Devendra Tripathi

Others

4.0  

Devendra Tripathi

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रिश्तों की बुनियाद....

रिश्तों की बुनियाद....

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आज दिवाकर की पंद्रहवीं शादी की सालगिरह है। सुबह से ही जानने वालों और रिश्तेदारों का फ़ोन बधाई देने के लिए आ रहा है। दिवाकर ने इस बार अपनी सालगिरह होटल में मनाने का तय किया है क्योंकि उसकी बहन सीता और उसके बच्चे गर्मी की छुट्टी में मुंबई से दिवाकर के पास कानपुर आये है। वैसे तो दिवाकर को तड़क भड़क और होटल में खाना पीना बिलकुल पसंद नहीं है लेकिन सबकी ख़ुशी के कारण होटल बुक किया है।

दिवाकर एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करता है। अभी तीन साल पहले अपना घर कानपुर में बनवाया है। घर खर्च और बच्चों की पढ़ाई का बोझ अकेले उठाने में दिक्क़त हो रही थी तो उसकी पत्नी रीमा ने भी एक स्कूल में पढ़ाना शुरु कर दिया है। दो बच्चे पीहू और नमन है जिनकी पढ़ाई अच्छे स्कूल से चल रही है। कुल मिलाकर एक हँसता खेलता छोटा परिवार है। गर्मियों की छुट्टी में बहन मुंबई से अपने बच्चों को लेकर अपने भाई दिवाकर के पास आ जाती है। बस यही बहाना होता है, एक साथ घूमने टहलने और सालगिरह वगैरह मनाने का।

सुबह से बच्चों में ख़ुशी है कि आज होटल में खाना खाने जाना है। रोज की तरह दिवाकर अपने ऑफिस और रीमा स्कूल चली गई है। घर में बच्चे सालगिरह का कार्ड और सजावट में लगे हुए है। शाम के चार बजने को आये है, रीमा स्कूल से वापस आ गयी है, दिवाकर भी जल्दी काम खत्म करके ऑफिस से घर आ गया है।

दिवाकर और रीमा एक मध्यम परिवार में पले बढ़े.... छोटे सपने लेकर दोनों शादी के बाद अपनी गृहस्थी बनाने में लगे और दोनों अपनी मेहनत से आज उस मुकाम पर पहुँच गए है कि समाज में उन्हें सम्मानजनक नज़रों से देखा जाता है। दिवाकर आज भी अपने गाँव देश और रिश्तेदारों से जुड़ा हुआ है, शायद यही कारण है कि चाह कर भी तड़क भड़क से दूर ही रहता है।

दिवाकर और रीमा जैसे एक साइकिल के दो पहिये है। एक दूसरे के मन को तो ऐसे समझ लेते है जैसे कोई जादूगर। रीमा ही तो है जिसने दिवाकर को होटल में पंद्रहवी सालगिरह मनाने के लिए एक पल में राजी कर लिया और दिवाकर से बुकिंग करवा ली। रीमा भी बहुत खुश है, स्कूल से आने के बाद सजने संवरने में लगी है। रीमा के मिलनसार और शालीन व्यवहार की वजह से घर परिवार में भी रीमा को लोग बहुत मानते है और बहुत प्यार भी देते है। 

"-अरे बस भी करो तुम! स्कूल से आयी हो जबसे तैयारी में लगी हुई हो। आज शादी की सालगिरह है, शादी नहीं हो रही है दुबारा...." दिवाकर बोलता है।

रीमा- "क्या बोलते रहते है आप! जो भी मन में आता है बोल देते है.... दुबारा शादी तो नहीं लेकिन साथ याद तो कर सकते है, हमारी शादी.... और फिर मैं तो आपके बिना अधूरी ही तो हूँ। आपने हर जगह मेरा इतना साथ दिया। मुझे इस काबिल बनाया कि मैं दुनिया के सामने निकल सकूं। आपके लिए नहीं सजूँगी तो किसके लिए सजूँगी....वैसे आज मै आपकी चेन्नई की लायी हुई साड़ी पहन रही हूँ "

"-अच्छा जी! वैसे तो पूछती भी नहीं हो मुझे और आज बहुत प्यार आ रहा है....(मुस्कुराते हुए).... वैसे मैं अक्सर यही सोचता हूँ कि अगर मुझे तुम्हारी जैसी सुंदर, सुशील, गुणी और सभ्य लड़की न मिली होती तो मेरे जैसे आदमी का क्या होता....वैसे आज क्या पूरा बिजली गिराने का ही ईरादा है तुम्हारा"

