जूठी प्लेट
जूठी प्लेट
"बहनजी ! आपका भोजन हो गया हो तो मैं ये प्लेट ले लूँ ?"
दफ्तर की मेज, पहला दिन और चपरासी मुकुंद की आवाज़ ने जैसे खोई हुई आभा को नींद से जगा ही दिया।
नहीं-नहीं मैं स्वयं धो लुंगी कहने के बावजूद मुकुंद ने मेज से प्लेट उठाई और चला गया।
पति के जीवित रहते परिवार ने आभा का विरोध किया था, कहा था क्या कमी है और तुम्हें नौकरी करने की कोई ज़रूरत नहीं केमिकल इंजीनियरिंग में गोल्ड मेडलिस्ट आभा कब एक बेटी की माँ बनी।अचानक कार एक्सीडेंट के बाद परिवार द्वारा जायदाद हड़पते हुए कहना"अगर यहाँ रहना है तो बंगले के पीछे नौकरो वाला कमरा साफ करा लो। बेटी की जिम्मेदारी हम ले लेंगे इसकी पढ़ाई और शादी करा देंगे।पूरे एक महीने नौकरानी की तरह बर्ताव शुरू हो गया।
अलग से रोज़ जुमले सुनाई देते
औरतों की कमाई से कभी बरकत नहीं होती।
और कमाएंगी भी तो कितना? ...भद्दे शब्द , गालियाँ इसके अलावा ये कहना
प्लेटें ये साफ नहीं करेंगी तो क्या हम साफ करेंगे, सास अनपढ़ ज़रूर थी लेकिन वह जानती थी उसका यहाँ क्या हाल हो रहा है।
एक सुबह सास का आना , चिट्ठी और कुछ रुपये हाथ मे देकर यह कहना ''मेरी आभा की प्लेटें तो मर्द ही साफ करेगा।" दरवाजा खोल नई राह पर भेजना , एक चमत्कार के अलावा कुछ नहीं था।
मौसीजी को लिखे सास के सिफारशी पत्र, उनके यहाँ रहने की व्यवस्था ने काया पलट ही दी।
" बहनजी ! आप कॉफी लेंगी या चाय?
अगर कुछ लोगों के कारण हम भी वही करने लगे तो फर्क क्या रह जाएगा।
आभा ने मुस्कराते हुए कहा "जी मैं चाय कॉफी नहीं पीती भैया"
और सुनो कल से मेरी प्लेट आप नहीं उठाएंगे, मैं खुद धो लुंगी।
आभा के मेज पर उसका नेमप्लेट चमक रहा था।
प्रबंधक : भारत केमिकल्स