Sonia Goyal

Abstract Inspirational

3.2  

Sonia Goyal

Abstract Inspirational

मेरे घर आई एक नन्ही परी

मेरे घर आई एक नन्ही परी

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पूरे घर में सुषमा जी की आवाज़ गूंज रही थी, जो हर जगह अपने बेटे सोनू को ढूंढ रहीं थीं, पर सोनू था कि उन्हें कहीं दिखाई ही नहीं दे रहा था, जिस वजह से सुषमा जी का मन व्याकुल हुआ जा रहा था। काफ़ी देर से सुषमा जी की सास गंगा जी उन्हें ऐसे इधर-उधर चक्कर लगाते हुए देख रहीं थीं, जब उनसे चुप न रहा गया तो वो सुषमा जी से बोलीं, "अरे बहू! तू क्यों परेशान होती है.........आ जाएगा मुन्ना, यहीं कहीं अपने दोस्तों के साथ खेल रहा होगा।"

सुषमा जी, "अम्मा! मैंने उसे हर जगह ढूंढ लिया है, जहां तक मैंने गली में भी सबसे पूछ लिया है, पर सोनू कहीं नहीं है। पता नहीं ये लड़का बिना बताए, कहां चला गया। मैं अभी सोनू के पापा को फ़ोन करके घर बुलाती हूं, ताकि हम दोनों मिलकर सोनू को ढूंढ सकें।"

सुषमा जी की बात सुनकर गंगा जी का मन भी व्याकुल हो जाता है। पहले तो उन्हें लगा था कि सुषमा जी ऐसे ही चिंता कर रहीं हैं, पर जब उन्हें पता चला कि सोनू का कहीं पता नहीं चला तो वो भी परेशान हों गईं और सुषमा जी की बात का समर्थन करते हुए बोलीं, "अब तो मुझे भी मुन्ना की चिंता हो रही है बहू, तू शिव को फ़ोन कर ही ले।"

सुषमा जी भी अपनी सास की बात सुनकर हां में सिर हिला देती हैं और अपने पति शिवराज जी को फ़ोन लगाने के लिए अपना मोबाइल उठाती हैं। इससे पहले कि सुषमा जी उन्हें फ़ोन लगातीं, उनके कानों में सोनू की आवाज़ पड़ती है, जो मम्मी-मम्मी कहता हुआ, उनकी ओर ही दौड़ता हुआ आ रहा था।

सोनू को देखकर दोनों सास-बहू चैन की सांस लेती हैं, पर फिर भी सुषमा जी सोनू को डांटते हुए कहती हैं, "सोनू! कहां चला गया था तू?? मैं कबसे तुझे ढूंढ रही हूं, पर तेरा कुछ पता नहीं चल रहा था। मैं अभी तेरे पापा को ही फ़ोन करने वाली थी और तुझे भी पता है कि अगर तेरे पापा को पता चलता कि तू बिना बताए कहीं चला गया है, तो तुझे कितनी डांट पड़ती।" 

अपनी मां की बात सुनकर सोनू पास में रखे मेज़ पर चढ़ जाता है और अपनी मां के गाल खींचते हुए कहता है, "ओहो! मेरी प्यारी मां, तुम इतनी चिंता क्यों करती हो?? मैं तो यहीं पास वाले मंदिर में गया था।"

सोनू की बात सुनकर सुषमा जी और गंगा जी को मन ही मन इस बात की खुशी होती है कि सोनू को भगवान में इतनी आस्था है, वरना पहली कक्षा में पढ़ रहे बच्चों को तो आजकल मोबाइल में गेम्स खेलने से ही फुर्सत नहीं है। सोनू का जवाब सुनने के बाद सुषमा जी ने अपने लहज़े में नर्मी लाते हुए उससे कहा, "बेटा! अगर तुझे मंदिर जाना ही था, तो कम से कम हमें बताकर तो जाता ना........ मैं या तेरी दादी भी तेरे साथ चली जाती।"

