Devendra Tripathi

Inspirational

4.0  

Devendra Tripathi

Inspirational

विदेश में स्वदेश

विदेश में स्वदेश

13 mins
153


आज के यही कोई लगभग २५ साल पहले जब रघुवीर (अब रॉबिन) जब उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले के एक छोटे से गाँव से विदेश आये थे, तो शायद यही सोचा था कि वहाँ रहकर अपने जिंदगी के सब अरमान पूरे करेंगे। यही सोंचकर तो निकल गए थे अपने मामा जी (जोरदार) के साथ। खैर मामा जी ने तो रघुवीर को विदेश के रहन सहन और जीवन जीने के तरीके सिखा ही दिए। रघुवीर के मामा जी का मोटर गैराज था कनाडा के एक शहर बिनीपेग में। मामा जी तो अकेले थे, अपनी जवानी में एक अंग्रेज लड़की से शादी किये थे, लेकिन नहीं चली और वो छोड़कर चली गयी, तब से मामा जी ने कसम खा ली कि वो कुँवारे मर जायेंगे लेकिन शादी नहीं करेंगे।

रघुवीर को साथ लेकर गए तो यही सोचा था कि उनके बाद वो ही उनके गैराज का काम संभाल लेगा। रघुवीर भी तो पाँच भाइयों में चौथे नंबर का था, तो घर मे भी उसकी बहुत इज्जत न थी। शादी के लिए कोई लड़की भी न मिल रही थी और नौकरी भी न मिल रही थी। क्या करता रघुवीर! मामा के कहने पर निकल पड़ा था दुनिया की चकाचौंध देखने। खैर ग्रेजुएशन कॉमर्स माध्यम से किया था तो वीजा मिलने में भी कोई परेशानी नही हुई। ठीकठाक मतलब भर की अंग्रेजी भी रघुवीर को आती भी थी इसलिए मामा जी इम्प्रेस हो गए थे रघुवीर पर।

लगता है जैसे आज ही तो है समय जाते पता नहीं चला जब बिनीपेग पहुँचकर रघुवीर मामा जी के गैराज का पूरा काम संभाल लिया। मामा जी को भी धीरे धीरे ये लगने लगा कि रघुवीर अब उनका पूरा काम धीरे धीरे आगे बढ़ा ले जाएगा। बहुत मिस करता था अपने देश को, अपने घर को अपने परिवार को जब भी खाली बैठता था। लेकिन पैसे की भूख रघुवीर को बैठने कहाँ देती। अभी तो रघुवीर को बहुत पैसे कमाने थे और बहुत बड़ा आदमी बनना था इसलिए गैराज के साथ साथ सुबह को दो कंपनी में एकाउंटिंग का काम शुरू कर दिया और शाम को कॉलोनी के दो बच्चों को एकाउंट का ट्यूशन देने लगा।

चलता रहा, दिन कटते रहे, फिर रघुवीर की चर्चा गाँव देश में होने लगी। छोटे से घर से अब तो यहां बड़ा महल जैसा घर और सब सुविधाएं जो हो गयी थी। घर पर माँ पिता जी और भाई लोग भी रघुवीर की तरक्की से बहुत खुश थे। अब रघुवीर की शादी के लिए लड़कियों की लाइन लगी हुई है, और घर पर सबलोग रघुवीर के वापस लौटकर शादी करने का इंतजार कर रहे है लेकिन ये क्या वहीं बिनीपेग में ही रघुवीर को एक बड़े बिजनसमैन की बेटी मारिया से प्यार हो गया था। 

मामा समझा रहे थे, रघुवीर को! अरे बेटा मत कर..... देख मुझको मैंने आज तक नहीं की उसकी याद में और वो अपनी जिंदगी में बहुत खुश है। मेरी बात मान, अपने देश की कोई अच्छी लड़की देखकर शादी कर ले। तेरे पिता जी का फ़ोन आया था, बहुत रिश्ते आ रहे है तेरे लिए। यहाँ मत पागल बन तू।

