आशीष पाण्डेय

Horror

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आशीष पाण्डेय

Horror

कुटुम्ब मुक्ति

कुटुम्ब मुक्ति

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राजन् ! आपके राज्य की सीमा से कुछ दूर पर एक असुर कन्या की नगरी है वह नगरी देखने में बड़ी सुन्दर है वह नगरी आपकी सीमा पार करने के पश्चात ही दिखाई देती है

जब तक आपके राज्य सीमा में कोई रहेगा तब तक वह नगरी उसे नहीं दिखाई देगी। एक बार मेरा पौत्र आपकी सीमा खेलते हुए पार गया कि अचानक ही उसे वह नगरी दिखाई देने लगी और उसका सौन्दर्य देखकर वह दौड़ता हुआ जाने लगा। उसकी मां उसे बुला रही थी किन्तु उसे उसकी ध्वनि नहीं सुनाई दे रही थी यह देखकर उसकी मां भी उसका पीछा करती हुई आपकी सीमा से बाहर निकल गयी और वे दोनों दो दिन बीत गया नहीं लौटे तो पुत्र को बड़ी चिन्ता हुई और वह उन दोनों को ढूंढने के लिए निकल पड़ा हे राजन! आज चौदह दिन बीत गये वे लौटकर नहीं आए हैं। मेरे कष्टों का निवारण आप ही कर सकते हैं।

क्या आप मेरे परिवार को सुरक्षित लायेंगे ?

राजा बोला यदि जीवित होंगे तो अवश्य लाऊंगा अन्यथा उस नगरी को ध्वस्त करके ही आऊंगा बताइए वह किस दिशा में पड़ती है।

वृद्ध बोला----- आपके राज महल से उत्तर दिशा में।

राजा----- उसकी बात सुनकर बोला। आप जाइए मैं आज ही प्रस्थान करूंगा वृद्ध राजा को प्रणाम करके चला गया राजा चिंतित मन लेकर अपने राजमहल गया और राज महल में जाकर किसी से नहीं अपनी प्रिया से मिल और उसे सारी बात सुनाकर बोला हे देवि! मैं जा रहा हूं और शीघ्र ही लौट आऊंगा तुम मेरी प्रतिक्षा करना। 

महारानी------ महाराजा की बात सुनकर सोचने लगी जब मैं हर दिशा के शत्रुओं का और असुर कुल को उसके समेत नष्ट कर दी थी तो ये कौन बच गयी है जो इतने शीघ्र ऐसी नगरी का निर्माण करके प्रजा को पीड़ित कर रही है। रानी के मन में डर था कहीं फिर वही समय न आ जाए जो एक बार आया थ यह सोचकर चिंतित हो गयी और कुछ कह न सकी क्योंकि उन्हें रोकना वह उचित न समझी।और बोली जैसी आपकी आज्ञा। राजा को तिलक करके उनको प्रणाम की और बोली हे स्वामि! शीघ्र आइएगा मैं आपकी प्रतिक्षा करूंगी।

राजा ----- हृदय से लगाकर बोला हे देवि! तुम दुखी मत हो मैं शीघ्र आऊंगा। इतना कहकर राजा अकेले ही निकल पड़ा। अपने महल से उत्तर दिशा की सीमा को पार करने लगा कि अचानक ध्वनि सुनाई दी। ठहरिए राजन! ठहरिए मुझे क्षमा कीजिएगा मैं आपकी गति को बाधित कर रही हूं किन्तु हे राजन! आपका वहां जाना उचित नहीं वह बहुत मायाबी है इसलिए आप मत जाइए तीन व्यक्ति के चले जाने से कोई शोक नहीं करना चाहिए क्योंकि आप राज्य की धरती हैं आपके न रहने पर मेरे साथ साथ यह राज्य शून्य हो जाएगा।उसकी बात सुनकर।

