Vibha Rani Shrivastava

Tragedy

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Vibha Rani Shrivastava

Tragedy

नंगा से गंगा हारी

नंगा से गंगा हारी

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वॉट्सएप्प शैली

[08/05, 9:54 am] पूर्णिमा : एक बार पुनः सम्मेलन की कार्यसमिति और स्वागत समिति ने अपने श्रम-सामर्थ्य, सम्मेलन और साहित्य के प्रति अपनी महान निष्ठा तथा अध्यक्ष के प्रति प्रेम का प्रणम्य परिचय दिया है। तभी तो सम्मेलन का सद्यः संपन्न 50 वाँ महाधिवेशन भव्य रूप में आयोजित हो सका। अध्यक्ष अपने सभी सहयोगी विद्वानों और प्रणम्य विदुषियों के प्रति हार्दिक आभार प्रकट करते हुए, महाधिवेशन की अपार सफलता के लिए बधाई दे रहे हैं! इसी माह अध्यक्ष एक भव्य आनन्द-उत्सव का भी आयोजन करेंगे, जिसमें अपने सभी सहयोगियों का अभिनन्दन करना चाहेंगे! एक बार पुनः हार्दिक बधाई!

[08/05, 10:14 am] अर्चना : खुलासा जब होगा तब सफलता का एहसास होगा...। वो आईना हम दिखाएंगे...। मेरे पास भी हर चीज का लेखा-जोखा है पूरा रिकॉर्ड है, कितना सफलतापूर्वक कार्य होता है सम्मेलन में।

[08/05, 10:24 am] अर्चना : अध्यक्ष जी का दुबारा जीतने के बाद बुद्धि भ्रष्ट हो गया है।

[08/05, 10:29 am] विभा रानी : किसी बात की शिकायत होना अलग बात है। अशोभनीय बात करना अलग बात है। क्या आप अपने घर के मुखिया के लिए ऐसी अशोभनीय बात कह सकती हैं?

[08/05, 10:33 am] विभा रानी : हमारे शब्द हमारे संस्कार, परवरिश, परिवेश के परिचायक होते हैं। किसी का सम्मान या किसी का अपमान हमारे शब्द कर ही नहीं सकते हैं।

[08/05, 10:41 am] अर्चना : हम जहाँ गलत होता है उसको गलत ही कहेंगे, आप की परिभाषा के अनुसार मुझे नहीं चलना है।

[08/05, 10:47 am] विभा रानी : गलत को गलत कहना बड़े साहस की बात है। आपके साहस को सलाम करते हैं। लेकिन कोई भी बात कहने का एक ही सही तरीका होता है। शिकायत करने की भी मर्यादा होती है। बड़े-छोटे का लिहाज करना अपना संस्कार होता है। खैर! मैंने भी गलत तरीके से बात कहने का विरोध किया, नहीं तो मूक साक्षी होने से गलत बात में साथ देना हो जाता।

[08/05, 11:23 am] अर्चना : आप हमारी तुलना अपने से ना करें आप एक साहित्यकार हैं और हम गलत जहां होता है उसका आवाज उठाते हैं बस एक ही मकसद है मेरा...। थोड़ा बहुत लिख लेते हैं आपके जैसे विद्वान तो नहीं है लेकिन अच्छे-अच्छे विद्वान लोगों का भी छक्का छुड़ाते हैं।

[08/05, 12:02 pm] विभा रानी : सच ही दुनिया कहती है, 'कहीं-कहीं राय देने से अच्छा है पाँच पैसा दे देना। मिथक रावण का उदाहरण देने का कोई लाभ नहीं, वहम से हुए अहम का कोई निदान नहीं। संयम और संवेदनशीलता ना हो तो ना तो साहित्यकार और ना आदमी बनने का कोई मोल होगा।

अब मौन साधा जा सकता है, वरना कीचड़ में ढेला फेंकना हो जायेगा...।


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