vijay laxmi Bhatt Sharma

Tragedy

4.0  

vijay laxmi Bhatt Sharma

Tragedy

प्रायश्चित

प्रायश्चित

3 mins
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  लोग कहते हैं ज़माना बदल गया है... और बदल भी गया शायद... सावित्री यही सोच रही थी मैं जब शादी होकर आयी थी इस घर मे कितना भरा पूरा परिवार था... एक साथ खाना खाने बैठते थे तो बीस लोगों की इतनी बडी पंक्ति होती थी और मैं घर की बहू होने के नाते सभी को खुशी खुशी खाना खिलाती थी... ससुरजी रोज आशीर्वाद देते खुश रह बेटी साक्षात अन्नपूर्णा है... एक एक कर सब चले गए अपने अपने कामों पर.... जीवनसाथी भी संसार से विदा ले गए... एक बेटा था जिसके सहारे अकेले ही जीवन निकल गया जब पढ़लिखकर बड़ा हुआ तो उसने भी अपनी पसंद बता कर शादी कर ली... चलो अच्छा ही हुआ मैंने सोचा तीन तो हुए एक दूसरे से बात करने को ... पर सब बेकार बहु कमरे से ही बाहर नहीं निकलती थी... बेटा भी कहाँ सुनता ... रोज एक ही झगड़ा रोटी कौन बनाये... मैने ही कह दिया नौकर रखने की जरूरत नहीं मैं ही बना लूँगी खाना.... बहु की आवाज आई ठीक ही तो है सारा दिन इन्हें काम ही क्या है... खूब काम किया था इन हाथों ने कभी बीस बीस लोग खाने वाले होते थे फिर आज तो तीन ही है... बेटा परेशान न हो मैने कह दिया ठीक ही तो कह रही है बहु काम ही क्या है सारा दिन... धीरे धीरे बहु की सहेलियां भी आने लगीं बूढ़ी हड्डियों में इतनी जान कहाँ की सारे काम कर सकूँ हड्डियों ने जवाब ही दे दिया और बहू का रोज एक ही आलाप की वृद्धाश्रम छोड़ आओ अपनी माँ को... एक दिन मैं खुद ही वृद्धाश्रम चली गई... पति की पेंशन ही बहुत थी मेरे लिये... शहर भी छोड़ दिया था... बेटे को न ढूंढने के लिए पत्र लिख दिया .... वृद्धाश्रम पहुंची पहले ही बात की हुई थी तो सबलोग स्वागत के लिये खड़े थे... पर ये क्या चौंक सी गई मै.... अरे समधन जी आप.... आंखों से आंसुओं की मोटी सी झड़ी बह निकली... पिछले सप्ताह बेटा बहु के कहने से छोड़ गया की कुछ काम नहीं होता इससे तो क्यूँ बोझ उठाएँ... और आप मै तो खुद ही आयी हूँ सोचा अपने जैसे लोगों में दिल लगा रहेगा कह कर मैं अपना कमरा देखने चली गयी.... दस दिन बाद ही अपने बहु बेटे को यहाँ देख मैं हैरान थी वो समधन को लेने आये थे पर समधन अपनी बेटी को डांट रहीं थी .... की तभी मै वहां पहुंची मुझे देख बेटा बहु मेरे चरणों मे गिर गए... कहाँ चली गईं थी माँ बेटे ने कहा ... बहु प्रयाश्चित के आँसू बहा रही थी... ,उठो मैने कहा यहाँ कैसे पहुंचे.... बहु की आवाज आई मै आज माँ से मिलने आयी तो पता चला भाई उन्हें यहां छोड़ गया... भाई से झगड़ा हुआ तो उसने जताया की मैंने भी तो यही किया है अपनी सास के साथ... दुख के मारे अपने आप से घृणा हो रही थी की कहाँ पश्चताप करूँ आपका कोई पता भी तो नहीं है.... आपके बेटे ने कहा पहले तुम्हारी माँ को ले आते हैं फिर मैं अपनी माँ को ढूंढता हूँ... और भी ग्लानि हुई की मैने क्या नहीं कहा आपको आपके बेटे को पर फिर भी इन्हें मेरी माँ की चिंता थी। आज आप मिल गए घर चलिये मुझे पश्चताप का मौका मिलेगा... नहीं बहु घर तो अब हम नहीं जायंगे सावित्री ने कहा क्योंकि अब ये ही हमारा घर है पर अगर तुम्हें पश्चताप ही करना है तो हफ्ते महीने में जब भी समय मिले हम सबके लिए खाना बनाकर लाओगी और सारा दिन तुम दोनों हमारे साथ ही रहोगे जिससे यहां रहने वाले सभी का दिल लगा रहेगा... ठीक कहा समधन यही तुम्हारा असली प्रायश्चित होगा बहु की माँ ने कहा और सभी लोग हँसने लगे.... आज वृद्धाश्रम में एक नई खुशी का आगाज जो हुआ था....


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