Suresh Koundal

Abstract Inspirational

4.6  

Suresh Koundal

Abstract Inspirational

भीख का मोल

भीख का मोल

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समुद्र के किनारे बसे एक शहर में मेला लगा हुआ था। बहुत दूर दूर से व्यापारी मेले व्यापार करने आये हुए थे। अनेकों तरह के सामानों से सजे मेले में लोगों के चहल पहल लगी हुई थी। वहीं एक भिखारी फटे पुराने चीथड़ों में लिपटा जन जन से भीख मांग रहा था। कुछ लोग पैसा दो पैसे देते और कुछ सिर हिला कर आगे की ओर जाने का इशारा कर देते। भिखारी अभी युवा ही था। तभी वो भीख मांगता मांगता एक युवा व्यापारी के पास जा पहुंचता है और उस से भीख की मांग करता हुआ बोला , "बाबू जी कुछ पैसे दे दो, ईश्वर तुम्हारा भला करेगा।"

उस युवा व्यापारी ने भिखारी की तरफ देखा और पूछने लगा ,"मैं तुम्हें पैसे क्यों दूं क्या इसके बदले तुम मुझे कुछ दे सकते हो ?" इस पर भिखारी भोला, मैं तो एक साधारण सा भिखारी हूँ। मैं आपको क्या दे सकता हूँ ? मैं तो खुद मांग कर खाता हूं। ये सुनकर वो युवा व्यापारी बोला, मैं तो एक व्यापारी हूँ वस्तु के बदले ही कुछ देता या लेता हूँ। यदि तुम मुझे कुछ दे सकते हो तो उसके बदले में तुम्हें पैसे दे सकता हूँ अन्यथा नहीं।" ये कहकर वो युवा व्यापारी आगे बढ़ गया।

व्यापारी द्वारा कहे गए शब्द भिखारी के दिल में बैठ गए। वो सोचने लगा। मैं लोगों से कुछ न कुछ मांगता हूं पर देता कुछ भी नहीं। शायद इसी लिए मैं अधिक भीख प्राप्त नहीं कर पाता। मुझे कुछ न कुछ लोगों को देना भी चाहिए। ऐसा विचार मन में सोचता सोचता वो समुद्र तट पर चलता रहा। तभी एक समुद्र की तरफ से एक लहर आती है और पानी उसके नँगे पैरों को छूता हुआ वापिस लौट जाता है पर कुछ रंग बिरंगी सीपियाँ और छोटे छोटे शंख छोड़ जाता है। उन्हें देख कर उस भिखारी के चेहरे पर चमक आ जाती है और मन में एक विचार आता है कि क्यों न मैं ये रंग बिरंगी सीपियाँ और ये छोटे छोटे शंख लोगों को भीख के बदले में दूँ। ये सोच कर अपनी झोली में कुछ सीपियाँ और शंख इकट्ठा कर लिए। और भीख के बदले उन्हें लोगों में बांटने लगा। उस दिन उसे पहले के मुकाबले ज्यादा भीख मिली। अब रोजाना वो सुबह सुबह जा कर सुंदर से सुंदर सीप और शंख चुन चुन कर इकट्ठा करता और भीख के बदले लोगों को देता। अब उसको और ज़्यादा पैसे मिलने लगे। 

एक दिन भीख मांगते उस भिखारी को वो युवा व्यापारी मिल गया जिसने उसको वस्तु के बदले वस्तु देने की बात बताई थी। उसके पास जा कर वो बोला , "बाबूजी आज मेरे पास आपको देने के लिए कुछ शंख और सीपियाँ हैं।" उस युवा व्यापारी ने वो सीपियाँ और शंख उस भिखारी से ले लिए और जेब से पैसे निकाल कर भिखारी को देते हुए बोला " अरे वाह! तुम तो मेरी तरह एक व्यापारी बन गए हो " ये बात कह कर वो युवा व्यापारी आगे की ओर चला गया। परन्तु भिखारी पैसे हाथ में लिए वहीं निःशब्द खड़ा रहा और विचार करने लगा। व्यापारी ? मैं व्यापारी कैसे ? 

तभी उसके चेहरे पर एक चमक सी कौंध गई। उसे इस चीज़ का आभास हुआ कि आज तक मुझे इन सुंदर सीपियों और शंखों के बदले जो भीख मिल रही थी वो भीख नहीं थी बल्कि इन सीपियों शंखों का मूल्य था। वो खुशी से झूम उठा उसको एक नई राह मिल चुकी थी।


कुछ वर्षों बाद हर वर्ष की तरह उस शहर में मेला लगा। इत्तफाक से दो सुंदर परिधान पहने युवा व्यापारियों का मिलन हो गया। एक ने दूसरे से हाथ मिलाने के लिए अपना हाथ बढ़ाते हुए दूसरे से पूछा क्या आपने मुझे पहचाना ? दूसरा बोला," माफ कीजिये, नहीं, मैंने आपको पहचाना नहीं क्या हम पहले कहीं मिल चुके हैं?" ये सुनकर पहला बोला , "हाँ श्रीमान, एक बार नहीं बल्कि तीसरी बार हमारी मुलाकात हो रही है। पहली बार में आपको भिखारी के रूप में मिला पर आपने भीख देने से इनकार किया पर मुझे वस्तु विनिमय का ज्ञान दे गए। जब दूसरी बार मिला तो मैंने वस्तु के बदले भीख मांगी तब तक में भिखारी ही था और भीख ही मांग रहा था परंतु आपने मुझे वस्तु के मोल के बारे में बताया और मुझे व्यापार करने के लिए मार्ग दिखा गए। उस समय के बाद मैंने सीपियों और शंखों का व्यापार शुरू कर दिया। यहां के आस पास के बाज़ारों में सजावटी वस्तुओं के लिए इनकी बहुत मांग है। मैं इन्हें बेच कर जो भी धन एकत्रित किया उस धन से एक कारोबार खोला जिसमें शंखों सीपों का बना सजावटी सामान बनाया जाता है और देश विदेशों में भेज जाता है। मेरे इस सामान की बहुत मांग है। आज में एक सफल व्यापारी बन चुका हूँ। और व्यापार के सिलसिले में यहां इस मेले में आया हूँ।"


ये सुनकर दूसरा व्यापारी बहुत खुश हुआ और फिर वे दोनों व्यापार की बातें करते करते आगे की ओर बढ़ चले।

इस कहानी से हम समझ सकते हैं कि इस संसार में हमें कोई भी वस्तु पाने के लिए कोई न कोई मोल चुकाना पड़ता है। बिना कुछ दिए कुछ लिया नहीं जा सकता। 

यही प्रकृति का नियम भी है। हम लगातार प्रकृति का दोहन करते हैं लेकिन प्रकृति को कुछ देते नहीं। जो कि प्रकृति के नियमों के विपरीत है। यही बात सामाजिक रिश्तों पर भी लागू होती है की किसी को प्यार बांटे बिना प्यार पाने की आशा नहीं की जा सकती।



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