Vibha Rani Shrivastava

Children Stories Thriller

4  

Vibha Rani Shrivastava

Children Stories Thriller

समृद्धि

समृद्धि

2 mins
280


पाँच-सात पसेरी सट से पसर गया

दो-तीन पन्नी की थैली में ससर गया

सबरे के आठ बजे सब्जी लेने इतनी जल्दी पहुँच गये कि सब्जी विक्रेता की सपने से विमुखता ही नहीं हुई थी। सड़क पर झाडू लगाने वाला साँकल बजा रहा था। दूकान से सटकर खड़ी गाड़ी को पीट रहा था। सब्जी लेने आई अन्य महिला शोर कर रही थी। कुम्भकरण से बाज़ी लगाये युवा विक्रेता के जागने की प्रतीक्षा करुँ या लौट जाऊँ मेरे लिए निर्णयात्मक क्षण उलझन वाला था। घर वापसी पर 'क्या पकाऊँ?' वाला सौ अँक वाला प्रश्न के लिए सीमांत पर लड़े जाने वाले जंग से कम कठिन जंग नहीं होने वाला था।

लगभग बीस वर्षों से उसी दूकान से सब्जी-फल आ रहे हैं। अक्सर शाम में ही लाती रही। सुबह का यह दृश्य पहली बार की अनुभूति थी। कोरोना काल की रात्रि में सब्जी पहुँचा देता था।

आधे घन्टे के शोर के बाद हलचल दिखी। लगभग चौदह ताले खोले गये जिससे बाँस के बने चार पल्ले हटे। उसके अन्दर मोटरसाइकिल भी था और सब्जियों के ढ़ेर के बीच बिछावन। सब्जी और चूहे के बीच की गहरी दोस्ती(दाँत कटी रोटी वाली) के साक्षात्कार दिखे।

"बिन बुलाए मेहमानों का कोई इलाज़ क्यों नहीं करते हो?" मैंने विक्रेता से पूछा।

"मेरे अतिथियों को प्याज की बदबू से चिढ़ है क्योंकि यह उनके लिए टॉक्सिक साबित होती हैं। इनके प्रवेश द्वार पर जहाँ भी उनका ठिकाना है वहाँ चिली फ्लेक्स या लाल मिर्च पाउडर छिड़क दिया जाता है। किसी ने कहा छीला लहसुन परोसा जाए। अति से अभ्यस्त हो जाना भी कोई चीज होता है न ?" युवा विक्रेता ज्ञानी ने कहा।

तबाही अभ्यस्त विध्वंसक पुजारी

राख़ में जिसे दिख गया हो चिंगारी।" किसी के शब्दों को भुनभुनाती मैं सब्जियाँ छाँटने लगी।


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