Radha Shrotriya

Romance Fantasy Thriller

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Radha Shrotriya

Romance Fantasy Thriller

नील

नील

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630



नील ३६ से_५०

नील भाग ३६

नील ऑफ़िस से घर पहुँचा तो बहुत थका हुआ था।

जूते उतारे बिना ही वो सोफे पर लेट गया।

"जब तक उसकी माँ पानी लेकर आयीं उसे झपकी लग गई थी।"

"उन्होने उसे जूते पहने हुए लेटा देखा वो समझ गई कि नील बहुत थका हुआ है।"

उन्होने पानी का गिलास टेबिल पर रखा और नील के सर पर हाथ फेरने लगीं।

"एक नील ही है जिसके लिए पूरी उम्र भागदौड़ करती रहीं वो।"

"अब अंश उनकी जान है।"

वो घर पर होता तो नील कितना भी थका हुआ होता उससे मस्ती किए बिना कमरे में घुस नहीं सकता था।

" नील भी आते ही हाथ धो कर अंश को गोद में उठा लेता। और उससे ढेर सारी मस्ती करता।

अंश जोर से खिलखिला कर हँसता तो लगता सारा घर खुशी से भर गया है।"

" उसकी किलकारी नील की सारी थकान दूर कर देती थी।"

"नील को माँ के हाथों का स्पर्श बड़ा सुखद लग रहा था।"

उसकी नींद माँ के हाथ फेरने से खुल गई थी पर वो इस सुख को कुछ देर तक जीना चाहता था इसलिए चुपचाप लेटा रहा।

तभी मोबाइल पर चीया के कॉल से उसे उठना पड़ा।

"कब वापिस आये तुम? चीया ने पूछा। "

"आज सुबह।"

"अब तुम्हारी माँ की तबियत कैसी है?"

"अब ठीक हैं माँ।"

"थोड़ी वीकनेस है।"

"फिक्र मत करो। ठीक हो जाएँगी।"

नील बोला।

"अंश कहाँ है?"

"सो रहा है।"

"आज जल्दी सो गया?"

तबियत तो ठीक है ना उसकी.?

"हाँ, नानू के साथ बॉल से खेल रहा था थक गया होगा।"

माँ, कैसी हैं ? उन्हे मिस कर रही हूँ।

"माँ, भी अंश और तुम्हें मिस कर रही हैं। "वापिस आने का क्या सीन है तुम्हारा?"

दो तीन रुकने का सोच रही हूँ। तब तक माँ को भी आराम लग जाएगा।

ठीक है जैसा भी हो तुम बता देना।

अंश के बिना घर में अच्छा नहीं लग रहा है। "ह्म्म्म! समझ सकती हूँ" चीया बोली। "

और फोन कट हो गया।

नील के लिए माँ चाय बिस्किटस ले आई थी।

दोनों ने चाय पी।

नील जाने लगा तब उन्होंने पूछा चीया की माँ की तबियत अब कैसी है?

ठीक हैं अब पहले से।

तुम चाहो तो चले जाओ उनको देखना भी हो जायेगा।

सासू माँ हैं तुम्हारी।

साथ ही अंश चीया को भी ले भी आना।

"देखता हूँ माँ।"

छुट्टी भी मिलना चाहिए जाने के लिए और अभी ऑफ़िस में काम भी बहुत है।

"जैसा ठीक लगे अपनी सहूलियत से करो।"

"तुम जल्दी से फ्रेश होकर आ जाओ खाना तैयार है।

आज जल्दी सो जाना बहुत थके हुए लग रहे हो तुम।"

"ठीक है माँ।"

खाना खाकर नील अपने रूम में आ गया।

"नील, नलिनी को बहुत मिस कर रहा था।" आँखों में नींद भरी होने के बाद भी वो सो नहीं पा रहा था।

बेचैनी में इधर उधर करवट बदलता रहा पर नींद नहीं आई तो मोबाइल फोन उठाकर वो नलिनी के फोटो देखता रहा और पता नहीं कब नींद लग गई।


नील भाग _36


सुुबह अलार्म से नील की नींद खुली, बिस्तर पर खुद को अकेला देख वो ख़यालों की दुनिया से बाहर आया।

गुड मॉर्निंग का मेसेज नलिनी को भेजकर दिन भर का शेड्यूल प्लान करने लगा।

तभी माँ ने चाय के लिए आवाज़ दी।

माँ चाय पर नील का इंतज़ार कर रही थी।

सुबह की चाय नील माँ के साथ ही पीता था, चीया देर से उठती थी अंश की वजह से रात में उसकी नींद पूरी तरह से नहीं होती थी।

नील अपने डेली रूटीन से फ्री होता तब तक चीया ब्रेकफास्ट टेबल पर लगा देती थी।

कुछ सालों पहले ही कुक रख लिया था माँ को काम करता देख नील को अच्छा नहीं लगता था और मुझे माँ काम करने नहीं देती थी। एक महीने में ही माँ ने कुक को ट्रेंड कर दिया था।

नाश्ते में क्या खाओगे ?

गोभी का परांठा, पर मसाले आप डालना आपके हाथ जैसे गोभी के परांठे पूरी दुनिया में कहीं भी नहीं मिलते माँ।

हर बच्चे को अपनी माँ के हाथ का खाना बहुत स्वाद लगता है।

चलो तुम तैयार होकर आओ।

"हाँ,

"माँ, एक कप चाय और मिल जाए तो मज़ा आ जाए कुछ मेल चेक करना है।

"अभी लाती हूँ।"

नील को चाय देकर उसकी माँ वॉक पर चली गई ये उनका डेली रुटीन था एक राउंड पार्क का लगाकर मंदिर में दर्शन कर घर आ जाती।

तब तक नाश्ता लग जाता था।

गरमा गरम गोभी के परांठे, दही नीबू का अचार

अरे वाह मज़ा आ गया, नील बोला।

माँ रात के खाने पे इंतज़ार नहीं करना एक दोस्त के घर पर पार्टी है।

"हो सकता थोड़ा लेट हो जाऊं।"बोलते हुए नील ने जल्दी से शूज पहने और निकल गया।

नील का मन काम में नहीं लग रहा था।

बहुत कोशिश के बाद भी नलिनी का चेहरा उसकी आँखों से दूर नहीं हो रहा था।

उसने रास्ते से ही नलिनी को मेसेज कर दिया था कि शाम वो उसके साथ बिताना चाहता है। उसने नलिनी को बोला।

"तुम एक काम करो। आज हाफ डे ले लो।"

मैं भी जल्दी निकल जाऊँगा चार बजे हम मिलते हैं। ठीक है ?

नील ये कैसे हो पाएगा.. मैं घर पर क्या बोलूँ ?

फ्रेंड से मिलने का बोल देना।

"नहीं नील, अधिकांश लोग पहचानते हैं।"

ऐसे देख कर पता नहीं क्या सोचेंगे।

नील का मूड खराब हो गया।

नलिनी जानबूझकर उसे तंग कर रही थी

नील तुम घर पर आ जाओ क्लाइंट की फाइलें भी लेते आना।

नील घर के लोग क्या सोचेंगे.?

तुम्हारी बुद्धि को जंग लग गई है क्या नलिनी ?

नलिनी: "शायद।"

"एक काम करते हैं, हम कॉफी हाउस चलते हैं ऑफ़िस के बाद ?

बढ़िया कॉफी पीएँगे और इत्मीनान से बात भी करेंगे।

नील: अरे नहीं तुम परेशान मत हो ऑफिस से सीधे तुम अपने घर चली जाना ।

नलिनी : को हँसी आ गई" (उसने नील से झूठ बोला, उसके घर पर उसकी बाई और उसकी बेटी सपना रहती थी पर सबको यही पता था कि उसकी फेमिली है)

वो बोली तुम घर पर आ जाओ।

घर पर कोई नहीं है गाँव में चाचा ने घर पर पूजा रखी है।

सब वहां गए हैं कुछ दिनों के लिए।

नील: इससे अच्छा और क्या होगा।


नील भाग _३८


नलिनी की बात सुनकर एक पल के लिए तो नील खुशी से झूम उठा।

"मानो मुंह मांगी मुराद मिल गई हो उसे।"

पर दूसरे ही पल उसे नलिनी का ख़्याल आया कि जो लड़की घर से बाहर बिना काम किसी से मिलने तक नहीं जाती मेरी बात रखने के लिए ही उसने मुझे अपने घर पर आने के लिए कहा है।

"अगर मेरी वजह से कोई नलिनी के चरित्र पर उंगली उठाए ये मैं कभी भी नहीं चाहूँगा।"

"नहीं, नहीं मैं इतना स्वार्थी नहीं हो सकता"

मैंने नलिनी को सच्चे दिल से प्यार किया है।

मन ही मन बड़बड़ाते हुए नील ने ये भी नहीं देखा सामने से गाड़ी आ रही है।

कार ड्राइवर ने अचानक से उसे सामने आते देख हॉर्न दिया पर नील अपने में खोया हुआ था ब्रेक लगाने पर सँभलते संभलते भी नील गाड़ी से टकरा गया। ड्राइवर गाड़ी से उतरा उसने देखा कि वो अचानक ब्रेक लगाने पर भी गाड़ी की स्पीड की वजह से टकरा कर रोड के डिवाइडर से टकरा गया है। तब तक आसपास भीड़ जमा हो गई थी ड्राइवर ने लोगों की मदद से उसे उठाकर कार में बैठाया उसके सर से खून निकल रहा था हाथ पे खरोंच आ गई थी चेहरे पर भी कहीं कहीं छिल गया था।

वो उसे हॉस्पिटल लेकर गया।

डॉक्टर ने कहा घबराने की जरूरत नहीं है सर पर टांके लगाने पड़ेंगे डिवाइडर से टकराने से कट गहरा लगा है पर खतरे की बात नहीं है। नलिनी का कॉल बार बार नील के मोबाइल पर आ रहा था कार ड्राइवर ने कॉल उठा लिया वो समझ रहा था कि कॉल नील के घर से होगा।

हेल्लो .. नील की जगह किसी और की आवाज़ सुन नलिनी चौक गई.. नील.?

जी उनका एक्सिडेंट हो गया है मैं यहां करीब के अस्पताल में ले के आया हूँ आप इनकी पत्नी हैं क्या.?

नलिनी के हाथ पैर फूल गए उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे।

आप किस हॉस्पिटल में हैं?

जी मैं सुयश हॉस्पिटल में हूँ उसने कहा मेडम आप घबराए नहीं हल्की सी चोट है।

ठीक है मैं आती हूँ तब तक आप उनके पास रहें।

नलिनी तुरंत घर से सुयश पहुँच गयी।

नील के मोबाइल नंबर पर उसने फिर कॉल किया।

रिंग की आवाज़ उसके पास से ही सुनाई दे रही थी ।

नलिनी ने नील कहाँ है पूछा और कैसे चोट लगी उसने सारी घटना बताई नलिनी ने उसे धन्यवाद कहा।

जाने से पहले उसने नील का बैग और मोबाइल नलिनी को थमा दिया।

इलाज का खर्च वो जमा कर चुका था नलिनी ने पूछा तो उसने कहा कि आप फिक्र न करो बहन आप सर का ख़्याल रखो ये मेरा कार्ड है अगर जरूरत हो तो आप मुझे कॉल कर सकती हैं।

जी बोल कर नलिनी ने हाथ जोड़कर उसे धन्यवाद कहा।

नील के टांके लग गए थे और हाथ पर भी ड्रेसिंग हो गई थी उन्होने उसे रूम में शिफ्ट कर दिया।


नील भाग _३९

नर्स ने ड्रिप लगाई और दर्द का इंजेक्शन भी उसमें ही दिया।

दवाईयों के बारे में नलिनी को बताया कि कब कैसे देनी है एंटीबायोटिक दोनों वक़्त देनी है। जब तक की सर पे लगी चोट सही नहीं हो जाती और भी सारी जानकारी एहतियात के तौर पर नलिनी को समझा कर नर्स चली गई।

नील की ये हालत देख नलिनी की जान निकली जा रही थी पर वो चाह कर भी उसे टच नहीं कर रही थी।

थोड़ी देर बाद नील होश में आने लगा उसने खुद को हॉस्पिटल के बेड पर देखा उसका सर चकरा रहा था।

"बहुत धीमी आवाज़ में बोला यार ये क्या हो गया।"

नलिनी ने कहा तुम चिंता नहीं करो मैं तुम्हारे साथ हूँ।

तुम आँख बंद कर सोने की कोशिश करो।

नलिनी कुर्सी से सर टिका कर बैठ गई।

एक दिन पहले तक कितने खुश थे दोनों।

दो घंटे में नील होश में आ गया था पर बहुत वीकनेस फील कर रहा था।

डॉक्टर ने चेकअप कर के घर जाने की परमिशन दे दी।

तीन दिन के बाद सर की ड्रेसिंग करवाने के लिए आने का बोला।

नील को माँ की फिक्र हो रही थी उसे इस हालत में देख कर वो घबरा जाएँगी।

नील में उन्हें संभाल लूँगी।

घर पर जब माँ ने डोर ओपन किया तो नील को देख कर चक्कर सा आ गया उन्हे नलिनी ने उन्हे सहारा देकर बिठा दिया।

अरे क्या हुआ है बेटा,

.. कुछ नहीं मैं ठीक हूँ माँ, उसने बोला।

नील ने इशारे से घर जाने के लिए पूछा,..


नील भाग ४०


नील के इशारे को नजर अंदाज़ करते हुए नलिनी ने टेबिल से पानी का जग उठाकर, गिलास में पानी डालकर नील की माँ को दिया।

वो माँ से बोली आप आराम कर लीजिए मैं नील का ख्याल रखूंगी आप निश्चिंत रहिए।

"नील को समझ नहीं आ रहा था कि नलिनी अपने घर क्यूँ नहीं जा रही है। इतनी रात हो गई है इसके घर के लोग क्या सोचेंगे?"

"नलिनी नील के बिना बोले ही समझ गई थी जो वो बोलना चाह रहा था।"

उसके चेहरे के हाव भाव माथे पर पड़ती सलवटे सब कुछ बता रहे थे।

वो नील से बोली मेरे घर की फिक्र मत करो उन्हे बता कर ही आई हूँ।

"माँ रात में परेशान हो जाएंगी।

चीया घर पे होती तो भी मैं यहाँ पर उसकी मदद करने के लिए रुक जाती अंश अभी छोटा है।

नील को दवा देने का वक़्त हो गया था,,

उसने माँ से रसोई में जाने के लिए पूछा।

उन्होने कहा..

"बेटा तुम अपना ही घर समझो नील को दूध देकर तुम भी कुछ खा लेना चाहो तो चाय बना लेना।"

"नलिनी को नील की माँ का स्नेह से परिपूर्ण व्यवहार बहुत अच्छा लगा।

नील को दवाई देकर दूध का गिलास उसके हाथ में पकड़ा कर वो माँ से बोली आप इत्मीनान से सो जाइये।"

ठीक है बेटा बोलकर नील के सर पर हौले से हाथ फिरा वो अपने कमरे में सोने के लिए चली गई

"नील कुछ सोचकर मुस्कुराने लगा।"

" क्या हुआ नील ?"

बड़ा मुस्कुरा रहे हो...

बात कुछ ऐसी ही है नलिनी, नील बोला ।

हमें भी बताओ नलिनी बोली..

