vijay laxmi Bhatt Sharma

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vijay laxmi Bhatt Sharma

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मेरी कहानी

मेरी कहानी

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झलकती बलखाती सी चलती थी कभी मैं, मुझपर भी यौवन का उन्माद भरा था कभी और मै उछल उछल कर चलती थीवो दिन बहुत ही सुंदर दिन होते थे और उस जमाने के लोग ही निराले थे मुझे मां की तरह पूजते थे मेरे पवित्र जल में डुबकी लगाकर अपने आप को बहुत धन्य समझते थे मुझे भी रानी होने का एहसास होता था अब चाह कर भी वो दिन लौट नहीं पा रहे हैं।

मेरी छवि कलुषित हो चली है अब लोगों के मैल ढोने लगी हूं उनके कूड़े करकट के ढेर से मेरा अस्तित्व खत्म होता नजर आ रहा है मेरी चाल दिन प्रतिदिन धीमी होती जा रही है एक उत्साह और उछाल था जिंदगी में वो कहीं दब कर रह गया है। मेरी पवित्र निर्मल धारा अब अदृश्य हो गई है और उसकी जगह विषैले पदार्थों ने ले ली है। मुझे तो सौभाग्य मिला की मैं शिवजी की जटाओं से बह कर धरती पर आ इस धरती को पावन और शुद्ध जल दे निर्मल कर दूं परन्तु मनुष्य की प्रकृति अलग है उन्हें कुछ अच्छा मिलता है तो और अच्छे खोज में उसका अस्तित्व ही ख़तम कर देते हैं जो उन्हें मिला होता है।

मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ मेरा गला घोंटा दिया गयाआस्था और संस्कार के नाम पर कई बार मुझे छला गया और हर उस वस्तु को मुझे सौंप दिया गया जो लोग अपने घर पर नहीं रख सकते परंतु आस्था के नाम पर बहा देते हैंमेरे कंधे झुक गए हैं।

इन बड़े बड़े प्लास्टिक के थैलों सेमेरी चाल लड़खड़ा गई है इनके भार सेमेरी सुन्दरता को ग्रहण लग गया है मनुष्य के अनुचित व्यव्हार सेकहां जाऊं मैं मां हूं मै सबका ध्यान रखना मेरी जिम्मेदारी है इसलिए कुछ कह नहीं पाती लड़खड़ा कर चलती हूं बच्चों का पोषण करती हूंहड्डियों का ढांचा हो गई हूं और कुछ वक़्त ऐसी मार पड़ती रही तो मेरा अस्तित्व समुल नष्ट हो जाएगा। मैं अपने बच्चों को निर्मल जल नहीं दे पाऊंगी।

उनकी जान की रक्षा नहीं कर पाऊंगी मुझे चिंता सता रही है मेरे बाद मेरे बच्चों का क्या होगा बच्चे लापरवाह हो सकते हैं पर मां नहीं मेरे बच्चों जो जीवन को चलाना है तो मुझे फिर से स्वच्छ करो मेरा अस्तित्व मुझे लौटाओ मेरे भाई पेड़ खूब लगाओ जिनकी निर्मल छाया में मै पनपूंगी छान छान देंगे मुझे पर्वतों से बहता जल रोक लेंगे पहरी बन रोड़ी बजरी देंगे मुझे परम स्नेहमै पोषक हूं तुम्हारी पालती रही शादियों तुम्हें अब तुम्हारी बारी मेरी रुग्ण काया को औषधि से। मेरी सांसों के तार टूट जाएं इससे पहले मुझे कुछ सांसें दे उधार करो मुझ पर उपकार।


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