नियम पालन
नियम पालन
श्रेया कॉलेज के ज़माने से ही दुपहिया वाहन तथा कार चलाती।मम्मी पापा ने समझाया भी लाइसेंस बनवा लो, किंतु बिंदास श्रेया के कान पर जूं तक न रेंगती।कारण कुछ तो कॉलेज की पढ़ाई, एंट्रेंस की तैयाारी, ट्यूशन, प्रोजेक्ट आदि।समय कहाँ था उसके पास।मस्त मौला तो वह थी ही सो यह कह कर बात हवा में उड़ा देती कि, "मुझे ड्राइविंग अच्छे से आती है, मैं संभल कर ही गाड़ी चलाती हूं।लाइसेंस वह तो एक फ़र्ज़ी दस्तावेज़ है, उस सर्टिफ़िकेट की मुझे क्या आवश्यकता ?" बात आई गई हो गई।एंट्रेंस अच्छे नम्बरों
से क्लियर करने पर महानगर के नामी कॉलेज में दाख़िला मिल गया।वहां कॉलेज कैम्पस में होस्टल में रहने लगी।कभी-कभी संखियों संग शॉपिंग, सैर-सपाटा या फ़िल्म देखने जाना होता तो वे सब मेट्रो या टैक्सी से जाती। पढ़ाई पूरी करने के बाद शादी हो गई।जिस शहर में शादी हुई वहीं उसे जॉब मिल गई।जॉब पर जाते समय वह अपनी कार ड्राइव करके ही जाती।इस शहर में ट्रैफिक के कड़े नियम थे तथा उनका पालन न करने पर दंड का प्रावधान भी था।बल्कि यूं कहें यहां की ट्रैफिक पुलिस मुस्तैदी से अपना काम करती थी।पर श्रेया तो ठहरी मस्त मौला।लाइसेंस उसने अब भी न बनवाया।
कभी-कभी ऑफिस की साथी सखी सौम्या को भी लिफ़्ट दे देती।रास्ते भर दोनों सखियां विभिन्न विषयों पर चर्चा करती।एक दिन शाम को दफ्तर से घर जाते समय सिग्नल पर खड़े हरी बत्ती का इंतजार करते हुए सौम्या ने श्रेया से कहा, "देखो श्रेया, ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन करने वालों को ट्रैफिक पुलिस चालान कर रही है।तुम्हारे पास गाड़ी के पेपर, इंश्योरेंस, पीयूसी तथा लाइसेंस है या नहीं, वरना हमें भी पुलिस वाले ने रोक लिया तो चालान बन जाएगा बिना कारण पैसे और समय की बर्बादी होगी, वैसे ही आज दफ्तर में मीटिंग के कारण बहुत देर हो गई।"श्रेया ने जवाब दिया, "यार गाड़ी के पेपर सब ओके है।रही बात लाइसेंस की तो वह तो मैं ट्रैफिक नियमों का कड़ाई से पालन करती हूं, सिग्नल पर बत्ती लाल होने पर कभी भी सिग्नल क्रॉस नहीं करती हूं, गाड़ी संभल कर ही चलाती हूं और जितने ट्रैफिक के नियम सबका पालन करती हूं, तो फिर ट्रैफ़िक पुलीस मुझे क्यों रोकेगी।बात समझ में आई, ट्रैफ़िक नियमों का करना हमारा परम् कर्तव्य है।"