राजा ----- बोला मेरे कल्याण के लिए प्रयत्न करने वाली हे भद्रे! आप कौन हैं?।

वह------ बोली मैं आपके राज्य की सीमा हूं। 

राजा----- हंसते हुए बोला! हे सीमे! चिन्ता मत करो आप अनाथ नहीं होंगी। निश्चिंत रहिए। इतना कहकर वह राजा सीमा पार गया। अधिक दूर तक जाने के बाद भी उसे वह नगरी दिखाई नहीं दे रही थी वह चलते चलते थक गया और विश्राम करने लग तो शीतल वायु के कारण उसे निद्रा आने लगी किन्तु राजा निद्रा को स्वीकार नहीं कर रहा था फिर भी कुछ समय के लिए राजा चाह कर भी अपने नेत्र के मुंद जाने के पश्चात खोल नहीं सका और जब खुली तो देखा वह एक परम सुहावनी नगरी के एक वृक्ष के नीचे बैठा है।वह तत्क्षण उठकर अपनी तलवार को ढूंढने लगा किन्तु वह उसे नहीं मिली तब वह राजा उस नगरी में उसके सौन्दर्य को देखता हुआ विचरण करने लगा।वह नगरी तालाब के कमल समूढ के समान भवन वाली,आकाश के तारों के समान उपवन वाली, स्त्रियों के यौवन रुपी मधुशाला वाली, शरदर्तु के धुले हुए इन्दु मुखयुत कामिनियो वाली, कामदेव के बिछाये गये सौन्दर्य के समान प्रकृति वाली, इन्द्रमाया सदृश मायाविनी, गंध -सुगंध-मकरंद- तिलस्म, विमोहन- आकर्षण-स्तम्भन वाली, स्वर्ग की अप्साराओं के सदृश युवतियों वाली वह नगरी अति सुन्दर दिख रही थी ।नगरी की सुन्दरता को देखता हुआ वह आग बढ़ता जा रहा था कि अचानक उसका पैर धरती में धंसने लगा और वह राजा धरती के नीचे जा पहुंचा जहां उस रानी का महल था वहां की प्रचीरें भी स्वर्ण जटित थी और चलने वाली धरती पर भी सोना ही था राजा यह सब देखकर आश्चर्य से देखता ही रह गया।कि दो सेविका आकर राजा को बंदी बना लेती हैं और ले जाकर उस असुर कन्या के पास उपस्थित करती हुई कहती हैं महारानी ये अपने महल में घूम रहा था इसलिए मैं इसे पकड़कर ले आई हूं वह सुन्दरी बिना देखे ही बोली इसे बंदीगृह में बंध कर दो । सेविकाएं ले जाकर राजा को बंध कर दीं। रात हुई सभी को भोजन मिला कि उसी समय असुर कन्या निरीक्षण के लिए आई। सेविका ने शीश झुकाकर कहा असुर सम्राट चण्डेश्वर की पुत्री व्रतति को मेरा प्रणाम। 

व्रतति ---- बोली सभी बंदियों को लाया जाय। सेविकाएं दौड़करबंदीगृह से बंदियों को निकाल कर ले आईं। व्रतति सबको देखती हुई आगे बढ़ जाती है वह परमसुन्दर, सभी शारिरिक गुणों से सम्पन्न थी वह सभी को देखती हुई राजा के निकट पहुंची तो राजा पर दृष्टि पड़ते ही वह राजा के सौन्दर्य पर मुग्ध हो जाती है और सेविका से कहती है जो नया बंदी आया है वह यही है। 

सेविका--- बोली जी राजकुमारी जी।

व्रतति--- बोली इसे मेरे शयन कक्ष में लाया जाए। सेविकाएं शयन कक्ष में ले जाती 

हैं और बाहर निकल जाती है। वह असुर कन्या राजा पर मुग्ध हो गयी थी। असुर कन्या भी परम सुन्दरी थी किन्तु उसके कार्य नहीं। उसने कहा। राजन यदि आप अपने प्राणों को बचाना चाहतें हैं तो मुझसे प्रेम कर लीजिए। अन्यथा मृत्यु स्वीकार करें। 

राजा----- बोला। नहीं मुझे मृत्यु स्वीकार है, किन्तु प्रेम नहीं राजा को वापस बंदीगृह में भेज दी। दो दिन बीतने के बाद राजा विचार करने लगा यदि मैं इससे प्रेम कर लेता हूं तो इसे मारने में आसानी होगी किन्तु प्रेम का ढोंग करने से पहले मैं इस पर एक बार आक्रमण करूंगा यह विचार कर संदेश भेजा दिया मैं तैयार हूं। असुर कन्या स्वयं आकर बंदीगृह से राजा को आजाद की राजा के हाथ पैर के बंधन खोले गये। 

 राजा -----बोला मैं तैयार हूं किन्तु मेरी एक शर्त है मेरी तलवार मुझे बहुत प्यारी है मैं उससे अगल नहीं रहना चाहता हूं इसलिए मेरी तलवार मुझे ढूंढ कर दे दो , और दूसरी ये की मैं चाहे जो करुंगा चाहे जहां घूमूंगा इस महल में कोई प्रश्न नहीं करेगा।