तुम्हारे साथ आज की शाम बितानी चाही थी रात बोनस में मिल गई।

काश मैं हमेशा के लिए ही तुम्हारे साथ रह पाता।

नील डॉक्टर ने ज्यादा बोलने के लिए मना किया है।

तुम चुप चाप सोने की कोशिश करो।

तुम भी करीब आ जाओ तो जल्दी नींद आएगी।

नील इतनी तकलीफ़ में भी तुम्हें शरारत सूझ रही है।

नलिनी ने उसका हाथ हाथ में ले लिया और उसे कवि केदार नाथ सिंह की कविता "उसका हाथ अपने हाथ में लेते हुए मैंने सोचा दुनिया को हाथ की तरह गर्म और सुन्दर होना चाहिए"

याद आ गई।

नील की हथेली गर्म और बहुत सॉफ्ट थीं।

नलिनी उन्हे धीरे धीरे सहला रही थी।

उसे इस हालत में देख कर नलिनी बहुत दुखी थी पर ईश्वर से उसके ठीक होने की प्रार्थना के अलावा कुछ और उसके हाथ में नहीं था। कुछ देर बाद ही नील को नींद आ गई दवाइयों का असर था।

नलिनी देर तक उसके चेहरे को देखती रही "नींद के सम्मोहन से वो खुद को कब तक बचा पाती।"

किसी चीज के गिरने की आवाज़ से नलिनी की नींद खुल गई थी उसने लाइट ऑन की तो देखा तेज हवा चल रही थी जिससे पर्दे से टकरा कर टेबिल पर रखा हुआ गिलास गिर गया।


नील भाग ४१


नलिनी ने गिलास को उठाकर टेबिल पर रख दिया..

नील बेसुध हो कर सो रहा था शायद दवाओं का असर था जिस वजह से दर्द का असर कम था।

उसने घड़ी में वक़्त देखा तीन बजने को थे नींद से आँखे बोझिल थी फिर भी वो खिड़की से बाहर देखने लगी सड़क पर कुत्ते जरा सी आहट पर भौंकने लगते और उनका साथ देने के लिए आस पास के कुत्ते इकट्ठा होकर एक सुर में डरावनी सी आवाज़ निकालते।

खुले हुए आसमान में चाँद पूरी मुस्तेदी से तैनात था।

उसके नज़दीक एक तारा अपनी तक़दीर के ऊपर इठला रहा था उसे देख हल्की सी मुस्कान मेरे चेहरे पर खिल गयी..

"नील सो रहा था अगर वो देखता तो पूछ ही लेता क्या खिचड़ी पक रही है तुम्हारे मन में..।" मेरा मन पढ़ना वो अच्छे से जानता है इस सितारे को इठलाते देख मुझे अपने आप पर इठलाने का जी कर रहा है।

मैं सोचने लगी की "ऊपर वाला सबके हिस्से की ख़ुशियाँ अपने लॉकर में रखता है और जब बहुत जरूरी हो तब वो धीरे से अपना लॉकर खोल देता है।"

अपनी जिंदगी से जुड़ी कोई भी बात मैंने कभी नील को नहीं बताई और कभी बताने का सोचती भी नहीं,

मुझ जैसी अंतर्मुखी लड़की को अपने दुख साझा करना पसंद ही नहीं रहा उसकी वजह एक ये भी है कि मैं वो ही करना पसंद करती हूं जो चाहती हूँ।

'सबकी अपनी जिंदगी के अपने दुख हैं अगर हम ख़ुशियाँ बाँट पाएँ तो इससे बेहतर गिफ्ट कोई और नहीं। "

"कोई आपकी वजह से कुछ पल मुस्कुरा ले, हँस ले, मुझे लगता है कि इंसान का इससे ज़िंदगी पर और ईश्वर पर विश्वास बना रहता है।"

"औरत के जीवन में आदमी की जितनी इम्पोर्टेस है, आदमी के जीवन में भी औरत का उतना ही महत्व है,।

"एक दूसरे के बिना दोनों ही अधूरे हैं।"

एक दूसरे के प्रति निष्ठा, प्रेम और समर्पण ही रिश्तों को मजबूत बनाये रखता है

अगर जीवन में प्रेम न हो तो जीवन नीरस हो जाता है।

"सच मायने में प्यार ही है जो इंसान को इंसान होने की तमीज़ सिखाता है नहीं तो सड़क पर भोंकते कुत्ते और इंसान में कोई फर्क नहीं रह जाता।"

आदमी आदमी को काटने दौड़ता नज़र आता।

तभी कदमों की आहट से मेरा ध्यान नील की तरफ गया। वो सो रहा था माँ उसे देखने आई तभी मुझे जागता देख बोली बेटा तुम भी सो जाओ नील के पास में बैठती हूँ।" सुबह होने को आई तुम सोयी नहीं हो।

माँ आप परेशान मत हो थोड़ी देर के लिए मेरी नींद लग गयी थी।

"आपके लिए चाय बनाऊँ..?" "तुम भी पीओ तो बना लो।

जी.. बना कर लाती हूँ।"

नलिनी ने गैस पर चाय चढ़ाई शक्कर, पत्ती डालकर वो अदरक ढूंढ रही थी तभी नील की माँ ने कहा बेटा अदरक फ्रिज में रखी है।

उसने फ्रिज से अदरक निकाल कर चाय में डाली तब तक ट्रे में कप और चाय छलनी माँ ने लाकर रख दी।

सुबह सुबह चाय की खुश्बू से मन तरोताजा हो जाता है।


नील भाग ४२


माँ ने जैसे ही चाय का घूँट भरा बोलीं वाह क्या चाय है। याद नहीं पड़ता इतनी अच्छी चाय इससे पहले कब पी थी शक्कर, पत्ती, अदरक हर चीज नपी तुली है।

खुश रहो बिटिया आज दिन की बहुत अच्छी शुरुआत हुई है।

तुम चाहो तो अंदर से दरवाज़ा बंद कर के सो जाना मैं फ्रेश होकर टहल कर मंदिर के दर्शन कर के आऊँगी।

"जी, माँ।"

नलिनी ने माँ के जाने पर दरवाज़ा बंद किया और नील के बेड के पास रखी कुर्सी पर सर टिका कर आँख बंद कर ली।

सुबह के छह बजे का वक़्त था नील की नींद खुल गई थी। नलिनी को इस तरह से सोते देखा तो वो उठ गया उसका सर भारी हो रहा था बदन भी टूट रहा था।

उसने पानी की बॉटल से पानी निकाल कर नलिनी को आवाज़ लगाई वो एकदम से उठ कर बैठ गई क्या हुआ नील.?

तुम अच्छे से बेड पर सो जाओ कुर्सी से उठो नील बोला।

अभी माँ भी उठने ही वाली हैं।

माँ तो चाय पीकर घूमने भी चली गई

अरे वाह।

तब तो तुम मेरे पास आकर सो जाओ माँ आएं तब उठ जाना।

नहीं ऐसे ही ठीक है नील।

तुम आराम से सो जाओ।

नलिनी ज़िद नहीं करो अभी मैं मजबूर हूँ नहीं तो अब तक तो तुम्हें उठा लेता।

हाँ ये सही है अभी ऐसे बोल सकते हो।

मुझे उठाना तुम्हारे बस की बात नही।

और उठा भी लिया और गिर गई तो चोट मुझे ही लगना है कितनी भारी हो बोल कर तुम अपनी जान छुड़ा लोगे।

दर्द तो मुझे सहना पड़ेगा ना बाबा ऐसे ही ठीक है।

नील के कराहने की आवाज़ सुन नलिनी उठ के पास जाती है क्या हुआ…?

ज्यादा दुख रहा है क्या..?

"हाँ।"

रुको टेबलेट देती हूँ। डॉक्टर ने दर्द की शिकायत होने पर देने के लिए कहा था।

नलिनी का हाथ पकड़कर नील बोला तुम पास रहो दर्द सही हो जाएगा।

"ह्म्म्म, अब समझी मुझे बेवकूफ़ बनाया तुमने हाथ छोड़ो नील।"

नील ने हाथ छोड़ दिया पर उसके चेहरे की खुशी एक दम से ग़ायब हो गई।

नलिनी बोली पहले तुम लेट जाओ अगर तुम्हारी चोट पर टच हुआ तो तक़लीफ होगी तुम्हें।

नलिनी भी नील के साइड में लेट गई उसके हाथ को अपने हाथ में लेकर सहलाती रही कुछ देर में ही उसे नींद आ गई।

थकान की वजह से उसके खर्राटे की आवाज़ आ रही थी।

नील ने जैसे ही उसके ऊपर हाथ रखा खर्राटे रुक गए वो निश्चिंत हो सो रही थी।

लेकिन नील को उसके घर को लेकर फिक्र हो रही थी वो मन में खुद से ही बात कर रहा था किसी ने घर पर कुछ कहा तो.. जो भी हो आज मैं नलिनी से उसके परिवार के बारे में पूछूंगा ।

"इतनी सुकूं की नींद गोवा से लौटने के बाद भी नसीब होगी सोचा नहीं था।"

"खुद पर ही हँस भी रहा था कि कुछ चोट अच्छी होती हैं दर्द सहकर भी जो दिल को राहत पहुंचा जाती हैं।"

डोर बेल की आवाज़ से नलिनी उठ गई।

उसने दरवाज़ा खोला माँ हाथ में फूल लिये हुए थीं।

नलिनी ने उनके हाथ से फूल ले कर रख दिए और पानी का गिलास उन्हें दिया।

और रसोई में जाकर सबके लिए चाय बना लाई साथ में बिस्कुट भी।

उसने नील को उठाया उसकी दवाई का वक़्त हो गया था।

चाय पीते पीते कोरोना वायरस पर चर्चा छिड़ गई अब भारत में भी इसके मरीज बढ़ रहे हैं मास्क और सेनेटाइजर आज मेडिकल स्टोर से मंगवा लेना नील बोला।

मैं ले आऊँगी, फ्रूट्स और तुम्हारी कुछ दवाइयाँ भी लानी है कल चौबीस घंटे के लॉक डाउन के लिए हमारे प्रधानमंत्री जी ने बोला है कल सारा भारत बंद रहेगा।

चाय ख़त्म करते हुए नलिनी बोली मैं घर पर जा रही हूँ अपनी एक दो ड्रेस भी लेते आऊँगी।

उसने माँ को बोला मैं एक घंटे में आ जाऊँगी तब तक आप नील के पास बैठीए।

नील को खाने में खटाई नहीं देना है।

घर पर जाकर नलिनी नहाकर तैयार हो गई उसने ब्लू कलर का सूट पहना, और अपनी जरूरत का सामान बैग में रखा।

रास्ते से उसने नील की दवाई हैंड सेनेटाइजर लिया।

सब समान के भाव आसमान छू रहे हैं।

घर पहुँचकर उसने नील की दवाई दी।

सेनेटाइजर टेबिल पर रख दिया।

मास्क तो मिला ही नहीं।

माँ को आराम करने का बोल कर वो नील के पास बैठ गयी।

नील ने टी. वी चलाने को बोला न्यूज में कोरोना का बढ़ता हुआ कहर डरा ‍रहा था। "प्रधान मंत्री देश की जनता से अपील कर रहे थे कि आप सब साथ दें तो हम इस कोरोना नामक वैश्विक महामारी को बढ़ने से रोकत सकते है।"

"माँ ने कहा कि खाना तैयार है।"

नील की प्लेट लगाकर नलिनी ने उसे वहीं बैठकर खाने के लिए बोला छोटी फोल्डिंग टेबिल पर उसकी प्लेट रख दी।

खाना खत्म कर नील बोला उसे कुछ देर टहलना है।

माँ खाना खाकर अंदर अपने कमरे में चली गई।

नलिनी आओ इधर बैठते हैं ड्राइंग रूम में विंडो के पास बैठना नील को बहुत पसंद था।

नलिनी तुमने कभी अपने परिवार के बारे में नहीं बताया आज बताओ में जानना चाहता हूं।

बताऊँगी नील सब कुछ पर पहले तुम अपनी बात ख़त्म करो। ठीक है। नील अपनी पिछली जिंदगी के बारे में नलिनी को बताने लगा जो पिता मेरे जन्‍म के समय खुशी से फूले नहीं समा रहे थे उन्होने अपने सुख की ख़ातिर मुझे और मेरी माँ को मझधार में छोड़ दिया । पिता के होते हुए भी उनके प्यार के लिए मेरा मासूम बचपन तरसता ही रहा इससे बढ़कर बदनसीबी और क्या होगी।

माँ मेरी परवरिश की ख़ातिर चुपचाप रिश्तेदारों के ताने सहती रही।

"न चाहते हुए भी उन्होंने नीना मौसी के कहने पर अपने दोस्त दीप से शादी कर ली।"

मेरा प्यार वो किसी के साथ बांटना नहीं चाहती थी पर शादी के बाद उन्हें समझौता करना ही पड़ा।             

दीप शादी के बाद माँ को किसी हिल स्टेशन पर लेकर जाना चाहता था पर माँ तैयार नहीं थी, नीना मौसी ने कहा कि तुम जाओ नील की चिंता मत करो मुझसे हिला हुआ है मेरे पास रह जाएगा।

पर माँ का मन नहीं माना इस बात के लिए। सबके जोर डालने पर माँ नीना मौसी को भी साथ ले गयीं उदयपुर जाना तय हुआ।

" दीप ने माँ से बोला कि नील का एक छोटा भाई या बहन आ जाएगा तो नील खुश रहेगा।" और हमारे प्यार की निशानी भी।

"माँ को इस बात का ही डर था। माँ मेरे प्यार को किसी के भी साथ बाँटना नहीं चाहती थी।" "उन्होने दीप से कहा कि शादी से पहले ही मैंने तुमसे ये बात साफ कर दी थी की दीप ही हमारा बेटा है। दूसरे बच्चे के बारे में तो मैं सोच भी नहीं सकती।"

       "नील के भविष्य को लेकर मैं निश्चिंत थी।"

दीप को अपना बच्चा चाहिए था दोनों तरफ से मुश्किल माँ की थी।

उन्होने दीप को समझा लिया नील अभी बहुत छोटा है।

जब नील तीन साल का नहीं हो जाता हम बच्चे को लेकर कोई बात नहीं करेंगे दीप भी इस बात से सहमत हो गया।

फिर भी कहीं न कहीं माँ को पापा और दीप के प्यार का फर्क समझ आने लगा।

"माँ का दम घुटने लगा था। दीप अब अपना घर अपने बच्चे की बात करता तो माँ का खून खौल उठता वो सिर्फ मेरी वजह से चुप रहतीं।" शादी की तीसरी सालगिरह पर दीप ने अपने बच्चे के लिए कहा माँ को न चाहते हुए भी उसकी बात माननी पड़ी।

मैं तीन साल का हो गया था। मेरी बातें माँ को बड़ी मीठी लगती थी। एक सुबह उठने पर माँ का जी घबरा रहा था उन्हे चक्कर भी आ रहे थे दीप डॉक्टर के पास ले गया वो दीप के बच्चे की माँ बनने वाली थी।

"दीप और माँ एक ही कॉलेज में पढ़ते थे। दीप माँ को बहुत पसंद करता था लेकिन माँ के लिए वो और दोस्तों की तरह ही था।"

तभी पापा के घर से माँ के लिए रिश्ता आया माँ को भी कोई एतराज़ नहीं था पापा से मिलकर बातचीत के दौरान उन्होंने माँ को कहा कि वो शादी के बाद भी अपनी पढ़ाई जारी रख सकती हैं।"

"जॉब के लिए पापा ने मना कर दिया था।" उन्होने माँ से कहा अब तुम चाहो तो अपना ऑफिस संभाल लेना तुम्हें किसी के यहाँ काम करने की कोई जरूरत नहीं है।

माँ बहुत खुश थी जैसे जीवन साथी की कल्पना एक लड़की करती है वो सारी ख़ूबियाँ पापा के अंदर थी।

नाना जी भी खुश थे उनकी बेटी को अच्छा घर और पति मिल गया है उनकी एक जिम्मेदारी पूरी हो गई।


