Devendra Tripathi

Others

4.0  

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प्यार ऐसा भी.....

प्यार ऐसा भी.....

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आज शनिवार है और राज की आज छुट्टी है, बेड पर राज सो रहा है और रागिनी बच्चों को स्कूल की वैन पर बिठाकर राज के लिए नाश्ता चाय और खाना बना ऑफिस की बस से निकल गयी।


रास्ते मे सोचती हुई रागिनी.... पता नहीं कैसे नीरस आदमी से शादी हो गयी है। कोई परवाह ही नहीं है कि उसकी पत्नी का भी कोई वजूद है या नहीं। इतना भी नहीं सोचता कि मै भी कमाकर आखिर उसकी सहायता ही कर रही हूँ। शुभ थोड़ी मदद के लिए उठता तक नहीं है।


राज और रागिनी की शादी के १० साल होने को आये है। दो बच्चे रेहुल और रीमा पढ़ने जाने लगे है। रागिनी ने एमवीए किया है। बच्चों की वजह से नौकरी छोड़ दी थी, लेकिन अब बच्चे स्कूल जाने लगे तो घर पर कोई काम नहीं रहता और पिछले साल से रागिनी ने फिर से नौकरी ज्वाइन कर ली है।


राज एक मल्टीनेशन कंपनी में जॉब करता है। थोड़ा ज्यादा ही व्यस्त रहता है, और ज्यादातर ऑफिस की तरह ही घर मे भी व्यवहार करता है। जो शायद उसकी आदत सी हो गयी है। ऐसा नहीं है कि वह किसी को नहीं चाहता या प्यार नहीं करता लेकिन सबके लिए खंडूस सा हो गया है।


दो दो बच्चे होने के बाद भी आज रागिनी की ख़ूबसूरती के चर्चे ऑफिस में होते रहते है। पूरा ऑफिस रागिनी के पहनावे और खूबसूरती का बखान करते नहीं थकता, लेकिन रागिनी के लिए सब बेमानी हो जाता है, जब राज उसे देखकर कोई रिस्पांस नहीं देता है, यही तो दर्द है रागिनी का........


अपनी ख़ूबसूरती पर नाज करती, आज भी रागिनी आपने कॉलेज के दिनों को याद करती है, जब पूरी कॉलेज के लड़के उसको प्रोपोज करने के लिए पीछे लगे रहते थे। 


रागिनी की ऑफिस में उसकी सबसे अच्छी दोस्त सौम्या ठीकठाक कदकाठी जरूर है लेकिन सुंदरता के किसी मापदंड को पूरा नहीं करती है, हर दिन ही अपने बॉयफ्रेंड की तारीफे करने से नहीं थकती..... 


अक्सर ऑफिस में आकर सौम्या रागिनी से-

"क्या रागिनी! प्यार ऐसा होता है, मैंने तो कभी सोचा न था....मेरा बॉयफ्रेंड तो मेरी हर चीज की इतनी तारीफ़ करता है कि मुझे तो विश्वास भी नहीं होता..."

रागिनी -"बस एक बार शादी होने दो फिर आकर ये शायरी मुझे सुनाना......"

सौम्या-"अरे तुम क्या जानो! वो तो मेरी हर एक चीज की इतनी तारीफ़ करता है कि सच में मुझे तो विश्वास नहीं होता... वो तो मेरे प्यार मे पागल है.... "


रागिनी -(चिढ़ते हुए)- "अभी मौज मस्ती कर लो जबतक शादी नहीं कर रही हो.... वैसे तुम बस ऐसे ही घूमोगी उसके साथ या आगे भी कुछ सोचा है......"


"अरे रागिनी अभी तो मौज मस्ती करने दो.... अभी कौन सी शादी की जल्दी पड़ी है, वैसे अभी राहुल तैयार नहीं है। राहुल इतना प्यार करता है कि कोई पागल ही होगा जो इन हसीन पलों को छोड़ना चाहेगा।"- सौम्या मस्ती भरे अंदाज में जवाब देती है।

जैसे जैसे सौम्या राहुल की अच्छाइयों के पुल बांध रही थी और दूसरी तरफ रागिनी की राज के लिए चिढ़ बढ़ती जा रही थी।

"सौम्या हँसते हुए, रागिनी मैं क्या बताऊं कल की ही तो बात है, मेरी साड़ी....अरे वही ग्रीन कलर वाली.... कैसी लग रही थी तुम्हे....."

रागिनी - "हाँ! अच्छी लग रही थी तुम पर..."

सौम्या- "हाँ! वही तो राहुल तो मानो शायर ही बन गया था... ढेरों शायरी ही मेरे ऊपर कर डाली...मैं तो सातवें आसमान में घूम रही थी...मैंने तो सोचा भी न था कि इतनी सुंदर लग रही थी उस साड़ी में...."


(रागिनी मन ही मन राज को कोस रही है कि एक मेरा पति है जिसकी मेरी कोई फ़िक्र ही नहीं रहती है। सौम्या को देखो न शक्ल, न सूरत, लेकिन राहुल कितना प्यार करता है। यहाँ आज भी मेरी ख़ूबसूरती का बखान पूरा ऑफिस करते नहीं थकता है, लेकिन मेरे पति को फुर्सत ही नहीं है, कि मेरी तरफ एक बार नज़र उठाकर देखे। मुझे तो याद भी नहीं है कि आखिरी बार कब राज ने मेरी तारीफ करी थी। कहीं ऐसा तो नहीं है कि राज को भी कोई सौम्या जैसी लड़की मिल गयी है....)

