Sonia Goyal

Abstract Romance Fantasy

4.5  

Sonia Goyal

Abstract Romance Fantasy

पिया बसंती रे

पिया बसंती रे

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"बसंत ऋतु" को सभी ॠतुओं का राजा माना जाता है। आखिर माना भी क्यूं न जाए, जब इसका आगमन हर किसी के मन में उमंग, उत्साह, हर्ष और उल्लास की भावना जगाकर एक नई ताज़गी का अहसास करवाता है। खेतों में लहलहाती "सरसों" भी अपनी खुशी का इज़हार करती है और प्रकृति में बसंती रंग बिखेरती है।

बसंत ऋतु का आगमन "बसंत पंचमी" के रूप में होता है। इस दिन लोग पीले रंग के कपड़े पहनते हैं और पीले रंग के चावल बनाकर मां सरस्वती की पूजा करते हैं। पंजाब में तो इस दिन पतंगबाजी भी की जाती है। चाहे कोई बच्चा हो या बड़ा, इस दिन सभी पतंग उड़ाते हैं और अपनी खुशी का इज़हार करते हैं।

आज भी बसंत पंचमी का दिन है और पंजाब में रहने वाली मीनाक्षी अपनी शादी से तीन साल पहले की बसंत पंचमी वाले दिन में खोयी हुई है। वैसे तो उसकी शादी की यह पहली बसंत है, पर उसके लिए तो तीन साल पहले की बसंत कुछ ज्यादा ही ख़ास थी और ऐसा क्यूं है, यह जानने के लिए हम चलते हैं मीनाक्षी की तीन साल पहले की दुनिया में।

मीनाक्षी पंजाब में रहने वाली एक चुलबुली सी लड़की है। वह दिखने में तो ठीक-ठाक है, पर इसके बावजूद भी उसके नटखट स्वभाव के कारण सब उसे पसंद करते हैं। उसकी जिंदगी का बस एक ही उसूल है, खुद भी खुश रहो और दूसरों को भी खुश रखो। वह स्नातक कर रही है और इस समय द्वितीय भाग में है।

आज बसंत पंचमी है और वो छत पर खड़ी, उड़ रहे रंग-बिरंगे और सुंदर पतंगों को देखकर खुश हो रही है। वो अपनी ही धुन में झूम रही है कि अचानक उसकी नज़र दूर एक छत पर पड़ती है, जहां से दो नैन उसे ही देख रहें थे। मीनाक्षी को लगा कि यह उसका वहम होगा, इसलिए वो अपनी नजरें दूसरी तरफ करके फिर से अपनी ही मस्ती में लग जाती है।

कुछ समय बाद जब फिर से मीनाक्षी का ध्यान उस छत पर जाता है तो वह देखती है कि वो आंखें अभी भी उसे ही देख रही होती है। इस बार मीनाक्षी की नजरें भी उन आंखों पर ठहर जाती है और वो भी उसे ही देखने लगती है। कुछ समय बाद जब मीनाक्षी को ध्यान आता है तो वो जल्दी से अपनी आंखें नीचे कर लेती है और छत से नीचे चली जाती है, पर पता नहीं वो दो जोड़ी आंखें उस पर क्या जादू करती है कि वो उन्हीं के बारे में सोचती रहती है।

उसका मन फिर से उन आंखों को देखने का करता है, इसलिए वो कुछ समय बाद फिर से छत पर चली जाती है, पर उसे वो दो जोड़ी आंखें कहीं नज़र नहीं आती। वो उदास होकर पतंगों की तरफ़ देखने लगती है कि अचानक वो दो जोड़ी आंखें उसे फिर से नज़र आती है। उन्हें देखकर मीनाक्षी इतनी खुश होती है कि उसके होंठों पर मुस्कान फैल जाती है। मीनाक्षी को मुस्कुराते देख, वो दो जोड़ी आंखों वाला लड़का भी मुस्कुरा देता है।

