अपने पराये
अपने पराये


राज्य में अफ़रातफ़री का माहौल था। लोग एक दूसरे से खिंचे-खिंचे थे । प्रांतवाद का मुद्दा जोर पकड़ चुका था।शहर के कई हिस्सों में तोड़फोड़ और आगजनी की छिट-पूट घटनाएं अखबारों में सुर्खियां बनी हुई थी ।
पुलिसबल, समाजसेवी संस्थायें शांति स्थापित करने का प्रयास कर रहीं थी।
प्रशासन कुछ हद तक हालात पर काबू पा चुका था , परीक्षा और बच्चों के भविष्य को देखते हुये स्कूल खुल चुके थे।
बाज़ार अभी पूरी तरह सामान्य नहीं हुए थे ।
प्रकाश तेज कदमों से चलता हुआ अपने घर मे प्रवेश करता है। "सपना ओ सपना कहाँ हो जल्दी से चाय बना दो, काफी तलब लगी हुई है, इस आंदोलन के चक्कर मे कुछ ढंग का खाना पीना भी नसीब नही हुआ" कहते हुए सोफे पर धम्म से पसर गया। सपना ने साड़ी के आंचल से माथे पर से पसीना पोंछते हुये कहा "दूध नहीं है,दूधवाला नहीं आया, काली चाय बना दूँ, वैसे समय हो गया है क्यों ना भोजन ही कर लो" ।
थोड़ी देर शांत रहने के बाद प्रकाश ने कहा "ठीक है खाना ही लगा दो"
सपना ने आनन फानन में चौकी सजा कर लोटा पानी रख दिया और रसोईघर की ओर चली गई , प्रकाश ने पानी से मुंह हाथ धोया और बैठ गया, इंतज़ार करने लगा सपना ने जल्दी ही खाना परोस दिया।
खाना देखते ही प्रकाश चीख उठा "यह क्या सिर्फ चावल और दाल , रोटी-सब्जी कहाँ है, क्या आज यही खाना होगा" , सपना ने जवाब दिया "चक्की पर आटा पीसने के लिए दिया है लेकिन आटा वहीं है और चक्की सात दिनों से बंद है, अब फेरीवाला भी नही आता जो सब्जी ले लेती। आज सुबह बाज़ार गई थी लेकिन पूरा बाजार खाली था, लौट आई क्या करती ,जो पहले का था वह कल ही समाप्त हो गया, अब बाजार के शुरू होने पर ही सब सामान्य हो पायेगा तब तक लगता है ऐसे ही रहेगा खा लो" ।
प्रकाश का माथा ठनक गया झुंझला सा गया उसे भूक जोर से लगी थी मरता क्या न करता जल्दी-जल्दी बड़े कौर ठूसने लगा , पेट मे भोजन जाने के कुछ पश्चात जब वह थोड़ा सामान्य हुआ ।खाते हुए उसकी नज़र दीवाल घड़ी पर पड़ी, उसने सपना को पुकारा "अरे सपना गुड़िया नही दिखाई दे रही है आज स्कूल गई थी या कहीं खेल रही है"।
गुड़िया की याद आते ही सपना ने घड़ी की ओर देखा । "अरे! यह क्या रोज एक बजे स्कूल से आ जाती थी आज दो बज गए अभी तक नहीं आयी क्या बात है !
रिक्शावाले भैया पिछले चार वर्षों से उसे स्कूल ले जा रहे हैं और हमेशा गुड़िया को समय पर पंहुचा देते थे आज क्यों देर हुई समझ नही आया और मेरा भी ध्यान नहीं रहा क्योंकि अक्सर रिक्शे वाले भैया के आने से ही मुझे पता चलता था कि एक बज गए है मेरा तो दिल तेजी से धड़क रहा है"। "कहीं........" और रोने लगी इतना कहना था कि प्रकाश के दिमाग मे कई तरह के दृश्य, लाशें, टूटे मकान ,जलती गाड़ियां दिखाई देने लगी। प्रकाश खाना छोड़ उठा और काँपते हुये आँखे बड़ी करते हुये चीखकर बोला "मैं जानता हूँ इनको , तुम शांत रहो कुछ नहीं होगा मेरी गुड़िया को मैं अभी उसे लेकर आता हूँ"। तेज़ी से दरवाज़े की ओर लपक गया।
प्रकाश ने जैसे ही दरवाज़ा खोला सामने गुड़िया खड़ी थी, घबराई हुई भी थी उसकी आँखें भरी हुयी थी, सपना ने उसे उठा कर गले लगा लिया।प्रकाश उसे पीछे से गले लगाते हुये पूछने लगा बता तू क्यों रो रही है कहीं उस...प्रकाश अपने शब्द पूरे कर पाता गुड़िया सिसकते हुये कहने लगी,"रिक्शेवाले अंकल को बचा लो , लोगों ने उन्हें बहुत मारा है, हम स्कूल से आ रहे थे, अंत में सिर्फ मैं और अंकल ही बचे थे। चौक पर कुछ लोगो ने रिक्शा रोक लिया, अंकल लगता है कुछ समझ गये थे, मुझसे पहले ही कहा जल्दी से उतर कर पास की बंद दुकान के कोने में बोरे के पीछे छुपने को कहा और मैं छुप गई, वो लोग अंकल को घसीट-घसीट कर मारने लगे,उनकी रिक्शा भी तोड़ दी । पीटने के बाद उन्हें बेहोश समझकर वे आगे बढ़ गये। थोड़ी देर बाद अंकल उठे और मुझे वहाँ से अपनी गोद में उठाकर गली-गली होते हुये, पीछेवाली गली में छोड़ते हुये बोले- "तुम यहाँ से चली जाओ, मुझे पता था मैं अपने पीछेवाली गली में पंहुच चुकी हूँ और वो मुझे छोड़कर जब वापस जाने लगे, मैं उन्हें देखती रही, फिर सड़क पर पंहुचते ही वो बेहोश हो गए, पीछे से पुलिस की बड़ी गाड़ी आई ।पुलिस उन्हें उठाकर शायद अस्पताल ले गयी"।
प्रकाश के आंखों के सामने बीते कुछ दिनों के घटनाक्रम एक एक कर सामने जैसे ताज़ा हो गये। वह पश्चाताप की अग्नि में जल उठा,
प्रकाश घुटनों पर बैठ गया और चीख-चीखकर रोने लगा क्योंकि वह भी इस आंदोलन का हिस्सा था।