"लालच " का एहसास
"लालच " का एहसास
गुरुकुल में शिक्षा लेते समय एक छात्र ने गुरुजी से पूछा , गुरु जी ये 'लालच' क्या होता है ? गुरुजी उस समय कुछ न बोले । अगले दिन सुबह उन्होंने छात्रों को अपने पास बुलाया और उनको बोलने लगे ,"प्यारे बच्चो आज मैं आपको एक बहुत ही सुन्दर और रहस्यमयी जगह पर ले चलूंगा "। आपको वहां जा कर बहुत अच्छा लगेगा । सभी छात्र उत्साह से उछल पड़े ।
गुरुजी उन्हें एक जंगल के रास्ते फूलों से लदे पेड़ों के बीच से होते हुए एक सुंदर से झरने के पास ले गए । वहां का दृश्य देखते ही बनता था । सामने के पर्वत से गिरने वाले झरने की कल कल की आवाज़ बहुत ही सुंदर सा एहसास करवा रही थी । वहां जा कर गुरुजी बोलने लगे ,"प्रिय छात्रों आओ यहां थोड़ी देर के लिए विश्राम कर लेते हैं ,आप नाश्ता वगैरह कर लो फिर आगे क्या करना है मैं बताता हूँ"। सभी छात्र भोजन करने लग पड़े । थोड़ी देर विश्राम करने के बाद गुरु जी ने सब बच्चों को अपने पास बुलाया । और बोलने लगे ,"प्यारे छात्रों अब मैं एक गुफा मार्ग से आपको पर्वत के दूसरी ओर ले जाऊंगा" । ये गुफा हीरों की खान से हो कर गुज़रती है । आप जैसे जैसे गुफा में जाओगे आपको अनेको प्रकार के रंग बिरंगेऔर चमकदार हीरे दिखते
जाएंगे। आपको अपने लिए सिर्फ एक हीरा वहां से उठाना है । पर शर्त ये है आप आगे की ओर कदम बढ़ाएंगे और पीछे की ओर नही मुड़ेंगे "।
सभी गुफा की ओर चल पड़े । गुफ़ा के अंदर प्रवेश करने पर थोड़ी ही देर में वो हीरों की खान के रास्ते से गुजरे । बहुत सुंदर सुंदर चमकदार हीरे खान में से बाहर की ओर झांक रहे थे । छात्र गुरु जी की शर्त के अनुसार आगे बढ़ते जा रहे थे । हीरों की चकाचोंध में वो खो से गये । वे हीरों को हाथ से छूते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे । तभी अचानक हीरों की खान में से निकल कर वे गुफ़ा के दूसरे सिरे पर पहुँच गए । दूसरी ओर पहुंच कर गुरुजी बोले, "बच्चो ,मुझे अपना अपना हीरा दिखाओ जो मैंने आपको लाने को बोला था" । इस पर छात्र बोलने लगे," गुरु जी हम तो हीरा साथ लाये ही नही" । गुरु जी बोले ,"ऐसा क्यों "? छात्र बोलने लगे ,"गुरु जी आपने हमे निर्देश दिया था कि आप एक ही हीरा ला सकते हो । हम जैसे जैसे आगे की ओर बढ़ते गए हीरों का आकार भी बढ़ता गया । हमने सोचा शायद आगे चल कर और अधिक बड़ा हीरा मिल जाये ,जिस से हमे और अधिक लाभ हो । इसी कारण हम आगे बढ़ते गए किन्तु अचानक ही गुफ़ा खत्म हो गई "। अब आपके आदेशानुसार हम वापिस भी नही जा सकते थे । बस इसी संशय में हम एक भी हीरा साथ नही ला पाए । गुरुजी अट्हास लगा कर ज़ोर ज़ोर से हंसने लगे । बोलने लगे ,"आपको कल के प्रश्न का उत्तर मिल गया होगा?" । छात्र बोलने लगे हम समझे नही गुरु जी विस्तार से समझाइए । तब गुरु जी बोले ,"बच्चो मैंने आप सब को समान अवसर प्रदान किया कि आप सब एक हीरा ले आएं । परन्तु आपने बड़े आकार का पाने के चक्कर में जो आपको मिल रहा था उसका भी त्याग कर दिया । यही 'लालच' की परिभाषा है "।
जब मनुष्य अपनी मेहनत और इमानदारी की कमाई को दरकिनार कर अनचाहे साधनों से अधिक संपत्ति अर्जित करने की चेष्टा करता है ये प्रवृति लालच कहलाती है और लालच हमेशा पतन की ओर ले जाता है । गुरुजी के बात छात्रों को समझ आ चुकी थी । अब वे मन ही मन पछता रहे थे । कि काश उन्होंने लालच न किया होता ।