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Devendra Tripathi

Abstract Tragedy Inspirational

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Devendra Tripathi

Abstract Tragedy Inspirational

कच्चे रास्ते पक्के इरादे..

कच्चे रास्ते पक्के इरादे..

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"अनु की माँ! अरे सुनती हो.... जल्दी से टिफिन पैक कर दो मेरा आज थोड़ा जल्दी जाना है, मुझे..... आज नए साहब आये है तो मीटिंग है।"- बाथरूम से ही चिल्लाकर विजयकांत बोल रहे है।

मालती- "अरे सुन रही हूँ कोई बहरी नही हुई हूँ अभी तक...सुबह से उठकर इधर उधर चाय पी रहे है, टहल रहे है और न्यूज़ पेपर पढ़ रहे है तो लेट नही हो रहा था.... बस घर के अंदर घुसे नही की लेट होने लगा...".

मोहिनी- "मम्मी, पापा को ऐसे मत बोला करो प्लीज.... मुझे अच्छा नही लगता...."

"हाँ हाँ सब गलती तो मेरी ही है न...तुमको भी सर पर चढ़ा कर रखा है... इसीलिए बोली निकलती है।"- मालती गुस्से में बोलती है। 

मेरी वैन आ गयी है, मैं जा रही हूँ मम्मी... बोलते हुए मोहिनी स्कूल के लिए निकल जाती है। अनु भी आँख मीसते हुए बिस्तर से उठकर आकर किचन में खड़ी हो जाती है।

मम्मी भूख लगी है....रोते हुए....अनु रो रही है.....

"दो दो बच्चे सबको तैयार करना, सबकी हर ख्वाहिश पूरी करना बस यही मेरी जिंदगी में बचा है... किसी को मेरी कोई फिक्र ही कहाँ है... बस सबको आराम ही चाहिए... मुझसे कोई नही पूँछता क्या चाहिए.....क्या पसन्द है मुझे????? बस सबकी सुनो और कुछ मत बोलो।"- मालती झुलझुलाई हुई बड़बड़ा रही है।

उधर बाथरूम से निकलते हुए विजयकांत मालती को गुस्से में देख- "अरे क्या हो गया मालती! सुबह सुबह क्यों सबपर नाराज हो रही हो?"

"कुछ नही! आपको कोई चीज समझ मे ही कहाँ आती है? बस आप तो अपनी नौकरी करिए.... एक मंगलसूत्र मेरा टूटा हुआ है, पिछले एक महीने से और किसी के पास टाइम ही नही है कि उसे चलकर ठीक करवा दे। मैं भी सबकी तरह नौकरी कर रही होती तो मुझे भी किसी का आसरा नही करना पड़ता...." (एक ही सुर में मालती बिफर जाती है।)

विजयकांत- "मालती! तुम तो जानती हो न कि पुलिस की नौकरी में छुट्टी कहाँ मिलती है... अच्छा पक्का आज शाम को आते ही मैं तुम्हारे साथ सुनार की दुकान पर चलूँगा।"

मालती- "यही टेपरिकार्ड तो मैं महीने भर से सुन रही हूँ।"

विजयकांत- "आज पक्का मालती!"

लेकिन मालती का गुस्सा थमने का नाम ही नही ले रहा है, और गुस्से में रोती हुई अनु को पीटने लगती है। विजयकांत गुस्से से बिना नाश्ता किये और टिफिन लिए हुए ही अपनी मोटरसाइकिल स्टार्ट कर आफिस के लिए निकल जाते है।

थोड़ी देर बाद जब मालती को अपनी गलती का एहसास होता है तो वह फूट फूट कर रोने लगती है और अनु को तैयार कर विजयकांत के पुलिस स्टेशन पर टिफिन देने के लिए चली जाती है।

जैसा कि विजयकांत ने बताया था कि आज नए साहब आने वाले है और उनके साथ मीटिंग है। तो विजयकांत मीटिंग में है और मालती की मुलाकात विजयकांत से नही हो पाती।

टिफिन विजयकांत की टेबल पर रखकर मालती घर की ओर निकलती है लेकिन उसके मन मे एक प्रयाश्चित के साथ ग्लानि भी हो रही है कि आज उसने सुबह सुबह ही अपने पति का अनादर किया है।

मन मे यही सब सोचती हुई मालती घर पहुंचती है और आज वह खुद भी खाना नही खाती है। सिर्फ बच्चों को खाना खिला विजयकांत के आने का इंतज़ार करती है।

विजयकांत एक गाँव के गरीब परिवार से है और पुलिस की नौकरी मिल जाने से घर की स्थिति सुधर गयी है। माँ तो बहुत पहले ही गुजर गई थी पिता जी है वह गाँव मे ही रहते है। मालती एक पढ़े लिखे माध्यम परिवार से है और उसके मायके पक्ष के लोग थोड़ा विजयकांत के परिवार से एडवांस है। इसलिए अक्सर ही इन सब चीजों को लेकर विजयकांत और मालती में छोटी मोटी खुटपुट होती रहती है, लेकिन फिर जिंदगी पैराये पर आ जाती है और सबकुछ सही चलने लगता है।

विजयकांत और मालती की दो बेटियाँ है, एक वजह घर मे लड़ाई की यह भी है कि मालती को एक बेटा चाहिए लेकिन तनख्वाह और खर्चे देखकर विजयकांत और बच्चे के लिए तैयार नही है। वह इन्ही दोनों लड़कियों को पढा लिखा कर बहुत बड़ी अफसर बनाना चाहते है। मालती के मन मे अक्सर ही यह कसक रहती है कि वह कितनी अभागन है कि एक बेटा पैदा न कर सकी। आखिर अनु के गर्भकाल के समय मे क्या क्या नही किया था उसने...... कहाँ कहाँ विजयकांत के साथ घूमी थी। बहुत साधुओं और खरपतवार वाली दवाइयां जो भी किसी ने बताया था सबकुछ किया था लेकिन बेटी ही पैदा हो गयी।

