पहले प्यार का एहसास
पहले प्यार का एहसास
एक पुरानी किताब के पन्ने पलटते हुए किसी एक पन्ने के बीच एक सूखी हुई गुलाब की कली मिली , जो कई वर्षों से इस किताब में कैद हो कर रह गयी थी। हालांकि ये मुझे किसी ने दी नही थी। अपितु मैंने किसी को देने के लिए इस कली को तोड़ा था परंतु दे नहीं पाया। कुर्सी पर बैठा उस सूखी गुलाब की कली को हाथ की अंगुलियों के बीच पकड़ कर घुमाने लगा और उन हसीं पलों को याद करने लग पड़ा जब मुझे प्यार हुआ था ...हाँ प्यार ...मेरा पहला प्यार। बात उन दिनों की है जब मैंने स्नातक की पढ़ाई करने के लिए कॉलेज में दाखिला लिया था। उसने भी उसी कालेज में दाखिला लिया था।हालांकि मैं विज्ञान संकाय का छात्र था और वो बी.ए. प्रथम वर्ष की छात्रा थी हमारी कक्षाएं अलग अलग लगती थीं परन्तु आना और जाना एक ही बस में था। हम कॉलेज जाने के लिए एक ही जगह से बस लेते थे। और लगभग पन्द्रह किलोमीटर का सफर तय करके कॉलेज पहुंचते थे। मुझे वो पहले दिन से ही बहुत अच्छी लगने लगी थी। उसकी प्यारी सी आँखें ,लम्बे बाल और उसकी सादगी भरी मुस्कुराहट मुझे बहुत अच्छी लगने लगी। और धीरे धीरे वो मेरे दिल में जगह बनाती गई। स्कूल की ज़िंदगी से एक दम अलग कॉलेज की स्वतन्त्र ज़िन्दगी ने इस उठती चिंगारी को और हवा दी। मैं एक माध्यम वर्गीय परिवार से था। सीमित जेब खर्च मिलने के कारण बढ़ी सादगी से रहता था। ऊपर से आत्मविश्वास की कमी ,शर्मीला स्वभाव। पर उन दिनों न जाने क्या होने लगा। सुबह जल्दी उठ कर जल्दी से नहा धो कर आईने के आगे खड़े हो कर अपने बाल बनाना। अपने को घण्टो निहारना। स्टाइलिश कपड़े पहनना। और जल्दी जल्दी तैयार हो कर बस स्टॉप पे खड़े हो जाना और इंतज़ार करना कि कब वो आये। उसके आने पर अजीब सी सिरहन दिल में छा जाती, दिल ज़ोरों से धड़कने लगता। उसको दूर से देखना। वो बस की जिस सीट पर बैठती थी मैं उसके ठीक सामने दूर खड़ा हो कर उसको निहारता रहता। वो भी चोरी से मेरी तरफ नज़र घुमाती फिर नज़रें झुका लेती।
कुछ दिनों बाद एक ही बस में आते जाते उसकी सहेलियां मेरे साथ बातचीत करने लग पड़ीं। मैंने उनमें से एक सहेली को अपने दिल की बात बताई और कहा कि उससे कहो कि ये लड़का तुम से प्यार करता है। पर उसने इनकार किया और बोली तुम खुद बात कर लो मैं नही बोलूंगी। शायद बाद में उसने बोल भी दिया हो। क्यों कि उस दिन के बाद उसके चेहरे पर बहुत प्यारी सी मुस्कुराहट रहने लगी। एक दिन कालेज की बस में ज्यादा भीड़ नही थी। वो बस की सीट पर अकेली बैठी थी। मैंने इशारे से सीट शेयर करने के लिए पूछा और उसने मुस्कुराकर अपनी हामी भर दी। मैं हिम्मत करके उसके बगल में बैठ गया। पहले तो कुछ देर चुप चाप बैठे रहे। पर उस समय दिल ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा था, सांसे तेज़ तेज़ चल रही थी। फिर सब्र का बांध टूट गया और मैंने बात शुरू की और अपने दिल का हाल बता डाला। मेरे मन में जो कुछ भी था वो बोल डाला। वो नज़रें झुकाए सुनती रही और बेचैनी में हाथ में पकड़े पेन को उँगलियों में घुमाती रही। इतने में कॉलेज आ गया और सब उतरने लगे वो भी बिना कुछ बोले सीट से उठ गई। जाते जाते मैंने उससे कहा तुम्हारे ज़बाब का इंतज़ार रहेगा। वो बिना कुछ कहे उतर गई और जाते जाते उसने मुड़ कर मेरी तरफ देखा और मुस्कुरा दिया। उसका मुस्कुराना मेरी ज़िंदगी का सबसे हसीन पल था। अब ज़िन्दगी और हसीन लगने लगी।
मेरी क्लास और उसकी क्लास अलग अलग समय पर लगती थी। जब उसका फ्री पीरियड होता तो उस वक्त मेरी क्लास का समय होता था। अक्सर क्लास बंक करके उसको देखने वहां पहुंच जाता जहां वो बैठी होती। और हमारी आँखों ही आँखों में बातें शुरू हो जातीं। कुछ दिनों बाद ऐसा पल आया। 14 फरबरी का दिन था "वैलेंटाइन डे"। मैंने बाजार से एक कार्ड लिया साथ में एक गुलाब की एक कली। मन में उमंगें लिए कॉलेज जाने के लिए बस स्टॉप पर पहुंचा। मैंने सोचा आज वो गुलाब का फूल मैं उनको दूंगा।पर अफसोस उस दिन वो कालेज जाने के लिए वहां नही आई। मैं मायूस हो कर बस में बैठ गया बड़े उखड़ें से मन से कॉलेज पहुंचा उस दिन कॉलेज में बहुत रौनक थी सभी के चेहरे खिल हुए थे पर मैं ..मुंह लटकाए कॉलेज के गेट के रास्ते की तरफ देखता रहा शायद अब आ जाये शायद तब आ जाये पर वो नही आई।
उस दिन लगभग 11 बजे मेरा एक दोस्त लाइब्रेरी से अखबार पकड़ कर मेरी ओर भाग भागा आया और बोलने लगा तुम्हारी प्रतियोगी परीक्षा का रिजल्ट आ गया है और तू पास हो गया है। मुझे उसी सप्ताह दो वर्ष के कोर्स के लिए धर्मशाला जाना था। मुझे खुशी भी थी पर उससे बिछुड़ने का गम भी। अगले दिन हम मिले उसने मुझे बधाई दी। सब दोस्तों ने चयनित होने की खुशी में एक रेस्टोरेंट में पार्टी भी की। वो मेरे पास वाली कुर्सी पर बैठी थी। दिल की घुटन हम दोनों के चेहरे पर साफ दिख रही थी। सब खाने पीने में व्यस्त थे पर हम एक दूसरे की आंखों में छलकते आंसुओं और रुंधे हुए गले को महसूस कर रहे थे। उस दिन घर लौटते वक्त बस में आये तो साथ पर कुछ बोल न सके आंखों से निकलते आंसू होने वाली लम्बी जुदाई की पीड़ा का अनुमान बयाँ कर रहे थे .......