रघुवीर मारिया के प्यार में पागल हो गया था, और शादी करने के लिए तैयार था। मारिया के पिता जी की शर्त पर रघुवीर से रॉबिन बनने को तो तैयार हो गया था लेकिन मारिया के घर पर घरजमाई बनकर रहने का प्रस्ताव रॉबिन के खुद्दारी को नागवार गुजरी और शादी तोड़ दी। यही थी रघुवीर से रॉबिन बनने की कहानी। मामा जोरदार को नाम इतना पसन्द आया कि उन्होंने रघुवीर से नाम बदलकर रॉबिन ही कहना शुरू कर दिया। बस फिर क्या था धीरे धीरे रॉबिन नाम पॉपुलर हो गया और रघुवीर रॉबिन बन गए।

रॉबिन की शादी अपने देश में ही हुई, पढ़ी लिखी लड़की माधुरी बहुत सुंदर, समझदार और पढ़ी लिखी से। खाना पीना बनाने में पारंगत और साथ ही देश विदेश की जानकारी में रुचि रखने वाली एक सामाजिक सोंच। पिछले कई सालों से विदेश में रहते हुए रॉबिन की सोंच भी एक व्यवसायी की तरह हो गयी थी। अब गैराज के साथ साथ रॉबिन ने अपना एक ऑफिस बना लिया, जिसमें वो कुछ कम्पनियों की एकाउंट का काम करता था, जिससे और भी पैसे आने लगे थे। अब रॉबिन बहुत व्यस्त रहने लगा था क्योंकि वो एक सफल इंसान बन गया था।

माधुरी को आज भी वो दिन याद है, जब वो पहली पर बिनीपेग पहुँच तो गयी थी, लेकिन दिन भर घर में अकेले बैठकर उसका मन ऊब जाता था। कोई जानने वाला भी तो नहीं था, किसके पास जाए, कहाँ जाए। ज्यादा से ज्यादा गैराज या रॉबिन के ऑफिस तक कभी कभार चली जाती थी। रोज उसके मन में यही खयाल आता था कि इससे तो अच्छा अपना देश ही था, कम से कम अपने जानने वाले लोग तो थे जिनसे बोला बतलाया जा सकता था। यहाँ कोई भी ऐसा नहीं था, जिससे दो मिनट बात की जा सके।

आज माधुरी स्टेज पर- मैं आज आप सभी को अपने १५ साल के अनुभव को बताना चाहती हूँ, मेरा परिवार, मेरे आदर्श मेरे प्रेरणास्रोत सब मेरे सामने बैठे है। सबके सामने आज मैं अपनी जिंदगी के सफर को बांट रही हूँ- १५ साल पहले एक दिन शाम को जब मैंने अपने मन की बात रॉबिन को बताई थी, आज भी वो शाम मेरी आँखों के सामने से गुजर रही है-

शाम का समय जब रॉबिन घर आते है-

सुनिए एक बात करनी थी????

क्या हुआ- रॉबिन बोलता है।

कुछ नहीं मेरे लायक आपके ऑफिस में कोई काम नहीं है क्या?? यहां कोई बात चीत करने वाला तक नहीं है, मैं दिन भर घर में बैठे बैठे बोर हो जाती हूँ।

रॉबिन- मैं समझ रहा हूँ, तुम्हें कहीं घुमाने तक नहीं ले जा पाया आज तक मैं। ऐसा करता हूँ, चलो मामा के गैराज से एक गाड़ी लेकर चलते है, तुम्हें बिनीपेग की सैर कराता हूँ, इस वीक एन्ड पर। थोड़ा आउटिंग भी हो जाएगी और मैं भी काम धाम से थक गया हूँ। थोड़ा मूड फ्रेश हो जाएगा।

मैं खुशी से! चलो अच्छा है, मैंने भी केवल किताबों में ही पढ़ा है, कनाडा के शहरों के बारे में। आपके साथ मैं देख भी लूँगी। लेकिन आप मेरे बारे में सीरियसली कुछ सोचिए। मैं भी अपना कुछ काम शुरू करना चाहती हूँ, व्यस्त रहूंगी तो कोई प्रॉब्लम नही होगा।

रॉबिन- ठीक है! देखेंगे, चलो अभी तैयारी करो इस वीकेंड को एन्जॉय करने चलेंगे। तुम्हें अच्छा लगेगा।

जी ठीक है...........

और दोनों वीकेंड को घूमने के लिए जाते है, बस यही ट्रिप तो मेरे जीवन की ऐसी ट्रिप थी जिसने मेरा पूरा जीवन ही परिवर्तित कर दिया। जिसने एक नया रास्ता दिखा दिया, एक नई डगर दिखा दी और जिंदगी को नए आयाम दे दिए...

