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Minni Mishra

Abstract

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Minni Mishra

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लिप्सा

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 "पुरा विश्व मातम मना रहा है,चारों ओर लोग त्राहि -त्राहि कर रहे हैं।और वाह! बेखबर, तुम खुशी से इठला रही हो!?" युवक ने व्यंग्य वाण छोड़ा।


 हाँ, मेरे नाचने गाने के दिन फिर से लौट आए हैं । वर्षों से अपनी क्षुधा शांत करने के लिए तुमने बहुत मनमानी की ! बेहिसाब जंगल काटे, बहते नदियों को बाधित किया ! मांसाहारी के नाम पर पशु - पक्षियों का भक्षण कर डाला ! यहाँ तक कि सांप और चमगादड़ को भी नहीं बख्शा ! अरे! तुम तो उससे भी अधिक विषैले निकले! उसके विष से तो दवा बनाया जाता है और तुम्हारे फैलाये विष से ? यही जानलेवा विषाणु उत्पन्न हो गया ! विश्व में महामारी फैल गई ! सभी दहशत में जी रहे हैं।  


किसी की आत्मा को तड़पाओगे तो श्राप लगना तय ही है । बहुत सह ली तुम्हारी यातनाएँ।अब मैं साथियों ( ग्रह, नक्षत्र, नदियाँ, पहाड़,पशु ,पक्षी) संग मिलकर मौज करना चाहती हूँ। देखो, सबने खुशी से मुझे अपने हाथों पर ऊपर उठा लिया है।" इतना कहकर युवती साड़ी का पल्लू लहराते हुए आगे बढने लगी।


"अरे कहाँ चली ? तुम्हारा दिमाग तो सही है ?!  कोरोना वाइरस के कारण मैं कहीं का नहीं रहा ! अमेरिका, ब्रिटेन, चीन, फ्रांस ,रुस, इटली आदि विकसित कहे जाने वाले देश गर्त में मिले जा रहे हैं ! पुरे विश्व की आर्थिक व्यवस्था चरमरा गई है। और तुम! इतरा रही हो ?! चलो, मेंटल होस्पीटल में भरती करवाता हूँ।"  युवक तैश मे आकर बोला।

 

" अरे.. जा..! तू, मुझे क्या इलाज करवायेगा ! पहले अपने उपजाये वाइरस से जान की रक्षा कर। देख पीछे, मौत मुँह बाए खड़ी है !" युवती आग बबूला हो गई।


" बहुत घमंडी लगती हो ! नाम क्या है? पेशा क्या है तुम्हारा ?"  युवक आक्रोशित होकर बोला।


"नहीं, पहले तू बता। तू है कौन?" 


"हाह.. मेरा नाम विकास है । धरती से लेकर आकाश तक मेरा साम्राज्य पसरा है।" कहते हुए विकास का गर्दन खिंच गया।


" मैं वसुंधरा हूँ! सारा संसार मुझ पर टिका है। हा..हा..हा...." युवती अट्टहास करने लगी।


 युवती के अट्टहास से चहुंओर शीतल बयार बहने लगी। दूर क्षितिज में सूर्य बादलों की ओंट से मुसकराने लगा । सड़क पर मोर , नील गाय और हिरण का झुंड विचरने लगे। पेडों की डालियाँ झूम -झूमकर आपस में गीत गाने लगीं।  


वसुंधरा के सोलह कला को देखकर विकास हतप्रभ हो गया। उसे अपना बुद्धि अब बौना दिखने लगा।

अचानक, दूर से सायरन की आवाज के साथ एमबुलेंस पर लदे आ रहे लाशों को देखकर अपने करतूतों से विकास को घृणा होने लगी। वह बुदबुदाया, "ओह! सुरसा की तरह हमारे बढते लिप्सा के कारण विश्व काल के गाल में समा रहा है। ऐसा कदापि नहीं होने दूँगा।"


 विकास के गगनचुंबी अहंकार ने वसुंधरा के चरण पकड़ लिए। इसे देखकर कोरोना वाइरस कटी टहनी की तरह धराम से गिर गया ।

शेष बचे जीवों के चेहरे पर विजयी मुस्कान छा गई।


 


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