 रानी ------ बोली ठीक है।तलवार इनकी ढूंढकर दे दी जाए और इन्हें स्वतंत्र विचरण करने दिया जाए।

राजा----- की तलवार वापस आ गयी किन्तु राजा तुरंत आक्रमण करना उचित नहीं समझा और प्रेम का ढोंग करने लगा रात्रि में जब राजा उस असुर कन्या के साथ सो रहा था।

तभी उस असुर कन्या के नासिका से बड़ी बड़ी जहरीली नागिनें निकलने लगी। उस असुर कन्या का यह पहला अस्त्र था जो प्रयोग की राजा विश्वासनीय है या नहीं ये सचमुच प्रेम करता है या नहीं?।

राजा----- नागिनों को आता देखकर पलंग से अचानक डरकर नीचे गिर गया सभी नागिनें इधर उधर ढूंढने लगी किन्तु कोई मिला नहीं इसलिए वापस जाने के लिए उद्यत हुई तो राजा ने धीरे से वहां रखे घड़े को ऊपर टेड़ा करके रख दिया अचानक उसे देखकर नागिने घूम पड़ी और उसमें कुछ ढूंढने के लिए जैसे ही प्रवेश की राजा बड़े से कपड़े से उसका मुख ढंक दिया।सभी नागिन उसी में अंधेरा पाकर बैठ गयी। राजा उन्हें मारने के लिए विचार कर रहा था किन्तु सोचा नहीं इन्हें मारना उचित नहीं है इसलिए नहीं मारा और

पलंग के नीचे रख दिया।

दूसरे दिन पुनः राता हुई और दोनों शयन करने लगे तो अचानक से देखा असुर कन्या के समस्त शरीर के मैल से विनाशकारी कीट उत्पन्न हो रहें किन्तु वे पलंग पर न आकर ऊपर उड़ रहें हैं और ये हमारी ही ओर विनाशिनी दृष्टि से देख रहें हैं इनसे कैसे बचा जाए? यह विचार किया और अचानक भागने के लिए पलंग से उतरा। कि सारे कीट पंक्ति बद्ध होकर राजा की ओर बढ़ने लगे तब राजा ने तलवार निकालकर उन्हें मारने लगा किन्तु मारते समय उसे एक आश्चर्य दिखाई दिया वह जिन कीटों को मारता उनसे बहने वाले रक्त से और कीट उत्पन्न हो रहे थे और ऐसे थे जिन्हें देखकर तन कांप जाए किन्तु राजा रुका नहीं और सब को अपनी तलवार से काटता जाता वे भी उत्पन्न होते जाते पास में रखे जल के घड़े पर राजा की दृष्टि पड़ी तो दौड़कर लिया और कुछ कीटों को मारकर उनके ऊपर जल फेंक दिया। सारे कीट जल देखकर पीछे होने लगे राजा को लगा शायद जल से भयभीत होते हैं इसलिए वह सारा जल अपने आगे डाल दिया किन्तु संकट अभी टला नहीं था उन कीटों का रक्त जल में मिल चुका था इसलिए वे और ज्यादा उत्पन्न होने लगे और राजा की ओर बढ़ने लगे राजा समझ गया अब इनसे बचना कठिन है और अपने आप को थका सा आभास करके सोंचा जब मरना ही है तो इस असुर कन्या के ऊपर लेट कर ही मरूंगा और यह विचार कर ही रहा था कि कुछ कीट उसके घुटने तक आ गये और काटने लगे कि तेजी से राजा पलंग पर कूद पड़ा और रानी के तन से अपना तन उसी तरह लिपटाया जैसे संभोग के समय प्रेमी प्रेमिका को लिपटाता है। लिपटते ही सारे कीट बिना घात किए वापस जाने लगे यह देखकर राजा ने आह! भरी और मन में सोचा भगवान की कृपा से प्राण बच गये। सुबह हुई राजा को जीवित देखकर असुर कन्या आश्चर्य के साथ प्रसन्न हुई। उसे विश्वास होने लगा कि ये सच्चा प्रेम करेगा मुझसे। किन्तु अभी एक संकट शेष था रात हुई दोनों पुनः शयन करने लगे किन्तु राजा को नींद नहीं आ रही थी वह सोने का बहाना कर रहा था क्योंकि उसे यह विश्वास था आज भी कुछ संकट आयेगा‌। रात बीत गयी जागते हुए और कोई संकट नहीं आया राजा को लगा शायद अब कोई संकट नहीं है इसलिए वह अगले दिन चैन से सोने लगा कि अचानक असुर कन्या के कर्ण से निकलने वाले मल की गंध आने लगी राजा की नींद टूटी और देखा तो पलंग के चारो ओर मल हवा में घूम रहें हैं और वे अधिक तेजी से दुर्गंध कर रहें और मेरी तरफ़ बढ़ रहें राजा यह देखकर कुछ विचार करता कि अचानक वह मल राजा के मुखमण्डल पर आ गिरा उस मल में रहने वाले कीड़े राजा को काटने लगे राजा वहां रखे वस्त्र से मुख स्वच्छ करने लगा कि सारी शरीर मल युक्त हो गयी। राजा को कीड़े तेजी से काटने लगे। राजा पुनः वही किया रानी से लिपट गया किन्तु पृष्ठ भाग का मल नहीं छूटा तब राजा देखा जहां तक रानी के तन से मेरा तन छिपा है वहां तक मैं मल हीन हो रहा हूं।