इसीलिए तो अक्सर ही अनु को मालती पीटती रहती है और पंसद भी नही करती। आज के आठ साल पहले दोनों की शादी हुई थी और तब तो विजयकांत की भर्ती कॉन्स्टेबल की पोस्ट पर ही हुई थी और उसी के कारण ही जल्द ही दोनों की शादी हो गयी थी। बड़ी बेटी मोहिनी की उम्र लगभग ७ साल की है और अनु की उम्र ३ साल की है।

विजयकांत क्योंकि एक गरीब परिवार से आता है इसलिए उसके अंदर मेहनत और ईमानदारी कूट कूट कर भरी हुई है, शायद इसीलिए बहुत से लोग विजयकांत को पसन्द करते है और साथ ही बहुत से ऐसे लोग है जो विजयकांत के बड़े दुश्मन है। आखिर क्यों न हो अभी पिछले साल ही तो विजयकांत ने अपनी बहादुरी से करोड़ो का गैरकानूनी सामान जो जब्त करवाया था, तब से विजयकांत के चर्चे हर जगह ही होते है और उसी की वजह से उसका प्रोमोशन भी तो हुआ था.....

लेकिन विजयकांत अपने परिवार की अपेक्षाओं पर खरा नही उतर पा रहा है इसीलिए वह हमेशा परेशान रहता है और अपने परिवार के लिए दिनों रात मेहनत करता है लेकिन अपने पद और नौकरी के साथ गद्दारी नही कर पाता।

आज की मीटिंग में विजयकांत अपने अंदर ही घुट रहा है और उसे यही लग रहा है कि न तो वह अपने परिवार का ही ध्यान रख पाए रहा है और न ही डिपार्टमेंट का काम सही से कर पा रहा है। आज समीक्षा बैठक में एसपी साहब से एक केस में कोई प्रगति न होने के कारण उसे फटकार पड़ गयी और अगले चौबीस घण्टे में केस को खत्म करने का अल्टीमेटम मिल गया है।

दूसरी ओर मालती को अगर आज बाजार लेकर नही जा पाया तो घर मे पता नही क्या आँधी तूफान आ जायेगा.... इन्ही सब बातों को लेकर विजयकांत काफी परेशान है।

मीटिंग से बाहर निकल अपनी डेस्क पर खाने का डिब्बा देख एक बार फिर मालती पर विजय को प्यार आ जाता है। सुबह कुछ नही खाया था तो भूख भी बहुत जोर की लगी हुई है, इसलिए तुरन्त ही टिफिन खोलकर खाने के लिए बैठ जाता है।

दूसरा कॉन्स्टेबल- "सर, आपकी वाइफ कितनी अच्छी है....आप टिफिन भूल गए थे तो वही लेकर आई थी..... थोड़ा परेशान दिख रही है और बार बार आपको पूँछ रही थी... बोली है साहब से कह दीजिएगा कि एक बार बात कर लेंगे मुझसे..."

विजय- "हाँ भाई! पत्नियों का प्यार और लड़ाई कोई समझ नही सकता कि कब और कहाँ हो जाये..."

"सो तो है सर! आप एकदम सही बोल रहे है, मेरी वाली भी रोज ही किचकिच करती है घूमने के लिए... अब साहब कहाँ लेकर जाए इस नौकरी से छुट्टी ही कहाँ मिलती है।"- कॉन्स्टेबल बोलता है।

"भाई! ऐसे बीत जाएगा, खट्टी मिट्ठी यादों में... धीरे धीरे ऐसे जिंदगी कट जाएगी भाई.....आ जाओ तुम भी खा लो"- विजयकांत बोलता है।

खाना खाते ही विजयकांत मालती को फ़ोन करने जाता है--

फ़ोन बजता है और मोहिनी फ़ोन उठाती है-

हेलो! बेटा मैं पापा बोल रहा हूँ, तुम स्कूल से वापस आ गए क्या... बेटा मम्मी से बात कराना....

मोहिनी- जी पापा! बुलाती हूँ, वो दूसरे कमरे में बैठी है और आज अभी तक खाना भी नही खाया है... आप दोनों की फिर लड़ाई हुई है क्या....

विजयकांत- नही बेटा! अभी बात कर लेता हूँ... जरा मम्मी को फ़ोन देना....

मम्मी मम्मी..... पापा का फ़ोन है... और फ़ोन मालती को देकर मोहिनी अनु के साथ खेलने लगती है.....

हेलो! मालती...

मालती- "फ़ोन पर ही भभककर रोने लगती है..... मुझे माफ़ कर दीजिए प्लीज.... मुझसे गलती हो गयी.... पता नही मुझे क्या हो गया था जो आप पर सुबह सुबह गुस्सा हो गयी... प्लीज मुझे माफ़ कर दीजिए....."

विजयकांत- "अरे पागल! ऐसे क्यों बोल रही हो... कुछ नही मैं गुस्सा नही हूँ... मेरी ही गलती है जो मैं अपने परिवार की जरूरतों का खयाल नही रख पाता... प्लीज मुझे तुम माफ कर दो।"

मालती- "कैसी बाते करते हो जी! मुझे और पापी न बनाइये... मुझे माफ़ कर दीजिए। आज के बाद अब आपको मुझसे कोई शिकायत नही मिलेगी। मुझे नही चाहिए कोई गहना और पैसा बस आपका प्यार चाहिए मुझे...."

विजयकांत- "क्या बोल रही हो... मैं कहाँ जा रहा हूँ... तुम्हारे पास ही तो हूँ मैं.....एक चीज और मैंने सोचा है कि अबसे मैं तुम्हे तुम्हारे खर्चे के लिए अलग से पैसे दे दिया करूँगा, जिससे तुम कम से कम अपने काम कर लिया करो।"

मालती- "मुझे कुछ नही चाहिए.... बस आपका साथ चाहिए।..."

