Ashish Anand Arya

Tragedy Crime Thriller

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Ashish Anand Arya

Tragedy Crime Thriller

जमात की जात

जमात की जात

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भानगढ़ के किले के पास जरथा नाम के गाँव में रानू को भला कौन नहीं जानता था !

सोलह साल की उम्र तक रानू पूरे गाँव में सबका चहेता था। रानू नाम के इस लड़के के पास केवल जरथा गाँव के ही नहीं, बल्कि भानगढ़ की मिल्कियत में आने वाले हर व्यक्ति की हर किसी परेशानी का इलाज होता था। बदले में उस अनाथ को रोज जो दो वक्त का पेट भर खाना मिल जाता, वो उसी में बहुत खुश रहता था। पर एक दिन न जाने किस मुद्दे पर, जाने किसकी जुबान चली और एकाएक ही पूरे गाँव में एक गड़े मुद्दे की सच्चाई जंगल की आग की तरह फैल गयी। अब वो रानू, जो कल तक सबका चहेता था, वो आज अछूत था, क्योंकि उसकी जात अछूत थी।

एक बार जो रानू अछूत बना, पूरा का पूरा भानगढ़ ही उसके लिए अछूत हो गया। और फिर जब जात के साथ नियम-कानून-रिश्ते बदलने लगे, रानू को पता चला, असली में अछूत होना क्या होता है! अभी कल तक ही तो पूरी गाँव-बिरादरी को पता था कि रानू चाचा अपनी मुनिया पर जान छिड़कते हैं। मुनिया उन्हीं के साथ मेले में घूमने आयी थी। और फिर जैसे ही दोनों घर लौटने के लिए मेले से निकले, जो पाँच लड़के मुनिया पर भूखे भेड़ियों की तरह टूट पड़े थे, उनको रोकने के लिए रानू चाचा ने अपनी ओर से पूरी जान का दम लगा दिया था। पर अब वही रानू चाचा गुनाहगारी के कटघरे में खड़े थे।

पुलिस के डंडों से पिटने के बाद मुनिया के रानू चाचा अब अखबार वालों के कैमरों से चेहरा बचाने को मजबूर थे। मौके पर मौजूद बुद्दिजीवी वर्ग के पास एक बड़ा सवाल था, आखिर क्यों और भला कैसे ये पिछड़ी जाति वाले अपने ही रिश्तेदारों के खिलाफ़ इतने निर्दयी बन जाते हैं। और इतने सारे सवालों के बीच कोई भी ये जवाब देने की हालत में नहीं था कि हवस के इतने दर्दनाक हादसे के बावजूद भला क्यों मुनिया अपने दर्द की बजाय रानू चाचा के बदन पर पड़ती हर चोट का दर्द ज्यादा महसूस कर रही थी !


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