तो राजा ने उसे अपने ऊपर लिटा लिया तब सारा मल छूटने लगा किन्तु राजा का सौन्दर्य उनके काटने से मलीन हो गया था राजा सुरक्षित हुआ तब नींद आ गयी और उसी निद्रा में सुबह हो गयी असुर कन्या स्वयं को राजा के ऊपर देखकर आश्चर्य में पड़ गयी और लज्जा वश बाहर चली गई राजा उठा और विचार करने लगा इस तरह काम नहीं चलेगा इसका निवारण सोंचना पड़ेगा और यह विचार करके वह उस महल में विचरण करने लगा कि अचानक उसे सेविकाओं के हंसने की ध्वनि सुनाई दी। राजा चुपके से वहां जाकर खड़ा हो गया उनकी बातें सुनने लगा एक सेविका हंसती हुई कहती राजा तो अब जीवित नहीं होगा पहले ही दिन उसके प्राण चले गये होंगे और क्यूं नहीं जायेंगे? उसे उनसे बचने और उन्हें नष्ट करने का रहस्य भी तो नहीं ज्ञात है दूसरी कहती हां बहन वो क्या जाने? नागिनों को नष्ट इस तरह किया जाता है और दूसरा संकट कैसे जानेगा उसे क्या ज्ञात है? कि कीटों को इस विधि से मिटाया जायेगा फ़िर एक हंसती हुई बोली हां बहन और तीसरा संकट हाय! बेचारा इन सब से बच भी गया होगा तो मल के गंध से कैसे बचेगा? उसे क्या पता इस तरह ये सदैव के लिए मिटेगा?। राजा सारी बात सुनकर प्रसन्न हुआ और चला आया। आकर देखा तो सारी नागिने लुप्त थी रात्रि हुई दोनों शयन करने लगे किन्तु राजा को नींद नहीं आ रही थी वह असुर कन्या से लिपटने लगा और तन से क्रीड़ा करने लगे लगा वह असुर कन्या भी उसके बहकावे में आकर क्रीड़ा करने लगी। कि राजा उसी समय बचने का पहला नियम अपनाया।दोनों क्रीड़ा करते हुए थक गये असुर कन्या का समय हो गया था गहरी निद्रा का,राजा को नींद नहीं आई। जब उसकी नासिका से नागिन निकलकर पलंग पर घूमने लगी तब राजा उतरकर उनके ऊपर क्रीड़ा करते समय तोड़े हुए बालों का प्रहार करने लगा इससे सारी नागिन चोटिल होने लगी और तेज से राजा पर दौड़ी किन्तु राजा ने प्रहार और तेज कर दिया। कुछ देर तक लगातार प्रहार करने से सारी नागिन समाप्त हो गयी राजा एक संकट के नष्ट हो जाने से खुश होकर शयन करने लगा।सुबह हुई असुर कन्या उठी उसे कुछ थकान का आभास हो रहा था किन्तु वह समझ नहीं पा रही थी उठकर चली गयी राजा की भी नींद टूटी और वह अपनी नित्य क्रिया से निवृत्त होकर विचरण करने के लिए असुर कन्या से बोला।

राजा------कहता है। मैं आपकी इस नगरी की रहस्यमयी चीजों को देखना चाहता हूं बाहर के सौन्दर्य को मैं देख चुका हूं अब अन्दर के सौन्दर्य को देखना चाहता हूं आप अपने साथ मुझे इसका अवलोकन कराएं। राजा की बात सुनकर असुर कन्या मन्द स्मृति करते हुए बोली चलिए। राजा उसके साथ विचरण करने लगा। और असुर कन्या उसे रहस्यमयी चीजों को दिखाती हुई उसका महत्व बताने लगी। 