मीनाक्षी को उसकी आंखों में एक अजीब सी गहराई नज़र आती है और उसका दिल उन आंखों में डूब जाने को करता है। इसलिए अब वह रोज़ शाम को बहाना बनाकर छत पर जाकर उन आंखों को ढूंढ़ने लगती। मीनाक्षी के लिए खुशी की बात तो यह थी कि वो लड़का भी रोज़ शाम को उसे देखने के लिए छत पर उसका इंतज़ार करता रहता। एक-दूसरे को देखकर दोनों के ही चेहरे पर एक मुस्कान फैल जाती थी।

लगभग पंद्रह दिन तक ऐसे ही चलता रहा और मीनाक्षी उस लड़के की तरफ़ खिंचती चली गई। ऐसा पहली बार हुआ था, जब कोई लड़का मीनाक्षी में इतनी दिलचस्पी दिखा रहा था, क्योंकि उसको जितने भी लड़के मिलें, वो सब मन की सुंदरता से ज्यादा तन की सुंदरता को पहलू देते थे और मीनाक्षी देखने में ठीक-ठाक सी थी, तो वो कभी किसी के लिए ख़ास बन ही नहीं पाई और अब जब किसी लड़के के लिए वो ख़ास बनी, तो वो भी खुद के दिल में उसके लिए प्यार जगाने से रोक न पाई।

उसने अपने दिल में प्यार की भावना तो जगा ली थी, पर न तो उसे उस लड़के का नाम पता था और न ही दोनों ने एक-दूसरे को सही से देखा था, क्योंकि दोनों की छतों में इतना फासला था कि दोनों को एक-दूसरे का चेहरा साफ़ दिखाई नहीं देता था। मीनाक्षी को डर था कि कहीं यह लड़का भी उसकी शक्ल देखकर उससे दूर न हो जाए और उसकी पहली-पहली मोहब्बत शुरू होने से पहले ही ख़त्म न हो जाए। इस डर के बावजूद भी उसका दिल उस लड़के के लिए अपनी चाहत को रोक न पाया।

रोज़ एक-दूसरे को ऐसे देखते-देखते एक दिन वो भी आया जब लड़के ने इशारे से मीनाक्षी का मोबाइल नंबर मांगा। मीनाक्षी ने उस पल बिना कुछ सोचे, अगले ही पल उस लड़के को इशारे से अपना मोबाइल नंबर बता दिया और उसके अगले ही पल उस लड़के का फ़ोन भी आ गया। जैसे ही मीनाक्षी ने उसकी आवाज़ सुनी, तो उसके दिल की धड़कन तेज़ हो गई। सबसे पहले दोनों ने एक-दूसरे को अपना-अपना नाम बताया और उस दिन जाकर मीनाक्षी को पता लगा कि उसका नाम राहुल है।

राहुल ने स्नातक की पढ़ाई पूरी कर ली थी और नौकरी की तलाश कर रहा था। ऐसे ही अब दोनों की फ़ोन पर बातें होने लगी। दोनों का अधिकांश समय या तो एक-दूसरे के साथ चैटिंग करने में बीतता या फ़ोन पर बात करने में। फ़ोन पर बात करते-करते एक दिन वो भी आया जब राहुल ने मीनाक्षी से मिलने के लिए कहा और दोनों ने मीनाक्षी के काॅलेज के पास एक कैफे में काॅफी पीने का प्लान बनाया। मीनाक्षी ने मिलने के लिए हां तो कर दी थी, पर उसे डर था कि कहीं राहुल उससे मिलने के बाद उससे हमेशा के लिए दूर न हो जाए।

पर अब मीनाक्षी के पास मिलने के अलावा कोई और रास्ता भी नहीं था, इसलिए वो सब कुछ भगवान पर छोड़कर तय समय पर राहुल से मिलने के लिए पहुंच गई। जब मीनाक्षी ने राहुल को देखा तो बस उसे देखती ही रह गई। मीनाक्षी की इस हरकत पर राहुल मुस्कुरा दिया और फ़िर उसे बैठने के लिए कहा। कुछ देर बातें करने के बाद राहुल ने मीनाक्षी से कहा कि मैं तुमसे कुछ बात करना चाहता हूं।