सोनू ने ‌मासूमियत भरी आवाज में कहा, "बता तो देता, पर मां आपके तो पूरा दिन घर के काम ही नहीं पूरे होते, तो भला आप कैसे जाती?? और दादी के भी घुटनों में दर्द रहता है तो बस इसीलिए मैं खुद ही चला गया।"

सोनू की बात सुनकर सुषमा जी और गंगा जी के होंठों पर मुस्कान आ गई और गंगा जी सोनू की बलाइयां लेते हुए बोलीं, "मेरा पोता कितना समझदार हो गया है, किसी की नज़र न लगे इसे।" 

सुषमा जी भी उनकी बात का समर्थन करतीं हैं और फिर सुषमा जी सोनू से पूछतीं हैं, "अच्छा! मेरे बाबू ने भगवान जी से क्या मांगा??"

सोनू सुषमा जी के गले में अपनी बांहे लपेटते हुए उनसे बोला, "मैंने भगवान जी से कहा कि मुझे भी एक छुटकू सी बहन दे दीजिए।"

सुषमा जी हंसते हुए, "अच्छा! और तुम्हें बहन क्यों चाहिए??"

सोनू अपनी बड़ी-बड़ी आंखें मटकाते हुए, "क्योंकि मां मेरे सभी दोस्तों के पास बहन या भाई हैं, पर मेरे पास तो दोनों ही नहीं हैं।"

इस बार अगला प्रश्न गंगा जी ने किया, "मुन्ना! तो फिर तूने भगवान जी से बहन ही क्यों मांगी, भाई क्यों नहीं??"

सोनू ने ‌मासूमियत से जवाब देते हुए कहा, "दादी जब मुझे भाई या बहन में से किसी एक को मांगना है तो फिर मैं एक बहन ही मांगूंगा ना........ जिसकी मैं हमेशा चोटी खींचकर उसे चिढ़ाया करूंगा और इसके पीछे मेरा एक और फायदा भी है।"

गंगा जी हंसकर उससे पूछते हुए, "अच्छा!! और वो एक और फायदा क्या है??"

सोनू अपनी दादी के पास जाकर उनके गले में बांहे डालते हुए, "अगर मुझे बहन मिल जाएगी तो हर वर्ष रक्षाबंधन के दिन मुझे भी कोई राखी बांधेंगा और मेरी कलाई सूनी नहीं रहेगी।"

सोनू की बात सुनकर सुषमा जी और गंगा जी दोनों ही भावुक हो जाती हैं। कुछ देर बाद गंगा जी सोनू का सिर प्यार से सहलाते हुए कहती हैं, "काश! भगवान तेरी ये इच्छा पूरी कर देते।"

सोनू को अपनी दादी की बात समझ में नहीं आती, इसीलिए वो अपनी दादी से कहता है, "दादी अब ना मैं रोज मंदिर जाया करूंगा, फिर आप देखना भगवान जी मेरी ये इच्छा जरूर पूरी करेंगे और मुझे एक प्यारी सी बहन देंगे। चलिए अब मैं बाहर खेलने जा रहा हूं।"

ये बोलते हुआ सोनू बाहर की ओर भाग जाता है। उसके जाने के बाद गंगा जी बाहर की ओर देखते हुए कहती हैं, "अब तुझे कैसे बताऊं मेरे बच्चे कि भगवान तेरी ये इच्छा पूरी नहीं कर सकते।"

