कौवे और हंस की संगत में अंतर
कौवे और हंस की संगत में अंतर
प्राचीन काल से ही हंस को अच्छाई, सदभाव, नम्रता आदि गुणों को व्यक्त करने के लिए तथा कौवे को विपरीत गुण होने के कारण छल कपट , बुरे व्यवहार के कारण बुराई के प्रतीकात्मक रूप में काव्यों में और कहानियों में उदाहरण स्वरूप प्रयोग किया गया है । हंस के निर्मल स्वभाव का महिमामण्डन अक्सर किस्से कहानियों में किया हुआ मिल जाता है । उसी प्रकार कौवे को छल कपट के लिए प्रतीकात्मक उपयोग किया गया है । इस कहानी में भी कुछ इसी प्रकार कौवे और हंस को चरित्र और स्वभाव का व्याख्यान करने के लिए प्रतीकात्मक रूप से उपयोग किया गया है ।
बहुत समय पहले एक गांव में दो ब्राह्मण रहते थे, एक गरीब था तो दूसरा अमीर..दोनों पड़ोसी थे ।गरीब ब्राहमण की पत्नी ,उसे रोज़ झगड़ा करती और दरिद्रता के लिए ताने देती । उसके रोज़ रोज़ के तानों से तंग आ कर दिन एकादशी के रोज़ गरीब ब्राह्मण आत्महत्या का विचार मन में लिए जंगल की ओर चल पड़ता है मन ही मन ये सोच कर , कि जंगल में शेर या कोई जंगली जानवर उसे मार कर खा जायेगा ,उस जीव का पेट भर जायेगा और वो भी रोज की नोक झोंक, लड़ाई, तानों और गालियों से मुक्त हो जायेगा..।
चलते चलते घने जंगल के मध्य पहुंच कर उसे एक गुफ़ा नज़र आती है...वो गुफ़ा की तरफ़ जाता है...। उस गुफ़ा में एक शेर रहता था । ब्राह्मण ने देखा शेर गूफ़ा में सो रहा है । शेर की नींद में कोई ख़लल न डाले ,इसके लिए पहरेदारी के लिए एक हंस गुफा के द्वार पर खड़ा है ।
हंस ज़ब दूर से उस ब्राह्मण को आते देखता है तो चिंता में पड़ जाता है और सोचता है..ये ब्राह्मण आयेगा ,शेर जागेगा और इसे मार कर खा जायेगा...ऐसा होने पर एकादशी के दिन मुझे ब्रह्म हत्या का दोष लगेगा...इसे बचायें कैसे???
उसे एक उपाय सूझता है और वह शेर के भाग्य की तारीफ़ करते कहता है...हे जंगल के राजा..उठो.. जागो..आज आपके भाग खुले हैं, एकादशी के दिन खुद विप्रदेव आपके घर पधारे हैं, जल्दी उठें और इन्हे दक्षिणा दें रवाना करें...आपका मोक्ष हो जायेगा.. ये दिन दोबारा आपकी जिंदगी में शायद ही आये, आपको पशु योनी से छुटकारा मिल जायेगा...।
शेर दहाड़ कर उठता है , हंस की बात उसे सही लगती है, और पूर्व में शिकार हुए मनुष्यों के गहने थे वे सब के सब उस ब्राह्मण के पैरों में रख , शीश नवाता है, जीभ से उनके पैर चाटता है..।
हंस ब्राह्मण को इशारा करता है, विप्रदेव ! ये सब गहने उठाओ और जितना जल्द हो सके वापस अपने घर जाओ...ये सिंह है.. कब मन बदल जाय..।
ब्राह्मण बात समझता है घर लौट जाता है.... घर पहुंचने के पश्चात उसके पडोसी अमीर ब्राह्मण की पत्नी को जब सब पता चलता है तो वो भी अपने पति को जबरदस्ती अगली एकादशी को जंगल में उसी शेर की गुफा की ओर भेजती है....।
अब की बार शेर का पहरेदार बदल जाता है..नया पहरेदार होता है 'कौवा' ।
जैसे कौवे की प्रवृति होती है वो सोचता है ...अमीर ब्राह्मण को गुफा की तरफ आते देख कौवा मन ही मन सोचता है ।
अरे वाह बहुत बढ़िया ..गुफा की ओर ब्राह्मण आ रहा है .. यह आते ही शेर को जगायेगा। शेर की नींद में ख़लल पड़ेगी, वो गुस्साएगा और ब्राह्मण को मारेगा, तो कुछ ना कुछ मेरे भी हाथ लगेगा, मेरा पेट भर जायेगा...मज़ा आ जायेगा ।
ये सोच वो कांव.. कांव.. कांव...चिल्लाता है....शेर गुस्सा हो जाता है..दूसरे ब्राह्मण पर उसकी नज़र पड़ती है । पर उसे हंस की बात याद आ जाती है.. वो समझ जाता है, कौवा क्यूं कांव..कांव कर रहा है.....।
वो अपने, पूर्व में हंस के कहने पर किये गये धर्म को खत्म नहीं करना चाहता..पर फिर भी शेर तो शेर होता है जंगल का राजा...।
वो दहाड़ कर ब्राह्मण को कहता है.."
हंस उड़ सरवर गये और अब काग भये प्रधान...हे विप्रा आपणे घरे जाओ ..मैं ना किसी का यजमान...।"
( अर्थात हे ब्राह्मण देव ! हंस जो अच्छी सोच वाले, अच्छी मनोवृत्ति वाले थे वे उड़ कर सरोवर यानि तालाब को चले गये है । और अब कौवा प्रधान पहरेदार है जो मुझे तुम्हें मारने के लिये उकसा रहा है..इससे पहले कि मेरी बुद्धि घूमें..... हे ब्राह्मण, आप यहां से चले जाओ..शेर आज तक किसी का यजमान नहीं हुआ है..वो तो हंस था जिसने मुझ शेर से भी पुण्य करवा दिया ।)
दूसरा ब्राह्मण सारी बात समझ जाता है और वह डर के मारे तुरंत प्राण बचाकर अपने घर की ओर भाग जाता है ।
कहने का मतलब है दोस्तों...ये कहानी आज के परिपेक्ष्य में भी सटीक बैठती है , हंस और कौवा कोई और नहीं ...हमारे ही चरित्र हैं । जो कोई किसी का दु:ख देख दु:खी होता है और उसका भला सोचता है , वो हंस है...और जो किसी को दु:खी देखना चाहता है , किसी का सुख जिसे सहन नहीं होता ...वो कौवा है ।
जो आपस में मिलजुल, भाईचारे से रहना चाहते हैं , वे हंस प्रवृत्ति के हैं । और जो झगड़े कर एक दूजे को मारने लूटने की प्रवृत्ति रखते हैं वे कौवे की प्रवृति के हैं ।
कार्यालय में ,व्यवसाय में , समाज मे या किसी संगठन में जो किसी सहयोगी साथी की गलती या कमियों को बढ़ा चढ़ा के बताते हैं, उसको हानि पहुचाने के लिए उकसाते हैं...वे कौवे जैसे हैं..और जो किसी सहयोगी ,साथी की गलती, कमियों पर भी विशाल ह्रदय रख कर अनदेखी करते हुए क्षमा करने को कहते हैं ,वे हंस प्रवृत्ति के हैं ..।
अपने आस पास छुपे बैठे कौवौं को पहचानों, उनसे दूर रहो ...और जो हंस प्रवृत्ति के हैं , उनका साथ करो.....। इसी में आपका व हम सब का कल्याण छुपा होता है ।