विजयकांत- "मैंने खाना खा लिया है, अब तुम भी कुछ खा लो.... मोहिनी बता रही थी कि अभी तक तुमने कुछ खाया भी नही है..."

मालती- "खा लूंगी मैं.. आप परेशान मत होइए.. और हाँ आपको जब फुरसत होगी तब मैं अपना मंगलसूत्र सही करवा लूंगी.. आपको आने की जरूरत नही है।"

विजयकांत- "एक केस में फंसा हुआ हूँ, आज एसपी सर ने भी बहुत डांट लगाई है और अगले २४ घण्टे में केस को सॉल्व करने का टाइम लाइन दिया है... मुझे समझ नही आ रहा है क्या करूँ...."

मालती- "आप अपना काम देख लीजिए... रात तक तो आ जाएंगे... आज आपकी पसन्द का खाना बनाउंगी...."

विजयकांत- "अच्छा जी! अब आप इतना अच्छा खाना बनाओगी तो आना ही पड़ेगा... देखो जैसे ही काम खत्म होगा मैं आ जाऊंगा... तुम बच्चों का ख्याल रखना।"

मालती- "जी! अपना ध्यान रखिएगा..... मैं इंतज़ार करूँगी आपका।।"

और दोनों एक सुकून भरी सांस लेते हुए फ़ोन रखते है, और दोनों को ऐसा लगता है कि जैसे बहुत बड़ा कोई बोझ सिर से उतर गया है। मालती अपने काम मे लग जाती है और विजयकांत अपने काम मे लग जाता है........

शाम के पाँच बज चुके है... मालती तैयार होकर विजयकांत के लिए उसकी पसन्द का खाना बनाने में लग जाती है और विजयकांत केस के सिलसिले में फील्ड में रहते है।

केस को सॉल्व करने के लिए विजयकांत और उसकी टीम जान लगाकर काम कर रही है, कि अचानक विजयकांत की टीम को एक सुराग मिलता है और विजयकांत रात के ९ बजे के आसपास टीम लेकर पहुँचते है और पूरी गिरोह को पकड़ लेते है।

विजयकांत की खुशी का ठिकाना नही होता है और वह तुरन्त की थाने आकर अपनी बाइक उठाकर मिठाई की दुकान पर पहुँचते है और अपने बच्चों और मालती की पसन्द की मिठाई खरीदते है। मिठाई खरीदकर बाइक से घर की ओर निकलते है, लेकिन भगवान को कुछ और ही मंजूर था... शायद विजयकांत जैसा होनहार, ईमानदार और साहसी सिपाही नही चाहिए था... सामने से आती हुई एक तेज़ ट्रक विजयकांत को कुचलती हुई निकल गयी.... विजयकांत के सिर में बहुत ज्यादा चोट लगने से तुरन्त ही उनकी मृत्यु हो गयी....

उन्हें अस्पताल ले जाया गया, जहाँ डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया....रात के ११ बजने को थे विजयकांत की कोई सूचना न मिलने पर मालती थाने फोन करती है तो उसे पता चलता है कि विजयकांत सर का एक्सीडेंट हो गया है और उन्हें अस्पताल ले जाया गया है.... मालती ये सुनकर खड़ी की खड़ी ही रह जाती है और उसके जुबान से हे भगवान मैं क्या करूँ की आवाज निकलती है......

इतने में थाने की जीप विजयकांत के घर के सामने आकर खड़ी होती है, और मालती को अस्पताल चलने के लिए बोलते है... मालती मोहिनी और अनु को गोदी लेकर जीप में बैठकर अस्पताल के लिये निकलती है...बहुत से सवाल सबसे कर रही है लेकिन कोई उसका जबाब नही दे रहा है...........

अस्पताल पहुँचते ही वहाँ का नज़ारा देख मालती की आँखे फ़टी की फटी रह जाती है। खून में लतपत विजयकांत को देख मालती बेहोश हो जाती है। मोहिनी और अनु को पुलिस वाले संभाल रहे है लेकिन मोहिनी तो थोड़ी समझदार है और वह सबसे यही बार बार पूँछ रही है कि मेरे पापा को क्या हुआ? मेरे पापा को क्या हुआ?

हर कोई यही बता रहा है कि अभी डॉक्टर देख रहे है, सब ठीक हो जाएगा। थोड़ी देर में मालती उठती है और विजयकांत के पास- 

"सुनिए! सुनिए.... क्या हुआ आपको....कुछ बोलते क्यों नही है आप.... मैंने आपके लिए आपकी पसन्द का खाना बनाया है... अभी तक मैंने भी नही खाया है.... चलिए साथ मे खाना खाते है... आप कुछ बोल क्यों नही रहे है.... प्लीज कुछ बोलिए न.... डॉक्टर देखिए इनको कुछ बोल क्यों नही रहे है......

डॉक्टर- अपने आप को संभालिये.... आई एम सॉरी... अब ये नही रहे.....

मालती- अरे ऐसे कैसे? अभी तो शाम को इन्होंने बोला था कि तुम मेरी पसन्द का खाना बनाओ मैं अभी आ रहा हूँ...

डॉक्टर- आप संभालिये अपने आप को... आपके बच्चों को आपकी जरूरत है.... अब ये नही रहे.... 

इतना सुनते ही मानो मालती की आँखों के सामने अँधेरा छा जाता है। पूरे थाने के लोग और जिले के अधिकारी भी आ गए है। विजयकांत के घर भी सूचना पहुँचा दी गयी है, और एक टीम उनके पिता जी को लेने चली गयी है। 

इधर मालती का रो रो कर बुरा हाल है, आँखों के सामने कुछ दिखाई नही दे रहा है। क्या क्या सपने सँजोये थे.... पता नही क्या होगा... सबकुछ अंधकार मय लग रहा है।

सुबह होते ही घर से विजयकांत के पिताजी भी आ जाते है... मालती तो मानो बेहोश ही है और बच्चों का होश भी नही है....