गंगा जी की बात सुनकर सुषमा जी की भी आंखें छलक जाती हैं और उन्हें वो पल याद आता है, जब सोनू का जन्म होने वाला था और उनका पैर अटक जाने के कारण वो नीचे गिर गईं थीं। उस समय उन्हें आनन-फानन में अस्पताल लेकर जाया गया। काफ़ी मशक्कत के बाद डॉक्टर ने सुषमा जी और सोनू की जान तो बचा ली, पर साथ ही उन्हें ये खबर भी सुना दी कि अब सुषमा जी फिर कभी मां नहीं बन सकतीं। उस समय उन्हें इस बात से ज्यादा फर्क नहीं पड़ा था, क्योंकि उनके नसीब में भगवान ने एक बच्चे का सुख तो दे ही दिया था, पर आज सोनू की बात सुनकर उनकी भी इच्छा हो गई कि काश! उनकी एक बेटी भी होती।

जब गंगा जी ने सुषमा जी को इतना उदास देखा तो उन्होंने उन्हें समझाते हुए कहा, "बहू तू इस बारे में सोचकर ज्यादा उदास मत हो। सोनू अभी बच्चा है, कुछ दिनों में खुद ही इस बात को छोड़ देगा।"

सुषमा जी गंगा जी की ओर देखते हुए कहती हैं, "सोनू तो इस बात को छोड़ देगा अम्मा, पर आज उसकी बातें सुनकर मुझे भी ऐसा लगा कि काश! सोनू की एक बहन भी होती।"

गंगा जी गहरी सांस लेते हुए उनसे कहती हैं, "जो किस्मत में लिखा है, उसे बदला नहीं जा सकता बहू, इसीलिए जो चीज़ हमारे पास नहीं है, उसके बारे में सोचकर हमें मायूस नहीं होना चाहिए। चल अब जल्दी से अपने ये आंसू पोंछ और खाना बनाने की तैयारी शुरू कर ले, शिव भी ऑफिस से आता होगा।"

सुषमा जी अपनी सास की बात मानकर जल्दी से अपने आंसू पोंछती हैं और रसोई में जाकर खाना बनाने की तैयारी में लग जाती हैं। शाम को जब सोनू के पापा शिवराज जी ऑफिस से वापिस आते हैं तो सोनू उनके साथ खेलने लगता है। कुछ समय बाद सुषमा जी सबके लिए खाना डाइनिंग टेबल पर लगा देती हैं तो सब खाना खाने लगते हैं। खाना खाने के बाद सोनू अपने पापा से कहता है, "पापा आप ना कल बाजार से एक छोटी सी कुर्सी ले आना।"

शिवराज जी सोनू की बात सुनकर हंस पड़ते हैं और उससे कहते हैं, "छोटी सी कुर्सी का तुझे क्या करना है सोनू?? अब तू इतना भी छोटा नहीं रहा कि इतनी छोटी कुर्सी पर बैठे।"

सोनू अपना माथा पीटते हुए उनसे कहता है, "ओहो पापा! मैं वो कुर्सी अपने लिए थोड़े ही मंगवा रहा हूं। वो तो मैं अपनी छुटकी के लिए मंगवा रहा हूं।"

सोनू की बात सुनकर शिवराज जी पहले सोनू की ओर देखते हैं और फिर सुषमा जी और गंगा जी की ओर देखते हुए उनसे पूछते हैं, "ये सोनू किस छुटकी की बात कर रहा है?? आस-पड़ोस में कोई रहने आया है क्या?? क्योंकि जहां तक मुझे ध्यान है, हमारे आस-पड़ोस में तो कोई भी छोटी बच्ची नहीं है।"

शिवराज जी का प्रश्न सुनकर सुषमा जी और गंगा जी एक-दूसरे की तरफ़ देखने लगती हैं और इशारों ही इशारों में एक-दूसरे से कहने लगती हैं कि आप बता दीजिए, पर दोनों में से कोई भी इस विषय पर बात नहीं करना चाहती थीं, इसीलिए दोनों चुप थीं। जब शिवराज जी को कोई जवाब नहीं मिलता तो वो थोड़ी कड़क आवाज़ में फिर से अपना सवाल दोहराते हैं, "मैं कुछ पूछ रहा हूं, ये छुटकी कौन है??"

