लालटेन
लालटेन
आज के समय में शायद लालटेन का प्रयोग शो पीस की तरह किया जाता है, लेकिन आज के २०- २५ साल पहले ये लालटेन अपने प्रकाश से सबको दिशा दिखाने का काम करती थी। ये कहानी भी कुछ इतनी ही पुरानी है, एक छोटे से गांव में अमित नाम का एक लड़का रहता था, जो था तो एक साधारण परिवार से, लेकिन मूलभूत सुविधाओं से थोड़ा दूर....अमित अपने घर में माँ, पिता जी, दादा, दादी और छोटी बहन के साथ रहता था। अमित का जीवन भी गांव के अन्य बच्चों की तरह ही था, लेकिन अमित को पढ़ने और आगे बढ़ने की ललक बहुत थी। जब कभी भी अपने पिता के साथ साइकिल पर बैठकर शहर जाता, और वहाँ की चकाचौंध देख उसके मन में भी एक ललक होती कि काश! ये सब सुविधा उसके गांव में भी होती, तो उसके गांव में भी उजाला होता।
गांव में ढबरी (केरोसिन से जलने वाला दीपक, जिसे शीशी या बोतल के ढक्कन में छेद करके बनाया जाता था) के दिये बनाये जाते थे, जो एक जगह रख देने पर आसपास उजाला होता था और गांव में रात में इसीलिए दिये के उजाले में सभी लोग खाना बनाते और खाते थे।
ऐसे ही अमित के घर में भी दिये की रोशनी में शाम का खाना बनता था। अमित अब धीरे धीरे बड़ा हो रहा था, और छठी क्लास में आ चुका था, और अब उसे रात में भी पढ़ाई भी करनी पड़ती थी। ऐसे होते करते समय बीत रहा था। तभी एक दिन अमित अपने पिता जी के साथ बाजार गया, वहाँ उसने बाजार में लालटेन बिकते हुए देखा। उसने तुरंत ही अपने पिता जी से पूछा-"पिता जी! ये क्या है?" पिता जी ने बताया- " बेटा! ये लालटेन है, जैसे अपने घर में दिया जलता है, उसी तरह ये भी जलती है, बस इसमें शीशा लगा रहता है, तो रौशनी ज्यादा देती है।"
इस पर अमित अपने पिता जी- " पिता जी! क्या हम भी इस लालटेन को ले सकते है?"
पिता जी ने कहा- "हाँ बेटा! इस बार जब गेहूँ की फसल कटेगी तो गेहूँ बेचकर तुम्हारे लिए लालटेन खरीद दूँगा।"
अमित बाजार से लौट कर आया तो लेकिन उसका मन लालटेन कैसे खरीदी जाए, इसी पर लगा हुआ था। अब अमित के छठवीं कक्षा के इम्तहान भी खत्म हो गए थे और गर्मी की छुट्टी हो गयी थी। गांव में सबके खेतों में गेहूं की कटाई चलने लगी थी और थ्रेसर पर गेहूं निकालने का काम होने लगा था।
अमित के मन में एक विचार आया कि जब खेत से गेहूं के बोझ बनाकर उठा लिए जाते है और थ्रेशर पर कटाई के लिए भेज दिए जाते है, तब भी बहुत सी गेहूं की बालियाँ खेत में छूट जाती है, जिसे या तो जानवर खाते है या फिर खेत में पड़े पड़े ही सड़ जाते है। अमित ने उन गिरी हुई बालियों को अपने दोस्तों के साथ इकट्ठा करने की योजना बनाई। अगले दिन से ही अमित अपने दोस्तों के साथ रोज खेतों में जाने लगा और गिरी हुई गेहूं की बालियों को बोरी में इकट्ठा कर लाने लगा। घर में एक जगह सारी इकट्ठा बालियों को रखने लगा।
माँ ने अमित को ऐसा करते देख पूछा- "बेटा! ये क्या कर रहें हो?"
अमित ने बताया कि इसको बेचकर जो भी पैसे मिलेंगे उससे वो लालटेल खरीदेगा।
अमित की बात सुन माँ ने समझाया- "बेटा! पिताजी तुम्हारे लिए लालटेन ले आएंगे, तुम क्यों परेशान हो रहे हो?"
अमित ने माँ को बोला-"माँ! मेरी तो छुट्टियां ही चल रही है और ऐसे में कुछ काम करके अपने लिए लालटेन खरीद लूँगा, जिससे मुझे पढ़ाई करने में कोई परेशानी नहीं होगी।"
माँ ने कहा- "अमित, तुम तो बहुत समझदार हो गए हो, अच्छा किसी चीज की जरूरत हो तो मुझे बताना।"
अमित ने कहा- "माँ! जब मैं ढेर सारी गेहूं की बाली इकट्ठा कर लूँगा तो पिता जी से कह कर थ्रेशर से गेहूं निकलवा देना।"
माँ हँसते हुए बोली जरूर बेटा!!
देखते देखते अमित ने ढेर सारी बालियों को खेत से लाकर जमा कर लिया और फिर अमित के पिता जी ने उसे थ्रेशर में डालकर गेहूँ निकलवा दिए।
अमित की मेहनत से दो बोरी गेहूँ इकट्ठा हो गये। फिर अमित अपने पिता जी से बोला- "पिताजी! इतने गेहूँ से जो पैसे मिलेंगे उतने में लालटेन आ जाएगी क्या?"
अमित के पिता जी हँसकर बोले- "बेटा! इसमें लालटेन के साथ साथ तुम्हारे लिए नए कपड़े और स्कूल का बैग भी आ जायेगा।"
अगले दिन ही अमित अपने पिता जी के साथ बाजार गया और नयी लालटेन खरीद कर ले आया। अमित बहुत खुश था कि उसने अपनी मेहनत से लालटेन खरीदी और अमित के माँ पिता को अपने बेटे की सोच और समझदारी पर..
अमित अपनी मेहनत से ऐसे ही मन लगाकर पढ़ता गया, दसवीं और इंटरमीडिएट की परीक्षाओं में प्रथम स्थान हासिल किया। अपने माता पिता के साथ अपने गाँव का नाम रोशन किया। बाद में अमित उच्च शिक्षा प्राप्त कर सरकारी नौकरी करने लगा। अमित आगे चलकर शहर में अपना बड़ा सा घर बनाया और अपने साथ माता पिता को साथ लेकर गया। अमित को आज भी वह पहली लालटेन याद है।