Sonia Goyal

Abstract Inspirational

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Sonia Goyal

Abstract Inspirational

मेरा भाई

मेरा भाई

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(यह मेरी स्वरचित और पूर्णतः काल्पनिक रचना है, जिसका किसी भी व्यक्ति, स्थान, जाति, धर्म से कोई संबंध नहीं है। अगर किसी परिस्थिति में ऐसा कोई संबंध पाया जाता है, तो वो मात्र एक संयोग होगा।)


कभी-कभी अनजान रास्तों में कुछ ऐसे अनजान लोगों से भी इतने गहरे रिश्ते बन जाते हैं, जिसकी हमने कभी अपेक्षा भी नहीं की होती। ऐसे ही एक अनजान शख्स के साथ मेरा यानी कि शैफाली गुप्ता का भी एक गहरा रिश्ता जुड़ गया।


मैं सपनों के शहर मुंबई की रहने वाली हूं और मेरे परिवार में मेरे मम्मी-पापा और मैं यानी कि अपनी मम्मी-पापा की इकलौती और लाडली बेटी शैफाली रहते हैं। हमारा छोटा सा परिवार है, जो एक-दूसरे के साथ काफी खुश है। मेरी मम्मी पूजा गुप्ता हमारे घर को संभालती हैं और मेरे पापा राकेश गुप्ता एक निजी बैंक में कार्यरत हैं।


अब बात करें मेरी तो मैं बेचारी सरकारी नौकरी की लालसा लिए अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने सपने को पूरा करने के लिए कोचिंग सेंटर में लग गई। देखते हैं कि मेरी ये लालसा आखिर पूरी कब होती है, क्योंकि कहते हैं ना कि अगर सब कुछ मिल जाए जिंदगी में तो तमन्ना किसकी करोगे, इसलिए कुछ ख्वाबों का ख्वाब रहना भी जरूरी है, ताकि उसे पूरा करने की लालसा में हम जिंदगी को जी सकें।


रोजमर्रा की जिंदगी के अलावा मुझे सबसे ज्यादा सुकून बारिश में भीगने से मिलता है, जब बारिश की बूंदें चेहरे पर पड़ती हैं तो मेरा दिल मयूर बन नृत्य करने लगता है। उस समय तो मन में आता है कि काश! भगवान ने मुझे भी मोर की तरह पंख दिए होते तो कितना अच्छा होता ना....... मैं भी अपने पंख फैलाकर बारिश में नाचते हुए जिंदगी का मज़ा लेती।


भले ही मुझे बारिश में भीगना पसंद है, पर कभी-कभी यूं अचानक हुई मुंबई की बारिश परेशानी का कारण भी बन जाती है। अब भई! लड़की होने के कारण खुद की मर्यादा का ध्यान भी तो रखना पड़ता है ना....... कि कहीं कभी ऐसे कपड़े पहने होने पर ही बारिश न हो जाए, जिससे शहर भर में भूखे फिर रहे भेड़ियों का ध्यान मेरे ऊपर चला जाए। मैं कभी-कभी सोचती हूं कि काश! लड़कों की ही तरह लड़कियों की जिंदगी भी होती और वो भी बिना किसी परेशानी के जैसे मर्जी और जहां मर्जी घूम सकतीं।


खैर भगवान ने तो सबको बराबर ही बनाया है। उनके लोक में तो ऐसा कोई भेदभाव है ही नहीं, तभी तो प्रकृति को स्त्री से संबोधित किया जाता है और मां दुर्गा के सभी स्वरूपों की भी पूजा की जाती है, पर हमारे लोक में एक तरफ तो मां दुर्गा की पूजा की जाती है और दूसरी तरफ़ उनके ही अंश लड़कियों पर बुरी नज़र डाली जाती है।


मैं भी कहां अपने मन में उठ रहीं इन गहराई की बातों को लेकर बैठ गई, जबकि मुझे तो कोचिंग सेंटर जाना है। काश! मेरे कोचिंग सेंटर का समय सुबह 9:00 बजे से होता तो फिर मैं आराम से पापा के साथ कोचिंग सेंटर जा सकती, पर सर ने इसका समय ही शाम 4:00 से 7:00 रखा है, जिस कारण न तो मैं पापा के साथ जा सकती हूं और न ही वापिस आ सकती हूं।