शिवराज जी को हल्के गुस्से में देखकर गंगा जी उनके सवाल का जवाब देना ही बेहतर समझती हैं, इसीलिए वो शिवराज जी की बात का जवाब देते हुए कहती हैं, "तुम्हारे लाड़ले को एक बहन चाहिए, इसीलिए उसने मंदिर जाकर भगवान से अपने लिए बहन मांगना शुरू किया है और उसी के लिए वो तुमसे छोटी सी कुर्सी मंगवा रहा है।"

गंगा जी की बात सुनकर शिवराज जी की आंखों के आगे उस दिन का मंजर घूम जाता है, जब उनकी पत्नी और उनका बच्चा, जो इस दुनिया में आया भी नहीं था, दोनों अपनी जिंदगी और मौत से लड़ रहे थे। वो सब याद आते ही शिवराज जी सिहर उठते हैं और सोनू को डांटते हुए कहते हैं, "सोनू तुम्हें ऐसी ऊट-पटांग मन्नतें मांगने की कोई जरूरत नहीं है और तुम्हारी कोई बहन नहीं आ रही, तो आइंदा से ये बात मत करना।"

सोनू के पापा ने पहली बार सोनू को डांटा था, इसीलिए सोनू की आंखों में आंसू आ गए और वो रोते हुए अपने कमरे की ओर दौड़ गया। सुषमा जी भी उसको चुप करवाने के लिए उसके पीछे-पीछे चली गईं। उनके जाने के बाद गंगा जी ने शिवराज जी को डांटते हुए कहा, "ये क्या तरीका था बच्चे से बात करने का?? हर घर-परिवार में बच्चे अपने मम्मी-पापा से एक छोटे भाई-बहन के बारे में कहते ही हैं, अगर सोनू ने कह दिया तो क्या ग़लत है??"

शिवराज जी अपनी मां की बात सुनकर उनकी ओर देखते हैं और कहते हैं, "मां आप तो सब जानती हैं ना, फिर भी ये पूछ रहीं हैं?? उस दिन मैंने सुषमा को जिस दर्द से गुजरते हुए देखा है ना, उसके बारे में मैं दोबारा कभी सोचना भी नहीं चाहता, पर आज सोनू की बात सुनकर मेरी आंखों के आगे वही सब घूम गया।"

गंगा जी अपनी आवाज़ में नर्मी लाते हुए उनसे बोलीं, "मैं जानती हूं बेटा कि तू बहू से कितना प्यार करता है और उस दिन उसकी हालत देखकर तेरा क्या हाल हुआ था, पर बेटा सोनू को तो इस बारे में कुछ नहीं पता ना....... और ना ही उसमें अभी इतनी समझ है। वो तो बस अपने दोस्तों को उनके भाई-बहनों के साथ खेलते हुए देखता है तो वो भी जिद्द कर रहा है, पर तू चिंता मत कर, वो बहुत जल्द इस जिद्द को छोड़ देगा। चल अब इस बारे में सोचना छोड़ और जाकर आराम कर।"

शिवराज जी हां में सिर हिलाते हुए वहां से उठकर चले जाते हैं। अपने कमरे में जाने से पहले वो सोनू के कमरे की ओर जाते हैं, जहां सोनू अपनी मां की गोद में सिर रखकर रोते-रोते ही सो गया था और सुषमा जी प्यार से उसका सिर सहला रहीं थीं। जब उन्होंने दरवाजे पर मायूस से खड़े अपने पति को देखा तो उन्होंने आंखों ही आंखों में उन्हें सब कुछ ठीक होने की सांत्वना दे दी, जिसके बाद शिवराज जी अपने कमरे में चले गए। 

सोनू अपनी दादी के साथ उनके कमरे में सोता था तो कुछ देर में गंगा जी भी वहां आ गईं और सुषमा जी को भी जाकर आराम करने को कहा। सुषमा जी सोनू को प्यार से बेड पर लिटा कर अपने कमरे में चली गईं। 