हर रोज सौम्या की ऐसी बातें सुन रागिनी के दिमाग़ में एक फितूर छा गया, कि राज का किसी और लड़की के साथ चक्कर चल रहा है।


घर लौटते ही रागिनी राज का फ़ोन भी चेक कर डालती है और कपड़े भी..... लेकिन उसको कुछ भी ऐसा नहीं मिलता है, जिससे वह राज के ऊपर कोई शक भी कर पाए।


हालचाल लेने के बहाने रागिनी राज के पीठ पीछे कुछ जानने वाले राज के ऑफिस के लोगों को भी फ़ोन कर डालती है, लेकिन उसे राज के बारे में कुछ भी ऐसा वैसा पता नहीं चलता है।


रागिनी के मन में यह शक बैठ गया है कि कुछ गड़बड़ है... 


दूसरी ओर हर रोज सौम्या का राहुल का बखान उसे खाये जा रहा है। कभी मूवी, कभी पार्टी, कभी कुछ और यही हर रोज सुन रही है।


राज और रागिनी दोनों अच्छा पैसा कमाते है, अच्छा घर है, गाड़ी है, और जिंदगी जीने की हर चीज मौजूद है। राज हमेशा से ही शांत लेकिन अपने परिवार के लिए बहुत संवेदित रहता है। उसी ने तो रागिनी को फिर से जॉब करने के लिए बोला था, क्योंकि बच्चों के स्कूल जाने के बाद रागिनी घर पर अकेले रहती थी, और उसका मन भी नहीं लगता था......आज रागिनी के मन में यह भी एक शक पैदा हो गया है, कि कहीं राज ने इसीलिए तो उसे जॉब करने के लिए दबाव बनाया था........


रागिनी ने सोच लिया है, कि अब वह यह जॉब छोड़ देगी... और घर पर ही रहेगी तभी राज का असल चेहरा पता चलेगा....


शाम को डिनर पर रागिनी अपना फैसला राज को सुनाने लगती है....... "अरे! अचानक क्या हो गया रागिनी! सब ठीक तो है.... कोई प्रॉब्लम हो तो बताओ.... कहीं और जॉब देख लो....घर बैठकर अपनी स्किल क्यों खराब करोगी।"


"तुम्हें तो याद भी न होगा कि कल मैंने क्या पहना था..... हम कब एक साथ कहीं बाहर खाना खाने गए थे....कभी भी मेरी तारीफ़ करी हो तुमने.... बस काम काम.... और कुछ दिखता ही नहीं है तुम्हें....रागिनी गुस्से से भरी हुई आवाज़ में बोलती है।"


"अरे हाँ! लेकिन इससे तुम्हारी जॉब का क्या मतलब है... जॉब क्यों छोड़ना चाहती हो???"- राज पूछता है।


रागिनी- "मेरे ऑफिस में सौम्या को देखो!! उसका बॉयफ्रेंड राहुल कितनी तारीफ़ करता है उसकी। हर दिन कहाँ कहाँ लेकर जाता है, और हमारी तो लगता है कि जिंदगी ही बीत गयी है.... तुम्हें तो मुझे देखने तक की फुर्सत नहीं है.... पूरा ऑफिस मेरी तारीफ़ करता है लेकिन तुम मेरी तारीफ़ नहीं करते हो न... मुझे सब बेमानी सा लगता है.... मैं तुम्हारे लिए तैयार होती हूँ... ऑफिस वालों के लिए नहीं?? ये कब समझ आएगा तुम्हें.... बस इसीलिए जॉब छोड़ रही हूँ....... और किचन में जाकर बर्तन पटकने लगती है.....


राज किचन में दाखिल होता है और पीछे खड़े होकर-"सोचता हूँ, आज से मैं भी घर में ही रहूँ, सिर्फ तुमको देखूं, तुम्हारी सुंदरता की तारीफ़ करूँ और तुम्हें इधर उधर घुमाऊं..... ठीक है... मैं यही करूँगा... जैसा तुम चाहोगी वैसा ही करूँगा लेकिन फिर बच्चों की पढ़ाई, घर और गाड़ी की किश्तें, तुम्हारे और बच्चों के ये महंगे कपड़े और शौक कैसे पूरे हो पाएंगे??? रही बात राहुल जैसा कवि बनने की.. तो मैं बाजार से कुछ किताबें खरीद लाता हूँ, जिसे हर दिन सुबह शाम में पढ़ता रहूँगा, क्योंकि मुझे जताना भी तो है कि मैं नीरस नहीं हूँ।"


राज की बातें सुन रागिनी मन ही मन मुस्कुरा रही है, साथ ही उसके मन में उपजे सारे मैल भी राज की बातों के साथ धुलते जा रहे है।


झट से रागिनी पलटकर राज को पीछे से पकड़कर सुनो-

"मुझे माफ़ कर दो...मैं सौम्या की बातें सुन सुन कर पता नहीं क्या क्या सोच बैठी थी। तुम जैसे हो अच्छे हो.... मेरे हो... तुम्हारे मन की बात सुन ली न..... अब किसी और चीज की जरूरत नहीं है.... तुम नीरस ही बहुत अच्छे हो....तुम्हें बदलने की जरूरत नहीं है।"


दोनों एक दूसरे को देख मुस्कुराने लगते है और जिंदगी फिर खुशहाल सी हो जाती है।


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