वो वीकेंड तो जैसे रॉबिन मेरे पति और मेरे लिए एक अलग दुनिया से कम नहीं था। हम दोनों को ऐसा लग रहा था जैसे हम अपने ही देश में पहुँच गए है, चारो तरफ अपने ही देश के सैलानी देख मेरा मन तो खुशी से झूम उठा था, तभी तो इस शहर से और यहाँ के लोगो से प्यार हो गया था। उस ट्रिप में मुझे जरा सा भी ये एहसास नहीं हुआ था कि ये कोई दूसरा देश है। लेकिन कुछ तो हम दोनों को खटक रहा था जिसके लिए उसे क्या करना चाहिए यही पूरे टाइम मै सोंच रही थी।

बहुत मज़े किए तीन दिन हमने, रॉबिन का साथ और बिनीपेग की हसीन वादियां और वहाँ ढेर सारे अपने लोगो से मुलाकात। बस तीन दिन अगर हमने कुछ मिस किया था तो वो था अपने हाथ का बनाया हुआ शुद्ध घर का भारतीय दाल, चावल रोटी और सब्जी।

लौटकर मैंने मेरे पति से बोला था- बहुत अच्छा था जी! तीन दिन मजा आ गया आपके साथ।

तब रॉबिन ने यही कहा था- हाँ! इतने दिनों बाद मैंने भी पहली बार तुम्हारे साथ इतना समय बिताया और बहुत एन्जॉय किया, लेकिन मैंने यार अपने घर का खाना बहुत मिस किया। आज जरा अपने हाथ का बढ़िया खाना खिला दो प्लीज। बस यही बात तो मुझे परेशान कर रही थी।

खैर मैंने रॉबिन के लिए खाना बनाया जरूर, लेकिन मेरे दिमाग में यही चल रहा था, कि अगर अपने देश का खाना हमने मिस किया तो जाहिर सी बात है कि जो लोग अपने देश से यहाँ घूमने या काम करने आते होंगे वो भी अपने देश का खाना और कल्चर जरूर मिस करते होंगे। बस वही बात मैंने डिनर पर रॉबिन से कह डाली।

रॉबिन हमेशा ही मेरे बनाये खाने की तारीफ करते थे उस दिन भी जैसे ही अपने घर के खाने का एक निवाला रॉबिन के मुँह के अंदर गया वो ख़ुशी से झूम उठे, बरबस इनके मुँह से निकल गया कि कुछ भी कह लो यार अपने देश जैसा खाना कहीं नहीं है।

बस यही तो टाइम था कि मैंने इनसे बोला सुनो जी! यही तो मैं भी सोंच रही थी कि हम तीन दिन के लिए बाहर गए तो हमने अपना खाना कितना मिस किया। जो लोग यहाँ ज्यादा दिन के लिए घूमने या नौकरी करने आते होंगे, वे कितना मिस करते होंगे।

हाँ यार! ये तो मैंने कभी सोचा ही नहीं। बिलकुल सही कह रहे हो तुम....

हमें कुछ करना चाहिए? मेरे और रॉबिन के बीच खूब बाते हुई-

रॉबिन - लेकिन, हम क्या कर सकते है इसमें।

माधुरी- अगर आप बोलो तो मेरे पास एक आईडिया है, अगर आप गुस्सा न करो तो मैं बोलूं आपसे।

 रॉबिन- अरे ऐसे क्यों बोल रहे हो। बताओ अगर कुछ तुम्हारे मन में है तो..... प्लीज!!

माधुरी- क्या हम अपना एक छोटा सा भारतीय व्यंजनों का ढाबा खोल ले। देखिए सामान तो मिल ही जाता है। वैसे भी मैं खाली ही हूँ, शुरुआत में मैं खुद ही संभाल लूंगी और अगर हमारा ढाबा चल जाता है तो बढ़ा लेंगे स्टाफ।

रॉबिन - क्या बोल रही हो तुम! अब तुम ढाबा चलाओगी यहाँ। ऐसे नहीं ओपन कर सकते, बहुत अप्रूवल लेने पड़ते है। फिर अपने पास जगह ही कहाँ है। इतना कुछ नहीं हो पायेगा। यही सब कहते कहते अपने कमरे में चला जाता है।