रानी------- कहती है हे राजन! देखिए यह स्वच्छ सरोवर है इसका जल जितना सुन्दर और स्वच्छ दिख रहा है यह उतना ही रहस्यमय है यह एक ऐसा सरोवर है जहां कोई हंस नहीं रहता इसमें कोई कमल नहीं खिलते हैं? न ही इसमें कोई जीव निवास करता है इसका जल अत्यंत मृदु है किन्तु राजन! इसकी एक विशेषता है------------। विशेषता बताकर असुर कन्या आगे बढ़ गयी।

 और एक उद्यान को दिखाते हुए कहती है राजन्! इस उद्यान को देखिए। इसमें ऐसे पुष्प खिले हुए हैं जिसकी सुगंधि चित्तचोरिनी है ऐसे मन मोहक पुष्प और विटप किसी भी स्थान पर नहीं प्राप्त होंगे। इसमें जो भ्रमर लिपटे हुए दिख रहें वो लिपटे ही हैं किन्तु इसका रस उन्हें नहीं प्राप्त होता और इसी लालसा में लिपटे रहते हैं कि कभी तो इसका रस प्राप्त होगा। राजन् ऐसा क्यों होता है? अब यह विशेषता सुनिए!---------- विशेषता बताती हुई आगे बढ़ जाती है।और कहती है

राजन! अब इस कुएं को देखिए। यह विचित्र कूप है इसका निर्माण स्फटिक से हुआ है और यह अत्यन्त गहरा है और इसका जल प्यारा दिखता है किन्तु इसके जल को कोई पी नहीं सकता है यह अद्भुत कूप है इसमें अनेक छिद्र हैं जो अन्या दुनिया का दृश्य दिखाते हैं किन्तु इसका जल किसी भी छिद्र से नहीं बहता है राजन! जो भी इसमें स्नान करता है वह सुखद अनुभूति करता है अब इसका रहस्य सुनिए। रहस्य बताने के पश्चात वह कहती है सूर्यास्त होने वाला है अब कल और रहस्यमय स्थान दिखाऊंगी।इतना कहकर राजा के साथ वापस आ जाती है और फल का सेवन करके शयन करने के लिए पलंग पर लेट जाती है और ऊरु प्रदेश को ऊपर की ओर की हुई असुर कन्या के दोनों चरण के मध्य में राजा अपना एक चरण रखकर उसके मुख मण्डल को धीरे धीरे स्पर्श करने लगता है। और प्रेम भरी बातें करते हुए क्रीड़ा में उसे डूबो देता है जब वह प्रेम मादकता में खो जाती है तो राजा कीटों के नाश का साधन प्राप्त कर लेता है।

 और उसी क्रीड़ा पर ठहरते हुए कहता है अग्नि के सुगलने में ही यदि ताप लिया गया तो अग्नि बुझ जायेगी अभी और बढ़ने दो, इसे आज के लिए इतना अधिक है जलती हुई ज्वाला में जलने का और ही आनन्द है असुर कन्या पूर्णता को प्राप्त होने के लिए तड़प रही थी किन्तु राजा की बात रुचिकर लगी और मन में सोची ठीक कह रहें हैं इस तड़प को बढ़ने दे तब इसका सही आनन्द आयेगा। तड़प नष्ट हो जाने पर प्रेम का आनन्द वैसा नहीं प्राप्त होता जैसे तड़प होने पर प्राप्त होता है सही आनन्द तो तड़पने में ही आता है यह सोंचकर राजा को प्रेम स्मृतियुत नयनों से देखकर वाम भाग की ओर शयन करने लगती है राजा कीटों की प्रतिक्षा में जाग रहा था कि अचानक कीट निकलने प्रारम्भ हो गये। और राजा की ओर तेजी से बढ़ने लगे तब राजा ने वह साधन निकाला जो असुर कन्या का कुण्डल था वह दिव्य कुण्डल था रात्रि में शयन करते समय वह उसे छुपाकर रखती थी जिससे कीटों के ऊपर प्रकाश न पड़े किन्तु राजा के प्रेमालिंगन में वह विस्मृत हो गयी और रख न सकी।