नील भाग४३


एक महीने के अंदर ही माँ की शादी हो गई।

हनीमून के लिए पापा ने माँ की पसंद की जगह जाना चाहा।

माँ ने मुक्तेश्वर जाने के लिए कहा हिमालय की गोद में सिमटा हुआ मुक्तेश्वर बेहद खूबसूरत है। प्राकृतिक सौंदर्य भरा पड़ा है वहाँ "बादल चेहरे को छू के गुज़र जाते हैं।देर तक गुदगुदी बनी रहती है चेहरे पर।" सालों साल वो एहसास मन को भिगोते रहते हैं माँ ने कितने ही किस्से उन दिनों के मुझे सुनाए।

15 दिन कैसे निकले पता ही नहीं चला

उसके बाद पापा अपने ऑफिस जाने लगे माँ घर के साथ अपनी पढ़ाई भी करती रही उनका एम. कॉम फाइनल इयर था।

माँ ने नाना जी के घर जाने की अपनी इच्छा पापा के सामने रखी पापा ने कहा कि अगर तुम्हारा दिल है तो चली जाओ।

पापा नहीं चाहते थे कि माँ उन्हें छोड़कर जाएं।

समय तेज गति से चल रहा था।

माँ का रिजल्ट आ गया था फ़र्स्ट डिवीजन से पास हुई थी वो।

इधर कुछ दिनो से माँ की तबियत कुछ खराब चल रही थी। न ही उन्हें ठीक से भूख लगती न ही कुछ काम करने का मन करता।

बिस्तर पर चुपचाप लेटी रहतीं। पापा सुबह ब्रेकफास्ट बनाकर उन्हें दे कर ऑफिस जाते थे।

खाना बनाने के लिए सावित्री नाम की एक बाई आती थी।

सावित्री समझदार बुजुर्ग महिला थी माँ की तबियत देख वो समझ गई थी कि माँ प्रेग्नेंट हैं उस दिन पापा जब लंच के लिए घर आए तो उन्होंने कहा बेटा मुँह मीठा करवाओ बहू दो जीव से है पापा को समझ नहीं आया तो वो बोली घर में नन्हा मेहमान आने वाला है। "सच, पापा बोले।

"हाँ"

बेटा आप कल ही जाकर बहू को डॉक्टर को दिखा लाओ घर पे कोई बड़ी बूढ़ी होती तो तुम्हें बताती अब तुम को ही बहू का ध्यान रखना पड़ेगा।

पापा दूसरे दिन माँ डॉक्टर के पास लेके गए डॉक्टर ने चेकअप करने के बाद पापा को बधाई दी कि आप पापा बनने वाले हो माँ बहुत खुश थी।

डॉक्टर ने हेल्थी डाइट के साथ खुश रहने और वॉक करने की सलाह दी।

हर एक दिन एक नया अनुभव लिए हुए था।

पापा ने सावित्री से घर संभालने के लिए कहा तो वो तैयार हो गईं।

सावित्री माँ की अच्छे देखभाल करती

और घर का सारा काम भी नौकरों से करवा लेती थी।

मेरे जन्म की खबर से पापा बहुत खुश थे जैसे उनके सपनों को पंख मिल गए हों। माँ हॉस्पिटल से डिस्चार्ज हो कर घर आ गयीं। एक खिलौना मिल गया जैसे माँ, पापा को।

मेरे भविष्य के सपने उनकी आँखो में बसेरा करने लगे।

"उस वक़्त इन सबसे बेख़बर मैं अपनी माँ के आंचल मुँह छुपाए अमृत पान का सुख लेता।


नील भाग _४४


जब दीप को पता चला कि माँ प्रेग्नेंट हैं तो वो खुशी से पागल हो रहा था।

उसने माँ को आराम करने की सख़्त हिदायत दी, माँ के नाश्ते, खाने, फल दूध, दवाई सबका ख़्याल वो खुद रखता ऑफ़िस देर से जाता और जल्दी घर आ जाता। मुझे गोद में उठाने के लिए माँ को बिल्कुल मना कर दिया था।

एक बार में माँ से उनके पास सोने के लिए बोल रहा था तो उसने मुझे माँ के सामने प्यार से गोद में उठाया और बाहर ले गया " मुझे डरा कर कहा कि अगर मैं बार बार माँ के पास सोने की ज़िद करूँगा तो माँ की तबियत और खराब हो जाएगी माँ तुम्हारे लिए एक छोटा भाई लाएंगी उसके साथ तुम खूब खेलना।

मैं डर गया अब मैं माँ से दूर दूर रहने लगा जब कभी माँ के पास सोने का बहुत मन करता तो मैं उनके पास जाकर बैठ जाता।

वो समझ जाती मुझे अपने पास बुलाती तो मैं उनके पास चला जाता पर दीप को देखकर मैं खेलने का बहाना बना कर बाहर चला जाता था। दिन यूँ ही निकलते जा रहे थे एक दिन सुबह माँ के पेट में बहुत दर्द हो रहा था दीप उन्हें डॉक्टर के पास ले गया। नाना जी मेरे पास रहने के लिए आ गए थे। शायद माँ ने ही उन्हें बोला होगा।

नाना जी के साथ रहना मुझे अच्छा लग रहा था वो मुझे कहानी सुनाते घुमाने ले जाते। शाम को जब दीप घर आया तो मुझे बोला तुम्हारी माँ तुम्हारे लिए छोटा भाई लायी है.. जल्दी से तैयार हो जाओ तुम्हें बुलाया है नाना जी ने मुँह धुला कर मेरे कपड़े बदले, मुझे और नाना जी को लेकर दीप हॉस्पिटल आ गया।

माँ को देखकर मैं खुश हो गया उन्होने मेरे सर पर हाथ फेरा और मेरा छोटा भाई दिखाया देखो नील ये लकी है तुम इसके बड़े भाई हो इसलिए ये लकी है। तीन दिन माँ के बिना रहना मेरे लिए बहुत मुश्किल था नाना जी बहुत प्यार करते मेरी हर जरूरत का ख़्याल रखते पर तब भी मैं माँ को बहुत मिस करता था।

माँ लकी को साथ में लेकर घर आ गयीं थीं। अब मेरी जगह माँ के पास लकी सोता ये मुझे अच्छा नहीं लगता पर दीप के डर से कुछ बोले बिना मैं रोते रोते सो जाता था। एक बार की बात है रात को मैं पूरी तरह से सोया नहीं था मैंने अपने सर पर माँ का हाथ महसूस किया वो मुझे प्यार कर रही थी और उनकी आँखों से टपक कर आँसू मेरे हाथ पर गिर रहे उन्हें इस बात का पता नहीं चल पाया पर उनकी परेशानी मुझसे देखी नहीं गयी अब मैं अपने छोटे भाई लकी के पास जाकर उसे प्यार करता, मैं कुछ भी बोलता वो मेरी तरफ़ देखता तो मैं खुश होकर ताली बजाता। माँ के चेहरे पर खुशी देखी मैंने तब मुझे अच्छा लगा। अब माँ ने मेरा स्कूल में दाखिला करवा दिया था।।।


नील भाग 45


माँ अपनी तैयारी कर रही थी। नील ने कहा माँ आप अपनी जरूरत की दवाइयाँ और अपने हैंडबेग में एक छोटा सेनेटाइजर रख लो।

थोड़ी थोड़ी देर बाद आप अपने हाथों को सेनेटाइज करती रहना। अगर हाथ कहीं टच हो तो अपने नाक मुँह पर मत लगाना सबसे पहले हाथ सेनेटाइज करना।

तू चिंता मत कर बेटा मैं अपना ध्यान रखूँगी। रास्ते के लिए खाना आपके छोटे बैग में है आप पहुँचकर कॉल कर देना "तू भी अपना ख्याल रखना।"

तेरे पास नलिनी है तो मुझे फिक्र नहीं है और मैं निश्चिंत होकर जा पा रही हूँ।

"बेटी तुम भी अपना ख़्याल रखना वक़्त पे खाना खा लेना माँ ने नलिनी से कहा, जी माँ।" "चीया से बात हुई थी मेरी, दो दिन बाद का रिजर्वेशन है उसका।" "ठीक है माँ।" तब तक कैब आ गई थी, नलिनी ने माँ का सामान कैब में रख कर उन्हे बाय कर दरवाज़ा बंद कर लिया । 

किचन में जाकर नलिनी ने दो कप चाय बनाई दो ब्रेड स्लाइस ली उन पर बटर लगाकर नील को दिया और अपने ब्रेड स्लाइस पर एक साइड बटर एक साइड जेम लगाया नील देख रहा था बोला ये क्या बेमानी है मेरे लिए जैम क्यूँ नहीं? अच्छा तुम ऐसा मिक्स वाला खाओगे..? "हाँ क्यूँ नहीं।" जरूर खाएंगे।

तुम्हें तो जैम पसंद नहीं..?

वो पहले की बात है अब तो पसंद है। ठीक है तुम मेरा वाला खा लो नलिनी ने अपना ब्रेड स्लाइस उसे दे दिया।

और खुद नील वाला खाने लगी।

नील ने उसने जो बाइट खाया था वहां से खा लिया और अपना उसे दे दिया। चाय पीकर नील ने नलिनी को अपने पास बुला लिया और उसे प्यार से अपनी मजबूत बाहों के घेरे में समेट लिया कब तक दोनों यूँ ही लिपटे रहे पता नहीं। नलिनी इस पल में खो जान चाहती थी उसने अपनी आँखें बंद कर ली नील उसकी पीठ पर नाखून से कुछ लिख रहा था उसे गुदगुदी हो रही थी। नील ऐसे नहीं करो ना प्लीज। क्यूँ?

पहले बताओ वो, कुछ होता है.. नलिनी शर्मा गयी, नील ने उसके होठों पे अपने होठ रख दिए उस पल में मानो कायनात रुक सी गई हो।

दोनों को लगा कि वो एक दूसरे की चाहत में जन्मों जन्मों के प्यासे हैं और वक़्त भी उनके साथ साथ चल रहा था।

"ज़िंदगी इतनी खूबसूरत भी होगी मैंने कभी सोचा भी नहीं था नलिनी बोली।" "तुम्हारे साथ ही ये इतनी खूबसूरत है। नहीं तो पहाड़ सी बोझिल लगती है ये ज़िंदगी।" नील ने कहा।ये तुम ठीक कह रहे हो। दिन का एक बजने आया नलिनी ने नील से कहा अब उठ जाओ खाने का वक़्त हो गया है और अपनी दवाई भी ले लो।

उसने खाना टेबिल पर लगाया बात करते हुए नलिनी बोली तुम थोड़ा आराम कर लेना फिर कल की बात अधूरी रह गई थी उसे पूरी करना" _

"जो हुक्म मेरे आका अभी तो ये गुलाम तुम्हारे कदमों में हाज़िर है।"

नलिनी को नील की इस एक्टिंग पर हँसी आ गई।

"अरे वाह। बड़े हुनर मंद हो तुम जो पहले पता होता तो.. बोलते हुए रुक गई नलिनी.. तो क्या करती बताओ? 

अभी नहीं कभी और,ठीक है।

पर तुम्हारी जगह मैं होता तो जरूर बोल देता ।

क्या बोलते? मैं तुमसे ही शादी कर लेता। नलिनी झेंप गई। उसकी इस बात का कोई जवाब नहीं दिया उसने। उन दोनों के सिवा घर में कोई और नहीं था।

नील इतनी तक़लीफ में भी बहुत खुश था कुछ दिन के लिए ही सही जैसी जिंदगी वो चाहता था उसे मिल गई।

 नील ने टीवी ऑन किया 21 डेज़ का कंप्लीट लॉक डाउन मेडिकल, दूध सब्जी, किराना की दुकाने छोड़ सब बंद रहेगा हमारे प्रधानमंत्री जी ने सबको घर में रहने की सलाह दी है ट्रेन बंद कर दी गई हैं जो जहाँ है वही रहे,,, नलिनी बोली ईश्वर सबको सुरक्षित रखे सबकी रक्षा करे।

नील बोला सभी काम वालों को सवेतन छुट्टी देने के लिए बोल रहे हैं।

कैसे काम चलेगा.?

तुम परेशान न हो नील मैं सब कर लूँगी। "अभी से पूरे इक्कीस दिन के लिए तुम मेरी कैद में हो नलिनी"

कोई भी घर नहीं आएगा न ही जाएगा।

अब तुम्हें मुझसे कौन बचायेगा.? "सोशल डिस्टेंसिंग" "जानेमन।" मैं कभी पूजा नहीं करता पर आज मेरा दिल भगवान की पूजा करने का कर रहा है।

बिना मांगे दुनिया की सारी खुशी दे दी है उसने मुझे। तुम मेरे साथ मेरी आँखों के सामने हो ये भी क्या कम है।

जिस्म की भूख को तो सड़क पर चलते जानवर भी मिटा लेते हैं।

"मेरे अंदर अब तक इंसानियत जिंदा है इस बात की खुशी है मुझे" और इसकी वजह भी तुम ही हो नलिनी।

हालात ने तो मुझे जानवर बना छोड़ा था।

तुम से नहीं मिलता तो पता नहीं ये सब कब तक चलता रहता। सोना के जाने के बाद मैं खुद से ही नाराज़ था।

"मेरे मन में औरत को लेकर काम का ही भाव जागता। इसकी जिम्मेदारी अकेले मेरी नहीं उन औरतों की भी थी जो मेरी उम्र से बहुत बड़ी थीं और उन्हें हर रात सिर्फ एक जिस्म की जरूरत होती थी।

इन औरतों के पति इन पर खूब पैसा लुटाते , पर वक़्त नहीं दे पाते।

पति के समीपय को तरसती इन औरतों की वासना की भूख मिटाना ही मेरा काम था।

अब तो ये सोचकर भी घृणा पैदा होती है।

"जीवन की इस राह में स्वर्ग और नर्क हम जीते जी ही भुगतते हैं, फिर भी न जाने कौन से स्वर्ग नरक में जाने की कल्पना में जीते, मरते हैं, हम लोग।" इंसान होने से तो सड़क का कुत्ता होना बेहतर लगता है मुझे।

जो चौबीस घंटे वासना में तो लिप्त तो नहीं रहता। इंसान धर्म कर्म की आड़ में भाग्य की ढोलक पीटता हुआ हर वक़्त काम भाव से ग्रसित रहता है।


नील भाग ४६


तब ही तो पोर्न इंडस्ट्री इतनी फल फूल रही है।

स्कूल में सेक्स एजुकेशन दी नहीं जाती जिससे बच्चे गलत और सही के फर्क को समझे पढ़ लिख कर कैरियर पर फोकस करने की उम्र में छुप कर दोस्तों के साथ ब्लू फिल्मस देखते हैं। उनके कोमल मन में एक जिज्ञासा का भाव सर उठाता है कि ये है क्या और उसके बाद उसे महसूस कर देखना उस आनंद को जीना और यहीं से इनकी जिंदगी की बर्बादी की दास्तां शुरू हो जाती है। जिन घरों में बच्चों को माता पिता का प्यार मिलता है वो इस नर्क में डूबने से बच जाते हैं। नहीं तो शराब, चरस, गांजा की लत के शिकार हो काम की अग्नि में जल रेप जैसे घृणित काम कर बैठते हैं । अपनी काम की आग में मासूम बच्ची्‍यों की जिंदगी तबाह कर देते हैं। देखा है रोते सर धुनते हुए इनके माँ बाप को जो अपनी जवानी में इतने अंधे थे कि उन्हे इस बात का भी आभास भी नहीं होता था कि घर में युवा होते हुए बच्चे हैं जिनके कोमल मन पर हर बात पत्थर की लकीर सी खींच जाती है। घर में भी मर्यादाओं का पालन करना जरूरी है। यही वो अनमोल दौलत है जो एक पीढ़ी से दूसरी में जाती है। संस्कार घुट्टी में मिला कर नहीं पिलाए जाते ये तो बच्चा अपने पैरेंट्स के मर्यादित आचरण से सीखता है। पैरंट्स को फिजिकल हेल्थ के साथ बच्चे की मेंटल हेल्थ भी देखना चाहिए। नालिनी नील की बातें बहुत ध्यान से सुन रही थी। मुझे खुद पर गर्व है नील मेरी ज़िंदगी में तुम हो। अगर तुम्हारे साथ वक़्त नहीं बिताती तो कभी तुम्हें जान ही नहीं पाती। लव यू नील। नालिनी नील से बच्चे की तरह से लिपट जाती है उसकी आँखों में आँसू आ जाते हैं।" प्रेम में मन भीगता है तो आत्मा धुल कर निखर जाती है।" नील ने नालिनी के बालों में धीरे से सहलाया और उसके माथे पर अपने भरोसे का एक चुंबन रख दिया।