माधुरी- खाना बर्तन करके बेड रूम में जाती है तो वहाँ रॉबिन नहीं मिलते है।

दूसरे कमरे में देखा तो रॉबिन मामा जी के पास बैठे है, और बात कर रहे है। दरवाजे की आवाज सुनकर रॉबिन पीछे देखते है तो मैं खड़ी दिखती हूँ

मैं हिचकते हुए बोली कि आपको कमरे में नहीं देखा तो मै बस देखने चली आयी थी।

मामा जी ने मुझे बुलाया और बोला- नहीं बेटे ! ऐसी कोई बात न है, तू आ जा। आ मेरे पास बैठ। तू तो बहुत होशियार है बेटा ! रॉबिन अभी बता रहा था कि तू अपना होटल खोलना चाह रही है, बहुत अच्छी बात है बेटे। पराये देश में अपने देश के लोगो की सेवा करने का बीड़ा तूने उठाने की सोंची है। बहुत अच्छी बात है। मै तो तेरे साथ हूँ, यही समझा रहा था इसको कि मेरे गैराज के बगल जो मेरा ऑफिस है उसमे होटल खोल ले। वैसे भी अब मैं ज्यादा देर दो बैठ नहीं पाता, बंद ही रहता है, वो ऑफिस। मामा जी के यही शब्द तो मुझे और प्रेरित करने लगे थे आगे बढ़ने के लिए।

रॉबिन को शायद उस समय सब बहुत कठिन लग रहा था इसीलिए वे मामा जी से खर्चे और परमिशन को लेकर बहुत परेशान हो रहे थे।

मामा जी ने रॉबिन से बोला- तू उसकी फ़िक्र न कर। मैं एक साहब को जानता हूँ, जो हमारी मदद करेंगे, उनकी गाड़ी जो पिछले दसों साल से जो बना रहा हूँ। मैं कल ही बात करके सब कागज पत्तर तैयार करवा लूँगा। बाकी का तू देख ले, क्या क्या और करना है बहू के साथ। थोड़े पैसे तो है मेरे पास और कुछ मेरे गैराज पर तुझे बैंक से मिल जायेंगे।

रॉबिन बैंक से पैसे लेने के पक्ष में न थे इसीलिए तो थोड़ा हिचकिचा रहे थे।

लेकिन मामा जी ने रॉबिन को समझाया- तू फ़िकर न कर बेटे। नेक काम में कभी भी घाटा नहीं होता है, हमेशा बरकक्त होती है। बहू ने सोचा है तो सब ऊपर वाला करेगा।

मैं मन ही मन में बहुत खुश हुई थी, कि मेरी बात को मानकर हमारे घर वाले एक नया बिजनेस शुरू कर रहे है। विदेश में मैं अपने हाथ का खाना सबको खिलाऊंगी यही मेरे मन में चल रहा था।

दूसरे दिन सुबह से ही सब लोग अपने अपने काम पर लग जाते है, और मैं और मामा जी के ऑफिस में कैसे कैसे क्या सेटअप बनाना है, उसकी तैयारी करने लगते है।

मामा जी के इतने सालों की गैराज की मेहनत और रॉबिन का दिमाग साथ में मेरा पीछे पीछे साथ। सबके एकसाथ मिल जाने से जो कठिन दिखने वाले काम थे वो ऐसे ही चुटकी बजाते ही पूरे हो गए। यही कहते है अगर दृढ़ निश्चय और पक्का इरादा हो तो सब काम आसान हो जाता है।

थोड़ा समय लगा लेकिन आखिरकार वो दिन आ ही गया जिसका इंतज़ार था। मेरा सपना साकार होने जा रहा था। सब तैयारी हो गई और एक छोटा सा रेस्ट्रोरेन्ट उद्घाटन के लिए तैयार हो गया था। बहुत प्यार से मैंने अपने ढाबे का नाम सोचा- विदेश में स्वदेस (घर जैसा खाना)। फिर क्या था इसी नाम का बोर्ड बनकर आ गया और उद्घाटन के लिए मामा जी ने शहर के एक प्रतिष्ठित भारतीय बिजनेसमैन को बुलाया। सबकुछ बहुत अच्छे से हो गया।

शाम को मामा जी और रॉबिन ने कहा- देखो बेटा हमारा काम यहीं तक था। अब तुम अपने हिसाब से अपना होटल चलाओ।

मेरा सपना तो साकार हो गया था लेकिन अब आगे तो सब मुझे ही ले जाना था, इसीलिए कहीं न कहीं मन मे बहुत डर भी था कि मैं अपने परिवार की अपेक्षाओं पर खरी उतर भी पाऊँगी या नहीं? 

