। सब ठीक हो जाएगा। ",ऋतु ने कहा।

ऋतु को शाश्वत पर बहुत गुस्सा आ रहा था। वह जानती थी कि यह प्रेजेंटेशन शाश्वत के लिए महत्वपूर्ण था, लेकिन अपने पापा से महत्वपूर्ण नहीं हो सकता। अगर वह यह मिस भी करता तो अभी होने वाला उसका प्रमोशन ६ महीने बाद होता। ऋतु को शाश्वतसे इस गैर-जिम्मेदाराना रवैये की अपेक्षा नहीं थी|

ऋतु जैसे ही शाश्वत के ऑफिस पहुंची, तब तक शाश्वत प्रेजेंटेशन देकर आ चुका था। ऋतु ने अपने गुस्से को दबाकर रखा ताकि शाश्वत को आंटी का मैसेज दे सके . ऋतु ने शाश्वत को सारी बात बताई और पूछा, " तुमने पैसे ट्रांसफर किये या नहीं। ",

शाश्वत ने कहा, " यार, प्रेजेंटेशन के चक्कर में भूल गया था। अभी करता हूँ। "

ऋतु ने पैसे ट्रांसफर करवाकर, शाश्वत की मम्मी को मेसेज करवाया।

"और तुम कब जा रहे हो ?कब की फ्लाइट है ?",शाश्वत से ऋतु ने पूछा।

"अभी नहीं जाऊँगा, प्रेजेंटेशन का फीडबैक आ जाए, उसके बाद सोचता हूँ। आज तो ऑपरेशन हो ही जाएगा, फिर तो थोड़ा रूककर भी चले जाओ तो क्या फर्क पड़ता है। ", शाश्वत ने कहा।

"फर्क पड़ता है। तुम्हारे मम्मी-पापा को तुम्हारी जरूरत है, आज तुम जहाँ भी हो उनकी बदौलत हो। मैं ऐसे इंसान से शादी नहीं कर सकती जिसके लिए रिश्तों की कोई अहमियत नहीं। जब तुम पुराने रिश्तों को ठीक से नहीं निभा सकते तो नया रिश्ता क्या ख़ाक निभाओगे। तुम जब अपने मम्मी-पापा के प्रति अपने फ़र्ज़ अच्छे से नहीं निभा सकते तो पत्नी के प्रति फ़र्ज़ कहाँ से निभाओगे? सॉरी शाश्वत।" ऐसा कहकर ऋतु वहां से निकल गयी थी।

हक्का-बक्का शाश्वत ऋतु को जाते हुए देख रहा था।


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