खुद से ही इस बारे में बड़बड़ाने के अलावा मैं कर भी क्या सकती हूं.......अब अगर जिंदगी में कुछ हासिल करना है तो फिर कुछ तो त्याग करना ही होगा ना.......तो फिर चल शैफाली बिना देर किए बस स्टॉप के लिए निकल, वरना तुम्हें देरी हो जाएगी।


मां मैं जा रही हूं, "मैंने मम्मी को आवाज़ लगाते हुए कहा।"


मम्मी ने जब मेरे कपड़े देखें तो मुझे डांट पड़ गई। अब मम्मी ने मुझे क्या कहा, ये तो मैं मम्मी की जुबानी ही सुनाती हूं, "ये तूने आज सफेद रंग का सूट क्यों पहन लिया........बाहर देख मौसम खराब है, अगर बारिश हो गई तो.......जा जाकर बदलकर आ कपड़े।"


मैंने उनको अपना छाता दिखाते हुए जवाब दिया, "मम्मी मैंने छाता रख लिया है, इसलिए आप चिंता मत कीजिए और अभी मुझे देर हो रही है तो कपड़े बदलने का बिल्कुल भी समय नहीं है। वैसे भी बारिश का क्या भरोसा, अभी बरसेगी भी या नहीं।"


पूजा गुप्ता, "ठीक है, पर बारिश को देखकर अपने होश खोने से पहले ज़रा अपने कपड़ों की तरफ़ देख लेना और खुद को बारिश में पागल होकर नाचने से रोक लेना।"


मैंने मम्मी की बात पर हंसते हुए हां में सिर हिला दिया और उन्हें गले लगाकर अलविदा कहकर अपनी मंज़िल की तरफ़ कदम बढ़ा दिए। जब मैं बस स्टाॅप पहुंची तो कोचिंग सेंटर की तरफ़ जाने वाली बस तैयार ही खड़ी थी, अगर मैं दो मिनट भी देरी से पहुंचती तो मेरी बस निकल जाती। खैर! मैंने बस पकड़ी और अपने लिए एक जगह ढूंढ कर वहां बैठ गई। कुछ ही देर में बस चली और लगभग आधे घंटे बाद मैं अपने कोचिंग सेंटर पहुंच गई, दरअसल जहां पर बस स्टाॅप था, वहां से मेरे कोचिंग सेंटर का लगभग पांच मिनट का रास्ता था, जो कि मैं पैदल ही तय करती थी।


जैसे ही मैंने कोचिंग सेंटर में कदम रखा, अचानक तेज़ बारिश शुरू हो गई और मेरा मन मयूर बन नाचने के लिए मचलने लगा, मुझे ही पता है कि मैंने कितनी मुश्किल से अपने मन को रोक रखा था। अब चूंकि बारिश बिल्कुल हमारी कक्षा के समय ही शुरू हुई थी तो हमारी आधी से ज्यादा क्लास गायब थी, जिसका नतीजा ये हुआ कि उस दिन हमारी शाम 5:00 बजे ही छुट्टी हो गई।


बारिश को एक घंटे से ज्यादा हो गया था, पर मजाल है कि बारिश थोड़ी सी भी कम हुई हो। मैं आधे घंटे तक तो इस उम्मीद में ही कोचिंग सेंटर में बैठी रही कि शायद बारिश रूक जाए, पर जब सब लोग वहां से चले गए तो मुझे भी वहां रूकना सही नहीं लगा और मैं भी वहां से उठकर बाहर की तरफ़ जाने लगी। अभी भी बहुत तेज बारिश हो रही थी तो मैंने अपना छाता खोला और खुद का बारिश से बचाव करते हुए बस स्टाॅप की तरफ़ बढ़ गई। 