"सुनो। सुन रहा हूँ। बोलो।"

तुम्हें अपने मन की बात बताना चाहती थी, पर बोल नहीं पायी।

"तुम्हें याद है वो रात..?" " ह्म्म्म। उसे मैं नहीं भूल सकता।"

"नील वो पूरा समर्पण था।"

तुम चाहते तो ज़िद भी कर सकते थे। पर तुम्हारा धैर्य और तुम मे जो ठहराव मैंने देखा।

"मुझ जैसी पत्थर भी पिघल गयी तुम्हारे आगे। तुम्हारी चाहत ने मजबूर कर दिया था मुझे। प्रेम को जिया उस रात तुम्हारे साथ हर लम्हा।"

"तब भी मुझे महसूस हुआ कि जितना प्यार तुम्हें करना चाहती थी नहीं कर पायी।एक झिझक सी थी।" "वासना की बू भी नहीं थी तुम्हारे आस पास।"

"हम जब तक किसी को समझ पाते हैं वक़्त हाथ से निकल जाता है। समय के साहिल पर प्रेम के निशां रह जाते हैं।"


नील भाग ४७


नील, हम गोवा में एक दिन और रुक सकते थे। पर इस अधूरे पन में जो सुख है इसका अपना मजा है।" सच नलिनी एक अनजानी सी कशिश है इसमें जो कभी आँखो में नमी की वजह बनती है और कभी सुख के गहरे सागर में डुबकी लगवा लाती है। जीने के लिए ये भी कुछ कम नहीं। तुम्हारे साथ इस तरह कभी वक़्त बिता पाऊँगा ये सोच से भी परे की बात है और तुम यहाँ घर पर ये बात उस दिन से ही मुझे आश्चर्यचकित कर रही है। इसके लिए में उस पल को ढेरों दुआएँ देता हूं जब मुझे चोट लगी। भगवान इतना बुरा भी नहीं जितना में समझता था और अब तुम्हारी वजह से यक़ीन भी करने लगा हूँ उस पर। अच्छा सुनो। बातों के लिए दिन पड़ा है तुम जल्दी से उठो नहीं तो दवा के लिए लेट हो जाओगे। अभी तुम्हारे सर का घाव नहीं भरा है डॉक्टर ने भी ध्यान रखने के लिए बोला है। ठीक है उठ रहा हूँ मैं। तुम्हारी दवाई, दूध, बिस्किटs मैं टेबिल पर रख देती हूँ तुम ले लेना। सोच रही हूँ आज ब्रेकफास्ट में आलू का परांठा बनाऊँ.?

"बोलो..?" नेकी और पूछ पूछ.. जल्दी से बनाओ आलू का परांठा सुनकर ही भूख लगने लगी है मुझे। पहले मैं नहाकर पूजा करके जो डॉक्टरस, नर्स और भी लोग जो इस खतरनाक महामारी में अपने घर परिवार से दूर अपनी जान जोखिम में डाल कर देश, समाज की सेवा कर रहे हैं हनुमानजी महाराज से उनकी रक्षा की कामना कर हनुमान चालीसा का पाठ कर उनकी सुरक्षा के लिए भगवान के आगे दिया जलाकर प्रार्थना करूंगी।

घर के बाहर पसरा सन्नाटा डरा रहा है मुझे। पेपर खोल कर पढ़ने की हिम्मत नहीं होती।

सब लोग दूर दूर हो गए हैं। और जहाँ है वहीं फँस गए हैं जब तक लॉक डाउन खत्म नहीं होता वो घर पर भी नहीं आ सकते हैं। नलिनी वो लोग घरों के अंदर हैं तो सेफ हैं।

और तुम अकेली नहीं हो मैं भी तो तुम्हारे साथ हूँ।

अपने घर में हम लोग सुरक्षित हैं।

अच्छा सुनो तुम जल्दी से नहाकर आओ आलू के परांठे सुनकर मुझे एकदम से तेज भूख लग रही है।

नील तुम्हारा नाटक खूब समझती हूं मैं।

नलिनी तुम भले ही यक़ीन नहीं करो मेरी बात का पर यही सच है कि तुम्हारे साथ तीन दिन रहकर मुझ को लग रहा है कि हम हमेशा से ही साथ हैं ।

चीया से शादी के बाद भी कभी किसी भी संडे को हँसकर साथ ब्रेकफास्ट, लंच नहीं किया हम लोगों ने।

माँ ही मेरे लिए परेशान होती रहती ।

जरा जरा सी बात पर बखेड़ा खड़ा करना चीया की आदत है। उसे लगता है कि उसका सच झूठ मुझे पता नहीं है।

चीया समझती है कि उसकी प्रेग्नेंसी वाली बात ने मुझे चुप कर दिया है ।

अंश मेरा बेटा है या नहीं ये मैने कभी सोचा ही नहीं

मेरे मन में बस एक ही बात थी जब मैं छोटा था और मेरी माँ को पापा की वजह से और फिर दीप की वजह से जो तकलीफ़ झेलनी पड़ी उसका असर मेरे बाल मन पर भी पड़ा।

जब माँ को रोते हुए देखता तो मुझे बहुत बुरा लगता था लेकिन मैं कुछ भी नहीं कर पाता । मैं पूजा घर में जाकर चुप चाप रोता और भगवान से अपनी माँ की खुशी माँगता। माँ घर के काम करती और मुझे और लकी को भी संभालती। हमेशा खुश रहने वाली मेरी माँ धीरे धीरे धीरे चुप रहने लगी उनकी हँसी जैसे कहीं खो गई थी।

मैंने सोचा चीया भी एक औरत है और माँ बनने वाली है। अभी मेरी ज़िंदगी बर्बादी की तरफ ही जा रही है अगर मैं आने वाली किसी ज़िंदगी को खुशी दे पाऊँ इससे बड़ा सुख और क्या होगा। बच्चे के घर में आने पर हो सकता है माँ का भी मन लग जाए। 

इस बात का मुझे इल्म था कि चीया मुझसे झूठ बोल रही है।

उस रात मैंने इतना भी ड्रिंक नहीं किया था कि मैं अपने होश खो बैठूं।

चीया की मुझसे झूठ बोलने की एक वजह रेहान का उसे चीट करना लगा ये भी मुझसे उसने ही कहा। रेहान और उसके अफ़ेयर के बारे में सबको पता था।

रेहान को छोड़ किसी और से फिजिकल रिलेशनशिप चीया नहीं बना सकती थी इतना तो उससे मिलने बात करने से मुझे समझ में आ गया था। रेहान के साथ वो खुश थी। पर अचानक दोनों के बीच में क्या हुआ मुझे नहीं पता मेरी जिंदगी की गाड़ी गलत दिशा में मुड़ गयी थी इस वजह से दोस्तों से भी संबंध बिगड़ से गए थे।

उस दिन जब चीया ने मुझे कॉफी हाउस बुला कर ये सब बोला, तब भी मैं उसका झूठ साबित कर सकता था पर उसने जब प्रेग्नेंट कहा तो चुप रहा मैं। कोई भी वजह खुश रहने की उस समय तक मेरे जीवन में थी ही नहीं। शादी से लेकर अब तक वो नाम के लिए ही मेरी पत्नी है हम एक बेड पर भी अलग अलग ही रहे हैं अंश के जन्म के बाद से माँ खुश रहने लगीं वो उसमें मेरा बचपन तलाश करती। उनका माइग्रेन का पेन भी कम हो गया था। अंश रेहान का ही बेटा है ये बात का मुझे यक़ीन था। उसके बाद भी अपनी शंका के समाधान के लिए मैंने टेस्ट भी करवा लिया था सारी रिपोर्टस रखी हुई हैं मेरे पास। इतने दिन हो गए हैं उसको अपने घर गए हुए उसने कभी पूछा ही नहीं कि मैं कैसा हूँ। अंश से तो मेरी बात करवा ही सकती थी पर नहीं करवाती। कॉल भी जब कभी माँ को ही करती है। मुझसे शादी करने के पीछे क्या कारण है इसको लेकर भी कुछ न कुछ इसकी चाल है मैंने उसके मोबाइल पर कई बार रेहान के कॉल देखे..।


नील भाग ४८


कुछ सवाल जो अक्सर मुझे परेशान करते हैं, गोवा में मेरे साथ उसका रूम शेयर करना। झूठ बोल कर शादी करना।

"वो क्या राज़ है जो चीया मुझसे छिपा रही है?"

कहीं ऐसा तो नहीं कि रेहान इसके लिए उसे मजबूर कर रहा हो।

"या कुछ न कुछ चीया की ही चाल है इसमें।"

"रेहान और मैं दोनों ही उसके मोहरे हैं.? चीया के मोबाइल पर नॉटीफिकैशन में रेहान के मेसेज कई बार देखे हैं मैंने। उन्हें पढ़ कर रेहान पर शक़ नहीं किया जा सकता। अंश जब ज़िद करता था तो वो अपना मोबाइल कहीं भी रख देती थी। और अब इतने लंबे समय तक उसका अपने मायके में रहना।

अपना तो काम उससे होता नहीं है अपनी माँ की सेवा वो क्या करेगी। ये सारे सवाल मेरे दिमाग़ में सर उठा रहे हैं।

पर बिना किसी सबूत मैं उससे ऐसा कुछ भी नहीं बोल सकता।

और रही बात आपसी रिश्ते की तो उसने शादी से पहले ही कहा था कि उसके जीने के लिए ये बच्चा ही काफी है।

तुम चाहो तो डिवोर्स भी दे सकते हो मुझे।

"इसका मतलब मेरे होने ना होने से उसे कोई फर्क नहीं पड़ता है।"

अब मुझे बस एक ही बात का डर है कि अगर वो अंश को लेकर चली गई तो माँ इस सदमे को कैसे बर्दाश्त कर पाएँगी।

"अंश के बिना रहना तो मेरे लिए भी मुश्किल ही होगा।" मुझे अब भी अच्छी तरह से याद है जब दीप लकी और मेरे बीच भेद भाव करता था तब माँ को बहुत बुरा लगता था..। "इस बात को लेकर दीप से माँ का कई बार झगड़ा भी हुआ ।" जैसे जैसे हम बड़े होने लगे दीप लकी के मन में मेरे खिलाफ़ ज़हर भरने लगा।

वो नहीं चाहता था लकी और मुझ में आत्मीयता रहे परेशान होकर जब मैं 5th क्लास में आया तब माँ ने मुझे हॉस्टल भेजने का फैसला कर लिया। हॉस्टल में रहना मेरे लिए किसी सजा से कम नहीं था.. मैंने माँ से कहा कि मैं लकी से कुछ नहीं कहूँगा आप मुझे अपने से दूर मत भेजो मैं रो रोकर माँ से चिपट गया मुझे रोता देख लकी भी रोने लगा।

माँ ने मुझे समझाया लकी छोटा है वो अच्छा बुरा कुछ नहीं समझता वो तुम्हें प्यार करता है तुम उसके बड़े भाई हो देखो तुम्हें रोते देख वो भी रो रहा है।

हॉस्टल भेजने का मतलब दूर भेजना नहीं है तुम्हारे अच्छे फ़्यूचर के लिए भेज रही हूँ जिससे तुम पढ़ लिख कर अच्छे इंसान बनो और लकी तुम्हारे बराबर होगा तो उसे भी होस्टल ही भेजेंगे।

भगवान राम को भी उनकी माँ ने गुरुकुल पढ़ने के लिए भेजा था। उस समय मोबाइल फोन भी नहीं थे कितने साल तक भगवान राम अपने भाइयों के साथ माँ पिता से दूर आश्रम में रहकर अपनी पढ़ाई करते रहे। भगवान कृष्ण ने भी गुरुकल में रहकर पढ़ाई की।

अब तुम बताओ तुम क्या चाहते हो?

अगर तुम्हारा मन नहीं है तो यहीं पर रहो।

नहीं माँ मुझे हॉस्टल में ही पढ़ना है।

और मैं हॉस्टल चला गया।

मैं जानता था कि माँ मुझे हॉस्टल भेजकर मेरे बिना नहीं रह पाएंगी। माँ ने खाना खाना छोड़ दिया था। दीप उन्हे खिलाने के लिए खाना लेकर उनके पास आया 

उन्हे समझाने की कोशिश करने लगा तो माँ गुस्से में जोर से चिल्लायीं और बेहोश होकर गिर गई, दीप भी घबरा गया उसने उनके मुँह पर पानी के छींटें मारे पर माँ के तो दाँत भींच गए थे दीप उन्हे लेकर डॉक्टर के पास गया। बहुत देर तक माँ को होश नहीं आया डॉक्टर ने चेकअप करने के बाद पूछा कि कोई ऐसी बात जिससे ये परेशान हों? आप लोग के आपसी रिलेशन कैसे हैं कोई फाइनेंशियल मैटर..? इन्हें किसी बात का गहरा सदमा लगा है कोई ऐसी बात इनसे न करें जिससे ये दुखी हों ज्यादा से ज्यादा खुश रखने की कोशिश करें। और डाइट का ख्याल रखें पर फोर्सफुली कोई भी बात न कहें इनके दिमाग की स्थिति नाज़ुक है। जो दवाइयाँ हैं वक़्त से दें। दवाइयों की वजह से इन्हें नींद आएगी जितना ज्यादा सोएंगी अभी की सिचुएशन में इनकी सेहत के लिए अच्छा है। दीप ने घर आकर माँ को दवाई दी अभी तक वो पूरी तरह से होश में नहीं थी उन्हें नींद आ गई। लकी माँ को देख कर रो रहा था दीप ने उसे डांट कर चुप कराया, ऑफ़िस कॉल कर दिया कि वो आज नहीं आएगा। अपने करे पर कहीं न कहीं शर्मिंदगी महसूस हो रही थी उसे, माँ बच्चे के रिश्ते में उसकी वजह से ही दूरी आई है। लकी भी नील को मिस कर रहा है। बच्चों के मन कोमल होते हैं। वो तो अजनबी को भी अपना बना लेते हैं। लकी रोने लगा उसे भूख लग रही थी दीप उसे कमरे से बाहर ले आया उसे डर था कि माँ की नींद न खुल जाए।

लकी क्या खाता है दीप को नहीं पता था उसने उसे बिस्किट खाने के लिए दिए।

और उसकी बोटल में दूध डालकर उसे दिया।

बोतल से दूध पीते पीते लकी सो गया.. नींद में भी वो सुबक रहा था।

दीप सोच रहा था कि पिता कुछ भी कर ले पर माँ जैसी ममता बच्चों को नहीं दे सकता।

तभी माँ की नींद खुल गई और वो मुझे याद कर रोने लगीं। उन्हें लग रहा था जैसे किसी ने सीने से उनकी साँसें निकाल ली हैं।

नील के जन्म के बाद से नील उनके ही पास सोता आ रहा है लकी के जन्म के समय तीन दिन के लिए वो जानती है पापा के भरोसे कैसे छोड़ा था उसने नील को।