अगले दिन सुबह सोनू रात के वाक्य के बारे में बिल्कुल ही भूल गया था, क्योंकि सुषमा जी ने उसे अच्छे से समझा दिया था, इसीलिए सुबह उठते ही सोनू फिर से अपने पापा के साथ मस्ती करने लग गया था, क्योंकि रोज सुबह शिवराज जी ही सोनू को स्कूल के लिए तैयार करते थे। कुछ समय बाद सोनू अपने स्कूल चला गया और शिवराज जी अपने ऑफिस। दोनों सास-बहू घर के काम खत्म करने के बाद आपस में बैठकर कुछ देर बातें करने के बाद अपने-अपने कमरे में आराम करने चलीं गईं।

दिन यूं ही बीतते गए और सोनू ने ‌ये दिनचर्या बना ली थी कि वो रोज शाम को मंदिर जाता था। चाहे धूप हो या बारिश वो किसी के भी रोकने पर रूकता नहीं था। उसकी ऐसी लग्न देखकर पूरे परिवार को चिंता होने लग गई थी, क्योंकि सबने उसे प्यार से, डांट से हर तरह से समझाकर देख लिया था, पर वो किसी की भी बात नहीं मानता था, जिस वजह से उसके परिवार के सदस्य अब भगवान से शिकायत करने लग गए थे कि वो उनके साथ ऐसा क्यों कर रहे हैं, अगर उन्होंने सोनू से भविष्य में जाकर ऐसी जिद्द करवानी ही थी, तो फिर सुषमा के साथ वो हादसा क्यों हुआ।

सबके मन में अलग-अलग उथल-पुथल मची हुई थी और सब इस समस्या का समाधान ढूंढने में लगे हुए थे, पर उनके सारे प्रयास विफल हो रहे थे। इस बात को एक वर्ष बीत चुका था, पर अभी तक सोनू की इस मांग में कोई बदलाव नहीं आया था और उसने मंदिर जाना नहीं छोड़ा था।

एक दिन जब सोनू मंदिर जाकर भगवान से प्रार्थना करने के बाद घर वापिस जाने के लिए निकल रहा था तो उसके कानों में किसी बच्चे के रोने की आवाज़ सुनाई दी। सोनू उस आवाज़ का पीछा करते हुए इधर-उधर देखने लगा कि तभी उसकी नज़र भगवान की मूर्ति के पीछे पड़े एक दुधमुंहे बच्चे पर पड़ी। जब सोनू ने उस बच्चे को देखा तो वो जल्दी से उसके पास गया और उसे अपनी गोद में उठाकर चुप करवाने लगा। वो बच्चा सोनू की गोद में आते ही चुप हो गया और सोनू की ओर देखकर मुस्कुराने लगा। उसको देखकर सोनू भी खुश हो गया और भगवान की मूर्ति के सामने जाकर खुश होते हुए बोला, "भगवान जी आपने मेरी बात मान ली और ये छुटकू सी बहन मेरे लिए भेजी है ना, आप सच में बहुत अच्छे हैं भगवान, अब मेरे पास भी राखी बांधने वाली बहन आ गई। मैं अभी घर जाकर सबको ये बताता हूं।"

ये बोलते हुए सोनू खुशी से नाचता हुआ अपने घर की ओर निकल गया। रास्ते में जो भी सोनू की जान-पहचान वाले मिलते और सोनू की गोद में लिए बच्चे के बारे में पूछते तो सोनू सबको यही बताते हुए जाता कि ये मेरी बहन है और हर कोई उसकी बात सुनकर हैरान हो जाता। जब सोनू घर पहुंचा तो बाहर से ही मां और दादी बोलता हुआ अंदर चला गया। सोनू की आवाज़ सुनकर दोनों सास-बहू हाॅल में आ गईं और सुषमा जी बाहर आते-आते बोलीं, "क्या हुआ सोनू, क्यों पूरा घर सिर पर उठाया है??"