अपने मम्मी और बाबा को रोते हुए देख मोहिनी और अनु भी रो रहे है.... मालती का मंगलसूत्र टूटा ही रह गया.... ये भगवान ने क्या कर दिया.... बस यही कहकर रोये ही जा रही है.... 

विजयकांत को पूरे सम्मान के साथ विदाई दी जाती है साथ ही मालती को विजयकांत की जगह पर नौकरी का लेटर भी.....

मालती के सामने तो आसमान ही फट गया है....कुछ नही सूझ रहा है... कभी घर से बाहर नही निकली और अब नौकरी कैसे करेगी... लेकिन भूख और बच्चों की खातिर मालती को निकलना ही होगा...

दोनों बच्चों को बार बार देखकर मालती के आँसू रुकने के नाम ही नही ले रहे है..... अभी उम्र ही क्या है मालती की....

लेकिन जिंदगी में क्या लिखा है किसी को नही पता है.... क्या कल तक सब सही था... और आज क्या से क्या हो गया.... एक पत्नी का सुहाग, दो बच्चों का पिता और एक बूढ़े बाप का सपना सबकुछ उजड़ गया है। बूढ़े बाप का सहारा चला गया, यही सोच कर रो रहा है कि जिसको जाना था वो नही गया...भगवान ने यह क्या किया? क्यों किया?.... लेकिन कोई जबाब नही है.....

अब तो विजयकांत के पिताजी ने भी मालती के साथ रहने का फैसला कर लिया है..….. 

मालती को अगले महीने ही नौकरी जॉइन करनी है। धीरे धीरे समय के साथ सबकुछ ठीक सा होने लगा है.. अगर किसी को विजयकांत की ज़रूरत लगती है तो सिर्फ मालती, और बच्चों को....

मालती के सामने बहुत बड़ी जिंदगी पड़ी है...अभी एक महीने भी विजयकांत को मरे हुए नही है और आसपड़ोस और रिश्तेदारों में यही बातचीत होने लगी कि मालती की दूसरी शादी करवा देनी चाहिए.... हर किसी की जुबान पर यही है कि अगर मालती की शादी हो जाएगी तो दोनों लड़कियो की जिंदगी बन जाएगी नही तो दोनों बेकार हो जाएगी। 

घर मे बहुत से लोग आते और सभी लोग विजयकांत के पिता जी को यही समझाकर चले जाते कि बहू की दूसरी शादी करवा दीजिए बहुत से लोग मिल जायेंगे जो मालती से शादी करने को तैयार हो जायेगें.....

एक दिन शाम को विजयकांत के पिता जी मालती से.....

बेटा- "एक बार पूँछना चाहता हूँ, तुमसे..... जो चला गया बेटा वापस नही आएगा... अभी तो तुम्हारी उम्र ही क्या है??? दो दो बेटियाँ है और मेरा भी क्या सहारा... कब भगवान का बुलावा आया जाए.....तुम अगर उचित समझो तो...... और जोर जोर से रोने लगते है.... दूसरी शादी कर लो....."

मालती- "पिता जी यह क्या बोल रहे है..... और आप ऐसे कैसे बोल रहे है.... विजय मेरी जिंदगी थे अब मेरे जिंदगी में कोई दूसरा उनकी जगह नही ले सकता.....अब मेरी जिंदगी में आप लोग ही है... मोहिनी और अनु को पढ़ा लिखा कर बहुत बड़ी अफसर बनाना ही मेरी जिंदगी का अब मकसद रह गया है.... उसके लिए मुझे चाहे जो भी करना पड़े।"

पिता जी उठकर मालती और बच्चों को अपने गले से लगा लेते है, और भावुक होकर रोने लगते है....... 

बूढ़ी आँखों मे एक अलग ही आस थी कि विजयकांत की यादें इसी घर मे रहेंगी...... 

मालती ने पुलिस में फोर्थ क्लास में नौकरी जॉइन कर ली। दूसरी ओर विजयकांत की पेंशन भी मिलने लगी है.... बच्चों की जिंदगी और उनके भविष्य को देखते हुए मालती का नौकरी करना बहुत जरूरी था लेकिन फोर्थ क्लास की नौकरी..... शायद मालती ने कभी जिंदगी में ये तो नही सोचा था......

खैर, जिंदगी कहाँ और कैसे ले जाये किसी को नही पता...... मालती जिसे विजयकांत एक रानी की तरह रखने की कोशिश करता था आज वह बच्चों के सुनहरे भविष्य के लिए एक चपरासी की नौकरी करने के लिए मजबूर हो गयी है......

ऐसा नही था कि मालती को नौकरी करने में कोई परेशानी थी लेकिन सबकुछ सहते हुए.... लोगो की बातें, चारो ओर से उठती हुई आँखे जो उसे तरेर रही है, हर कोई उसे नोचने के लिए तैयार खड़ा है..... और दुनिया की बातें जो मालती के दिल को छलनी करती है..... अपने मे कुढ़ती है, रोती है, अपनी किस्मत को कोसती है, लेकिन वक्त के आगे मजबूर है, और सब सहकर अपने बच्चों के भविष्य के लिए काम करती जा रही है...…....

रोज सुबह उठकर विजयकांत की फ़ोटो पर घण्टो खड़ी अपने आप से बाते किया करती है और रोज यही विश्वास अपने आप को दिलाती है कि आपको खुश तो नही रख पाई लेकिन आपका सपना जरूर पूरी करूँगी... चाहे किसी हद तक क्यों न जाना पड़े.....