जब मीनाक्षी ने उससे पूछा तो राहुल ने कहा कि मेरी नौकरी दिल्ली में लग गई है और परसों मुझे दिल्ली जाना है, तो सोचा कि जाने से पहले एक बार तुमसे मिल लूं। राहुल की यह बात सुनकर मीनाक्षी की आंखें भर आईं, पर उसने राहुल से अपने आंसू छुपा लिए और नौकरी के लिए उसे बधाई दी। दोनों ने कुछ देर बातें की और अपने-अपने घर के लिए निकल गए, ना तो मीनाक्षी ने उससे कुछ कहा और ना ही राहुल ने।

आखिरकार दो दिन बाद वो दिन भी आ गया, जब राहुल दिल्ली चला गया और धीरे-धीरे वह मीनाक्षी से कम बात करने लगा। मीनाक्षी ने जब भी उससे इसका कारण पूछा तो उसने व्यस्तता का कारण बताकर बात को टाल दिया। राहुल के इस तरह के व्यवहार से मीनाक्षी बहुत दुखी रहने लगी। उसे भी लगने लगा कि राहुल भी दूसरे लड़कों की तरह ही है, जो सिर्फ़ तन की सुंदरता देखते हैं, मन की नहीं। मीनाक्षी को बहुत तकलीफ़ हुई, पर धीरे-धीरे उसने भी इस बात को स्वीकार कर लिया कि राहुल के दिल में उसके लिए प्यार था ही नहीं और उसने खुद को अपनी पढ़ाई में मशरूफ कर लिया।

अगर कभी राहुल फ़ोन करता, तो वो बात कर लेती। ऐसे ही समय बीतता गया और मीनाक्षी की स्नातक की पढ़ाई पूरी हो गई। पढ़ाई पूरी होते ही उसके परिवार वालों ने उसके लिए रिश्ते देखने शुरू कर दिए, पर उसका दिल तो सिर्फ़ राहुल के लिए ही धड़कता था। यह बात वह किसी से कह भी नहीं सकती थी, क्योंकि राहुल ने तो कभी उससे कहा ही नहीं था कि वह उससे प्यार करता है। इसलिए जो कुछ भी चल रहा था, वह उसे चुपचाप ही देखती रही।

एक दिन वह भी आया, जब मीनाक्षी के पिता ने उसे बताया कि मैंने तुम्हारा रिश्ता तय कर दिया है और दो दिन बाद लड़के वाले शगुन की रस्म के लिए आने वाले हैं। अपने पिता की बात सुनकर मीनाक्षी ने जल्दी से राहुल को फ़ोन लगाया और उसे सारी बात बताई। पूरी बात सुनने के बाद राहुल ने उसे जो जवाब दिया, उससे वह बुरी तरह से टूट गई। मीनाक्षी की बात सुनकर राहुल ने उससे कहा कि यह तो बहुत ख़ुशी की बात है, मैं तुम्हारे लिए बहुत खुश हूं और हां मुझे अपनी शादी में बुलाना मत भूलना।

इतना कहकर राहुल ने फ़ोन रख दिया, पर राहुल के मुंह से यह बात सुनने के बाद का सारा समय मीनाक्षी का रोते हुए ही गया। वह सोचती रही कि कितने सपने संजोए थे मैंने राहुल को लेकर और उसने एक ही झटके में मेरे सारे सपने तोड़ दिए। मीनाक्षी के ऐसे ही रोते और राहुल के बारे में सोचते दो दिन बीत गए और शगुन की रस्म पूरी करने के लिए लड़के वाले मीनाक्षी के घर आ गए। मीनाक्षी भी बिना किसी से कुछ बोले चुपचाप तैयार हो गई और नीचे आ गई।

नीचे आकर मीनाक्षी ने अपने होने वाले सास-ससुर के पांव छूकर आशीर्वाद लिया और अपने होने वाले पति को बिना देखे ही अपनी जगह पर बैठ गई। मीनाक्षी अपनी नज़रें नीचे करके बैठी थी कि तभी उसके होने वाले पति की आवाज़ आई, "क्या बात है मैडम हमसे कुछ नाराज़गी है क्या, जो आपने हमारी तरफ़ देखा भी नहीं....."