सुषमा जी की बात पूरी होते ही सोनू भी उनके पास आ गया। जब सुषमा जी और गंगा जी ने सोनू की गोद में बच्चा देखा तो दोनों ही हैरान रह गईं। किसी तरह दोनों ने खुद को संभाला और सुषमा जी सोनू से बोलीं, "सोनू ये तू किसका बच्चा उठा लाया??"

सोनू ने खुश होते हुए जवाब दिया, "मां ये मेरी छुटकी है। मैंने आप सबसे कहा था ना कि एक दिन भगवान जी मुझे प्यारी सी बहन पक्का देंगे तो देखिए आज उन्होंने मुझे बहन दे दी।"

सोनू का जवाब सुनकर एक बार फिर दोनों सास-बहू हैरान रह जाती हैं, पर सच जानना भी जरूरी था, इसलिए दोनों हिम्मत से काम लेती हैं और गंगा जी सुषमा जी को इशारे से पूरी बात जानने के लिए कहती हैं। सुषमा जी अपनी सास के आदेश का पालन करते हुए सोनू से कहती हैं, "मुझे पूरी बात बता सोनू कि ये बच्चा तुझे कहां से मिला और तुझे कैसे पता कि ये लड़की ही है??"

सोनू उन्हें पूरी बात बता देता है और फिर अपनी मां से कहता है, "मां जब मैंने भगवान जी से बहन मांगी थी तो भगवान जी ने मुझे बहन ही दी होगी ना, बस इसीलिए मैंने कह दिया।"

पूरी बात जानने के बाद सुषमा जी प्यार से सोनू से कहती हैं, "सोनू ला तेरी बहन को मुझे दे दे, मैं इसको अच्छे से कपड़े पहना देती हूं, तब तक तू जाकर खेल ले।"

सोनू उस बच्चे को अपनी मां को देते हुए कहता है, "मां आप जाकर छुटकी के कपड़े बदल दीजिए, मैं यहीं बैठा हूं। जब भगवान ने छुटकी को मेरे लिए भेजा है तो मैं उसके साथ ही खेलूंगा।"

सुषमा जी अपनी सास की ओर देखने लगती हैं तो गंगा जी अपनी पलकें झपकाकर सोनू को वहीं रहने को बोल देती हैं। इसके बाद सुषमा जी उस बच्चे के कपड़े बदलने के लिए अंदर चलीं जाती हैं। सोनू के छोटे होते के कुछ कपड़े सुषमा जी ने संभाल कर रखें थें, वो उस बच्चे को वहीं पहना देती हैं और फिर से हाॅल में आ जाती हैं। सुषमा जी के आते ही सोनू उनसे बच्चे को ले लेता है और उसके साथ खेलने लगता है। जब सोनू उसके साथ खेलने में व्यस्त हो जाता है तो सुषमा जी धीरे से गंगा जी से कहती हैं, "अम्मा ये लड़की ही है। न जाने कौन अपनी जन्मी बच्ची को ऐसे मंदिर में छोड़ गया। मैं अभी सोनू के पापा को फ़ोन करके घर बुलाती हूं और फिर हम दोनों जाकर पुलिस स्टेशन में इस बच्ची की रिपोर्ट कर आएंगे, हो सकता है कि इसके माता-पिता का कुछ पता चल जाए।"

गंगा जी अपना समर्थन देते हुए कहती हैं, "ठीक है बहू प्रयास करके देख लो, पर मुझे नहीं लगता कि कुछ पता चलेगा। एक तो उस मंदिर में कोई ज्यादा आता-जाता नहीं है और ऊपर से अगर इसके माता-पिता ने अपना पता लगवाना ही होता तो क्या वो इस फूल सी बच्ची को ऐसे मंदिर में छोड़कर जाते?? अब तो मुझे भी ऐसा ही लगता है कि भगवान ने हमारे सोनू की प्रार्थना सुन ली है और उसे एक नन्ही सी बहन दे दी है।"