अब जब वो हॉस्टल चला गया है तो उसके बिना कैसे रहेंगी सोच कर माँ फिर रोने लगी।

दीप से माँ की हालत देखी नहीं जा रही थी अपने किए पर पछतावा हो रहा था उसे।

एक कहावत है न "अब पछताये क्या होत जब चिड़िया चुग गई खेत"

जो घाव उसने अपनी पत्नी को दिए वो आगे जाकर नासूर बन जाएंगे और दीप के स्वार्थ की वजह से दो मासूम बिना वजह की सजा भुगत रहे हैं।

एक अपनी माँ से दूर रहकर दूसरा करीब होकर भी माँ के नज़दीक आने को तरस रहा है।

दीप ने माँ को बहुत समझाया उनके उन्हे दवा देकर उनके पैरों को सहलाता रहा कि जैसे भी हो वो सो जाएँ।

दीप भी जानता था कि दो तीन दिन में माँ थोड़ा नॉर्मल हो जाएँगी हालात के साथ तालमेल बिठा लेंगी।

पर अब ऐसा कुछ नहीं हुआ माँ ने बिस्तर ही पकड़ लिया.. दवाइयों की वजह से वो बेसुध रहती जब होश में रहती तो बच्चों की तरह सुबक सुबक कर रोती आँखों के नीचे काले घेरे आ गए।

नानाजी को जब पता लगा तो वो माँ को घर ले आये बेटी की नाज़ुक हालत देख वो चिंता में पड़ गए वो समझ गए कि माँ को प्यार की बहुत जरूरत है उन्होने माँ की मौसी को गाँव से बुला लिया।

माँ जब सोकर उठीं तो सामने मौसी के हाथ में चाय की ट्रे देख और उसमें मौसी के हाथ की बनी शुद्ध घी की मट्ठी और मूँग की दाल के लड्डू देख माँ खुश हो गयी। मौसी ने ट्रे साइड में रखकर माँ को कलेजे से सटा लिया माँ के धीरज का बांध फूट पड़ा हो जैसे।

वो बच्चों की तरह मौसी से चिपट कर रोईं।

मौसी ने उनकी पीठ पर अपना ममता से भरा हुआ हाथ रखा। माँ का मन थोड़ा हलका हुआ उन्होने लकी को अपने पास लाने के लिए बोला "


नील भाग_४९


नील के चेहरे पर आते जाते हाव भाव को नलिनी नोटिस कर रही थी बचपन का सारा दर्द सिमट कर उसकी आँखों में समा गया गया था।

तकिये को अपने बाजुओं में समेटकर वो जैसे खुद को सुरक्षित करने की कोशिश में जुटा हुआ था उसका ध्यान अपनी ओर था ही नहीं। उसके मन में इमोशनस का तूफ़ान उठा हुआ था… जिसे उसका मन ही नहीं बल्कि उसका शरीर भी महसूस कर रहा था।

नलिनी ने धीरे से उसके हाथ को अपने हाथ में लिया और एहसास कराना चाह की वो उसके साथ है। "नील किसी सपने से जगा हो जैसे कितनी ही देर से वो बोला ही जा रहा था।

नलिनी को उसकी फ़िक्र हो रही थी, उसके सर की चोट अभी पूरी तरह से ठीक नहीं हुई है और डॉक्टर ने स्ट्रेस लेने के लिए बिल्कुल मना करा था और नील तो खतरनाक तरीके से स्ट्रेस ले रहा था।

नलिनी : नील चलो ना हम बेडरूम में चलते हैं..

नील : इस वक़्त?

अगर मैं बोलता हूँ तो तुम मना कर देती हो…।

नलिनी : हाँ, अभी मैंने यही सोचा कि मैं मना क्यूँ कर देती हूँ। इसलिए ही अभी बोला..चलो ना.

नील : तुम ठीक हो ना..?

नलिनी : नहीं,

नील : क्या हुआ है तुम्हें बोलो?

नलिनी : यहाँ नहीं बता सकती तुम जल्दी अंदर चलो।

नील : चलो.. बोलो क्या हुआ.. बिना कुछ बोले नलिनी ने अपना टॉप उतार दिया..

अरे क्या कर रही हो तुम..?

नलिनी : नील मेरी पीठ पर किसी ने जोर से काट लिया है, अब मेरी आँखों से मैं पीछे नहीं देख पा रही हूँ।

नील : मैं क्या करूँ..?

नलिनी : देखो..।

नील : ऐसे तो कुछ भी नहीं दिख रहा..

नलिनी : मुझे तेज जलन हो रही है कोई जहरीले कीड़े ने काटा लगता है तुम हाथ से छूकर देखो।

नील : देखो अब बताओ.. यहाँ.. नहीं थोड़ा सा ऊपर.. थोड़ा और साइड.. यहाँ तो कुछ भी नहीं है।

 नलिनी : अच्छा। मुझे ऐसा क्यूँ लगा किसी ने काटा.. उसे हँसी आ गई।

इतनी देर में नील का ध्यान अपनी बचपन की यादों से पूरी तरह से हट गया था…

नील : तुम रुको अब मैं बताता हूँ कैसे जहरीला कीड़ा काटता है.. नील ने उसे अपनी बाहों में समेट लिया उसके बालों को समेट कर आगे की ओर कर उसकी नेक पर किस किया नलिनी किसी बेल सी लरज गई..

नलिनी : नील छोड़ो ना प्लीज… नील : नहीं नलिनी ये ज़हर उतारना जरूरी है। मेरे होते कीड़े की हिम्मत कैसे हुई तुम्हें काटे?

मेरी इज्ज़त का सवाल है अब उस कीड़े को भी पता चल जाएगा कि मैं उससे भी ज्यादा ज़हरीला हूँ।

नलिनी : सॉरी, अब ऐसे तंग नहीं करूंगी छोड़ दो ना प्लीज

अब नलिनी भी नील की बाहों में टूट कर बिखर जाना चाहती थी।


नील भाग _५१


उसने शरारत से नील की आँखों में देखते हुए कहा तुम ठीक कह रहे हो। उसने नील के बालों को पकड़ कर उसके होठों को अपने होठों मैं कैद कर लिया। नील भावनाओं के ज्वार में गहरे उतर रहा था और उभरना नहीं चाहता था। उसने नलिनी को जोर से अपनी और भींच लिया। समुंदर के विशाल सीने पर मचलती हुई लहरें थक कर किनारे पर टकरा कर फिर समुंदर में समा जाती हैं। नलिनी ने भी अपने आपको नील को सौंप दिया।

" प्यार की मीठी गहरी अनुभूति से दोनों के मन भीग गए.।"

नलिनी आँख मूँदकर उस सुख के समुंदर में डूबे रहना चाहती थी। उसके अंदर मातृत्व के भाव जागृत हो रहे थे अपने ही सपनों में डूबी नलिनी के हाथ उसकी नाभी पर आकर रुक गए।

वो घबराकर उठ बैठी जो उसने अभी अभी महसूस किया..नहीं नहीं मेरे मन का वहम है सोच कर वो बाथरूम में नहाने के लिए चली गई।

तैयार होकर उसने आँखो में गहरा काजल लगाया अपनी नज़र से खुद को बचाना चाह रही थी वो। पूजा घर में दिया जलाकर कुछ देर आँख बंद कर वो बैठी रही माँ जाते वक़्त बोल कर गयीं थी मेरे ठाकुर जी के दीया बाती कर देना नील तो करेगा नहीं। मन का भी कोई ठौर ठिकाना नहीं है पल में अपनी जगह बदलता है। नलिनी : नील खाने में क्या बनाए..? "यूँ तो अपने ही पसंद से बना रही थी..।" उसकी आँखों में झाँक कर नील ने कहा कितना कुछ तो खिला चुकी हो अब और खिलाया तो बदहजमी की शिकायत हो सकती है। नलिनी के गाल शर्म से लाल हो गए उसने चेहरा नीचे कर लिया।

नील :नलिनी से… "सुनो। मैं बनाता हूँ।" आज मेरे हाथ से बना कुछ खा लो। " तुम यहीं बैठकर मेरा इंतज़ार करो मैं यूँ गया और आया।" नील को लग रहा था कि वो थक गयी है। उसे नलिनी को इतना तंग भी नहीं करना चाहिए था, सोचते हुए भी नील की आँखों में शरारत तैर रही थी। किचन में जाकर उसने कुछ वेजिटेबलस निकाली धोकर काट कर एक कड़ाही में बटर डाला फिर उस में गार्लिक, ग्रीन चिली डाली उसके बाद वेजिटेबलस डाल कर पानी डाल दिया जब बॉयल होने लगा तो उसमें मैगी डालकर उसमें मसाला मिला दिया।

तैयार होने पर दो बाउल में निकाल कर ऊपर से एक्सट्रा मेगी मसाला और थोड़ा बटर डाला उसके बाद कोरिएंडर लीव्स से गार्निश किया। नील : नलिनी देखो मेरी स्पेशल डिश तुम खाकर बताओ कैसी बनी है।

Woww  बहुत टेस्टी है।

नील अब से लंच तुम्ही बनाना।


नील भाग ५१


नील :"इन दिनों में मुझे तुम्हारी इतनी आदत हो गई है मेरा बस चले तो ये लॉक डाउन कभी खत्म नहीं होने दूँ ।

"नलिनी कुछ लिखा है मैंने तुम्हारे लिए पढ़ो।

नील अपना मोबाइल नलिनी के हाथ में दे देता है.. 

नलिनी : "तुम मिले हो ऐसे बुझते दीपक को जैसे 

रोशनी की एक नयी किरण मिली है। 

जिंदगी की जलती हुई राहों पर 

बारिश की पहली फुहार गिरी है।" 

वाह। कमाल का ख़्याल है ये तो। 

नील तुम शायर बन गए हो। यक़ीन नहीं हो रहा है ये तुमने लिखा है..। 

अगर कोई इसको गाए तो लगेगा किसी मूवी का सांग है। 

नील : कुछ दिन में तुम चली जाओगी नलिनी ये सोच से भी मैं सिहर उठता हूँ। 

रात में कभी नींद खुलती है तो तुम्हें देखता रहता हूँ। और फिर सोचता हूँ कि भगवान ने हमें मिलवाया ही क्यूँ...? 

पहले से ही इतने पचड़े हैं मेरी जिंदगी में और करने की क्या जरूरत थी तुम्हारे भगवान को.. बोलो??? 

नलिनी : "तुम्हें भगवान को दोष देने का कोई न कोई बहाना चाहिए होता है। "है ना?"

नील : इसमें बहाना कहाँ से आ गया जो सच है वो ही कहा है।

जब पिता की उँगली थाम के चलने का वक़्त था तब उन्होंने अपनी उँगली छुड़ा ली।

जिसकी पूरी जिंदगी की वाट लग गई हो उसे बहाने की जरूरत नहीं होती 

माँ के साये में अपने को सुरक्षित महसूस कर ही रहा था कि 

पहले दीप, फिर लकी और उसके बाद एक किक में माँ से भी दूर कर दिया। 

उनकी खातिर ही हॉस्टल चला गया नहीं तो वो मेरी चिंता में घुलती रहतीं। 

"अपनों के प्यार के नाम पर माँ ही थीं मेरे पास।"

अब उनसे भी दूर रहना पड़ रहा था।

गर्मियों की छुट्टी के आने पर लगता जैसे दीवाली आ गयी है.. 

जल्दी से अपना सामान पैक करता माँ से मिलने के लिए मैं उतावला सा रहता।

घर पहुंचने पर माँ दरवाज़े पर खड़ी मिलतीं 

मैं उनसे कस के लिपट जाता था। 

मैंने कभी किसी भगवान को नहीं पूजा मुझे मेरी

"माँ के आंचल की खुश्बू मंदिर से आती पवित्र लोबान सी लगती है।" 

साल दर साल निकलते जा रहे थे अब मैं दसवी क्लास में आ गया था।

लकी भी अब बड़ा हो रहा था दीप के लाड़ प्यार ने उसे जिद्दी बना दिया था।

माँ इंतज़ार कर रही थी कि वो थोड़ा समझदार हो जाए तो उसे भी होस्टल में भेज दें यहाँ रहकर तो वो बुरी तरह से बिगड़ जाएगा।

दीप से माँ कम से कम बात करतीं थी।

मेरा 12th क्लास का रिजल्ट आने वाला था।

घर पर माँ के साथ अच्छे दिन बीत रहे थे।

लकी मेरे साथ खूब खेलता खुश रहता।

दीप मुझसे खिंचा खिंचा सा ही रहता पिता वाला प्यार वो कभी दे नहीं पाया और मेरे मन में भी उसके लिए आदर का भाव नहीं आ पाया।

"मोबाइल पर माँ का कॉल आ रहा था... 

माँ: हैलो.. कैसे हो बेटा तुम्हारी चोट पूरी तरह से ठीक हो गई या नहीं?

नील : माँ पहले से तो ठीक है थोड़ा और वक़्त लगेगा डॉक्टर ने बोला है। 

माँ : बेटा मैं तो यहाँ से निकल नहीं पा रही तेरी याद आ रही है.. मन कर रहा है कि जल्दी से घर आ जाऊँ।

नलिनी बिटिया कैसी है?

नील : वो भी ठीक है माँ।

उसे भी आपके बिना घर अच्छा नहीं लग रहा सुबह ही बोल रही थी कि माँ आ जाएं तो अच्छा रहेगा।

ये लॉक डाउन खुल जाए, जल्दी ये कोरोना वायरस जाए हमारे देश से। 

ताकि लोगों की जिंदगी की गाड़ी पटरी पर आये।

नील : हाँ माँ। आप सही कह रही हो।

माँ : अच्छा बेटा फोन रखती हूं तुम और नलिनी अपना ध्यान रखना।

चीया का फोन आया था अंश को दादी की याद आ रही थी उसने अंश से बात भी करवाई।

अरे वाह। आप अपना ख़्याल रखना माँ। फोन कट जाता है।

नलिनी चाय के साथ पकोड़े तल के ले आती है

नील : नलिनी चलो टेरेस पर चलते हैं। 

कितने दिन हो गए हैं बिस्तर पर लेटे हुए और अंदर कमरे में अब घुटन महसूस हो रही है।    

नलिनी:चलो खुली हवा में अच्छा लगेगा उसने ट्रे उठा ली।  

"खुली हवा में साँस लेने का अपना ही मजा है। एक लंबी साँस ली नलिनी ने और दोनों हाथ हवा में फैला कर बच्चों की तरह घूमने लगी।" 

जब चक्कर आने लगा तब रुकी।

नील : मुँह में पकोड़ा डालते हुए बोला नलिनी चाय ठंडी हो जाएगी आ जाओ..। 

तुम पकोड़े बहुत स्वादिष्ट बनाती हो पहले क्यूँ नहीं बताया तुमने।         

नलिनी : चाय का कप उठाते हुए बोली अगर पहले बताया होता तो इतना स्वादिष्ट नहीं लगता तुम्हें।             

नील : तुम भी खाओ। 

नलिनी : तुम खिलाओ बनाया मैंने है। 

नील : कमाल की आलसी हो तुम खाने में.. उसके मुँह में पकोड़ा डालते हुए बोला।

नलिनी : ऐसा नहीं है मैं डबल स्वाद लेना चाहती थी।

सूरज अस्त हो रहा था.. परिंदे अपने अपने घरों को लौट रहे थे।

 दूर आकाश में फैली लालिमा बहुत सुन्दर लग रही थी। 

नील और नलिनी एक दूसरे का हाथ पकड़कर क्षितिज़ को निहार रहे थे। 

नलिनी :एक बात बताओ नील विदाई और जुदाई में क्या फर्क होता है? 

दर्द दोनों का अलग होता है या एक जैसा.. 