जैसे जैसे समय बीत रहा है... मोहिनी भी बड़ी होने लगी है और अनु भी पढ़ने जाने लगी है.... ऐसा नही है कि मालती की दिक्कतें अब दूर होने लगी है.... दिक्कतों की शुरुआत तो अब होनी शुरू हुई है...हाँ बस एक चीज यह हो गयी है कि अब विजयकांत का जाना सबलोग मान चुके है और बच्चों की पढ़ाई और मालती अपनी नौकरी में व्यस्त सी हो गयी है। 

विजयकांत के पिता जी भी अब कभी मालती के साथ तो कभी अपने गाँव आने जाने लगे है। मालती भी अब पहले से बेहतर महसूस करने लगी है, और सबसे थोड़ा हँसने बोलने लगी है। थोड़ी पढ़ी लिखी जरूर है मालती लेकिन कभी बाहर ऐसे तो निकली नही थी इसलिए उसके व्यवहार में थोड़ा परिवर्तन भी समाज के लिए उसे बदनाम करने का एक बहाना है। थोड़ा हँसी मजाक और तैयार होकर आफिस क्या आने लगी कि पूरे थाने और कॉलोनी में तमाम तरह की बाते शुरु हो गयी। 

जिसका तो अंदाजा भी नही है..... तमाम तरह की बातें.... आसपास की औरतें मालती को देख अक्सर ही एक दूसरे से- 

"अरे अभी पति को मरे हुए दो साल भी न हुए और देखो मालती कैसी बदल गयी..…..आजकल किसी के रहने या न रहने से कोई फर्क नही पड़ता....... देखो! विजयकांत के रहते तो कभी इतना तैयार होकर नही निकलती थी मैडम...... वगैरह वगैरह।"

दो साल में अब थाने में भी थोड़े लोग जान पहचान के हो गए.... कुछ तो ऐसे जो मालती के शरीर पर निगाहें गड़ाएं बैठे रहते थे और कुछ ऐसे जो वाकई मालती के अच्छे शुभचिंतक बन गए है। 

आज भी राते मालती को काटने दौड़ती है, आज भी वह अपने आप को माफ नही कर पाई है.... दिल मे बहुत से ऐसे सवाल कौंध रहे है जिसका कोई जबाब नही मिलता..... विजयकांत की याद में अक्सर ही मालती कमरे में बैठ देर तक रोया करती है। 

धीरे धीरे समय बीतने लगता है दोनों बच्चे भी बड़े होने लगे है, मोहिनी तो अब समझदार हो गयी है तो अनु का ख्याल रख लेती है, उसकी पढ़ाई लिखाई और सब जरूरतों का ख्याल भी रख लेती है। कॉलोनी में भी अब मोहिनी और मालती का आना जाना होने लगा है। कॉलोनी के सब लोग अब मालती को अपने कार्य प्रयोजनों में बुलाने लगे है। सबकुछ एकबार फिर से नार्मल होने लगा है। 

मोहिनी और अनु के ऊपर ही आफिस से आने के बाद पूरा समय मालती देती है। हमेशा उसकी कोशिश यही रहती है कि दोनों को विजयकांत की कमी न खटकने पाए। लेकिन मालती अपने जीवन मे बहुत अकेली हो गयी है, अपने मन की बाते, अपने मन के जज्बात... किससे बताए... कोई तो नही है आस पास इसीलिए जब भी मन मे बहुत कोफ़्त हो जाती है तो अकेले में बैठकर रो लेती है..... आज चार साल होने को आ गए विजयकांत को मरे हुए लेकिन मालती आज भी विजयकांत के ही सपनो में खोई रहती है। 

"-मालती को भी जरूरत है एक ऐसे दोस्त की, एक ऐसे साथी की जो कम स कम उसके बात उसके जज्बात समझ सके.... कोई तो ऐसा हो जो मालती के अंदर चल रहे तमाम आँधियों को शांत कर सके, कोई ऐसा कंधा मिले जिसपर सिर रखकर बहुत देर तक रो सके।"

इन्ही सब झंझावातों में जिंदगी कटती जा रही है और मालती अपने बच्चों के साथ उनके पिता के सपनो को पूरा करने की दिशा में बढ़ने की कोशिश कर रहे है। 

"-दुनिया समाज का क्या... वो तो मालती के बलिदान को न देखते हुए.... सिर्फ आज उसने क्या पहना है... आज वह किसके साथ जा रही है..... उसके बच्चे पढ़ाई कैसे कर ले रहे है....कहाँ से इतने पैसे लेकर आती है.... कुछ चक्कर तो जरूर है.....देखो पति नही रहा तो कैसे तैयार होकर निकलती है.......और भी बहुत कुछ....." यही सब तकियानूसी विचारधारा शायद मालती को इस समाज से लड़ने के लिए और मजबूत करती जा रही है। 

पहले तो यह सब सुनकर मालती फूटफूट कर रोने लगती थी लेकिन अब इन सब चीजों पड़ ध्यान भी नही देती है......चूंकि मोहिनी अब ऐसी अवस्था मे आ गयी है कि उसे भी सब समझ आने लगा है कि कौन क्या बोल रहा है और इसका मतलब क्या है....

एक दिन रात में मोहिनी मालती से......

- मम्मी मुझे आपसे कुछ बात करनी है?

मालती- "हाँ बेटा बताओ क्या बोलना है?"

मोहिनी- "मम्मी आप को लोग ऐसे क्यों बोलते है?"

मालती- "क्या बोलते है बेटा मुझे?"

