Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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अजय '' बनारसी ''

Others

3.2  

अजय '' बनारसी ''

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मेंटोस

मेंटोस

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कॉल सेंटर की बिल्डिंग के नीचे लंच के बाद श्वेता बड़े तेज़ तेज़ कदमों के साथ सड़क के उस पार बने चाय की दुकान पर जा पंहुची।पास के टपरी से एक क्लासिक माइल्ड लिया और चाय वाले ने चाय दे दी, चाय की चुस्कियों के साथ वह वहाँ धुआँ उड़ा रहे मित्रो की तरफ मुड़ी।


आज रजनी कुछ परेशान दिख रही थी, उसने पूछ ही लिया "क्या बात है कुछ प्रॉब्लम हैं क्या ? रजनी की आँखे शायद रोने से लाल हुई थी उसने कहा "मेरे पति मुझे काम करने नहीं देना चाहते और तो और उनका कहना है यह नौकरी शरीफ़ औरतों के लिए नहीं है। मैं अपने दम पर पैसा कमाना चाहती हूँ।

फिर से घर की चहारदीवारी में रहकर अपने अस्तित्व को खत्म नहीं कर सकती।"

  श्वेता ने समझाते हुए कहा "तुम बहुत भोली हो रजनी मैंने तुम्हें कई बार समझाया है काम पर की बातें पति से ज्यादा शेयर मत किया करो, अपनी ज़िंदगी अपनी है, अपने तरीके से जियो, अपने साथ होने वाली अच्छी बुरी बातों को हमें कैसे मेंटेन करना हैं ये अपने हाथ मे है",।सिगरेट का आखिरी कश लेते हुए वो टपरी की ओर मुड़ी और उसने एक मेंटोस की गोली ली, उसे मुँह में डाले रजनी के साथ फ़िर से ऑफिस बिल्डिंग में प्रवेश किया।


आज श्वेता बहुत जल्दी में थी, दिन भर से उसे कुछ खाने का भी समय नहीं मिला था महीने के आखिरी में अक्सर वर्क लोड के चलते समय नहीं मिल पाता है।चाय सिगरेट जल्दी से खत्म कर टपरी वाले से मेंटोस माँगा लेकिन आज टपरी वाले भैया के पास मेंटोस और दूसरी कोई गोली नहीं थी।

वह बिल्डिंग के पास बने पार्किंग में आ गई और पिकअप वैन में बैठ गईं, आज आदर्श जल्दी घर आ गए थे,ये तो अच्छा था कि घर आकर वो घर के काम मे जुट जाते थे, श्वेता ने जल्दी-जल्दी मुँह हाथ धोया और आदर्श उसके लिए चाय लेकर आये,श्वेता चाय पी ही रही थी कि आदर्श ने उसके पास बैठकर अपनी मुट्ठी उसके सामने खोली, आदर्श की हथेली पर दो मेंटोस की गोली रखी हुई थी।

श्वेता विस्मय से आदर्श की ओर देखने लगी उसे रजनी को दिये पिछले दिन की अपनी सलाह और ढ़ेर सारे प्रश्न उसके सामने नाचने लगे।


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