Dr Jogender Singh(jogi)

Abstract

4.0  

Dr Jogender Singh(jogi)

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पगली मूँगी

पगली मूँगी

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उसे सुन्दर तो नहीं कह सकते ,किसी भी कोण से।औसत से लम्बा क़द , लम्बी नाक (उपले सी) , गेन्हुआ दबा हुआ रंग , लंबोतरा चेहरा । माथा सिकुड़ा सा। ऊपर से पहनावा बाबा आदम के जमाने का, लम्बा सा कुर्ता , ढीला ढाला । सलवार की ऊँचाई से कोई मतलब नहीं, कहीं भी रुक सकती है ,टखने से लेकर पिंडली तक।नाम मूँगी? कैसा नाम है मूँगी , मूँग की दाल बच्चे छेड़ते उसको । इतना प्यारा नाम है मेरा ! वो हँसते हुए बोलती ,तो चमकते क़रीने से सजे दाँतों की पंक्तियाँ दिखती । हाँ ,हँसते हुए मूँगी सुन्दर दिखती ,बहुत सुन्दर। मानो हँसी का सतरंगी पर्दा उसके औसत चेहरे का मेक ओवर कर देता। इंसान से परी बन जाती पल में। पर हंसती कम ही थी । 

अपने में मगन, दुनिया जाये भाड़ में । कोई साथ में खेलने आ गया , ठीक । कोई नहीं आया तो मूँगी की बल्ले बल्ले । अकेले में अपने काठ के गुड्डे /गुड़िया की शादी करवाती , फिर उनके बच्चे हो जाते ( काठ के छोटे टुकड़े ) , पूरा पूरा दिन वो काठ के परिवार के साथ काट देती । ना खाने का होश रहता ना पीने का।

"सुमित्रा ! सुनो , सुनती क्यों नहीं ?इस लड़की को सुनता क्यों नहीं ।" नारदा ने आवाज़ लगाई ।

 "माँ ! आ रही हूँ । मूँगी भागते हुए आयी । मुझे मूँगी ही बुलाया करो , सुमित्रा मुझे अच्छा नहीं लगता।"

"और साल दो साल में तुम्हारी शादी होगी तब ! ससुराल में भी मूँगी बोलेंगे तुम्हें?"

"ससुराल ? मुझे नहीं जाना तुम्हें छोड़ कर ।ठीक तो हूँ यँहा पर।"

"ठीक है, मत जाना ! खाना खायेगी या व्रत है ।" नारदा ने लाड़ से कहा।

"खाना खा कर मैं कमला के घर चली जाऊँ ? "

"क्यों? उसको बुला लो ना अपने घर! "

"नहीं ! मुझे ही जाना है , उसका काला मेमना कितनी मस्ती करता है , मुझे देखना है उसको!"

"ठीक ! चली जा , पर जल्दी आ जाना वहीं न बैठ जाना।और बाल ठीक कर ले अपने , पागल बन कर मत चली जाना ।"

"ठीक तो है बाल , कौन शहर जा रही हूँ ? बग़ल में तो जाना है।"

"कमला ! क्या कर रही हो? मूँगी ने आवाज़ दी।"

"लो आ गयी आफ़त गुलाबों बोली , जा कमला देख क्या चाहिये इसको?"

 "अम्मा , मेरी सबसे प्यारी सखी है , मूँगी । आफ़त न बोलो उसको।"

"कमला , बुरा न मानो धीरे से कान में बोली मूँगी।प्रणाम ताई।"

"ख़ुश रह" ,मुँह बिचकाते गुलाबों बोली। 

"चलो छत पर खेलते हैं ।“ठीक “मूँगी बोली। दोनो छत पर जाने लगी।"सम्भाल कर झल्लियों", गुलाबों चिलाई।

मुँडेर पर बैठी बतियाने लगी “मेरी शादी के बाद तू मुझे क्या बुलाएगी कमला?”सुमित्रा या मूँगी? 

"यह क्या बात हुई ?" आँखे फैला कर कमला बोली , "अभी तेरी शादी ।"

"माँ कह रही है , साल/दो साल में मेरी शादी हो जायेगी ,फिर सब मुझे सुमित्रा बुलायेंगे ।तू मुझे मूँगी ही बुलाना ।"

"मैं तो मूँगी ही बोलूँगी । भगवान जी से माँग लेना कि हम दोनो की शादी एक ही घर में हो जाए , फिर कम से कोई तो होगा जो तुम्हें रोज़ मूँगी बोलेगा ।"

"सच्ची !!!! कितनी अच्छी है तू" , कमला का हाथ पकड़ बोली ।

मूँगी के लिये लड़का देखा जा रहा है।काफ़ी भाग दोड़ के बाद ,रणधीर ने एक रिश्ता पक्का कर दिया।

"सुन कमला अब मेरी शादी होने वाली है।"

"पता है , चली जायेगी छोड़ कर ।"

"तुम भी उसी गाँव में शादी कर लेना ,बहुत मज़ा आयेगा ।"

"पागल ! बापू रिश्ता तय करेंगे वँही होगी शादी ।"

काफ़ी धूमधाम से शादी हुई।विदाई के समय नारदा ने मूँगी को चिपका लिया “,मेरी मूँगी “और ज़ोर ज़ोर से रोने लगी।कमला, गुलाबों ,रणधीर सभी उसको मूँगी बोल रहे हैं । मूँगी रो रही है , पर ख़ुश भी है , वो सुमित्रा होने से जो बच गयी । सब मेरी मूँगी /मेरी बेटी बोल रहे हैं।



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