राजा ने उस दिव्य कुण्डल को अपने आगे कर लिया जितने भी कीट आते सब उस कुण्डल के प्रकाश से लुप्त होते जा रहे थे। अधिक समय तक यह चलता रहा पर कीटों का निकलना बंद नहीं हो रहा था तब राजा ने उस कुण्डल को उठाया और जिस मार्ग से कीट आ रहे थे उस मार्ग से उस कुण्डल को ले जाते हुए सारे शरीर पर उसका प्रकाश बिखेर दिया जिससे उसके तन से निकलने वाले कीट समाप्त हो गये। और राजा राहत की सांस लिया तथा उसका कुण्डल उसके कर्ण में थोड़ा सा लगा दिया और सो गया। प्रातः काल जागकर पुनः नित्यक्रिया करके उठा तो असुर कन्या हंसती हुई बोली क्यों राजन? चलें रहस्य का अवलोकन करने राजा भी चाहता ही था बोला चलिए। दोनों उठकर कर चल पड़े। और असुर कन्या रहस्यमय स्थानों को दिखाना प्रराम्भ की। 

व्रतति--- कहती है राजन्! ये प्राचीर देख रहें हैं ये बहुत पतली है किन्तु देखने में कितनी सुन्दर है और ये प्राचीर किसी पत्थर की नहीं अपितु -------- यह बताती हुई उसके किनारे किनारे चलने लगी और उसका रहस्य बताती हुई।एक जंगल के पास खड़ी होकर कहती है राजन ये जंगल देख रहें हैं,ये है तो छोटा सा किन्तु बहुत विशाल है। रहस्य बताकर कहती है इसमें वस्त्र के समान सुन्दर-सुन्दर वृक्ष की छालें हैं। जो धारण करने पर मनमोहक लगते हैं। 

राजा------ कहता है देवि! मैं तुम्हें इन छालों में देखना चाहता हूं क्या यह अभिलाषा मेरी पूरी होगी।

व्रतति----- कहती है अवश्य राजन! और उस जंगल की ओर देख वृक्ष से छाल खींचकर अपने समस्त वस्त्रों को उतारकर धारण कर लेती है वल्कल के मध्य उसका यौवन सौन्दर्य देखकर राजा मन में विचार करने लगता है। इसका नवस्फुटित यौवन कंधे पर बंधे हुए सूक्ष्म गांठ वाले तथा दोनों स्तनों के विस्तार को ढांपने वाली छालों के कारण उसी प्रकार अपनी शोभा को पुष्ट नहीं कर पा रहा है जैसे- पीले पत्तों से ढंका हुआ पुष्प अपनी पूरी शोभा नहीं प्रगट कर पाता। सेवार से आच्छादित होने पर भी कमल सुन्दर ही प्रतीत होता है मलिन होने पर सुधाकर का कलंक शोभा का ही विस्तार करता है।उसी प्रकार यह गौरांगी छालें धारण कर और अधिक मनोहर दिखाई पड़ती है।वस्तुत स्वभाव से मधुर लगने वाली आकृतियों के लिए भला कौन सी वस्तु अलंकार का साधन नहीं बन जाती। इस मृगनयनी के कोमल शरीर के लिए यद्यपि ये छालें कठोर है तथापि जैसे जल से किंचित् बाहर निकली हुई विकसित कमलिनी का अपना कर्कश वृन्त समूह किसी भी प्रकार अरुचिरकर नहीं लगता वैसे ही इसके द्वारा धारण की गयी यह रूक्ष छालें मन की रुचि में किसी प्रकार का विचार उत्पन्न नहीं करती।

व्रतति---- कहती है मैं इस छाल को अधिक कसकर बांध ली हूं अतः हे राजन! आप इसे थोड़ा सा ढ़ीला कर दीजिए।

राजा----- उसकी बात सुनकर मन में कहता है। यहां तो तुम्हें अपने उभरे हुए स्तन को तथा रोमांचित यौवन को उलहना देना चाहिए अपने आप को नहीं यह कह ही रहा था कि पुनः बोल पड़ी। हे राजन्! इसे ढ़ीला कर दीजिए।

राजा------ उसकी बात सुनकर धीरे धीरे अपलक देखता हुआ उसके पास जाकर धीरे से पुष्प के समान स्पर्श करके ढ़ीला कर दिया कि अचानक वह घूमकर राजा से लिपट गयी और हृदय से लिपटकर बोली ।

व्रतति---- हे राजन अब मुझसे तड़प की अग्नि सहन नहीं होती है अब इस विवशा पर करुणा करके अपना प्रेम जल इस पर बरसा दीजिए मुझ पुष्प के लिए भ्रमर बन जाइए और अपने प्रेम रस में मुझे पूरी तरह भिगो दीजिए। इतना कहकर वह नृत्य करती हुई गान करने लगती है।


