मनुष्यता और उसके कर्तव्य
मनुष्यता और उसके कर्तव्य
रमन की आँखें खुली वह बेड पर लेटा हुआ, अपलक छत को निहार रहा था। एक अजीब सी दुर्गंध उसके नथुनों को बोझिल कर रही थी। उसे समझ में नहीं आ रहा था वह यहाँ कैसे पँहुचा।थोड़ा थोड़ा याद है सरकारी दिशानिर्देश के तहत वह भी सुबह सात से ग्यारह बजे खुलने वाले किराने की दुकान में राशन लेने गया था। बेटी ने जाते समय जिद किया था आते समय मैगी लेते आना। बेटी की मांग बिल्कुल सही थी लेकिन बाज़ार से मैगी, पिज़्जा बर्गर तो लुप्त हो गये थे। पिछले दो महीने से बच्चे घर में फिर से कैद रहकर बाहरी दुनिया से कट से गये थे। उसे ठीक से याद आ रहा है जब वह किराने की दुकान पर पँहुचा उसने पाया सरकारी दिशानिर्देश महज एक दिखावा है, लोग एक दूसरे पर चढ़े राशन लेने के लिये दुकानदार को आवाज़ लगा रहे थे।सामाजिक दूरी का कहीं कोई ठिकाना नहीं था, मास्क की डोरियां कानो से लटकती हुई दाढ़ी के निचले हिस्से में दुबकी औपचारिकता निभा रही थी।
दुकानदार भी चाहता था कि वह राशन की ज़रूरी वस्तुएँ सभी को दे क्योंकि पूरे जीवनकाल में उसके इस व्यसाय के अनुभव में उसने पाया था कि इस वैश्विक महामारी के दौर में अब सिर्फ चावल , दाल , नमक के अलावा शायद ही कोई दूसरी वस्तु लोग माँगते हैं, जिसकी वजह से राशन पर्याप्त मात्रा में मंडियों से नहीं आ रहा था, धनवानों ने राशन को अधिक मात्रा में खरीद कर संचित कर लिया था।
दुकानदार ने अपना खुद का एक नियम बना रखा था जिससे वह आवश्यकता से अधिक किसी को राशन देना नहीं चाहता था उसे कहीं न कहीं ऐसा लग रहा था कि सभी को उनके ज़रूरत के हिसाब से वह राशन दे पाये तो यह उसके लिये बहुत बड़ा धर्म का काम होगा ऐसी स्थिति में वह धर्म और अधर्म के तराजू की डंडी में तटस्थ खड़ा था।दुकानदार को मैं ठीक से जानता था वह बड़ा ही धार्मिक प्रवृत्ति का व्यक्ति था, दुकान बंद होने के बाद राशन के किट वह गरीब बस्तियों में भी बांटने जाया करता है, क्योंकि इस महामारी ने शारीरिक मानसिक और आर्थिक रूप से सबको कमज़ोर कर ही दिया है।
फिर न जाने क्या हुआ पुलिस की गाड़ी आई भगदड़ मची भीड़ के नीचे रमन कब दबा और बेहोश हो गया उसे पता ही नहीं चला।
वह जैसे तैसे बेड से नीचे उतरा, कमरे की खिड़की से नीचे देखा तो उसने पाया वह जिला अस्पताल की इमारत में हैं इस ठिकाने को वह कैसे भूल सकता हैं न जाने कितने मरीज़ों को यहाँ उसने अपने रिक्शे से छोड़ा होगा कइयों से तो उसने किराया भी नहीं लिया था। अस्पताल का वह कमरा काफी भयावह लग रहा था।
रमन आस पास देखने लगा कोई
भी दिखाई नहीं दे रहा था।
हाँ, कुछ कंकालों में कपड़े ज़रूर लहरा रहे थे। चारो तरफ सिर्फ सन्नाटा ही पसरा हुआ था ये बात अलग है कि पेड़ पर से चिड़ियों की चहचहाट उसे सुनाई दे रही थी सूरज निकल चुका था, सर पर चढ़ने की तैयारी कर रहा था।
वह तेज कदमो से नीचे की ओर जाने लगा और जल्दी ही नीचे पँहुचा उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। जिससे वह भयभीत भी हुआ। नीचे कोई भी मौजूद नहीं था।दुर्गंध के अलावा कुछ भी नहीं, कोई भी नहीं , दुकाने खुली पड़ी थी। रिक्शा टैक्सी सड़क पर अपना आधिपत्य जमाये हुये, आंदोलन की मुद्रा में जहाँ-तहाँ बिखरे पड़े थे। रमन काफी घबरा गया। लोगों के वस्त्र आभूषण सभी बिखरे थे, किंतु वहाँ लोग नहीं थे। जैसे-जैसे वह आगे बढ़ रहा था उसका हृदय ज़ोर से धड़क रहा था। ऐसा लग रहा था कलेजा निकलकर मुँह को आ जायेगा। वह अब चल नहीं दौड़ रहा था, ढूंढ रहा था कोई तो उसे मिले। मनुष्यता न सही मनुष्य तो मिले।उसके सामने पत्नी और एकलौती बेटी प्रिया का चेहरा घूमने लगा।वह तेज़ी से घर की ओर दौड़ पड़ा उसके शरीर मे शक्ति नहीं थी, कई महीनों कोमा में रहने के बाद उसे होश आया था यह मात्र ईश्वरीय वरदान ही था कि वह ऐसे बिना किसी के देखरेख में अस्पताल में जीवित रहा और आज उसे होश आया था।उसका घर अस्पताल से मात्र दो किलोमीटर की दूरी पर था, लेकिन उसे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वह एक युग से दूसरे युग की दूरी नाप रहा था। प्रलय उसके पैरों के नीचे बलबला रहा है।
वह बुरी तरह कांप भी रहा था। ये कैसे संभव है क्या इस महामारी ने सारा नगर ही निगल लिया। वह लड़खड़ाता हुआ किसी तरह घर पँहुचा, देखा दरवाज़ा बंद था। वह तेज़ी से दरवाज़ा पीटने लगा।
अचानक रमन को उसकी पत्नी की आवाज़ सुनाई दी "कौन इतनी तेजी से दरवाज़ा पीट रहा है? विमला की आवाज़ को सुनकर जैसे उसकी घीग्गी बंध गयी, रात भर चिंता में सो नहीं पाने से थकी हुई अलसाई अवस्था में उसकी पत्नी ने दरवाजा खोला कि रमेश तेज़ी से अपनी बहन को गले लगाते हुये बोला जीजी जीजाजी की रिपोर्ट निगेटिव आई है।
रमन की आँखे खुल चुकी थी, वह स्वप्न शृंखला से बाहर आ चुका था। रात भर में उसने क्या नहीं देखा।रमन बिस्तर पर लेटे लेटे अपनी गलतियों के लिये माफी मांगते हुये ईश्वर से बोला। हे ईश्वर बहुत सुंदर है यह दुनिया। इसे ऐसे खत्म मत करना। हम और कड़ाई से इस महामारी के खिलाफ लड़ेंगे सामाजिक दूरी का पालन भी करेंगे मास्क भी सही तरीके से लगाएंगे किंतु हे ईश्वर जो कुछ भी मैंने सपने में देखा वैसा कुछ मत करना।