अजय '' बनारसी ''

Children Stories

4.0  

अजय '' बनारसी ''

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प्रतिस्पर्धा

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 मदन ने एक आम का पौधा घर के सामने खाली जगह देख कर लगाया।पौधा धीरे धीरे अपनी जड़ें जमाता गया। पुराने पत्ते झड़ने के बाद नये पत्तों ने पौधे को हरा भरा कर दिया। मदन ख़ुशी से झूम उठा I वह जब देखो तब उसकी सेवा में लगा रहता।


इधर मदन कुछ दिनों के लिये ननिहाल गया। उसे अपने आम के पौधे की बहुत याद आती रही,वह माँ से रोज़ जिद करता कि उसे जल्दी घर जाना है। माँ उसका आशय समझ रही थी I माँ ने उसे समझाया कि पौधे की देख रेख उसके चाचा कर रहे हैं। वह इस बात की बिल्कुल चिंता न करे।माँ के समझाने के बाद वह आश्वस्त हो गया लेकिन उसने वहाँ जैसे तैसे दिन बिताया।

 

ठीक दो महीने बाद वह अपने घर लौटा।उसने आव न देखा ताव झट से दौड़ता हुआ। आम के पौधे के पास गया। वहाँ आम के पौधे के पास जामुन की नन्ही कोंपले पौधे का रूप ले रही थी। उसे अनदेखा कर आम के पौधे को निहारने लगा।मदन नयी पत्तियों को निहारता उसे छूता ऐसा करने में उसे बहुत आनन्द आ रहा था, किन्तु नन्ही जामुन को यह बात अच्छी नहीं लगी कि मदन ने उसे देखते हुये भी अनदेखा कियाI

मदन रोज़ सुबह शाम जब भी समय मिलता आम के पौधे से मिलता और चला जाता I जामुन के नन्हे से पौधे को यह उम्मीद थी कि एक न एक दिन मदन उसे भी आम के पौधे की तरह स्नेह करेगाI


आम का पौधा मदन का अपना लगाया पौधा था और वहीँ जामुन अनायास बिना मर्ज़ी की वहाँ उग आया था यद्यपि इसमें जामुन और मदन दोनों की कोई गलती नहीं थी फ़िर भी उसकी अनदेखी जामुन के मनोदशा पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव डाल रही थीI


नन्हें से मासूम जामुन इसका गहरा असर हो रहा था वहीँ मदन से मिलने वाले स्नेह से जामुन भीतर ही भीतर कमज़ोर भी हो रहा था I इतना सब होने के बाद जामुन कहीं न कहीं आम के पौधे के पत्तों में छुपा ही रहा जिससे मदन उसे कभी देख नहीं पाया, परख नहीं पाया I इन्ही सब दबावों के कारण उसके भीतर आम के पौधे से प्रतिस्पर्धा सी हो गई I न जाने क्यों वह अपनी क्षमता से भी अधिक तेज़ी से बढ़ने की इच्छा रखने लगा। उसे ऐसा लगने लगा यदि वह तेज़ी से फल फूल कर आम के पौधे को अपनी पत्तियों से ढक देगा तो मदन ही नहीं उसके अलावा अन्य और लोगों का भी स्नेह उसे मिलेगाI


जामुन शायद भूल बैठा आम का पौधा वहाँ खाली जगह देखकर लगाया गया था और उसकी जड़े उसके अस्तित्व से पहले वहाँ अपना पैर पसार चुकी थी I 



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