      ।गीत।

घुमड़ घुमड़ ललचाए बदरिया

तन उपवन हर्षाए कजरिया।

उमड़ घुमड़ मुस्काए बदरिया।


हार कण्ठ पग सुम की पायल

मन बहाकावे कर कर घायल

बरस रहा घन यौवन मेरा

पी निर्मोही यह रस तेरा

पी अमृत बिखराए नजरिया।


भर ले बांह रहे न खाली

तड़प रही यह तन की डाली

मत छलका ऐसे घट यौवन

सब्र दिखा मत कर यूं हाली

जिन भटका ना री बाली उमरिया।


जलती हूं यौवन की अगिया

चूम ले साजन रस की बगिया

सागर पास है प्यास बुझा ले

वो ज़ालिम आ रास रचा ले

रात दिना पथ ताके गुजरिया।


तेरा प्यासी पास खड़ी है 

तब क्यूं यह जिद आज अड़ी है

कैसे? प्यास बुझाऊं कमलिनी

कैसे? बनाऊं तोहे आज संगीनी 

दूझी रे दूझी मन बहती बयरिया।


दोनों गीत के साथ ही एक दूसरे में खो जाते हैं राजा अवसर पाकर अपना अन्तिम कार्य पूर्ण कर लिया और दोनों वहां से महल में चले गये रात्रि में शयन किए।अगला दिन हास परिहास में बीत गया रात्रि हुई राजा उसके साथ लेट गया किन्तु उसे नींद नहीं आ रही थी क्योंकि आज की रात्रि अन्तिम रात्रि थी संकट की।वह शयन करने लगी तो उसके कर्ण से मल निकलने लगा। यह देखकर राजा नीचे उतर कर अग्नि मंथन करने लगा कि सारा मल राजा के शरीर में लिपट गया उसमें रहने वाले कीड़े उसे काटने लगे। किन्तु राजा मंथन करता ही रहा और अन्त में अग्नि प्रकट हो गयी अग्नि को देखकर राजा तत्क्षण उसका वह स्तन वस्त्र अग्नि में फेंक दिया जिसके धुएं से सारे मल नष्ट हो गये ।और राजा के प्राण बच गये। सारा संकट समाप्त होने के पश्चात राजा निश्चिंत होकर शयन करने लगा सुबह हुई।

आज व्रतति को कुछ अच्छा महसूस हो रहा था मानो उसके शरीर का बोझा समाप्त हो गया है। अंगलाई में अपने शरीर को कसती हुई राजा की ओर स्मृति के साथ देखने लगी।कि राजा की नींद उसी समय टूट गयी। 

राजा ----- उसे देखकर बोला ऐसे क्या देख रहीं हैं प्राण लेने की आकांक्षा है क्या? 

व्रतति----- हाय! अभी तो बहुत कुछ करना है प्राण तो अन्तिम भोग है।

राजा------ तुम्हारे पास पुरुषानीक नहीं है तुम अपनी रक्षा इन सेविकाओं से कैसे करती हो।

व्रतति---- हंसती हुई बोली अच्छा! तो आपको पुरुष सेना देखनी है 

राजा------ हां।

व्रतति------ चलिए! दोनों चल पड़े। देखिए! ये मेरी सैन्य गुफ़ा है इसमें एक से एक वीर हैं। राजा ----- बोला। मुझे इनकी वीरता का रहस्य नहीं बताओगी।

व्रतति------ क्या करेंगे जानकर? राजन! जानकर भी आप इनको पराजित नहीं कर सकते हैं।

राजा------- बताओ तो सही।

व्रतति------ चलिए! इसके अन्दर प्रवेश करते हैं। दोनों अन्दर चले गये।व्रतति की गुफ़ा में तीन वीर थे बोली राजन! इन्हें देखिए ये तीन ही तीन लाख सेना के बराबर हैं इन्हें आज तक कोई पराजित नहीं कर सका है। अब इनके बारे में सुनिए! ये जो अर्ध नग्न दिख रहा है इसे भूख प्यास नहीं लगती है यह किसी शस्त्र के प्रहार से चोटिल नहीं होता।शत्रु की ओर से आने वाला शस्त्र ही इसका भोग है इसे अंधेरा रुचिकर नहीं लगता है इसलिए यह सदैव प्रकाश के मध्य पड़ा रहता है।इसका नाम आतमी है

इसे देखिए! ये नरभक्षी है इसे मांस ही पसन्द है ये हर अवस्था में रह सकता है इसके शरीर से ये अस्थियां कभी पृथक नहीं होती हैं इसके लिए हर सेना सामान्य कण सी दिखाई देती है। इसका नाम धूमगन्ध है