अभी मैं बस स्टाॅप से कुछ ही दूरी पर थी कि हवा का एक तेज़ झोंका आया और मेरा छाता अपने साथ ही उड़ाकर ले गया। मैंने अपने छाते को संभालने की बहुत कोशिश की, पर संभाल नहीं पाई। छाते के उड़ते ही बारिश की बूंदें मेरे ऊपर गिरने लगी और मेरी सबसे पसंदीदा बारिश आज मुझे कांटे की तरह चुभने लगी। खुद को बारिश से बचाने के लिए मैं वहीं पास ही की एक दुकान के शेड के नीचे जा खड़ी हुई, पर तब तक बारिश के पानी ने मेरे सफ़ेद कपड़ों पर अपना कुछ असर दिखाना शुरू कर दिया था।


खुद की ऐसी हालत देखकर अब मुझे मम्मी की बात याद आ रही थी और मुझे अफसोस हो रहा था कि क्यों मैंने मम्मी की बात मानकर अपने कपड़े नहीं बदले...... अगर तब मम्मी की बात मानी होती तो शायद अब इतनी दिक्कत न होती, पर अब अफसोस करने से कुछ हो भी नहीं सकता था। इस समय तो अफसोस को एक तरफ रखकर इस मुसीबत से खुद को निकालने का सोचने का समय था। मैंने अपना मोबाइल देखा तो उस पर अभी भी सिग्नल नहीं आ रहा था।


वहां से गुजरने वाले कुछ नीच प्रवृत्ति के लोग मुझे ऐसे घूर कर देख रहे थे, जैसे वो एक औरत की कोख से पैदा न होकर, आसमान से सीधा ही ज़मीन पर आ गए थे। अब मुझे रोना आ रहा था, मैंने अपने बैग और दुपट्टे से किसी तरह खुद को ढक रखा था, पर मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं यहां से आगे जाऊं भी तो कैसे जाऊं।


मैं अपनी ही उधेड़बुन में लगी हुई थी कि तभी मेरे सामने एक बाइक आकर रूकी। जब मैंने उसके चालक की तरफ़ देखा तो वो कोई काॅलेज का बिगड़ा हुआ लड़का लग रहा था। उसने बाइक एक तरफ खड़ी की और मेरी तरफ़ बढ़ने लगा। जैसे-जैसे वो मेरे करीब आ रहा था, मेरी जान हलक में आ रही थी, पर उसे शक न हो इसलिए मैंने अपनी पूरी हिम्मत जुटाकर उसे खुद से दूर रहने के लिए कहा, पर उस पर तो इस बात का कोई असर ही नहीं हुआ।


वो मेरे करीब आया और मुझे अपना परिचय देते हुए बोला, "हेलो! मेरा नाम राहुल है। आप डरिए मत, मैं यहां आपको नुकसान पहुंचाने नहीं, बल्कि आपकी मदद करने आया हूं, चलिए मैं आपको आपकी मंजिल तक पहुंचा देता हूं।"


एक तरफ़ तो मेरा मन कह रहा था कि मुझे उसकी बात मान लेनी चाहिए, पर सीआईडी और सावधान इंडिया देख-देखकर मैं भी इतनी शकी बन गई थी कि मुझे डर लग रहा था कि कहीं वो मुझे झूठा झांसा देकर मेरे साथ कुछ ऐसा-वैसा न कर दे और अगर एक पल के लिए मान भी लूं कि वो ऐसा कुछ नहीं करेगा तो भी क्या भरोसा, अगर उसने मेरे दिल, दिमाग, गुर्दे सब बेच दिए तो.......ना बाबा ना, मैं तो इस दुनिया से ऐसे ही एक भाग में ही जाना चाहती हूं, ना कि ऐसे टुकड़ों में।


मुझे ऐसे अपने ही ख्यालों में खोए हुए देख वो समझ गया कि मुझे अभी भी उस पर विश्वास नहीं हो रहा तो उसने मुझसे कहा, "क्या मुझे आपके दुपट्टे के किनारे से कुछ टुकड़ा मिल सकता है........"


मैंने उसे घूरते हुए कहा, "और तुम्हें ऐसा क्यों लगता है कि मैं तुम्हारे लिए अपना इतना सुंदर सा दुपट्टा खराब करूंगी........."