दूसरा दिन, तीसरा दिन और ऐसे ही शुरुआत के पंद्रह दिन फिर महीने भर तो ऐसे निकल गए कि जितना भी खाना बनता था वो ही पूरा नहीं इस्तेमाल हो पाता था। मेरा सब्र जवाब देने लगा था। और वो शाम जिसने मेरे विश्वास को और पक्का कर दिया कैसे भूल सकती हूँ। मुझे शाम को पूरे महीने का हिसाब रॉबिन को देना था

शाम को मैंने पूरे महीने का हिसाब रॉबिन को दिया तो रेस्ट्रोरेंट ५०% घाटे में चल रहा था। वो समय ऐसा था कि मुझे किसी अपने की जरूरत थी और रॉबिन ने वहाँ मेरा साथ दिया, नहीं तो शायद वहीं ये खत्म हो गया होता।

मैंने बोला- सुनिए लगता है मैं नहीं चला पाऊँगी???

रॉबिन- सहारा देते हुए? तुम्हें इतनी जल्दी हार मानने की जरूरत नहीं है। इतना घाटा नहीं है, बस ये बताओ जो लोग आ रहे है वो तुम्हारे खाने से संतुष्ट है या नहीं और वे वापस आ रहे है या नहीं??? 

मैंने बोला- बस! वही लोग तो आ रहे है, जो रोज आते है और बहुत बढ़ाई करके जाते है। दूसरे तो कोई आ ही नहीं रहे है।

हमें कुछ और तरीका सोचना पड़ेगा, शायद लोगों को हमारे होटल के बारे में जानकारी नहीं है, इसी कारण वही लोग बार बार आते है जिनको पता है। ऐसा रॉबिन ने बोला।

मुझे नहीं पता, फिर ये और मामा जी के साथ मिलकर एक प्लान बनाया और वीकएंड पर मार्केट में जाकर अपने रेस्ट्रोरेंट का प्रचार प्रसार करने लगे। जो भी अपने देश के लोग दिखते, उन्हें पर्चे देते और रेस्ट्रोरेंट के बारे में बताते। देखते ही देखते लोगों की भीड़ धीरे धीरे बढ़ने लगी और बिजनेस भी अच्छा होने लगा। अगले छः महीनों में ही मेरे के रेस्ट्रोरेंट की इनकम डबल हो गयी। अब तो मामा जी ने भी रेस्ट्रोरेंट में टाइम देना शुरू कर दिया और गैराज को थोड़ा और छोटा कर रेस्ट्रोरेंट को बढ़ा लिया।

रेस्ट्रोरेंट से इनकम से ज्यादा लोगों की संतुष्टि और अपने देश का प्यार बहुत उत्साहित करने लगा था मुझे और मामा जी को। मैंने हमेशा से ही अपने काम में गुणवत्ता और लोगों की पसंद का ध्यान रखा। समय के साथ साथ हमने और स्टाफ भी बढ़ाया, उनकी अच्छे से ट्रेनिंग की और साथ ही जगह भी बढ़ा ली। कुछ न कुछ और भी चीजें जुड़ती गयी लेकिन विदेश में स्वदेश का स्वाद कभी खत्म न हुआ। हॉल में सब लोग तालियां बजाने लगते है।

आज विदेश में स्वदेश के १५ साल पूरे हो गए है, और माधुरी को बेस्ट इंडियन फूड इंटरप्रेन्योर के अवार्ड से नवाजा जा रहा है। दर्शक दीर्घा में बैठे रॉबिन और व्हील चेयर पर मामा जी के साथ रॉबिन के दोनों बच्चे आज माधुरी के त्याग, मेहनत और दृढ़ निश्चय पर फक्र कर रहे है। आज सबको अपनी कहानी सुनाकर माधुरी ने सबका दिल जीत लिया है। पूरे हॉल में बैठे सभी लोग खड़े होकर तालियों से माधुरी का अभिवादन करते है। माधुरी की आँखों में अपने देश के प्रति भावना और सम्मान दोनों ही दिख रहे है।

 



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational