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Ashish Anand Arya

Abstract Inspirational

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Ashish Anand Arya

Abstract Inspirational

मैं सड़क पर टहल रहा हूँ...

मैं सड़क पर टहल रहा हूँ...

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"ओह! इस बार तो शायद कई सदियों के बाद ऐसी अद्भुत दीपावली का संयोग बना है। सोचते-सोचते घर से कदम बाहर निकाले ही थे कि कदमों के किरदार को जैसे धारदार प्रहार से आघातित हो जाना पड़ा।


वैसे तो त्योहारों का सीजन आते ही है, जगह-जगह चहल-पहल और भीड़भाड़ का आलम होना बिल्कुल स्वाभाविक हो जाता है। पर इस बार ऐसे स्वाभाविक नज़र आने वाली स्थितियों में ही बड़ी दर्दनाक परिस्थिति के बनने के आसार बन पड़े हैं।


मौसम सदैव सा अपने रंग दिखाने को आतुर है। जाड़े में गिरते तापमान के साथ इस नासपीटे कोरोना-संक्रमण का खतरा और बढ़ रहा है। ऊपर से प्रदूषण इस महामारी को खतरनाक बना सकता है, जिसके बारे में विशेषज्ञ बार-बार चेता रहे हैं। ऐसे में सभी राजनेता और कुछ बुद्धिजीवी इस दीवाली पटाखों का कम से कम इस्तेमाल करने का 'वचन' मांग रहे हैं। पर समाज का केवल यही एक रूप तो नहीं, समाज के तो कई-कई रूप होते हैं!


कोरोना ने इस समाज के अंतर्गत वास्तव में वातावरण को बहुत साफ कर दिया है। नदियों का जल स्वच्छ हो रहा है। कहीं-कहीं तो वायु प्रदूषण खत्म होने की कगार पर भी आ चुका है। जीव-जंतु निर्भीक होकर जंगलों के भीतर कुलाँचे भर निकल रहे हैं। पक्षियों का भोर में होने वाला विलुप्तप्राय कलरव पुनः नवजीवन का नाद कर रहा है। अन्य रोगों से होने वाली मृत्यु दर घटी है आदि-आदि-आदि! कोरोना ने बहुत कुछ साफ कर दिया है!


किंतु कोरोना के इस रूप के साथ-साथ ही इसके सूक्ष्मगर्भ से उसी के समरूप अन्य सूक्ष्मजीवी ने भी जन्म लिया है - " सेल्फीसुर "


 इस सेल्फीसुर में कोरोना के सभी लक्षण/गुण/अवगुण समान रूप से निहित हैं, जैसे ये स्वयं तो दृश्यमान नहीं है, किंतु पीड़ित में इसका प्रभाव स्पष्ट दृष्यगत किया जा सकता है, ये व्यापक है - सीमाओं से परे!


 कुछ मामलों में तो ये सेल्फीसुर कोरोना से भी आगे है, जैसे कि ये मात्र देखने से फैल जाता है, इससे पीड़ित रोगी स्वयं को छुपाने का नहीं, अपितु दिख जाने को आतुर रहता है! किन्तु दोनों ही सूक्ष्मजीवों की मारक क्षमता समान है, दोनों ही से पीड़ित व्यक्ति दूसरे को छूते ही बीमार कर देता है, एक दैहिक रूप से तो दूसरा आत्मिक रूप से, एक शरीर पर वार करता है तो दूसरा आत्मा पर!! हुआ न "सेल्फीसुर" कोरोना से अधिक शक्तिशाली ?


दो रोटी बांटी, एक सेल्फी, दो केले बांटे, दो सेल्फी, एक किलो चावल दिए, चार सेल्फी, ४ पैकेट बिस्किट दिए, १४ सेल्फी... सेल्फीसुर का तो बस आप आतंक ही देखिए...!


लोग पुण्य के काम कर रहे हैं और सेल्फीसुर उन्हें अपयश का पात्र बना रहा है !! सब इन्हें ही दोष दे रहे हैं, कोई इन बेचारों की पीड़ा समझ रहा है क्या??


इन्हें देखा था कोरोना काल से पहले, रोटी/केला/बिस्किट बांटते ?? ये सब सामाजिक-प्राणी तो बेचारे बस सेल्फीसुर के कहर से ऐसा कर रहे हैं। अब तक इन्होंने भोग किया, अब दान कर रहे हैं, अन्यथा धन का नाश नहीं हो जाएगा??


अब सामने वाला लज्जा से मरता है तो इसमें इन सज्जन पुरुषों/स्त्रियों का क्या दोष ?


बताइए एक तो भूखे को खाना खिलाया ऊपर से अपयश भी पाया, सब " सेल्फीसुर " का दोष है, वरन् ये सज्जनगण कभी अपने अत्याधुनिक लखटकिये स्वचालित् दूरभाषा यंत्र के २५ पिक्सली चित्रसंग्राहक में इन फटीचरों, अधनंगों की तस्वीर सहेजते भला ??


क्या ज़माना आ गया है ! ज़रूर इन्होंने चौथ का चन्द्र देख लिया होगा ! आह लगेगी दुराग्रहियों को इन धर्मात्माओं की, पुण्य के काम में भी इन्हें स्वार्थ दिखाई देता है !! 


 चलिए हम आप ही इनकी कीर्ति जग में फैलाते हैं, एक दिया "सेल्फीसुरों" की मुक्ति हेतु (ओह) क्षमा करें, सेल्फीसुर का ग्रास बने उन देवतागणों को अपयश से बचाने हेतु भी... यही तो प्रेरणास्रोत हैं हमारे समाज में !!


तो, इस दीपावली में त्योहार की भावनाओं को मनायें, पर ध्यान रखें, हम कहीं क्रूर-विकराल सेल्फ़ीसुर होकर ही न रह जायें! यही विचार अब बस भरे हैं दिमाग में और मैं ढेर वाहनों की भीड़ बीच सड़क पर टहल रहा हूँ!


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