राहुल हंसते हुए मुझसे बोला, "मैं ना आपको बिल्कुल ऐसा ही दुपट्टा ला दूंगा, पर फिलहाल जो मैं कह रहा हूं, वो कीजिए, वरना आपको पूरी रात यहीं गुजारनी पड़ेगी, क्योंकि बारिश तो रूकने से रही।"


उसकी बात सुनकर मैंने बिना कुछ सोचे अपने दुपट्टे को किनारे से फाड़ दिया और उसे वो टुकड़ा देने लगी तो उसने मेरे आगे अपनी कलाई करते हुए कहा, "मेरे पास राखी नहीं थी, इसीलिए मैंने आपको ऐसा करने के लिए कहा। अब आप इसे ही राखी समझकर मुझे बांध दीजिए, जिससे मैं आपका भाई बन जाऊंगा और फिर आपको मेरे साथ जाने में कोई दिक्कत भी नहीं होगी।"


उसकी बात सुनकर मैं भावुक हो गई और उसकी कलाई पर वो दुपट्टे का टुकड़ा बांध दिया, पर अगले ही पल मेरे दिमाग में बैठा शक का कीड़ा फिर से रेंगने लगा और मुझसे कहने लगा कि आजकल रिश्तों की कीमत ही क्या रह गई है....... आजकल तो लोग अपनी सगी बहन और बेटी की इज्ज़त को कुछ नहीं समझते तो क्या ये इस रिश्ते की मर्यादा को समझेगा.......इसी उलझन के साथ मैं वहीं खड़ी रही तो उसने मुझसे कहा, "लगता है आपको अभी भी मेरे ऊपर विश्वास नहीं है तो ठीक है फिर, मैं भी आपके साथ यहीं रूक जाता हूं, क्योंकि मैं आपको ऐसे यहां छोड़कर नहीं जा सकता।"


उसने इतना कहते ही अपने दोनों हाथ बांधे और मेरे बगल में खड़ा हो गया। अब मैंने खुद को समझाया कि मैं इसे तो अपने साथ ऐसे खड़ा नहीं रख सकती ना....... इसलिए मैंने ये सोचकर उसके साथ जाने का फैसला लिया कि अगर उसने कुछ गड़बड़ करने की सोची तो मैं बाइक से कूद जाऊंगी, ज्यादा से ज्यादा क्या होगा, कुछ चोटें लगेंगी और एक-दो हड्डियां ही तो टूटेगी.......पर ये पूरी रात यहां खड़े रहने से तो अच्छा ही है ना......


ये सब सोचकर मैं उसके साथ अपने घर जाने के लिए तैयार हो गई, पर अभी भी बारिश होने के कारण मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं उसके साथ इस शेड से बाहर निकलूं भी तो कैसे........ शायद उसने मेरे मन की मनोदशा को समझ लिया था और इसीलिए उसने मुझे वहीं रूकने का इशारा किया और खुद अपनी बाइक की तरफ़ बढ़ गया और उस पर लगी डिग्गी में से कुछ निकालने लगा।


मैं उत्सुकता से उसकी डिग्गी की तरफ़ देख रही थी कि आखिर वो क्या निकालेगा, और जब उसने एक स्टाल लाकर मेरी तरफ़ बढ़ाया तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा, क्योंकि इस समय मुझे इसकी सबसे ज्यादा ज़रूरत थी, पर मुझे हैरानी इस बात की थी कि इसके पास लड़कियों का स्टाल आया कहां से........


मेरे इस सवाल का जवाब भी मुझे जल्दी ही मिल गया, जब उसने मुझे बताया, "ये मेरी बहन का स्टाल है। इसे मैं हमेशा अपने पास रखता हूं। ये स्टाल मुझे याद दिलाता है कि कैसे मेरी थोड़ी सी देरी के कारण इसी बारिश ने मेरी बहन को मुझसे हमेशा के लिए छीन लिया था। मैं उसकी जान तो क्या, उसकी इज़्ज़त भी नहीं बचा पाया, इन भूखे भेड़ियों से। मैंने अपनी बहन को तो खो दिया, पर मैं नहीं चाहता कि किसी और को अपनी बहन या बेटी खोनी पड़े, इसलिए मैं बारिश के दिनों में जितना हो सके, बारिश में फंसी लड़कियों की मदद करता हूं।"