इसको देखिए! ये देखने में तो पुष्ट शरीर का नहीं है किन्तु सहस्रों पुष्ट शरीर वाले पुरुष को धूल चटा देता है इसकी एक महानता है और यह कभी अपने पैर से वार नहीं करता इसके हाथ में ही इतनी शक्ति है कि पैर के प्रहार की आवश्यकता नहीं होती है। इसका नाम अपादी है

राजा------ सारी बात सुनकर हंसते हुए बोला ये सब तो सामान्य योद्धा हैं मेरे लिए इन्हें पराजित करना कोई कठिन नहीं है एक क्षण के लिए व्रतति को क्रोध आया किन्तु शान्त मन से कहती है। 

व्रतति------ इन्हें साधारण मत समझिए और इनसे उलझने की भूल मत कीजिएगा क्योंकि मैं आपको खोना नहीं चाहती हूं

राजा------ बोला देवि! इनसे दो-दो हाथ करने का मन कर रहा है यदि मैं जीत गया तो मैं तुम्हारी रक्षा के लिए सदैव हूं ही और यदि हारने लगा तो तुम्हारे सैनिक हैं तुम मुझे बचा लेना।

व्रतति ---- हंसती हुई बोली ठीक है मैं देखती हूं जिसकी मैं दीवानी हूं उस मर्द में कितना बल है‌।

राजा -----कूद पडा। राजा को वो जब तीनों मारने के लिए एक साथ बढ़ने लगे तो अपादी ने सिर हिला कर मना किया और राजा की ओर दौड़ पड़ा दोनों में भीषण युद्ध होने लगा लड़ते -लड़ते सांझ निकट आ गयी। राजा को ऐसी मार मारा था कि राजा पहले योद्धा में ही यह समझ चुका था कि अब जीत नहीं सकता यह सोचने लगा कि सचमुच ये निर्दयी मार डालेगा इससे जीतना बड़ा कठिन है यह विचार करने लगा तो सहसा उसे व्रतति की बात याद आई। और राजा लेट गया वह राजा को पकड़ने के लिए जैसे ही निचे झुका कि राजा वहां से लेटते हुए हट गया बहुत देर तक परेशान होकर अपादी क्रोध में अपना सन्तुलन खो दिया और पैर उठाकर मारने के लिए उद्यत हुआ कि उसी समय राजा खंजर निकालकर उसके पैर के तलवे में चुभो दिया पैर में चुभते ही अपादी दर्द से चिल्लाते हुए नीचे गिर पड़ा और मृत्यु को प्राप्त हुआ। यह देखकर वो दोनों राजा को मारने के लिए दौड़ पड़े।राजा की हालत वैसे भी वो ख़राब कर चुका था उन दोनों को देखकर राजा समझ गया कि अब नहीं बचूंगा।किन्तु खड़ा हुआ और युद्ध के लिए तत्पर हुआ कि दोनों का प्रहार राजा पर लगातार होने लगा खंजर चलाने का अवसर ही नहीं प्राप्त हो रहा था कि अचानक हांथ उठा और खंजर धूमगंध की अस्थियों पर पड़ा वे कट गयी जिससे धूमगंध छटपटाने लगा और मृत्यु की शरण में चला गया ।

व्रतति----- यह सब देखकर आश्चर्य में पड़ी हुई थी किन्तु उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था आतमी राजा को मारने के लिए दौड़ा और बहुत देर तक मारता ही रहा ‌। किन्तु राजा भी वज्र का ही था इतनी मार खाने के बाद भी दम नहीं तोडा। और युद्ध करता रहा सांझ हो गयी राजा युद्ध की रणनीति बदल कर भागने की कला अपनाया और मसालों की ओर भागते हुए मसालों को बुझाने लगा सारी मसालों के बुझते ही अंधेरा छा गया और वह अंधेरे में तडपने लगा सनपात कर और चीखते हुए मृत्यु में लीन हो गया।

व्रतति----- यह देखकर आश्चर्य में पड़ गयी और मसालें जलाकर बोली धन्य हैं राजन! आपके बुद्धि की कुशलता को देखकर मैं आपकी प्रसंशा नहीं कर सकती हूं क्योंकि मेरे पास शब्द नहीं हैं राजा के जीतने की प्रसन्नता तो उसे थी किन्तु सैन्य शक्ति के नष्ट हो जाने से उसे दुख भी था रात हो गयी थी दोनों अपने शयन कक्ष में चल पड़े।


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