नील : विदाई में उम्मीद बनी रहती है लौट आने की। 

जुदाई हमेशा के लिए एक दूसरे से जुड़ा होना। "अलविदा।" 

दर्द तो दोनों में ही होता है नलिनी। 

दर्द की तीव्रता इस बात पर डिपेंड करती है कि आप किस शिद्दत से उसे चाहते हैं उसके वियोग में आपका दम सा घुट रहा हो। अपनी साँस परायी सी हो जैसे। 

शाम ढल गयी स्ट्रीट लाइटस जल गयी थी

नलिनी : नील नीचे चलें बहुत देर से खड़े हो तुम। नील : हाँ चलो। दोनों नीचे आ गए। नलिनी ने लाइटस ऑन की। 

नील : मैं खाना नहीं खाऊँगा, नलिनी तुम अपने लिए बना लो।

नलिनी : नहीं, मेरा भी मन नहीं है खाना खाने का..।।। 


नील भाग_५१


नील : माँ से बात करके अच्छा सा महसूस हो रहा है।

नलिनी : सच, कितने नसीब वाले होते हैं वो लोग जिनके पास माँ होती हैं।

नील : "हाँ, पर तुम ऐसा क्यूँ बोल रही हो।  नलिनी :इस एक सुख के लिए तो देवता तक तरसते हैं मैं तो इंसान हूँ। 

"भावनाओं की एक नदी मेरे भीतर भी बहती है।"

मेरा भी मन करता है कोई मुझसे मेरे मन की बात पूछे प्यार करे। 

"मैं रोऊँ तो मुझे सीने से लगा कर चुप करवाए मेरे बिना कहे मेरे मन की बात समझ जाए।" 

और ये सब माँ ही कर सकती है। 

पर मैंने इतने अच्छे कर्म नहीं किए होंगे पिछले जन्म में की मुझे अपनी माँ के आंचल की छाँव नसीब हो। क्षुधा शांत करने के लिए अपनी माँ का दूध नसीब हो। 

मुझे तो ये भी नहीं पता वो कैसी दिखती थीं।

क्या नाम था उनका। 

मंदिर के पुजारी को मंदिर की देहली पर रखी हुयी मिली थी मैं गुलाबी ड्रेस में और गुलाबी टॉवेल में लिपटी हुई। सोने की चेन थी गले में उसमे पेंडल में कृष्ण भगवान बने हुए थे और के लिखा हुआ था पेंडल में। 

हाथ में काले मोती और सोने के मोती मिला कर बना हुआ सूती धागा था।

पुजारी जी मेरे रोने की आवाज़ सुनकर बाहर आए आसपास कोई भी नहीं दिखा उन्होने मुझे गोदी में उठा लिया और चुप कराने की कोशिश करने लगे। "भगवान का चरणामृत रूई के फाहे से मेरे मुँह में डाला।" 

रो रो कर शायद मेरा मुँह सुख रहा होगा। 

मैंने उसे जल्दी से पी लिया उस वक़्त सुबह चार बजे का वक़्त था पुजारी जी की गोदी में ही मुझे नींद आ गई। 

दिन निकलने पर पुजारी जी ने पुलिस थाने में रिपोर्ट दर्ज की और उनकी परमिशन से मुझे अपने साथ घर ले आए। 

उनके बचपन के पक्के दोस्त की पत्नी ने कुछ दिन पहले ही बेटे को जन्म दिया था पर वो बच नहीं पाया उस वजह से उनकी पत्नी और वो बहुत दुखी थे। खाली पालना देख रेवती का कलेजा मुंह को आता। आंचल में दूध भर आता, छाती दर्द से फटी जाती दर्द की वजह से रेवती को बुखार आ रहा था। 

उसकी ये हालत रामकिशन से देखी नहीं जाती थी। पंडित जी मुझे लेकर उनके घर गए और सारा वाक्या उन्हे बताया। 

रामकिशन खुश हो गया और उसने मुझे पंडित जी से लेकर रेवती के पास लेटा दिया। 

और रेवती से बोला देखो रेवती ईश्वर कितना कृपालु हैं। 

ये बिन माँ की कन्या उन्होने तुम्हारी झोली में डाल दी है। 

ममता के लिए तरसती माँ को तो अपनी ममता लुटाने के लिए मासूम बच्चा चाहिए होता है।

पर रेवती का मन बड़ा कठोर था। उसने मुझे गोद में नहीं उठाया भूख से रो रो के मेरा गला सूखा जा रहा था। 

रामकिशन के अलावा आस पास की जच्चाओं ने भी कहा बहन नसीब वाली हो भगवान ने ये कन्या तुम्हारी खाली गोद भरने के लिए भेज दी है कौन जाने इसके भाग्य से साल भर में फिर से गोद हरी हो जाए। अपनी संतान का मोह बहुत बुरी चीज है। इंसान अपने स्वार्थ की ख़ातिर नवजात दुधमुँही बच्ची तक को नहीं छोड़ता। रेवती भी कहाँ अछूती रहती सबके कहने से उसने मुझे गोद में उठा कर अपने आँचल में स्तन पान कराया जिससे उसकी आधी पीड़ा कम हो गई और एक दिन में ही बुखार भी उतर गया डॉक्टर ने उसे अस्पताल से छुट्टी दे दी। रामकिशन पेशे से अध्यापक थे। आर्थिक रूप से भी बहुत संपन्न थे। घर क्या आलीशान हवेली थी नौकर चाकर लगे हुए। रामकिशन जी की माँ बहुत अच्छी महिला थीं। ईश्वर में उनकी बहुत आस्था थी जब उन्होने मुझे रामकिशन और रेवती के साथ देखा तो पोता पोती के घर आने पर जो जो रस्में होती हैं वो सारी रस्में उन्होने की पूरे गाँव में मिठाई बंटवाई.. जो भी हो बहू की गोद सूनी नहीं रही।

रेवती ने अपने मन के दुख को मन में दबा दिया।

और सोचने लगी कि अब तो ये साल भर की हो गई थी मैं रेवती के मन में तो मातम था बेटा खोए साल

हो गया था और अब तक कोख भी हरी नहीं हुई थी। दादी माँ ने मुझे हलवा बना कर खिलाया नई फ्राक दिलवाई।

रामकिशन जी भी मेरे लिए गुड़िया लाए थे। 

रेवती मुझे पसंद नहीं करती थी।

एक दो दिन से रेवती को कुछ भी खाने पर उल्टियाँ हो रही थी, रामकिशन डॉक्टर के पास ले के गया डॉक्टर ने बताया कि गर्भवती हैं।

दवाइयाँ दीं और 'ध्यानपूर्वक रहने की सलाह दी।

नवे महीने में उसकी बेटा हुआ l

अब उनका रंग गिरगिट के जैसे बदलने लगा।

"एक बार वो नहाने गई थी मैं उस छोटे से खिलौने जैसे बच्चे को छू का देख रही थी तभी रेवती आ गई..

और मेरे गाल पर एक थप्पड़ जड़ दिया। 

मैं रोती हुई दादी के पास गई उन्होने पूछा कि क्या हुआ है मैंने सब बता दिया दादी ने मुझे प्यार से अपनी गोद में बैठा लिया। 

तभी रेवती वहाँ आ गई और मेरा हाथ खींच कर दूर धकेल दिया... कहानी जारी है.. 


नील 


मैं नीचे गिर पड़ी, मेरे माथे पे कुछ चुभा और तेज दर्द से मैं छट पटाकर रोने लगी।

दादी ने मुझे गोदी में उठा कर देखा मेरे माथे से खून निकल रहा था।

अपनी साड़ी को मेरे माथे से बहते खून पे रखा..

रोते रोते मेरी हिचकीयां बंध गई।

रामकिशन मेरी रोने की आवाज़ सुनकर आए और मेरी हालत देख घबरा कर मुझे दादी की गोदी से लेकर देखा...

मेरे माथे से खून निकल रहा था। 

उन्होने दादी से पूछा कैसे लगी चोट? 

इतने लोग हैं घर में बच्ची का ध्यान नहीं रख सकते हैं..?

दादी ने बताया रेवती ने धक्का दिया।

रामकिशन ने गाड़ी निकलवायी और मुझे डॉक्टर के पास ले गए।

डॉक्टर ने देखा एक छोटा सा गिट्टी के टुकड़े का कोना फँसा हुआ था जिससे स्किन फटने से खून निकल रहा था।

डॉक्टर : स्टिचेस लगाना पड़ेगा।

रामकिशन : आपके जो ठीक लगे सो करो डाकसाब बच्ची का रोना देखा नहीं जा रहा।

दर्द की कोई दवाई दे दो आप इसे।

डॉक्टर :अभी आराम मिल जाएगा घर पर आप ध्यान रखना की इसके सर पर चोट न लगे।

दो दिन बाद दिखाने लाना।

दवाईयाँ समय पर देना।

रामकिशन ने डॉक्टर के हाथ जोड़े और मुझे गोद में उठा लिया।

रास्ते भर उन्हे रेवती पर गुस्सा आ रहा था। 

जानवर भी बच्चों के साथ ऐसा सुलूक नहीं करते ये औरत कितनी पत्थर दिल है। 

भगवान ने एक बच्चा छीन लिया तब भी इसका दिल नहीं पसीजता । 

बच्चे तो ईश्वर तुल्य होते हैं। और इस बच्ची के भाग्य से ही गोद भरी है। इस औरत को ईश्वर का भी डर नहीं लगता।

है ठाकुर जी महाराज मेरी धर्मपत्नी की तरफ़ से माफ़ी माँगता हूँ मैं।

अब से ये बच्ची किसी पर आश्रित नहीं रहेगी। 

तभी गाड़ी घर के दरवाजे पर पहुंच रुक जाती है। दादी ने पूछा क्या कहा डॉक्टर ने? 

टांके लगाए हैं ध्यान रखने के लिए बोला है..। 

माँ सा आप अपने ही पास रखो इसे..। 

मैं एक दो दिन के लिए शहर जा रहा हूँ आपके भरोसे है छोरी। 

ठीक है बेटा चिंता ना कर तू आराम से जा..। 

आकर आपको सब बताऊँगा। 

बच्ची के रोने की आवाज़ सुनकर भी रेवती बाहर नहीं आयी।

दादी ने हल्दी वाला दूध पिलाया मुझे और बोली मेरी प्यारी गुड़िया इस कमरे से बाहर नहीं जाना। नलिनी :"क्यूँ दादी?" "मैं बाहर क्यूँ नहीं जाऊँ।".

मुझे छोटे बेबी के साथ खेलना है।

मुझे बहुत जोर से बेबी की याद आ रही है।

सच्ची। गॉड प्रॉमिस प्यारी दादी। 

मेरी गुड़िया रानी एक बड़ी सी बिल्ली जंगल से आ गई है और वो बच्चों को पकड़कर ले जा रही है। मैं उसे भगा दूँगी।

आपने तो कहा था कि मैं बहादुर हूँ। 

फिर आप क्यूँ मेरी चिंता कर रही हैं.? 

दादी मुझे क्या कहती कि तू जिसे माँ कहती है उसे तू फूटी आँखो नहीं सुहाती। । 

इसलिए जंगली बिल्ली की झूठी बात उन्होने मुझे बताई।  

दादी ने अपने हाथ से मुझे खाना खिलाया।

और नन्ही परी वाली लोरी सुनाई उसे सुनते हुए मुझे नींद आ गई।  

नींद में मैंने एक सपना देखा कुछ लोग मुझे दादी की गोदी से उठा रहे हैं..। 

दादी ने मुझे जोर से पकड़ रखा था। वो लोग के चेहरे पर नकाब था उन लोगो ने मुझे दादी के हाथ से छीन लिया था।

मैं नींद में डरकर जोर से चिल्लाई दादी... मेरी नींद खुल गई थी।

दादी ने पूछा कि क्या हुआ है दादी कुछ लोगों ने आपके हाथ से मुझे छुड़ा लिया। 

किन लोगो ने? 

दादी वो.. क्या वो? 

ले पानी पी.. सूसू करके पैर धो कर आ तब सोना उससे डरावने सपने नहीं आएंगे। 

दादी आप भी साथ चलो.. अच्छा चल।  

मैं दादी के साथ ही सोयी। 

दूसरे दिन मैंने दादी से बोला अब से मैं आपके ही साथ सोया करूंगी। 

रामकिशन : माँ सा आपने कुछ बात बतानी है। 

हाँ बेटा, बोल। माँ इस बच्ची का यहाँ रहना इसके अच्छे भविष्य में बाधा पैदा करेगा रेवती का कोई भरोसा नहीं है। 

और आप कब तक इसके साथ रहोगी? 

ये तो तू ठीक कह रहा है बेटा बता क्या सोचा है तूने.. माँ शहर का घर इसके नाम कर दिया है मैंने। पंडितजी इसके 18 साल की होने तक इसके गार्जियन की तरह रहेंगे। 

इसकी देख रेख की जिम्मेदारी उनकी रहेगी। 

स्कूल का एडमिशन मैं करवा दूँगा। 

इसका बैंक का खाता अलग से खुलवा दिया है मेरे साथ जॉइंट अकाउंट रहेगा इसकी हर जरूरत के लिए किसी तरह की कोई कमी नहीं होगी। जो भी इसकी सही से साल संभाल करेगा उसे उसका उचित पारिश्रमिक दिया जाएगा साथ ही अपनी खुशी से उचित इनाम भी मैं उसे दूँगा। 

रेवती को यही बताऊँगा कि इसको अनाथ आश्रम में छोड़ दिया है

ओह। नलिनी अपना रोना रोने में हम अक्सर सामने वाले के लिए सोच ही नहीं पाते मुझे सब कुछ जानना है अभी तक का। नलिनी :नील इसलिए ही मैं नहीं बता रही थी मैं। अब फिर कभी। नील :प्लीज बताओ नलिनी. पहले मैं चाय बनाती हूँ। थोड़ी भूख जैसी लग रही है कुछ खाकर बात करेंगे। नील अपना फ़ोन उठाओ.. हाँ "." नील :हैलो,.. हैलो.. चीया बोल रही हूँ। हाँ चीया बोलो.. तुम लोग कैसे हो.. तुम्हारी माँ की तबियत में सुधार हुआ कि नहीं.. हम लोग अच्छे हैं। माँ की तबियत पहले से ठीक है। मेरा सुपर हीरो किधर है बुलाती हूँ। बहुत याद करता है वो आपको। घर पर रहकर परेशान हो रहा है साथ के कोई दोस्त भी नहीं हैं। आज न्यूज सुनी लॉक डाउन और बढ़ गया है। न्यूज देखी मैंने भी.।


नील भाग ५३


रेवती अपने बेटे को चुप करा करा कर परेशान हो गयी पर वो चुप ही नहीं हो रहा था। रामकिशन उसकी आवाज़ सुनकर अंदर कमरे में आया..

रामकिशन : क्या हुआ.. क्यूँ रुला रही हो..

रेवती : मैं क्यूँ रुलाउंगी जी अपने लाल को.. महारा तो लाड़ेश्वर है। पता नहीं किसकी नज़र लग गई है मेरे लाल को जब से हुआ है सबकी आँख की किरकिरी बना हुआ है। रामकिशन :घर में तुम्हारे मेरे अलावा माँ और दो बच्चे हैं..

उसमें से एक को कल तुमने धक्का मार के गिरा दिया तो वो बच्ची दर्द से बेहाल पड़ी है। अब आसमान से उतर कर तो कोई नज़र लगाने से रहा। हाँ तुम्हारी मालिश वाली की ही नज़र लगी होगी बाकी तो परिंदा भी पर न मारे तुम्हारे कमरे में... इंसान की क्या मज़ाल..