मोहिनी- "लोग कहते है कि आप बहुत गंदी हो....आप आफिस मत जाया करो मम्मी"

मालती- "बेटा! लोग तो बोलेंगे ही.... और हम सबको मिलकर यही बाते तो बन्द करनी है..... तुम अपनी मम्मी पर विश्वास करती हो न बेटा! और कोई चाहे जो कहे मेरे ऊपर फर्क नही पड़ता। हमे मिलकर पापा के सपनो को पूरा करना है.... जिस दिन तुम और अनु पढ़लिख कर बहुत बड़ी अफसर बन जाओगी मैं जीत जाऊँगी और पापा भी जहाँ होंगे बहुत खुश होंगे।"

मोहिनी- "जी मम्मी! आप बहुत अच्छी है। लोग बोलते है तो मुझे।अच्छा नही लगता है।"

मालती- "बेटा! अब जब काम करने निकले है तो लोग भी मिलेंगे, बातचीत भी होगी और किसी की खुशी में खुश होना या किसी के आदर सत्कार को ठुकराया तो नही जा सकता, जो बहुत लोगो को पसन्द नही आता..... तो हमे कोई फर्क नही पड़ना चाहिए....जिसको पड़े तो पड़ता रहे... उसमे हम क्या कर सकते है।" 

मोहिनी- "माँ आप चिंता मत करिए... हम लोग जरूर पापा का सपना पूरा करेंगे...... लेकिन आप प्लीज हमको छोड़कर कहीं मत जाइयेगा। बहुत डर लगता है मम्मी"

मालती- "मम्मी कहीं नही जा रही है बेटा! मम्मी तुम दोनों के साथ है और मेरी जिंदगी के मकसद अब तुम दोनों का भविष्य ही है।"


मालती आँखों मे आँसू भरे हुए लेकिन एक जिद कुछ कर दिखाने का लिए हुए अपने दोनों बच्चों को गले से लगा लेती है और थपकी देकर सुलाने लगती है। 


मालती की आँखों से झरझर गिर रहे आँसू उसके दिल के दर्द को बयाँ कर रही है। विजयकांत की फ़ोटो देखकर यही पूँछ रही है कि क्यों चले गए हमे छोड़कर.... कितना लड़ूँगी इस समाज से.... क्या इतना कठिन है एक औरत का बाहर निकलकर नौकरी करना......


फिर विजयकांत की कुछ यादों में खो जाती है.......

अरे मालती सुनो! जरा पानी देना.....रात को करीब १२ बजे है, विजयकांत किसी मुठभेड़ से लौटकर आया है।

मालती- "ये क्या हुआ???? आपकी शर्ट पर ये क्या लगा है? खून है क्या??

विजयकांत- "एक पुलिस वाले कि बीबी हो तो इन सबकी आदत डाल लो.. किसी को मारा नही मैंने... लौटते समय एक एक्सीडेंट हो गया था, सो उसे अस्पताल ले जाने में इतनी देरी हो गई।"

मालती- "आपको डर नही लगता है, इन सब से..... गोली, लड़ाई और खूनखराबा????"

विजयकांत- "अरे! पुलिस की नौकरी में सबकुछ करना पड़ता है मैडम! आप भी पुलिस में होती तो आप भी ऐसे ही करती।"

मालती- "बस भी करिए.... मुझे पुलिस वाला थोड़ी न बनना है... बस आप सही सलामत रहे... यही मेरी भगवान से प्रार्थना है।"

विजयकांत- (कपड़े उतरते हुए) क्या करे ऐसा एक्सीडेंट था कि अगर थोड़ा भी लेट हो जाते तो बेचारे की जान चली जाती, इसीलिए जल्दी जल्दी में अपनी गाड़ी पर बिठाकर ही अस्पताल चला गया। जान बच गयी, शर्ट तो दूसरी मिल जाएगी लेकिन अगर उसकी जान चली जाती तो फिर वापस नही आती।

मालती- "चलिये अच्छा है मेरे साहब... मैं खाना लगाती हूँ आपके लिए... आप नहा कर आइए।"

विजयकांत नहाने चला जाता है और मालती रोटी बनाने चली जाती है।

नहाकर विजयकांत बाहर आता है और पीछे से मालती को पकड़ लेता है, कि अचानक मालती की नींद टूटती है और पागलों की तरह विजयकांत को इधर उधर ढूंढने लगती है।

ये कोई पहली रात नही है, मालती के जिंदगी में... ऐसी बहुत सी रातो में विजयकांत के करीब जाना और फिर बिरह में जलना होता है। उलटते पलटते आज की एक रात और कट ही जाती है।

ऐसे देखते देखते दिन कटते जाते है.... और एक दिन पता चलता है कि विजयकांत के पिता जी का भी गाँव मे ही देहांत हो गया है। मालती को हिम्मत देने वाला सहारा भी अब नही रहा। बच्चों के साथ साथ अब गाँव की पूरी जिम्मेदारी भी मालती के कंधों पर आन पड़ी है। लेकिन अपने दुख से सीख ले चुकी मालती इस चुनौती को स्वीकार कर अपनी जिम्मेदारी के प्रति सजग रहती है।

मोहिनी अब दसवी क्लास में पहुँच गयी है और अनु छठी क्लास में..... मालती अब अधेड़ उम्र में सिर्फ अपने बच्चों को हर दिन उनके पापा के सपनो को बताती रहती है। साथ ही आज मालती जिस परिस्थिति से गुजर रही है नही चाहती कि उसकी बेटियाँ भी किसी और पर आश्रित हो या उन्हें किसी अनुकम्पा पर ऐसी नौकरी करनी पड़े जो उनके लायक न हो।

माँ का विश्वास और पापा की अदृश्य शक्ति शायद दोनों बेटियों को उनके सपनों को साकार करने की दिशा दे रहे है...

