सुनहले सपने
सुनहले सपने


बात कुछ पुरानी ही है पर आज भी यूँ लगती है जैसे कल ही की बात हो.... बच्चों से घिरी विज्जु जब उन्हें अपने सपने की बात बताने लगी तो उनके साथ साथ पति भी बोल पड़े "पता नहीं क्या उल्टा सीधा सोचती हो फिर वही दिमाग़ में घूमता रहता है , रात को भी उसी में मस्तिष्क व्यस्त हो जाता है फिर कहती हो ये सपना वो सपना, तुम्हारे दिमाग़ की ही उपज है ये... अरे भई हक़ीक़त मे जियो।" चुप हो गई थी विज्जु... सोचने लगी क्या सच मे मेरे दिमाग़ की उपज है ये सपने?
काम करते सोचने लगी कुछ वर्ष पहले रोज ही तो बर्फ का शिवलिंग और साथ में बर्फ का ही अर्ध चंद्र दिखता था और मै बहुत परेशान थी ... किसी ने कहा अमरनाथ जी का बुलावा है पर हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी मै...तब पतिदेव ही मुझे ऋषिकेश मे निलकंठ महादेव के दर्शन को ले गये थे सपने आने बंद हो गये और कुछ ही महीनो में ऐसा योग बना की अचानक अमरनाथ यात्रा भी पूरी हो गई मेरी। इसीलिये सपने हमेशा मेरे लिये महत्वपूर्ण रहे। कोई तो शक्ति है या कुछ तो घटित होता ही है वर्ना सारे सपने हमे याद भी कहाँ रहते हैं। दूसरे दिन बेचैन मन से मै ओफिस पहुँची तो मैने अपने सपने के विषय में दो तीन दोस्तों से पूछा... विचित्र सी बात थी जिस जगह मै कभी गई नहीं सपने मुझे वहीं ले गये... सोच में थी की इस सब पर मैने कभी बात ही नहीं की फिर ये सपने.... जगन्नाथ जी के मन्दिर के आस पास और पुरी में समुद्र किनारे बैठी मै दो पुजारी वहीं आरती लेकर आते हैं और ऊनमे से एक शान्त होने ,सभी कष्टों के दूर होने की बात कह एक और बात कह गये सरयू नदी पर जाने की फिर अंतर्धान हो गये। इसे सपना कहूँ ईश्वर कृपा कहूँ या क्या नाम दूँ क्यूँकि कई दिनो से किसी बात को लेकर बहुत परेशान थी मै, कोई उपाय सूझ नहीं रहा था और इस सपने के बाद अचानक वो परेशानी अपने आप खत्म हो गई। मेरे मित्रों ने सपने वाली जगह मुझे बताईं थी तो मेरा मन जगन्नाथपुरी और सरयु जाने का हुआ मुश्किल बड़ी थी बहुत कोशिश की पर जाना नहीं हो पाया। दिन साल बीत गये मन के किसी कोने में ये बात दबी रही... जब भी किसी को कहती सभी हंसी उड़ाते पर कुछ ऐसे भी थे की उपाय बताते रहते और एक मेरी मित्र ने मुझे दिल्ली में ही हौज़ख़ास स्थित जगन्नाथजी के मंदिर में जाने को कहा.... वहाँ भी नहीं जा पाई मै और एक दिन अचानक किसी काम से वहाँ जाना हो ही गया पास ही मन्दिर था मेरी इच्छा जान पतिदेव बोले चलो पर हम जब बहुत चालाक बनते हैं तो ईश्वर हमे याद दिलाते हैं कि हम उनके ही बनाये जीव हैं उनकी नज़रों से कुछ छिपता नहीं है और मेरी चालाकी भी पकड़ी गयी जो छोटा रास्ता मै अपना रही थी तो उन्होंने भी दर्शन नहीं दिये, जगन्नाथ जी अपने ननिहाल गये थे, वो मन्दिर में विराजमान नहीं थे..., यहाँ बता दूँ जगन्नाथ जी मनुष्यों की तरह ही आचरण करते हैं उनका खाना सोना, नहाना ननिहाल जाना मौसी के घर ठहरना सब कुछ होता है और मै मन्दिर से खाली ही चली आयी उनसे माफी माँगी कि अब पुरी में ही दर्शन करूँगी और घर आ गई। पूरा वक्त मैने सोचा एक सपना और इतनी सारी बातें जुड़ गई उस सपने से... ये कोई कल्पना नहीं की जिस जगह को आपने देखा नहीं वही आपको सपने में दिखे... और आपको आपके कष्टों को हरने की बात कही जाये... क्या हो रहा था मन बेचैन हो उठा पर धीरे धीरे वक्त बीतता गया घर बच्चों में व्यस्त हो गई मै पर इस सपने को भूल नहीं पाई ना ही पुरी और ना ही सरयु जा सकी।
कुछ वर्ष पश्चात मुझे पूरे परिवार के साथ पुरी जाने का अवसर मिला तब लगा की हर चीज का एक वक्त होता है और उस वक्त से पहले कुछ नहीं मिलता। हुआ यूँ की हम पुरी पहुँचे और बच्चों को होटेल छोड़ चल दिये आस पास घूमने.... घूमते घूमते जगन्नाथ जीं के द्वार पहुँच गये पर ऐसा कुछ घटित हुआ की दर्शन किये बगैर ही वापस होटेल आना पड़ा , सोचा सुबह सुबह दर्शन करेंगे पर वो भी सम्भव नहीं हुआ और वापस आ गये.... मन ही मन सोचा प्रभु पहले बुलाते हो फिर दर्शन भी नहीं देते.... परंतु इतने वर्षों बाद जो दर्शन के लिये आयी तो इतनी परीक्षा तो बनती ही है .... आख़िर बहुत इंतज़ार के बाद जगन्नाथ जी के सुन्दर मुख के दर्शन हो ही गये.... सपना जो आज आधा सच हो गया मेरे मन को थोड़ा तस्सली हुई.... भगवान जगन्नाथजी, भाई बलभद्र बहन सुभद्रा के साथ बहुत ही सुन्दर नजर आ रहे थे, उनका मुख इतना सुन्दर था की बार बार पीछे मुड़कर देखने का मन कर रहा था... आज भी वो छवि देखने को मन बहुत व्याकुल रहता है उस दिन तो खैर पूरी रात नींद नहीं आयी... सपने जो मिलों दूर ले आये थे पर मन तृप्त था। इस यात्रा के वर्षों बाद यूँ ही अचानक सरयू नदी और रामलला के दर्शन का कार्यक्रम बन गया... उनकी लीला तो उनकी लीला है सब इंतज़ाम खुद ब खुद होते गये सरयू की निर्मल धारा और रामलला के दर्शन आज स्वप्न सम्पूर्ण हुआ वर्षों की टीस आज खत्म हुई, अठारह वर्ष लगे एक सपना पूरा होने में... आँखे खुशी से नम थीं, मन प्रसन्न देर से सही दाता ने अपने दरबार में हाज़री लगाने का वक्त तो दिया.... आज समझ आया की सपनो का भी अस्तित्व होता है, वो बेवजह नहीं आते.... सपने आना बड़ी बात नहीं पर उन्हें पूरा करना कितना मुश्किल काम है कभी कभी वर्षों की तपस्या के बाद ही पूरे होते हैं , आज पतिदेव भी मुझसे सहमत थे, शायद इतने वर्षों में समझ गये थे की ये मेरे दिमाग़ की उपज नहीं सपने ही थे, सुनहले सपने मेरे अपने , हक़ीक़त की जमीं पर आस्था का बीजारोपण।