सुषमा जी उस बच्ची की ओर देखकर मुस्कुराते हुए कहती हैं, "अम्मा मेरा भी मन यही कर रहा है कि इस बच्ची को हमेशा के लिए अपने पास ही रख लूं, देखिए ना कितनी प्यारी बच्ची है और कैसे हमारे सोनू को देखकर मुस्कुरा रही है, पर क्या करूं एक बार पुलिस में रिपोर्ट तो दर्ज करवानी ही पड़ेगी ना........हो सकता है कि गलती से ये बच्ची वहां आ गई हो। "

गंगा जी बिना कुछ बोले बस हां में अपना सिर हिला देती हैं और खुद रसोई में जाकर बच्ची के लिए दूध गर्म करने चलीं जाती हैं। सुषमा जी जल्दी से शिवराज जी को फ़ोन करती हैं और उन्हें पूरी बात बताने के बाद जल्दी से घर आने के लिए कहती हैं। पूरी बात सुनने के बाद शिवराज जी भी तुरंत घर आने के लिए निकल जाते हैं। गंगा जी एक कटोरी में दूध ले आतीं हैं और चम्मच की सहायता से धीरे-धीरे बच्ची को दूध पिलाने लगती हैं और साथ ही ऐसे लोगों को कोसने लगती हैं, जो अपने नवजात शिशु को सिर्फ इसलिए खुद से दूर कर देते हैं, क्योंकि वो एक लड़की के रूप में जन्म लेती हैं। उन्हें समझ में नहीं आता कि कोई औरत इतनी पत्थर दिल कैसे हो सकती है कि नौ महीने तक अपने बच्चे को कोख में रखने के बाद वो उसे ऐसे मरने के लिए छोड़ देती है।

कुछ समय बाद शिवराज जी घर आ जाते हैं और जब उनकी नजर उस बच्ची पर जाती है तो उनके मन में भी पितृत्व का भाव जन्म लेने लगता है और उनका मन करता है कि वो इस बच्ची को हमेशा के लिए अपने पास ही रख लें, पर जल्द ही वो खुद को मजबूत करते हैं और सुषमा जी को उस बच्ची को उठाने के लिए कहते हैं। सुषमा जी उस बच्ची को गोद में उठा लेती हैं। जब सोनू ये सब देखता है तो वो अपने मम्मी-पापा की ओर सवालिया नज़रों से देखते हुए कहता है, "आप दोनों छुटकी को लेकर कहां जा रहे हैं??"

शिवराज जी उससे झूठ बोलते हुए प्यार से कहते हैं, "बेटा हम दोनों बाजार जा रहें हैं, ताकि तुम्हारी छुटकी के लिए कपड़े और खिलौने लेकर आ सकें। अब भगवान जी ने छुटकी को ऐसे अचानक भेज दिया कि हम उसके लिए कुछ लेकर ही नहीं आ पाए, तो बस इसीलिए अब लेकर आ रहे हैं।"

सोनू खुशी से उछलते हुए कहता है, "अरे वाह! छुटकी के लिए नए कपड़े और खिलौने........ चलिए मैं भी आप दोनों के साथ ही चलता हूं।"

शिवराज जी को समझ नहीं आता कि वो क्या बोलें, तो सुषमा जी बात को संभालते हुए कहती हैं, "बेटा अब तू छुटकी के लिए दादी को घर में अकेला छोड़ देगा क्या?? अगर पीछे से दादी को किसी चीज़ की ज़रूरत पड़ गई तो??"

