Devendra Tripathi

Horror

4.0  

Devendra Tripathi

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बारिश का सफर

बारिश का सफर

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आज शुक्रवार था, राजेश को घर जाना था, राजेश जहाँ नौकरी करता था वहाँ से उसका घर तकरीबन १०० किलोमीटर था। अक्सर वो शुक्रवार को ऑफिस का काम थोड़ा जल्दी पूरा करके निकल जाता था। वैसे तो १०० किलोमीटर का सफर ढाई तीन घंटे में पूरा हो जाता था, अगर समय से सवारी मिलती रहे तो। राजेश अक्सर ५ बजे के आस पास ऑफिस से आधे रास्ते तक अपने साथ काम करने वाले एक साथी रोहित के साथ चला जाता था और आधे रास्ते के बाद उसे बस मिल जाती थी, जिससे वो आराम से घर पहुँच जाता था। हर शुक्रवार की तरह इस हफ्ते भी राजेश ने जल्दी ही अपना काम पूरा करके अपने साथी रोहित के साथ मोटरसाइकिल से घर के लिए निकल गया। ये अगस्त का महीना था, तो कभी कभार रास्ते में बारिश का भी मौसम बन जाता था, इसलिए आज राजेश आज ४. ३० बजे के आसपास ही निकल गया। थोड़ी दूर चलते बहुत जोर से बारिश होने लगी, राजेश और रोहित वहीं करीब एक घण्टे तक बैठे रहे, फिर जब पानी कम हुआ तो वो दोनों वहाँ से निकले।


राजेश को अब मन में ही चिंता होने लगी थी, कि पता नहीं अब बस मिलेगी या नहीं, क्योंकि घना अंधेरा हो चुका था और चारों ओर बादल गरज, चमक रहे थे, धीरे धीरे बारिश भी हो रही थी। रास्ते में ही एक और दोस्त महेश का घर था, तो राजेश ने सोचा ऐसे तो मैं पूरा भीग जाऊंगा और बीमार हो जाऊंगा, ऐसा करते है, कि महेश से रेनकोट ले लेते है। 

राजेश ने अपने दोस्त को फ़ोन किया, हेलो, महेश, यार तुम्हारे पास रेनकोट है न, प्लीज रोड पर आ जाओ, मुझे दे दो, घर जा रहा हूँ, बारिश हो रही है।

महेश- हाँ, मैं लेकर आता हूँ।

जबतक राजेश वहां पहुँचता, महेश रेनकोट लेकर आ चुका था।

महेश- आप रेनकोट लीजिये, और मेरी बाइक भी ले लीजिए, बारिश में बस का कोई भरोसा नहीं है, पता नहीं आएगी या नहीं।

राजेश- नहीं यार थैंक्स!, अभी टाइम है, मुझे बस मिल जाएगी।

ये कहकर राजेश और रोहित बस स्टॉप के लिए निकल गए। बारिश बढ़ती ही जा रही थी, और तकरीबन ७.०० बजे रोहित अपने घर पहुंचा तो राजेश से बोला, चलिए आपको बस स्टॉप तक छोड़ देते है क्योंकि बहुत पानी भरा है, चारों तरफ। 

राजेश, ठीक है, छोड़ दो भाई!

बस स्टॉप पर दोनों पहुंचते है तो पता चलता है, कि बस आज आने की उम्मीद नहीं है, शायद नहीं आएगी।

राजेश बोलता है, अब क्या करे यार रोहित, ये तो प्रोब्लम हो गयी।

राजेश का दोस्त रोहित बोलता है, अरे कोई नहीं राजेश रेनकोट तो है ही तुम्हारे पास, मेरी बाइक ले लो और निकल जाओ। 

राजेश हिचकिचाते हुए रोहित मैं सोमवार को आऊँगा, तुम्हें बाइक का कोई काम हुआ तो तुम कैसे करोगे।