रेवती : कोई मौका नहीं छोड़ा करो तुम मेरी बेज्जती करने का। रामकिशन : देखो अपने पिता की आवाज़ सुनते ही चुप हो गया। बच्चे संभालने के लिए मन के भावों को भी कोमल बनाना पड़ता है। रेवती : ठीक है माँ के न सही बच्चे के पिता के मन के भाव तो कोमल हैं.. सुनो। कल बड़े भाई सा लेने के लिए आ रहे हैं।

रामकिशन : ठीक है चली जाओ। वापिस कब लौटोगी. ? दो महीने का हो जाएगा ये तब ही लौटूंगी अपनी नानी के हाथों इसकी साल संभाल अच्छी हो जाएगी और जैसा आप बोलो।

रामकिशन : तुम्हारी माँ जैसा बोलें वही करना.. तुम अपनी तैयारी कर लो मैं मिठाई की दुकान से मिठाई ले आता हूँ।

तुम माँ को अभी बता दो जाकर ..।

ठीक है बताती हूँ। रेवती बहुत खुश थी उसने अपने कपड़े बैग में रखे एक बैग में अपने लाडले बेटे का सामान रखा। दूसरे दिन सुबह ही रामकिशन के बड़े साले साब आ गए चाय पानी के बाद उन्होने कहा कि दो घंटे बाद की गाड़ी है रेवती को बोल दो जल्दी तैयार हो जाए एक घंटा पहले निकलना ठीक रहता है। रेवती ने सासू माँ के पाँव पड़े उन्होने सुहागन रहो आशीष दिया अपने पोते के सर पर हाथ फेरा और बोली ध्यान रखना हमारे कुलदीप का और जल्दी आना.. जी... माँ जी..।

नलिनी चाय के साथ खाने के लिए मट्ठी भी ले आती है, माँ जाते समय बनाकर रख गई थीं।

नलिनी : चलो आ जाओ फटाफट.. चाय का मजा तब ही है जब गरमा गरम घूँट भरकर पीओ।

और साथ में माँ के हाथ की मट्ठी मिल जाए तो सोने पे सुहागा..

नील : रिसर्च कर रखी है तुमने चाय पर..?

नलिनी : हाँ, तभी तो बता रही हूँ।

देखो एक ये ही ऐसा पेय पदार्थ है जिसको पीने से शरीर को अगर लाभ न हुआ तो हानि भी नहीं होगी।

हमारे देश में बड़ी बूढ़ी अगर सर्दी हो तो अदरक तुलसी की चाय, पेट में दर्द, गैस होने पर नीबू वाली काली चाय, सेहत के लिए नीबू के साथ शहद मिलाकर चाय, आइस टी जिंजर, मिंट, और वो हाँ दालचीनी वाली चाय और भी किस्म किस्म की चाय लोग चाय सुट्टा बार पे जाकर पिए है। , कॉफी हाउस तक में कॉफी की जगह चाय पर लड़का, लड़की एक दूसरे को देख लेते हैं। सामाजिक राजनीतिक मुद्दे पर गरमाती हुई बहस गरमा गरम चाय की चुस्की के साथ..

नील : वाह। कमाल का नॉलेज है तुम्हारा चाय पर। अब तक इस ज्ञान से तो मैं वंचित ही था।

नलिनी : और तो ऐसे भी लोगों को देखा है कानस्टिपेशन होने पर भी जो पेट साफ नहीं हुआ करके तीन चार कप चाय गटक जाते हैं।      "उन्हे लगता है कि चाय पेट साफ करने की दवाई है।" अरे तुम हँस क्यों रहे हो सच्ची बोल रही हूँ।

हमारी हॉस्टल की वार्डन को कानस्टिपेशन की प्रॉब्लम थी और वो सुबह सुबह हम सबके दिमाग की बाट लगा देती थी। उसे चाय पीते हुये देखा है हमने गलती से भी कोई लड़की मजे लेने के लिए पूछ ले फिर तो कानस्टिपेशन की हिस्ट्री समझा कर दम लेती वो। चाय के अंदर जाने के बाद जो केमिकल रिएक्शन होते उसके साइड इफेक्ट्स आस पास वालों को झेलने पड़ते। 

नील : तुम्हारे चरण कहाँ है देवी..?

नलिनी : आर्य यथा स्थान ..।

मतलब कि धरातल पर।

"आप चाहें तो स्पर्श सुख ले सकते हैं।"

इसमें तो महारत हासिल है आपको.. है ना..?

नील : अब तुम देखो.. स्पर्श सुख क्या होता है आज अच्छे से समझा देता हूँ तुम्हें।

नलिनी : आर्य की आज्ञा का पालन किया जाएगा लेकिन एक मुश्किल है..।

नील : वो क्या है प्रिये..?

नलिनी : लॉक डाउन के चलते सारे ब्यूटी पार्लर बंद हैं।

तो वेक्सिंग और पेड़ीक्योर आर्य को ही करना होगा।

इस लॉक डाउन ने तो अच्छी से अच्छी सुंदरीयों के रूप रंग को चुनोती दे डाली है... मैं तो सामान्य सी लड़की हूँ कोई फर्क नहीं पड़ता अगर वेक्सिंग पेड़ीक्योर न भी हो। पर आर्य की पसंद की बात है... उनके कोमल हाथों को तनिक भी पीड़ा का आभास नहीं होना चाहिए जिससे उनके स्पर्श सुख में खलल पड़े

नील : नलिनी आज सुबह सुबह तुमने भांग तो नहीं खाली... . हँस हँस के पेट दुखने लगा है..। तुम्हें स्टैंड अप कॉमेडी में जाना चाहिए..।

तुम्हारे अंदर कमाल का टैलेंट है। 

लॉक डाउन का एक बड़ा फायदा ये भी है कि सबके सारे रंग सामने आ रहे हैं। तुम्हें देख के कोई सोच भी नहीं सकता कि तुम इस तरह से बात कर सकती हो ऑफिस में चुप चाप अपना काम करने वाली लड़की कोई जरा सा मजाक कर ले तो आँख से ऐसे घूरती की खा ही लेगी सामने वाले को।

इतने समय से तुम्हारे साथ काम कर रहा हूँ नलिनी का ये रूप कमाल है.." Love u Yaar "

अब अगर मैं तंग करूँ तो ग़लती मेरी नहीं होगी.. क्या बोला था अभी तुमने स्पर्श सुख... मन ये सुख लेना चाहता है प्रिये।

"तुम्हारे कोमल नाजुक पैरों का पेडीक्योर तुम कहो तो दिन में चार बार कर दूँ।"

नलिनी : दासियों को बोलो गुलाब के फूलों की पत्तियां चंदन का अर्क कुछ मोगरे के फूल कुनकुने पानी में डालकर ले आएं।

यहाँ से उठने का हमारा मन नहीं है।

नील :दासियों की क्या जरूरत है प्रिये ये दास तुम्हारी सेवा में हाजिर है।

पहले अपने चरण कमल के दर्शन तो करवाओ।

अरे क्या हुआ.?

देखने तो दो उसके बाद तुम जो कहोगी ये दास हाजिर कर देगा चंदन, गुलाब मोगरा.. और भी कुछ चाहिए तो बोलो..

नलिनी : नील दूर.. दूर रहो। अगर पास आए तो देखना..

नील : क्या करोगी तुम बोलो? अभी तो इतनी बड़ी बातें कर रही थी अब क्या हुआ..

नलिनी :देखो नील दूर रहो मैं ये चाय का प्याला तुम्हारे ऊपर फेंक दूँगी.।

नील : आ गईं अपनी वाली पर... चिडन्की।

नलिनी : तुम्हारे चक्कर में चाय ठंडी हो गई

मैं चाय बनाकर लाती हूँ तब तक तुम न्यूज सुनो।

नील : ये सही काम है तुम्हारा। अपनी टोपी दूसरे के सर रख दो.. चाय तुम्हारी वजह से ठंडी हुई है..। नलिनी :ठीक है। मैं दोबारा से चाय बनाकर लाती हूँ। लीजिए गरमा गरम चाय हाज़िर है। नील : चाय का सिप लेते हुए। वाह। क्या चाय है। चाय तो तुम कमाल की बनाती हो...ह्म्म्म। चलो देर से ही सही समझ आई ये बात तुम्हें। नलिनी :नील सब्जी की गाड़ी है बाहर आवाज़ आ रही है प्लीज तुम कुछ सब्जी ले आओ। अब तो आलू, प्याज भी खत्म हो गए हैं।  

नील :ठीक है मेम साहब जाता हूँ कुछ और..? हाँ। अगर किराने वाले की दुकान खुली हो तो पोहा, मेगी, घी और शक्कर लाना है और तुम्हारी मर्जी जो तुम्हें लाना हो।


नील भाग_५४


नलिनी किचन में जाकर एक कप चाय ले आई और टी वी ऑन कर न्यूज देखने लगी और सोचने लगी हमारे प्रधानमंत्री जी ने लॉक डाउन बढ़ाकर बहुत अच्छा निर्णय लिया।अगर ऐसा नहीं किया होता तो आधी आबादी इस महामारी की भेंट चढ़ जाती..लोगों में जागरूकता बहुत जरूरी है तब ही हम इस महामारी पर जीत हासिल कर पाएंगे चाय पीते हुए नलिनी खुद से ही बात करते जा रही थी..।"अब भी लोग सोशल डिसटेंसिंग मैंटेन नहीं कर रहे हैं।"न्यूज देखकर तो और ही घबराहट होने लगती है।..इंदौर, भोपाल में कोरोना पॉज़िटिव केस बहुत हैं डॉक्टर दिन रात अपनी जान की परवाह किए बगैर मरीजों के इलाज में जुटे हुए हैं।उसके बाद भी इंदौर में क़वारेनटाइन से पांच पॉज़िटिव मरीज भाग गए।कोरोना पीड़ित लोगों का इलाज करते हुए इंदौर के दो डॉक्टर अपनी जिंदगी हार चुके हैं उसके बाद भी लोग इतने लापरवाह कैसे हो सकते हैं?बात सिर्फ इंदौर ही की नहीं सभी जगह डॉक्टर अपने घर परिवार से दूर मरीजों की सेवा में लगे हैं जानते हुए भी कि उनकी जान को खतरा है लोग क्यों नहीं सोचते कि जो डॉक्टर इनके लिए खुद को मृत्यु का ग्रास बना चुके हैं..."उनके परिवार जीते जी मृत्यु का दंश झेल रहे हैं।" शर्म आनी चाहिए ऐसे लोगों को जो अपने साथ अपने देश से भी गद्दारी कर रहे हैं।हथेली पर मौत लेकर घूम रहे हैं। आओ हमें टच करो और मौत को गले लगाओ।.. ये लोग किसी आतंकवादी से कम नहीं है।"मौत का आतंक फैला रहे हैं ।अपनो की ही जान के दुश्मन बने हुए हैं।"ये सिर्फ आम लोगों की ही बात नहीं बड़े बड़े आला अधिकारी भी कोरोना पॉजिटिव होने के बाद लोगों से मिलते रहे हैं।"जानते हुए भी की ये उन्हें संक्रमण परोस रहे हैं।" एक ही तरीका है ..। अपने परिवार को और खुद को सुरक्षित रखने का कि घर में रहें"आप सभी मुझे पढ़ने वालों से मेरी हाथ जोड़कर विनती है,आप अपने घरों में रहें सोशल डिसटेनसिंग मैंटेन करे, बाहर बहुत जरूरी हो तब ही जाएं। मास्क पहने, न हो तो गमछा लपेट लें, कुछ भी सामान छूने के बाद सेनेटाइजर यूज़ करें। घर आकर समान सेनेटाइज करें साबुन से हाथ धोएं।"

नील :कब से चुप चाप नलिनी को देख रहा था, देश के प्रति उसकी संवेदनशीलता और प्रेम को देख उसके दिल में नलिनी के लिए सम्मान और बढ़ गया। नील के खांसने की आवाज़ सुनकर।

नलिनी.. अरे तुम कब आये..?बहुत देर से खड़ा हूँ तुम खुद से ही बात कर रही थी तो मैं कुछ बोला नहीं। सेनेटाइजर देकर.. लो फटाफट सामान और हाथ साफ करो और नहाकर कपड़े चेंज करो।

नील : जैसी आपकी आज्ञा ।सुनो..। कुछ खाने के लिए बना दो बहुत जोर से भूख लग रही है

नलिनी : तुम नहाकर आओ तब तक कुछ बनाती हूँ।

नलिनी : किचन में जाकर सोचती है की जल्दी से और स्वादिष्ट क्या बनाए.. आइडिया..(दोस्तों नलिनी की आलू की सब्जी की रेसिपी आप भी नोट कर लें फटाफट बनने वाली बहुत स्वादिष्ट सब्जी) थोड़ी सी खसखस,मखाने,नारियल काजू, चार मगज (पहले से पानी में भिगो कर रखे हुए) तीन चार काली मिर्च, एक लौंग, अदरक का टुकड़ा दो हरी मिर्च इन सबको मिक्सी में पीस लो। आलू छील कर धो लें। कूकर में अंदाज से तेल डालें फिर जीरा, तेज पत्ता डाल कर पिसा हुआ मसाला डालें भून ले उसमें लाल मिर्च, हल्दी,धनिया पाउडर नमक स्वादानुसार डालें दो टमाटर बारीक कटे हुए डालकर हिलाएं कटे आलू डालें मिलाएँ उसके बाद two tea spoon मलाई डालकर अच्छे से मिक्स कर लें थोड़ी सी सुखी मैथी फ्लेवर के लिए कुछ देर भून लें अब अंदाज से पानी डालकर कुकर में दो तीन सिटी ले लें आपकी सब्जी तैयार है हेल्थी और टैस्टी। कूकर खोलें हरे धनिये की पत्ती से गार्निश करें। अब पूड़ी का आटा गूँथ कुछ देर उसे ढँक कर रख दें ।कढ़ाही गैस पर रख सिवइयाँ भून लें एक तरफ पतीली में दूध बॉयल होने रख सिवइयाँ भून कर दूध में डालें अब चम्मच से हिलाएँ काट कर रखे बादाम, पिस्ता मखाने डालें। जब सिवइयाँ अच्छे से पक जाएं और दूध थोड़ा सा थिक हो जाए तब केसर को थोड़े से दूध में मिलाकर खीर में डालें इलायची पाउडर सारे मेवे डालकर हिलाएं अब शक्कर मिलाकर कुछ देर पकाएं और गैस से नीचे उतार कर अलग रख दें।एक कड़ाही में तेल डालकर गूँथ कर रखे आटे की लोई बना कर पूड़ियाँ तल ले। इस खाने का भगवान को भोग लगा सकते हैं शुद्ध सात्विक इसमें लहसुन प्याज का इस्तेमाल नहीं किया है। और खाने का स्वाद प्याज, लहसुन के खाने से कुछ कम नहीं।नलिनी ने थाली में खाना परोसा तुलसी पत्ती खीर में डालकर ठाकुर जी का भोग लगाकर उन्हें धन्यवाद दिया।कि इस परिस्थिति में भी ईश्वर हमें पेट भरने को खाना दे रहा है। कितने ही लोग हैं जिन्हे एक वक़्त खाना भी मुश्किल से मिल रहा है।ईश्वर से सभी के लिए प्रार्थना की खास कर पलायन कर रहे तिहाड़ी मजदूरों के लिए उनके बच्चे गर्मी और भूख से परेशान हैं नंगे पाँव मिलों की यात्रा कर रहे हैं की अपनों के पास पहुंच जाए जहाँ उन्हे रहने खाने की किल्लत नहीं होगी।आप सब भी खाने की बर्बादी न करें।

नील : नलिनी माँ का कॉल है तुमसे बात करनी है.