जैसे ही मीनाक्षी ने वो आवाज़ सुनी तो एकदम से सामने देखने लगी और सामने राहुल को देखकर हैरान रह गई। राहुल मीनाक्षी को देखकर मंद-मंद मुस्कुरा रहा था। मीनाक्षी को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि यह क्या हो रहा है। वो अपने मम्मी-पापा की तरफ देखने लगी तो वो भी उसे देखकर मंद-मंद मुस्कुरा कर अपनी सहमति दे रहे थे।

मीनाक्षी को इस तरह उलझे हुए देख राहुल मीनाक्षी से कहता है, "तुम्हें क्या लगा कि मैं तुम्हें किसी और का होने दे सकता हूं। तुम तो मेरी जान हो और भला कोई अपनी जान के बिना जीवित रह सकता है क्या....."

राहुल के मुंह से ऐसी बातें सुनकर मीनाक्षी की आंखों से खुशी के आंसू छलक जाते हैं और वो राहुल से कहती है, "अगर ऐसी बात थी तो आपने कभी मुझसे अपने दिल की बात कही क्यूं नहीं.... मैं कितने समय से आपके मुंह से यह बात सुनने के लिए तरस रही हूं, पर आप तो ऐसे व्यवहार करते रहे जैसे आपको मेरे होने या न होने से कोई फर्क ही नहीं पड़ता और दो दिन पहले जब मैंने आपको अपनी शादी के बारे में बताया तो भी आपने मुझे कुछ नहीं बताया। "

राहुल इतने सारे सवाल सुनकर मुस्कुरा कर मीनाक्षी से कहता है, "अरे बाप रे, एक साथ इतने सवाल...... चलो कोई बात नहीं मैं आज सारे सवालों के जवाब दे ही देता हूं..... तुमसे प्यार तो मुझे उसी दिन हो गया था, जब बसंत वाले दिन मैंने तुम्हें पहली बार देखा था। मैं तुम्हें अपने दिल की बात बताना चाहता था, पर मैं तुम्हें गर्लफ्रेंड न बनाकर सीधे अपनी पत्नी बनाना चाहता था, पर उस समय मेरे पास कोई नौकरी नहीं थी और मैंने हम दोनों के माता-पिता को भी मनाना था, इसलिए मुझे चुप रहना पड़ा।"

राहुल की खुद के प्रति ऐसी सोच के बारे में सुनकर मीनाक्षी खुद पर गर्व महसूस करती है कि उसने इतनी अच्छी सोच वाले लड़के से प्यार किया और उस लड़के ने भी उससे ही प्यार किया। मीनाक्षी ने आगे राहुल से पूछा, "यह सब तो आप मुझे भी बता सकते थे ना, इसमें मैं भी तो आपका साथ दे ही सकती थी।"

राहुल, "अगर मैं तुम्हें सब कुछ पहले ही बता देता तो क्या आज तुम्हें इतनी खुशी मिल पाती...."

मीनाक्षी, "शायद आप सही कह रहे हैं, पर आपने मम्मी-पापा को कब मनाया, मुझे तो पता भी नहीं लगा...."

