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Deepika Kumari

Abstract Inspirational

4.5  

Deepika Kumari

Abstract Inspirational

मां के आंसू

मां के आंसू

3 mins
237


सुबह के 5:00 बजे थे और मैं गहरी नींद में सो रही थी कि अचानक एक महिला के रोने की आवाज सुनाई देती है। आवाज सुनकर मैं घबरा कर कमरे से बाहर जाती हूं लेकिन वहां कोई नहीं होता। मैं बालकनी में जाकर देखती हूं लेकिन वहां भी कोई नहीं होता। पर रोने की आवाज अभी भी आ रही होती है। मैं उस आवाज को ध्यान से सुनती हूं और यह जानने की कोशिश करती हूं कि आखिर यह आवाज आ कहां से रही है? ध्यान से सुनने पर यह पता चलता है कि आवाज बगीचे की ओर से आ रही है। मैं सीढ़ियों से होती हुई दोड़कर बगीचे में पहुंचती हूं तो देखती हूं कि हरे रंग की साड़ी पहने एक अधेड़ उम्र की महिला अपने हाथों से अपने घुटनों को समेटे हुए उसमें अपना मुंह छिपा कर रो रही है।

मैं उसके पास जाकर पूछती हूं ,"आप कौन हैं और यहां इस प्रकार बैठी क्यों रो रही हैं?" वह उसी मुद्रा में बैठी रोती रहती है मानो उसने मेरी बात सुनी ही ना हो।

एक बार फिर मैं उससे पूछती हूं ,"हे माता ! कृपा कर बताइए तो आप हैं कौन और आप के रोने का कारण क्या है ?"

उसी मुद्रा में बैठे रोती हुई वह कहती है ,"आखिर मेरा दोष क्या है? क्या एक मां होना ही मेरा सबसे बड़ा दोष है? क्या मुझे इसी के लिए प्रताड़ित किया जाता है?"

इतना कहकर वह चुप हो जाती है और फिर से सुबक सुबक कर रोने लगती है। मैं उसके कुछ और करीब जाती हूं और फिर से पूछती हूं ,"आपको कौन प्रताड़ित करता है ? मुझे बताइए , क्या पता मैं आपकी कोई मदद कर सकूं।

वह कहती हैं ,"मेरी मदद कोई नहीं कर सकता जब मेरी संतान ही मुझे क्षति पहुंचाने से नहीं कतराती तो भला मैं मदद की उम्मीद किससे रखूं? एक मां होने के नाते मैंने अपनी संतान के प्रति हर उस कर्तव्य का पालन किया जो मुझे करना चाहिए।मैंने उसकी हर इच्छा को पूरा किया। उसकी खुशी के लिए मैंने अनेक कष्ट सहे। वह इतना स्वार्थी है कि अपनी स्वार्थ पूर्ति हेतु वह अपनी मां को ही क्षति पहुंचाता है। मैं अनेक सालों से उसके द्वारा किए गए अत्याचारों को सहन करती आ रही हूं। उसकी हर भूल और हर गलती को माफ करती आ रही हूं। पर अब मुझसे सहन नहीं होता, मेरी सहनशक्ति भी कमजोर पड़ गई है। और इसीलिए मैं यहां बैठी रो रही हूं क्योंकि मेरे दुख को समझने वाला इस दुनिया में कोई नहीं।"

मैं हिम्मत जुटाते हुए उससे एक बार और एक अंतिम प्रश्न करती हूं," माता ! आप मुझे बताइए तो कि आपका नाम क्या है ? और आपकी संतान का नाम क्या है? आप कहां रहती हैं? मैं आपको न्यायालय ले चलूंगी। वहां आपको अवश्य ही न्याय मिलेगा।"

वह ना मैं अपना सिर हिलाते हुए कहती है कि ,"मुझे किसी भी न्यायालय में न्याय नहीं मिल सकता क्योंकि न्यायालय भी उसी के बनाए हुए हैं।"

इतना कहकर वह चुप हो जाती है और एक गहरी सांस लेती है और फिर बताती है कि," तुम यही जानना चाहती हो ना कि मैं कौन हूं तो सुनो। मेरा नाम पृथ्वी है और मेरी संतान का नाम है- मनुष्य।


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