माँ :हैलो.. हैलो माँ.. प्रणाम.. खुश रहो बिटिया बेटा एक बात कहनी थी नील सुनता नहीं है.. जी माँ काम वालों के महीने की तनख्वाह देनी है बेटा नंबर डायरी में लिखे हैं उन तीनों के.. ठीक है माँ दे दूंगी. ठीक है गेहूं भी.. हाँ ये ही ठीक है उनसे पूछ कर उनकी जरूरत के मुताबिक.. हाँ माँ.. मैं ख्याल रखूँगी.. प्रणाम। आप सबने भी अपने अपने काम वालों को उनका वेतन दे दिया होगा अगर किसी वजह से रह गया है तो उन्हें दे दें उनके पास अपनी जीविका चलाने का इस वक़्त कोई और साधन नहीं है आप के दिए पैसों से उनके बच्चे भरपेट भोजन करपाएं। इससे ज्यादा सुकून और क्या होगा। नील.. खाने की थाली लग गई है आ जाओ..। सच बोलूँ तो खीर की खुश्बू से मेरे भी मुँह में पानी आ रहा है.. आप सब भी आ जाओ दोस्तों नलिनी स्पेशल फूड आप सबके लिए भी।                        

नील : बड़ी अच्छी खुश्बू आ रही है.. अरे वाह। तुम्हें कैसे पता ये मुझे बहुत पसंद है..                

नलिनी : बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि आदमी के दिल का रास्ता उसके पेट से होकर जाता है। और मनचाहा भोजन करने से मन प्रसन्न रहता है यदि पेट ठीक से नहीं भरा तो दिन भर उसे चिढ़ चिढ़ाहट होगी और वो अपना गुस्सा दूसरों पर निकालेगा। सुना नहीं तुमने पापी पेट का सवाल है.. इस पेट की खातिर ही इंसान इतने पापड़ बेलता है।  

नील: ये बात तो सही बोल रही हो तुम नलिनी। आजकल मन के साथ आत्मा भी तृप्त हो जाती है।

नलिनी : भगवान ने तुम्हारी बात सुन ली नील लॉक डाउन और बढ़ गया है। 

नील : हाँ वो मेरे मन की बात समझता है और तुम हो कि जानकर भी अनजान रहती हो। नलिनी मैं तो अपनी जिंदगी का हर पल तुम्हारे साथ बिताना चाहता हूँ।     

नलिनी : कोई किस्मत की फूटी लड़की होगी जो तुम्हें न चाहे।नील अगर मेरे बस में होता ना तो मैं तुम्हें....वो.....नील.. पता नहीं क्या बोल रही हूँ मैं।  

नील : तुम अपने दिल की बात बोल रही हो नलिनी। अगर तुम्हें मेरा साथ पसंद है तो बोलने संकोच किस बात का है।मैं तुम्हारे साथ कभी चीट नहीं करूंगा नलिनी मैं तुम्हें कितना प्यार करता हूं बता नहीं सकता..। तुम्हारे मेरे प्यार में फर्क है नलिनी..नलिनी की आँखों में सवाल देख तुमने जगजीत जी की ग़ज़ल सुनी है..."इधर तो जल्दी जल्दी है, उधर आहिस्ता आहिस्ता".  

नलिनी : नील ये तो तुम भी अब तक समझ गए होगे कि मेरी अपनी छोटी सी दुनिया है। और मेरी इजाज़त के वगैर कोई उसमे दाखिल नहीं हो सकता..नील :हाँ नलिनी। वक़्त ने इतने घाव दिए हैं नील की गले तक भर चुकी हूँ अब और सहने की शक्ति नहीं है मुझमे। तुम्हें पाकर मुझे जो मिला है शब्दों में बयान कर उसकी अहमियत कम नहीं करना चाहती।  गोवा से लौटकर आने के बाद तुम्हारे कॉल का इंतज़ार रहता था मुझे और जब रात होने के बाद भी तुम्हारा मेसेज कॉल नहीं आता में रोते हुए सो जाती। मेरे मन ने मेरी बात सुनना छोड़ दिया। ऑफिस में भी कई बार ऐसा हुआ कि तुम्हारा नाम लिख गया उसे बाद में देख सही करती।  डरती भी थी कोई देख न ले पर..."मोहब्बत में नहीं है फर्क जीने और मरने का उसी को देखकर जीते हैं जिस कफिर पे दम निकले,"हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले". अब और तो क्या कहें।


नील भाग_५५


नील :नलिनी ने जो बोला उसे सोच कर परेशान हो जाता है..उसे इस बात का ख़्याल रखना चाहिए था नलिनी ने खुद से ज्यादा भरोसा किया था उस पर। और गोवा से आने के बाद नील अपनी ही उलझनों में इस कदर उलझ गया कि उसने नलिनी से ऑफिस के काम के अलावा कभी उस के मन की बात जानने की कोशिश की ही नहीं। अब ऐसा और नहीं होगा नलिनी जिसकी हक़दार है उसे वो मिलना ही चाहिए।  गोवा में साथ बिताए पलों की यादे नील के मन को झकझोर रही थीं ब्लू ड्रेस में नलिनी बहुत प्यारी लग रही थी। आज के समय में इतनी सादगी असाधारण सी लगती है पर जीवन का ठहराव इस में ही है..नील अपनी डायरी निकाल कर लिखने लगता है। सालों बाद उसने अपनी डायरी निकाली।जब सोना उसकी जिंदगी में थी तब उसे डायरी लिखने की आदत थी। व सोना से जुड़ी हर छोटी बड़ी बात वो डायरी में लिख लेता था। आज न जाने कौन सी चीज उसे डायरी लिखने को मजबूर कर रही थी। वो अपने दिल की बात कहने के लिए गीत का सहारा लेता है.. उसे लगता है कि कविता, गीत, ग़ज़ल अपनी बात किसी और के मन तक अपनी बात पहुंचाने का सबसे अच्छा जरिया है।तुम्हारे लिए मैंने कुछ लिखा है नलिनी, पढ़ो...तुम देखना कुछ दिनों में तुम्हारा प्यार मुझे सांग रायटर बना ही देगा..सोते जागते एक ही चेहरा मेरी आँखो में रहता है मेरी यादों पर पहरा अब उसका रहता है।तेरी चाहत की दस्तक पर दरवाजा मेरे दिल का खुलता है,सपनों के बगीचे में मेरे तेरा चेहरा, फूल सा खिलता है मुझे तू भुला न देना, तेरे बिन यार मेरे मुश्किल है मेरा जीना सुबह सुबह आकर के सूरज रोज मुझे चिढ़ाता हैचूमकर तस्वीर तेरी बादल में छुप जाता है हवा में लहराता हुआ तेरा आँचल मेरे चेहरे को छू जाता है जिस्म की खुशबु से तेरी मेरा तन मन महका जाता है तेरी यादों की चादर में मैं खोया रहता हूँ. जागते हुए भी अक्सर मैं सोया रहता हूँ कोई किसी से यूँ प्यार ना करे जीना अपना कोई यूँ दुश्वार ना करे सोते जागते एक ही चेहरा मेरी आँखो में रहता है मेरी यादों पर पहरा अब उसका रहता है। सिर्फ और सिर्फ तुम्हारा नील ️

नलिनी : ओहह । नील का माथा छूकर देखती है..

नील : क्या कर रही हो ये तुम?  नील तुम तो बहुत बीमार हो। क्या बकवास कर रही हो..?

नलिनी : सच बोल रही हूँ। नील तुम्हें प्रेम रोग हुआ है और ये लाइलाज है। अब मैं माँ को क्या जवाब दूंगी?

नील : किस बात का जवाब..?

नलिनी : माँ मुझसे तुम्हारा ख़्याल रखने के लिए बोल कर गई थी।अब इस मर्ज़ की आयुर्वेद, होम्योपैथी, यूनानी, एलोपेथी किसी में भी कोई दवा नहीं है अब मैं कैसे ठीक करूँ तुम्हें..?

नील : बालिके तनिक भी चिंतित न हो. ?

नलिनी : अच्छा नील बाबा.. आपके पास इस मर्ज का इलाज है ?

नील "हाँ।" बालिके। शर्तिया इलाज है। पूर्णिमा के दिन शाम ढले तुम मेरी कुटिया में चली आना। इस घर के पीछे बरगद के पेड़ के नीचे मेरी कुटिया है। साथ में कुछ खुशबु वाले फूल, कुछ फल, केसर वाला दूध और शुद्ध जल, इत्र की शीशी और हाँ नहाकर गीले बालों में और ये जो उल्टा सीधा पहनावा है ना आजकल का ये नहीं पारम्परिक भारतीय परिधान साड़ी में बालों में मोगरे की वेणी माथे पे लाल बिंदी और लाल चूड़ियाँ कलाई में.. समय का ख़याल रखना जरूरी है।  

नलिनी : और ये भारतीय परिधान,साड़ी लाल चूड़ी पेड़ पे उगती हैं तुम्हारे घर में.?  तुम्हारी तबियत कुछ ज्यादा ही खराब हो गई लगती है..।

नील : बालिके परेशान न हो सब ठीक हो जाएगा। तुम ठाकुर जी की पूजा करने जाओगी तब तुम्हें साड़ी, चूड़ी, बिंदी सब सामान मिल जाएगा। तुम ठाकुर जी की पूजा अच्छे से करना और जो भी चाहो माँग लेना। उन्हे जो बिन्दी लगाती हो ना वो कुमकुम एक कटोरी में थोड़ा ज्यादा लेकर उसमें से ही उन्हे टिका लगाना और उनके माथे का छुआ हुआ कुमकुम उस कटोरी में मिला लेना और उसे भगवान के चरणों में रख देना एक दिन बाद पूर्णिमा है तुम केसर के दूध को चांदी की कटोरी में तुलसी पत्र डालकर ठाकुर जी को भोग चढ़ाना और उसी प्रसाद को केसर के दूध में मिलाकर बाकी सामान के साथ बरगद के पेड़ के नीचे कुटिया में आना और साड़ी, चूड़ी सब तुम्हें पूजा घर में ही मिल जाएगा कुमकुमवाली कटोरी भी साथ में ले कर आना।

नलिनी : ठीक है।

नील :अब ऐसे क्यूँ घूर रही हो तुम मुझे। मेरी बात पर तुम्हें भरोसा करना पड़ेगा। अगर सही मायने में मेरी चिंता है तो तुम्हें। बाद में ऐसा सुनहरा मौका शायद ही मिले। समझी बालिके?

नलिनी : मैं तो खूब अच्छे से समझ रही हूँ नील। तुम चोट से तो ठीक हो गए हो, पर खाली बैठे बैठे तुम्हारा दिमाग काम से गया लगता है मतलब सटक गया लगता है।अच्छा तो तुम मुझे पागल समझ रही हो..?

नलिनी : अब भी समझने और समझानेको कुछ बचा है..। है ईश्वर मेरी मदद करो।

नील : ठीक है, हँस लो अभी तुम एक दिन की ही बात है तब देखना तुम्हें सारे सवालों के जवाब मिल जाएंगे। सुनो। तुम चाय बनाओ जल्दी से सर में दर्द हो रहा है मेरे।

नलिनी : इतना क्यूँ बोलते हो..? मना किया है ना डॉक्टर नेनील : ह्म्म्म। पर मैं बोर हो जाता हूँ। अच्छा आज तुम बोलना मैं सुनूंगा।

नलिनी : हाँ, मैं स्पीकर हूँ ना?

नील : अब ऐसा तो नहीं कहा यार। तुम कोई भी बात सीधे से न समझती हो न ही बोल सकती हो।सुनो.. ना प्लीज। सीधे से बोलो जो बोलना चाहते हो.. ओके मेरा मतलब है तुम खाना बनाने के लफड़े में मत पड़ो आज तुम नहाकर माँ के ठाकुर जी की पूजा कर लो। खाना आज मैं बना लेता हूँ।

नलिनी : सिरियसली? नील : यस डार्लिंग।

नलिनी : ये तो बहुत अच्छा है। तुम क्या बनाओगे.. जानने की उत्सुकता है..बताओ ना..

नील : एक शर्त पर..नलिनी : वो क्या है?

नील : तुम अपने बारे में सब बताओगी उस दिन जो बात आधी छूट गई थी..बोलो ?

नलिनी : पक्का.. बताऊँगी।

नील : मैं वेजीटेबल राइस, और रायता बना दूँगा।पर अभी तुम चाय पिला दो सुबह सुबह भेजा फ्राई कर देती हो..

नलिनी : नील!... तुम अब बोले ना तो..नील : सॉरी, सॉरी डियर जबान फिसल गई..

नलिनी : एक ट्रे में चाय और बिस्किटस लेकर आ जाती है नील आ जाओ चाय पीने के लिए..

नील :अच्छी चाय के लिए शुक्रिया डियर कभी ऐसा भी वक़्त गुजारना पड़ेगा मैंने कभी सोचा भी नहीं था। ऑफिस की फाइलों की जगह हम खाने की रेसिपी पर चर्चा करेंगे।और मैं और कुकिंग, हद हो गई है।

नलिनी : मैं नहाकर पूजा करके आती हूँ तुम भी तैयार हो जाओ सोचती हूँ अंदर जो रुका पड़ा है सालों से उसे बाहर निकाल दूँ..।

नील :जल्दी से जल्दी खाना बनाकर फ्री होना चाहता था उसे नलिनी के बारे में सब कुछ जानने की जल्दी थी।न जाने कितनी ही बातें उसके दिमाग में आ जा रही थी। तभी नलिनी आ जाती है। नील लंच रेडी है। खाना खत्म कर वो लोग हॉल में बैठते हैं..

नलिनी :कहाँ से शुरू करूँ....रेवती के जाने पर रामकिशन खुद को थोड़ा सा सुकून में फील करता है। वो माँ के पास जाकर बैठ जाता है ।

माँ : क्या बात है बेटा.? क्यूँ परेशान हो।

रामकिशन : आपके तो सब मालूम है माँ सा..नन्ही सी बच्ची को अपने से दूर करने की बात से ही कलेजा कांप जाता है।

माँ : मैं भी इसके साथ ही रहूंगी और अभी तो रेवती भी नहीं है। उसके बाद भी अगर वो खोज बीन करे तो कह देना कि मैं हरिद्वार वृद्ध आश्रम में रहने लगी हूँ मेरा मन वहीं पर रम गया है। दूसरे दिन रामकिशन जी पंडित जी, दादी और मुझे लेकर जयपुर आ गए। एक आदमी सारा सामान अंदर ले गया.. घर बहुत सुंदर था बाहर बगीचे में झूला लगा हुआ था। बगीचे में सुंदर फूल देख मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। रामकिशन जी ने पहले से ही घर पर सारी व्यवस्था की हुई थी। एक कमरा मेरा था उसमें मेरे लिए खूब सारे खिलौने रखे हुए थे। उसके सामने वाला कमरा पंडित जी का था रामकिशन जी ने कहा कि ये चाचा जी हैं ये ही तुम्हारे साथ रहेंगे, मनसा काकी खाना बनाने के लिए और मेरी देखभाल के लिए रहेंगी। एक छोटी बच्ची को कौन क्या करेगा कुछ समझ में नहीं आ रहा था बस झूला, बगीचे के फूल और खिलौने इतनी ही दुनिया अपनी लगी।और दादी वो मेरे पास ही रुक गई। रामकिशन जी ने मेरे सर पर प्यार से हाथ फेरा और बोले, बिटिया अच्छे से रहना कोई भी बात हो दादी को बता देना और जब मैं आऊँगा तो हफ्ते भर की सारी बातें हम करेंगे। रामकिशन जी चले गए और मेरी नयी ज़िंदगी शुरू हुई। मैं अपने पसंद के खिलौने उठाकर अपने पलंग पर बैठ कर खेलने लगी। मनसा काकी मेरे लिए दूध और दादी के लिए चाय ले आयीं उन्होने मुझे प्यार किया और बोली कितनी प्यारी है बिटिया रानी।

थोड़ी देर खेल कर मैं थक गयी और मुझे नींद आ गई।



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