सुषमा जी की बात सुनकर सोनू समझदारी दिखाते हुए कहता है, "ठीक है मैं दादी के पास ही रूकता हूं, आप दोनों जाइए, पर जल्दी आ जाइएगा।"

वो दोनों हां में सिर हिलाते हुए गंगा जी का समर्थन पाकर पुलिस स्टेशन चले जाते हैं और वहां जाकर रिपोर्ट दर्ज करवा देते हैं और वापिस आते समय बच्ची के लिए कुछ कपड़े और खिलौने लेकर घर चले जाते हैं, जहां सोनू बेसब्री से उनका इंतज़ार कर रहा था। उनको देखते ही सोनू खुश हो जाता है और बच्ची को अपनी गोद में लेकर उसके साथ खेलने लगता है। सोनू का बच्ची के साथ इतना लगाव देखकर सुषमा जी चिंतित होते हुए अपने पति और सास से कहती हैं, "अगर छुटकी के मम्मी-पापा मिल गए और उसे अपने साथ ले गए तो हमारे सोनू का क्या होगा?? हम उसे कैसे संभालेंगे??"

गंगा जी उन्हें तसल्ली देते हुए कहती हैं, "बहू अगर भगवान ने हमारे सोनू को इस बच्ची से मिलवाया है तो कुछ सोच-समझकर ही मिलवाया होगा। तुम दोनों देख लेना, ये बच्ची हमारे साथ ही रहेगी, बस अब तुम दोनों ये विचार कर लो कि तुम दोनों को इस बच्ची को अपनी बच्ची बनाकर पालने में कोई समस्या तो नहीं है ना??"

गंगा जी की बात सुनकर सुषमा जी और शिवराज जी एक-दूसरे की ओर ऐसे देखते हैं, जैसे आंखों ही आंखों में बातें कर रहे हो। कुछ देर बाद शिवराज जी गंगा जी से कहते हैं, "मां हम दोनों भी यही सोच रहे थे कि अगर इस बच्ची के मम्मी-पापा नहीं मिले तो हम इसे अपनी बच्ची बनाकर पालेंगे। हमें समझ नहीं आ रहा था कि आपसे इस बारे में कैसे कहें, इसीलिए हम चुप थे, पर आपने तो हमारी सारी चिंता ही दूर कर दी, इसलिए ये तय रहा कि अगर ऐसा हुआ तो ये बच्ची हमारे साथ ही रहेगी और इस बच्ची का हमारे जीवन में आना किसी चमत्कार से कम नहीं है, इसीलिए इसका नाम आज से परी होगा।"

सबको परी नाम बहुत पसंद आता है तो सब खुशी-खुशी अपना समर्थन दे देते हैं। परी के उनके घर में आने के बाद से उनके घर में जैसे रौनक आ जाती है। पूरा परिवार परी की परवरिश में लगा रहता था। सोनू तो सिर्फ़ स्कूल जाने के समय उससे दूर होता था, वरना हर समय वो परी के साथ ही खेलता रहता था।

पुलिस अपनी छानबीन करके इस केस को बंद कर चुकी थी, क्योंकि उनके हाथ में इस केस से संबंधित कोई भी सुराग नहीं लगा था और केस बंद होने की बात सुनकर सोनू का परिवार इतना खुश हुआ था कि खुशी में उन्होंने पूरे मौहल्ले में मिठाई बांट डाली। 

परी को अपनी बेटी बनाकर और उसके पालन-पोषण में कोई कमी न रखकर सोनू के परिवार ने समाज में एक नई मिसाल कायम की थी कि बेटियां बोझ नहीं होती और बेटियों को सिर्फ़ वही लोग खुद से दूर करते हैं, जिनमें इन्हें पालने की औकात नहीं होती। बहुत बदनसीब है वो लोग जो अपने घर में जन्मी लक्ष्मी को कचरे में फेंक आते हैं, कोई उन्हें समझाएं कि बेटियों के बिना किसी की भी जिंदगी आबाद नहीं होती।


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