Ashish Anand Arya

Children Stories Tragedy Thriller

4  

Ashish Anand Arya

Children Stories Tragedy Thriller

सर्द-गोद

सर्द-गोद

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शाम होते ही अलका दीदी ने फिर से हम चारों को गोदी से उतार बोरे के भीतर ठान्स दिया। गुस्सा तो बहुत आती अलका दीदी पर, पर केवल एक वही तो थीं, जो हमारा इतना खयाल रखतीं।

देखने में वो बोरा जरा भी अच्छा न था। पर इस भयानक सर्दी में वही तो हमारा स्वेटर था। जितनी जोरों की ठंड, उतना ही जोरदार कोहरा। इतनी कड़ाके की सर्दी कि हम चारों दुबक कर एक-दूसरे से लिपट कर सो गये।

ठंड तो ठंड थी, पर मन की भी अपनी कुछ मर्जी होती है। पीकू की नींद खुल गयी। उसने हाथ मार-मार मुझे भी उठा दिया। बोला, चलो, थोड़ा सर्दी का मज़ा लेकर आते हैं। मन तैयार न था। पर प्यार से, दुलार से बार-बार मेरे सर पर हाथ मार-मार कर आखिर मुझे मना ही लिया।

घर का दरवाजा लाँघते ही हम सीधे सड़क पर। और सड़क पर आते ही ये जोर की चीं-चीं, क्रीं-क्रीं! एक दौड़ती गाड़ी के पहिये की टक्कर लगी और पीकू का तो हाथ ही टूट गया। पास में ही खूब सारे बच्चे खड़े थे। सब एक साथ चिल्ला उठे, देखो, पिल्लू भौंक रहा है। मेरा भाई दर्द से रो रहा था और सब बच्चे हँस-हँस कर उसका मज़ाक उड़ा रहे थे।

पीकू का रोना सुनकर माँ भी दरवाजे तक आ गयी। और ठीक इसी वक्त एक बड़ी गाड़ी के पहिया मेरे भाई के ऊपर से ऐसा निकला, उसका पूरा सर जमीन पर चिपक गया। माँ की आँखों से केवल आंसू लुढ़के, और वो कुछ न कर सकी।

बच्चे अभी भी चिल्ला रहे थे। हाँ, बस अब वो बोलने लगे थे, देखो, पिल्ला मर गया। अलका दीदी भी एकदम से दौड़कर बाहर आ गयीं। पर अब पहली बार उनको समझ नहीं आ रहा था कि वो अपने पीकू को गोदी में उठायें, तो भला कैसे ?


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