देखते ही देखते मोहिनी ने बहुत अच्छे अंकों से दसवी की परीक्षा उत्तीर्ण कर लेती है और अगले दो सालों में इंटरमीडिएट की परीक्षा पासकर आई आई टी में सेलेक्ट हो जाती है। साथ ही उसी तरह अनु भी पड़ने में अव्वल आती है और हाई स्कूल की परीक्षा में जनपद में टॉप करती है।

समाज की वही निगाहें जो कल तक माँ और बेटियों को ताने सुना रही थी, आज उनके देखने का नजरिया बदलने लगा है। आज मालती को अपने अतीत को सोचकर ऐसा नही लगता कि उसने कुछ गलत किया है। अपनी बेटियों को एक दिशा देने में सफल रही है। उसे इतना तो पता चला गया है कि विजयकांत और मालती का सपना उनकी यही दोनों लड़कियाँ की पूरा करने जा रही है।

जिस माँ और परिवार को कोई पूँछता नही था आज वह इस शहर के लिए बहुत खास हो गया है। न्यूज़पेपर से लेकर मीडिया तक आज मालती के किस्से सुनाए जा रहे है।

लेकिन क्या मालती, मोहिनी और अनु के लिए सफलता है या इससे आगे कुछ और? शायद कुछ और.... क्या विजयकांत का यही सपना था या कुछ और....शायद कुछ और ही था.... इसीलिए अभी मोहिनी और अनु ने बहुत कुछ आगे करने के लिए सोचा हुआ है।

मोहिनी की डिग्री पूरी होते ही उसे ढेर सारे जॉब्स के आफर आने लगते है, लेकिन मोहिनी अपनी पढ़ाई को आगे और बढ़ाकर कुछ और ही करना चाहती है। मोहिनी को विदेश की स्कॉलरशिप मिल जाती है और वह आगे की पढ़ाई के लिए विदेश चली जाती है। कोर्स खत्म होते ही उसे विदेश में नौकरी मिल जाती है।

अनु का अपने देश मे ही रहकर एक अफसर बनने का सपना है तो वह अपना ग्रेजुएशन करके आई0पी0एस0 का एग्जाम पहली कोशिश में पास कर लेती है।

लोग सच ही कहते है कि अगर किसी चीज की लगन लग जाये और वह अगर जिद पर आ जाये तो आदमी उसे कर ही बैठता है। आज शायद विजयकांत जिंदा होते तो पता नही मोहिनी और अनु यह कारनामा कर पाते या नही यह तो नही मालूम लेकिन विजयकांत के न रहने पर समाज के दंस और अवहेलना का यह परिणाम है।

मालती अपने जीवन को अब सार्थक मान रही है कि आज अगर वह इस चक्कर मे पड़ी होती कि ये दुनिया क्या कह रही है, ये समाज क्या कहेगा तो शायद वह न अपने आप से और न अपने बच्चों के लिए खड़ी हो पाती। अब तो उसकी आँखों के आँसू भी सूख गए है, क्या खुशी क्या गम सब एक बराबर है लेकिन आज दोनों बच्चों ने यह कमाल कर दिया है, जिसकी तमन्ना विजयकांत को थी... इसीलिए आज मालती थोड़ी दुखी भी और थोड़ी खुश भी....

अनु अपनी माँ के पास बैठी है... रिटायरमेंट के करीब मालती को अब जीवन मे कुछ नही चाहिए.... बस यही तमन्ना थी जो आज बच्चो ने पूरी कर दी.....

अनु के मन मे भी बहुत कुछ है बोलने को और मालती भी आज अपने मन के बहुत से गुबार निकालना चाहती है। मोहिनी तो अब उसके पास है नही जिससे वह अपने मन की बात करे... क्योंकि मोहिनी हर चीज को समझती है और अपनी माँ के बहुत करीब भी है। लेकिन मोहिनी तो अब विदेश में है और बहुत अच्छी नौकरी कर रही है। हर दूसरे तीसरे बातचीत तो हो जाती है लेकिन इतनी बात कहाँ होती है कि मालती उससे कुछ कह पाए। आज ही फ़ोन आया था मोहिनी का....जब अनु के रिजल्ट का पता उसे चला था तो..... अनु आज बहुत खुश भी है और अपने पापा को बहुत मिस भी कर रही है।

 बार बार उसे यही लग रहा है कि आज अगर पापा साथ मे होते तो कितने खुश होते.... शायद मालती भी यही सोच रही है....

अनु- "माँ आप कुछ बोलते क्यों नही हो, सुबह से बस ऐसे ही बैठे हो आप..."

मालती- (आंखों में रेंगते हुए आंसुओं को लिए) धीमी आवाज में.... "मैं क्या बोलूँ बेटा! तुम लोगो ने अपने पापा का सपना पूरा कर दिया.... जानती हो... हमे बेटा चाहिए था... जब तुम पेट मे थी तो हम हर जगह दौड़े.... जो भी कुछ बताता था सबकुछ करते थे.... तुम्हारे पापा बहुत डांटते भी थे... लेकिन बस लड़का ही चाहिए था और फिर तुम आ गयी.... मैं बहुत मारती थी तुमको, पसन्द भी नही करती थी.... तब तुम्हारे पापा अक्सर ही कहा करते थे.... देखना यही अनु एक दिन मेरा नाम रोशन करेगी और बड़ी अफसर बनकर मुझे सलूट करेगी, तुम देख लेना.... और मैं हमेशा ही उनसे यही कहती थी कि लड़की का बोझ आप नही जानते... कहाँ ले जाएंगे इन दोनों को.... लेकिन मैं यहाँ बैठकर आज गलत हो गयी... और वो न होकर भी सही...." (और भभककर रोने लगती है।)

अनु अपनी माँ को सहारा देती है और बोलती है.....

"-मम्मी आज तक आपने मुझे कभी नही बोला कि पापा मेरे बारे में ऐसे बोलते थे, मेरे प्यारे पापा.... लव यू... आप जहाँ भी हो.... और आपकी बेटी आपको सलूट करती है.... जै हिन्द.....

बेटी की पापा के प्रति ऐसा प्यार देख मालती पीछे से अनु के गले लग जाती है......

