प्रायश्चित
प्रायश्चित


आज सुबह की सैर करने के लिए अमन अपने दादाजी के साथ गया अचानक उसकी नजर प्लास्टिक बैग और रबड़ के ट्यूब टायर पर नजर गई इतना अंबार देखकर वह घबरा गया और सहसा दादा जी से बोल पड़ा दादा जी यह सब क्या है......
दादाजी ने अमन को समझाया बेटा यह सब इंसानों के द्वारा किया गया दुरुपयोग है जो हमारी प्रकृति को दिनोंदिन खतरे की ओर ले जा रहा है।
परिस्थितियां भी कितनी अजीब होती हैं अर्थात समय भी इंसान को ऐसे कटघरे में लाकर खड़ा कर देता है जहां वह यह सोचने के लिए मजबूर हो जाता है की अज्ञानता वश या काल के कुचक्र वश कुछ ऐसी गलतियां हो जाती हैं जिन्हें उसका अंतर्मन कभी क्षमा नहीं कर सकता ।
किसी सीमा तक व्यक्ति विशेष का इसमें कोई दोष नहीं रहता है अपितु वक्त के बेरहम शिकंजे में जकड़ कर वह मजबूरी बस ऐसा करता है लेकिन कुछ पल के लिए गुजरा वक्त पुनः वापस तो नहीं लाया जा सकता।
और इस प्रकार इंसान एक भूलभुलैया में आकर फस जाता है लाख उपाए सोचने पर भी वह बाहर आने का रास्ता नहीं खोज पाता।
ऐसी ही कुछ परिस्थितियां मौजूदा हालात में निर्मित हो गई है जिन्हें काल के कुचक्र वश या इंसान की भूलवश उसका परिणाम संपूर्ण मानव जाति को भुगतना पड़ रहा है।
अब यही समय इंसान के धैर्य और समझदारी का है जब हर इंसान को अपनी अपनी सीमाओं में रहकर धैर्य और समझदारी का परिचय देना है।
आज हर कोई तनाव में है किसी को भविष्य का तनाव है तो किसी को वर्तमान परिस्थितियों का तनाव है तो किसी को जो बीत गयाहै उसका तनाव है इंसान इस तनाव से मुक्त होने के तरीके ढूंढ रहा है। हर व्यक्ति के मन में आज असंतोष व्याप्त है ।
लेकिन शांति तो इंसान के अंतर्मन में ही व्याप्त होती है उसे कहीं बाहर ढूंढने जाने की जरूरत नहीं पड़ती।
आज समय आ गया है कि इंसान अपने अंतर्मन में व्याप्त शांति को खोजें एवं विश्व में शांति की तरंगे स्थापित करें । एवं जो प्रकृति के अनुकूल हो वही कार्य करें।
शायद यही इंसानों के द्वारा किए गए प्रकृति के ऊपर अत्याचार का सही प्रायश्चित होगा। जो कारण बनता है वही निवारण भी बनता है इंसान ही कर्ता है और इंसान ही कारक है। तो निर्णय भी समस्त मानव जाति को मिल कर लेना होगा कि यदि आगे आने वाली पीढ़ी का भविष्य सुरक्षित करना है तो हमें किस राह पर जाना चाहिए।