रोहित- अरे, घर में और बाइक है, मेरा काम हो जाएगा, आप निकल जाओ, मौसम बहुत खराब हो रहा है।

राजेश- थैंक्स रोहित कहते हुए बाइक स्टार्ट करता है, और घर के लिए निकल जाता है।

रोहित के घर से राजेश का घर लगभग ५० किलोमीटर की दूरी पर था। बहुत घना अंधेरा था, कुछ भी दिखाई नही दे रहा था, केवल गाड़ियाँ जो आ जा रही थी, उनकी लाइट और बारिश। धीरे धीरे राजेश, घर की ओर चलता रहा और करीब ३०-३५ किलोमीटर तक चला गया, तो उसके मन मे थोड़ा राहत हुई कि वो अब घर पहुँच जाएगा। लगभग १५ किलोमीटर पहले एक बड़ी नहर थी, और नहर के आगे थोड़ी दूर पर एक बहुत बड़ा सा पेड़ पूरी सड़क पर गिरा पड़ा था। राजेश गिरा पेड़ देखकर रुक गया, और जो लोग बाइक से आ जा रहे थे, उनके बाइक को निकलवाने के लिए हेल्प माँग रहा था, लेकिन रात के साथ बारिश भी बहुत हुई थी इसलिए कोई रुक ही नहीं रहा था। कुछ लोग दूसरा रास्ता जान रहे थे, तो वे उस तरफ से निकल जा रहे थे। राजेश को रास्ते का कुछ भी पता नहीं था इसलिए वो परेशान हो रहा था कि वो घर कैसे पहुँचेगा।

थोड़ी देर में एक बाइक वाला आया और बोला मैं तो यही पास वाले गांव में जा रहा हूँ, मैं आपको रास्ता बता दूंगा, वहाँ से आपको यही रोड फिर मिल जाएगी आप निकल जाना।

राजेश, ठीक है भाई, कहते हुए उस बाइक के पीछे पीछे चलने शुरू किया। थोड़ी दूर चलने के बाद राजेश को आगे वाली बाइक दिखना बन्द हो गयी। राजेश बहुत परेशान हो रहा था, उसको सब रास्ते एक जैसे ही दिख रहे थे, और कौन सी दिशा में जा रहा है, कहाँ जा रहा है, कुछ मालूम नहीं था। 

राजेश भगवान को याद करके, जो भी रास्ता उसे दिख रहा था, उसी पर चलता जा रहा था, चारों ओर पानी ही पानी। इतने में वो एक ऐसी जगह पहुँच गया, जहाँ पर उसे कुछ भी नहीं पता चल रहा था कि किधर जाए, कहाँ जाए, एकदम घनघोर अंधेरा और बादल की गड़गड़ाहट, बारिश और बिजली की चमक से राजेश एकदम डर गया था। थोड़ी हिम्मत करके राजेश बाइक को एक दिशा में लेकर बढ़ा और करीब आधे किलोमीटर आगे उसे एक दिए की रोशनी दिखायी दिया। अब राजेश को थोड़ा जान में जान आयी थी, वो रोशनी को देखते हुए, चलता गया। जब वहाँ पहुँचा तो देखा कि एक लालटेन जल रही है, और एक बूढ़ा आदमी सो रहा है। राजेश ने पूछा, दादा मुझे रोड पर जाना है, प्लीज रास्ता बता दीजिए। 

बूढ़ा आदमी- बस बच्चा ये रोड से जाओ आगे रोड मिल जाएगी।

राजेश थोड़ा आगे बढ़ता है, उसे अपने घर की रोड मिल जाती है।

अब राजेश की जान में जान आयी, और थोड़ी देर में अपने घर पहुँचता है। घर में सभी लोग राजेश का इंतजार कर रहे होते है। 

राजेश घर पहुँचते ही, घर में सबको डरावने बारिश के सफर की कहानी बताता है, और अपने दोस्तों को धन्यवाद देता है।।



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