किताबें मेरी सच्ची दोस्त...
किताबें मेरी सच्ची दोस्त...
जीवन में बहुत से दोस्त बनते है, कुछ समय के साथ रास्तों में छूट जाते है, कुछ खो जाते है और कुछ ताजिंदगी हमारे साथ रहते है।
उन्ही महत्वपूर्ण लोगो में से एक दोस्त मेरा ऐसा है, जिसने जिन्दगी के किसी रास्ते पर मेरा साथ नहीं छोड़ा। आज मैं अपने उसी दोस्त के बारे में कुछ बातें साझा करना चाहता हूँ।
मैं यही कोई लगभग चार पाँच का रहा हूँगा, जब यह दोस्त मुझे मिला था, हमेशा से शांत, सौम्य और सभ्य... जहाँ भी रख दो रखा रहता था, किसी से बैर भी नहीं था.. हर किसी की जरूरत के हिसाब से उसके पास पहुँच जाता था... लेकिन तब मुझे इस दोस्त की इतनी फ़िक्र कहाँ थी? मैं तो कभी इसके साथ खेलता था, कभी फेंक देता था या कभी कभी तो किसी को दे भी देता था..... इसके लिए तो कभी कभी माँ बाबू जी से मार भी खाता था, लेकिन मेरे दोस्त ने न ही मेरा साथ छोड़ा और न ही मैंने अपने प्यारे दोस्त की......
जिंदगी के बढ़ते पड़ाव में मेरे दोस्त से ये रिश्ता और गहरा और पक्का होता गया... सम्मान भी बढ़ता गया... और इस दोस्त का मुझे जिंदगी में वजूद भी समझ आने लगा था... आज जो भी हूँ, शायद माँ बाबू जी के बाद अगर कोई है, मेरा दोस्त है....लाखों माध्यम जैसे इंटरनेट, टेलीविज़न, कम्प्यूटर और मोबाइल आदि ने बहुत कोशिश की, मेरे दोस्त से मेरा साथ छूट जाए, लेकिन आज भी यह दोस्त मेरे साथ ही है।
पलटकर जिंदगी के पन्नो को देखता हूँ, तो लगता है कि अगर मेरा यह दोस्त नहीं होता तो मैं क्या होता????? शायद एक कार्टून या मिट्टी का कच्चा घड़ा...... या पता नहीं मुझे नहीं मालूम.... इसने ही तो मेरी जिंदगी के बहुत से पन्नों को अपने स्याही से लिखा क्योंकि मैंने इसी से सीखा....
आज तो बहुत ढेर सारे दोस्त हो गए है मेरे पास... अपने घर में इन्हे देखता हूँ, तो बहुत सुकून और फक्र होता है....और मन को बहुत शांति मिलती है, जब अपने मन के एक दोस्त को अपने पास बुलाकर बात (पढ़ता) करता हूँ।
शायद आपने भी इनसे बहुत प्यार किया होगा या करते होंगे? अगर हाँ तो अपने सच्चे दोस्त को ढेर सारा प्यार तो बनता है....
किताबें मेरी सच्ची दोस्त.......