आई.. स.. ... क्रीम....
आई.. स.. ... क्रीम....
कल देर रात तक नींद के आगोश से बहुत दूर था। वजह ही कुछ ऐसी थी, मैं चाहकर भी नींद को गले लगाना नहीं चाहता था।
एक बार को तो बताने में भी शर्म आती है, पर यही सच था कि ख्यालों में मैं बहुत गहरा डूबा था और ख्वाहिश पूरी न होने तक, उन ख्यालों में उसी तरह डूबा रहने को तैयार था। ख्याल ही कुछ ऐसे थे। वो मेरे सामने और मैं बस एक प्यासे की तरह उस पर आॅख गड़ाये खड़ा, कि कब उसके नर्म-नर्म अहसास पर अपने होठ रखकर, मैं अपनी आॅखों की प्यास बुझा सकूॅ।
उसके उपर से उठती दिखती वो तपिश, बदन की गर्माहट को ठंडी-ठंडी आहों में बदल सकने की ताजगी और उसे देखते ही चाहत की तड़प जगा देने वाला उसका अंदाज, आने वाले हर पल पर उसे थाम लेने की ख्वाहिश को पूरा कर लेने के लिए, मेरे तन-बदन में आग सी लगाये जा रहा था।
ख्याल ही ख्याल में हर लमहा गुजरने पर मैं एक-एक कदम उसकी ओर बढ रहा था
और उसकी वो पिघलती सी सूरत जैसे बस मेरे लिए ही तड़प रही थी। होते-होते दूरी बस इतनी रह गयी थी कि उसे भी बस मेरे हाथ बढाने का ही इंतजार था।
रात का सन्नाटा एकदम गहरा चुका था। दूर-दूर तक मेरे अलावा कोई भी कहीं जगता नहीं दिख रहा था। मैं बढा और बस उसको अपनी हद में लेने वाला ही था कि सपना टूट गया। बारिश की तड़-तड़ की आवाज से मन के सारे अरमान मचल कर रह गये। पर मन में ख्याल उमड़ चुके थे।
भीगती रात में दबे पाँव कमरे से बाहर निकला। सड़क पर कुछ दूर चलते ही वो सामने थी। बारिश में भीगता मेरा खुद का बदन इतना ठंडा हो चुका था, उसको हाथ लगाना भी बहुत बड़ी गलती साबित हो सकती थी। पर मन का बचपना आखिरकार उम्रदराजता पर हावी हो ही गया। सामने दुकान के अंदर घुसते ही मैंने अपनी पसंदीदा आइसक्रीम उठायी और सीधा गप्प से मुॅह के अंदर डाल ली। पल भर में दाँत किटकिटाने लगे। पर वही मिलन की सच्ची अनुभूति थी।