खैर जल्द ही अनु की ट्रेनिंग शुरू हो जाती है, और वह भी चली जाती है...... अगले महीने ही मालती नौकरी से रिटायर हो जाती है.... अब पूरी तरह से मालती खाली हो गयी है.... कभी कभार गाँव चली जाती है नही तो यहीं शहर ही आ जाती है।

दोनों बेटियों को एक मुकाम पर देख मालती का सिर फक्र से ऊपर उठ गया है। अब वही लोग जो कभी उसे ताना देते थे और पीठ पीछे उल्टी सीधी बातें करते थे आज वह सब मालती के बहुत खास बनने की कोशिश कर रहे है, लेकिन मालती का सीना छलनी हो चुका है, उसे इन सब बनावटी रिश्तों में कोई दिलचस्पी नही है... वह चाहकर भी एक्सेप्ट नही कर पाती है।

चार महीने बीतने को है, मोहिनी की नौकरी अच्छी चल रही है और अनु भी ट्रेनिंग अच्छे से कर रही है, और जल्द ही उसकी पोस्टिंग होने को है। मालती अब खाली समय मे एक योग साधना केंद्र में चली जाया करती है, जहाँ उसके मन को बहुत शांति मिलती है।

वहाँ मालती की मुलाकात एक महात्मा से होती है, जो मालती से बहुत प्रभावित है, और चाहते है कि मालती की कहानी सबके सामने आए जिससे मालती जैसी बहुत सी महिलाएं हिम्मत न हारकर बच्चों की अच्छी परवरिश करके उन्हें अच्छे मुकाम तक पहुंचाए।

"-बेटा मैं चाहता हूँ कि तुम अपने संघर्ष की कहानी को रूप दो, इससे बहुत से लोगो को प्रेरणा मिलेगी। ये कलम और तुम्हारी डायरी.... आज से तुम अपनी कहानी लिखो"- महात्मा जी बोलते है।

मालती- "बाबा जी! ये मुझसे नही हो पायेगा... मुझे लिखना पढ़ना नही आता।"

महात्मा जी- "बेटा! अगर तुम्हारा दर्द पन्नो पर आ जायेगा तभी तुम्हारे दिल को सुकून मिलेगा। कोशिश करो.... तुम्हे मुझे कुछ बताने की ज़रूरत नही है... तुम्हारे अंदर वह शक्ति है जो तुमको इतना बड़ा और मजबूत बनाती है और यही तुम्हारे तन्हापन का साथी.... ज्यादा कुछ मत सोचो बस कर डालो बेटा...."

मालती- "जी बाबा जी! जैसी आपकी ईक्षा.."

मालती अपनी जिंदगी को पन्नो पर उतारना शुरू कर देती है, और समय के साथ हर घाव, हर संघर्ष, हर रोष को कागज में पन्नो में दफन करती हुई अपनी पूरी जीवन गाथा लिख डालती है।

इधर अनु की ट्रेनिंग पूरी हो जाती है और उधर मोहिनी भी माँ से मिलने आने वाली है। मालती दोनों बेटियों से मिलकर बहुत खुश है और मालती खुशी से-

"जानती हो बेटा... जब तुम लोग मेरे पास नही थे... तब मैंने क्या किया???"

मोहिनी और अनु- "क्या किया मम्मी! आप तो रोज ध्यान केंद्र में ही बैठी रहती थी, कोई ग्रन्थ लिख दिया क्या आपने..."

मालती- "हाँ, बस बाबा जी की कृपा से अपना जीवन लिखा।"

अनु और मोहिनी- "अरे वाह मम्मी! हमे भी तो दिखाओ... क्या क्या लिख डाला आपने...."

मालती- "कल चलना मेरे साथ! एक कार्यक्रम है, वहीं पता चलेगा।"

"-अच्छा सरप्राइज??? ठीक है मम्मी!"- दोनों हँसते हुए बोलती है।

आज मालती की किताब का अनावरण करने के लिए महात्मा जी के साथ शहर के कलेक्टर आये है। मोहिनी और अनु के साथ आज मालती के जीवन की कहानी "कच्चे रास्ते पक्के इरादे" किताब के रूप में बनकर तैयार है।

शहर के कलेक्टर आज कच्चे रास्ते पक्के इरादे किताब का अनावरण करते है और मालती को स्टेज पर बुलाते है।

मालती स्टेज पर- "आप सभी का धन्यवाद! जिंदगी में मैंने कभी नही सोचा था कि मैं ऐसे दौर से गुज़रूँगी कि इसकी कहानी बन जाएगी। मैं तो ज्यादा पढ़ी लिखी भी नही हूँ... बस बाबा जी का आशीर्वाद था जो मैंने अपनी टूटी फूटी भाषा मे अपनी कहानी लिख डाली। मेरे पास अगर कुछ था तो बस अपने दोनों बेटियों (मोहिनी और अनु को स्टेज पर बुलाते हुए) को उस परिस्थिति से बचाना था, जो मैंने अपने पति के जाने के बाद देखा था। असल मे मेरी प्रेरणा मेरे स्वर्गीय पति है, जिन्होंने हमे सपने दिखाए... उनके जाने के बाद मेरी जिंदगी में सिर्फ उनके सपनों को पूरा करने का उद्देश्य था। मेरी बेटियाँ मेरा अभिमान बनी और कच्चे रास्तों से गुजरते हुए इरादे पक्के होते गए।"

पूरा हॉल तालियों की आवाज से गूंजने लगता है, और कलेक्टर साहब मालती का सम्मान करते है। तालियाँ बजती रहती है और मालती अपने बेटियों के साथ निकलने लगती है।

आज मालती की आँखों मे एक सुकून, एक शांति और अपने बच्चों के प्रति अगाध प्रेम दिख रहा है। मालती ऊपर आसमान की ओर देख अपने पति विजयकांत को अपने दिल से श्रद्धांजलि देती है। आज शायद ऊपर आसमान में कहीं विजयकांत की आत्मा भी बहुत खुश होगी और अपनी पत्नी और बेटियों पर फक्र कर रही होगी।


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