राहुल, "वो दिन याद है जब मैंने तुम्हें पहली बार मिलने के लिए बुलाया था और अपनी नौकरी की ख़बर सुनाई थी....बस उसके अगले दिन ही मैं अपने मम्मी-पापा के साथ तुम्हारे घर आया था और आंटी अंकल को पूरी बात बताई थी। आंटी अंकल बहुत ही अच्छे ख्यालों वाले निकले, इसलिए मुझे मेहनत नहीं करनी पड़ी और वो हमारी शादी के लिए मान गए। सबने मिलकर यह तय किया कि जब तुम्हारी स्नातक की पढ़ाई पूरी हो जाएगी तो हम शादी कर लेंगे। इसलिए मैंने तुमसे बात करना भी कम कर दिया था, ताकि तुम अच्छे से अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे सको।"

मीनाक्षी, "अच्छा तो इसलिए आप मुझसे कम बात करते थे और मैं न जाने क्या कुछ सोचती रही। वैसे मानना पड़ेगा कि मेरी पीठ पीछे आप सबने इतना कुछ तय कर लिया और मुझे भनक तक नहीं लगने दी।"

मीनाक्षी की यह बात सुनकर सब मुस्कुरा दिए और फिर सब बड़े एक-साथ बोले, "अगर तुम दोनों ने आज बस बातें ही करनी है तो क्या हम ये शगुन की रस्म किसी और दिन की रख लें.... "

उनकी बात सुनकर मीनाक्षी और राहुल एक-साथ बोले, "नहीं....."

दोनों का एक जैसा जवाब सुनकर सभी बड़े हंस दिए और शगुन की रस्म पूरी की और कुछ ही दिनों बाद दोनों की शादी हो गई।

मीनाक्षी अभी भी अपने पुराने दिनों को याद कर रही थी कि तभी राहुल ने उसके आगे चुटकी बजाते हुए पूछा, "क्या बात है मैडम कहां खोई हुई हो...."

राहुल की आवाज़ सुनकर मीनाक्षी अपने वर्तमान में वापिस आती है और कहती है, "कुछ नहीं बस बसंत ऋतु के उन खुबसूरत लम्हों को याद कर रही थी।"

राहुल, "अच्छा जी....."

मीनाक्षी, "हां जी, पर आपने तब मुझे बहुत तंग किया था, उस दिन तो सब बड़े पास बैठे थे, इसलिए मैं कुछ कर नहीं पाई, पर आज आपको छोडूंगी नहीं, जितना तंग आपने मुझे किया था ना, आज उसका हिसाब पूरा करके ही रहूंगी। "

इतना कहकर मीनाक्षी मज़ाक में राहुल की पिटाई करने ही लगती है कि राहुल बचाओ! बचाओ बोलता वहां से दौड़ जाता है और सामने से आ रहे अपने मम्मी-पापा के पीछे छिपकर कहता है, "मम्मी-पापा बचाइए मुझे इस शेरनी से, वरना ये तो आज मेरा शिकार करके ही मानेगी।"

राहुल की बात सुनकर उसके मम्मी-पापा मुस्कुरा देते हैं और फिर मीनाक्षी से कहते हैं, "बहू छोड़ना मत आज इसे, कुछ ज्यादा ही बिगड़ गया है यह, हमने इसे कितनी बार बोला था कि बहू को सब बता देना, पर हमारी सुनी ही नहीं इसने....."

अपने मम्मी-पापा का यह जवाब सुनकर राहुल बच्चों के जैसे मुंह बनाते हुए बोला, "कैसा ज़माना आ गया है, मां-बाप अपने बेटे को बचाने की जगह उसे शहीद करवाने में लगे हुए हैं।"

राहुल की बात सुनकर उसकी मम्मी उसका कान मरोड़ कर कहती है, "कुछ ज्यादा ही नौटंकीबाज है तू, रूक तूझे तो मैं अभी बताती हूं।"

राहुल अपना कान छुड़वाते हुए कहता है, "अच्छा! अच्छा अब से सारी नौटंकी बंद....बस अब खुश।"

इतना कहकर राहुल अपना मुंह फुलाकर खड़ा हो जाता है और सब लोग हंस देते हैं और आसमान में उड़ रहे रंग-बिरंगे पतंगों को देखने लगते हैं।


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