रीमा-"वैसे आपके मन में ये कैसे आया कि कोई दूसरी आपको मिलती.... मैं ही मिलती....(हँसते हुए)....और हाँ मुझे अच्छा लगता है आपके लिए तैयार होना....अच्छा चलिए अब जल्दी से तैयार हो जाइये.... होटल भी तो चलना है.... "

यस मैम! और उठकर नहाने चला जाता है.... रीमा अपने सजने संवरने में और बच्चों को तैयार करने लग जाती है। दिवाकर गाड़ी घर से बाहर निकाल सबको गाड़ी में बैठाकर होटल के लिए निकलता है। दिवाकर के साथ रीमा सीता और बच्चे होटल पहुंचते है।

बच्चों की ख़ुशी दिवाकर की आँखों में साफ झलक रही है। सबको एक साथ बाहर खाना खिलाना तो एक बहाना सा लग रहा है। बच्चों में केक आर्डर कर दिया और दिवाकर और रीमा ने केक काटा। फिर एक दूसरे को बधाई देने का सिलसिला शुरुआत हुआ। सभी बच्चों ने अपने हाथों से कार्ड बनाया था जो रीमा और दिवाकर को देकर उन्हें बधाई देने लगे। दिवाकर और रीमा बच्चों की मेहनत और कार्ड को देख बच्चों और बहुत लाड कर रहे है।

डिनर का सिलसिला शुरु होता है और तरह तरह के स्नैक्स आने लगते है। सभी लोग बहुत चाव से खाते है। फिर सभी लोग खाने के लिए जाते है और अपनी मन पसंद की हर चीज खाते है। सब बहुत खुश है और दिवाकर और रीमा एक दूसरे को देख अपनी शादी का दिन याद कर रहे है.... दोनों मन ही मन में यही सोच रहे है कि कैसे पंद्रह साल निकल गए और पता भी न चला।

एक अलग सी ख़ुशी और मन में ढेर सारे अरमान और ख्वाब लिए दिवाकर और रीमा घर लौटते है।

"-बच्चे बड़े हो गए है रीमा! अब सब समझने लगे है.... बहुत ख़ुशी हुई आज.... कैसे सब मिल जुलकर इतने सुंदर सुंदर कार्ड बनाये और सब इंतज़ाम किया...."- दिवाकर बोलता है।

रीमा दिवाकर का हाथ पकड़ते हुए- "हाँ जी! अब बच्चे बड़े हो रहे है.... वैसे थैंक यू तो आपको बोलना चाहिए मुझे.... आप इतना समझते है मुझे.... छोटी छोटी चीजों का ध्यान रखते है। आपने मुझे एक ऐसा स्थान दिया है जहां मैं अपनी पहचान बना सकूँ। मैं तो इतना पैसा भी नहीं कमाती कि आपको मैं कुछ बहुत महंगा गिफ्ट दे सकूँ। आप मेरी जिंदगी में है यही मेरे लिए सबसे महंगी चीज है...."

दिवाकर- "जानती हो रीमा! ये पंद्रह साल क्यों ऐसे निकल गए? शायद विश्वास और यही एक दूसरे के लिए सम्मान.... और हाँ जहाँ तक रही कमाई की बात.... तुम्हारे थोड़े पैसो ने ही कभी इस घर को चलाया है। मैं भगवान का शुक्रगुजार हूँ कि मुझे तुम जैसी पत्नी मिली जिसने एक पत्नी के साथ एक सच्चे दोस्त, हमदम और हमराह की तरह मेरे हर अच्छे बुरे वक्त में साथ खड़ी रही। थैंक यू सो मच!।"

दिवाकर और रीमा फिर एक दूसरे की बांहों में बाहें डाल कहीं दूर आज के पंद्रह साल पहले अपने अतीत में खो जाते है।

कोई भी रिश्ता विश्वास और सम्मान की बुनियाद पर ही मजबूत बनता है। हम अक्सर देखते है कि छोटी छोटी बातों पर बात करने के बजाय मनमुटाव और लड़ाई झगड़े शुरु हो जाते है जो रिश्तों में खटास घोलते है। दिवाकर और रीमा की कहानी भी कुछ अलग नहीं रही होंगी लेकिन एक दूसरे के प्रति सम्मान और एक दूसरे की भावनाओं कि इज्जत ने शायद उनके रिश्ते को इतनी मज़बूत बना दी। छोटी छोटी खुशियाँ रिश्तों को खुशहाल बना देती है और छोटी छोटी गलतफहमियां रिश्तों को बर्बाद कर देती है।


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