उसकी बात पूरी होते-होते उसकी आंखों से बेतरतीब आंसू बहने लगे और पूरी बात जानने के बाद अब मुझे भी उसके लिए बहुत दुख हो रहा था। उसकी सारी बात सुनकर मेरे मन की सारी शंकाएं दूर हो गई। उसने किसी तरह खुद को संभाला और मुझे घर तक छोड़ने के लिए निकल गया।


मैंने उसकी बहन का वो स्टाल ओढ़ रखा था और उसको महसूस करने की कोशिश कर रही थी। अब मुझे खुद की बातों पर शर्मिंदगी हो रही थी कि मैंने उसे कितना गलत समझ लिया। अब मुझे अंग्रेजी की एक मुहावरा याद आ रहा था, "डोंट जज ए बुक बाय इट्स कवर", ये मुहावरा राहुल पर एकदम सटीक बैठता था। 


उसने धीरे-धीरे बाइक चलाते हुए मुझे मेरे घर तक पहुंचा दिया। अब चूंकि मेरा फ्लैट दूसरी मंजिल पर था तो वो खुद मेरे साथ गया। जब मैंने डोरबेल बजाई तो मम्मी ने दरवाजा खोला और मुझे देखते ही झट से गले लगा लिया और मुझसे पूछने लगीं, "तू ठीक तो है ना बेटा....... पता है मुझे और तेरे पापा को तेरी कितनी चिंता हो गई थी। तेरा फ़ोन भी नहीं लग रहा था, हमने कितनी कोशिश की। अगर तू थोड़ी देर और न आती तो हम तुझे ढूंढने के लिए निकलने ही वाले थे।"


मैंने अपनी मम्मी को तसल्ली देते हुए कहा, "मम्मी चिंता मत करो, मैं बिल्कुल ठीक हूं।"


तभी मम्मी की नज़र राहुल पर गई तो उन्होंने मुझसे उसके विषय में पूछा। मैंने मुस्कुराते हुए उन्हें जवाब दिया, "ये मेरा भाई है राहुल। आज अगर ये न होता तो शायद मैं बारिश में ही फंसी रह जाती।"


मैंने अपनी बात पूरी करने के बाद जब राहुल की तरफ़ देखा तो वो भी मेरी तरफ़ ही देख रहा था। उसके होंठों पर मुस्कान के साथ-साथ आंखों में आंसू भी थे। जब मम्मी को पता चला कि उसने मेरी मदद की है तो मम्मी उसको आशीर्वाद देते न थकी और उसको घर के अंदर आने के लिए कहा, पर उसने मना कर दिया।


वो पूरी तरह भीग चुका था तो मैंने भी उससे कहा, "तुम पूरी तरह भीग गए हो, अंदर चलकर खुद को और कपड़ों को सुखा लो, वरना बीमार हो जाओगे। जब तुम्हारे कपड़े सूख गए तो फिर चले जाना।"


उसने मुस्कुराते हुए मेरी बात का जवाब दिया, "अब तो मैं आपका भाई बन ही गया हूं तो जब दिल किया, मिलने चला आया करूंगा, पर अभी और भी बहनों को मेरी जरूरत है तो अभी मुझे जाना होगा और हां आप अंदर जाकर कपड़े बदल लीजिए और मुझे ये स्टाल वापिस कर दीजिए, क्योंकि ये स्टाल मुझे मेरे उद्देश्य से भटकने नहीं देता।"


मैंने हां में सिर हिलाया और कपड़े बदलने के लिए अंदर चली गई। जब मैं बाहर आई तो देखा राहुल मम्मी-पापा से काफ़ी घुल मिल गया है। मैंने उसे स्टाल वापिस दिया और फिर वो मम्मी-पापा का आशीर्वाद लेकर फिर से किसी और लड़की की मदद करने के लिए निकल गया और मैं उसे जाते हुए देख सोचने लगी कि काश! दुनिया का हर इंसान राहुल के जैसा हो जाए तो लड़कियों के लिए ये जिंदगी कितनी आसान हो जाए।


समाप्त




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