आचार्य आशीष पाण्डेय

Inspirational

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आचार्य आशीष पाण्डेय

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नार्यादिनारी

नार्यादिनारी

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नारी विधाता की सृष्टि शक्ति की यथार्थ पुंज है जिसका बिना विधाता सृष्टि तो कर सकती है विस्तार नहीं कर सकती है मानसिक संकल्प से तपस्विनी सृष्टि कर सकती है सृष्टि को अनंत नहीं करता है सृष्टि में वृद्धि के लिए उसे महिला की सहायता लेने की घोषणा । 

जैसे मकड़ी को अपना विस्तार करने के लिए तंतु का सहयोग लेना है उसी प्रकार सृष्टि के विस्तार के लिए महिला का सहयोग लेना है। किस स्त्री का महत्व अधिक मात्रा में है नारी में शक्ति है वो चाहे तो विधाता को भी नरक का अधिकारी बना शक्ति है नारी चाहे तो सामान्य मनुष्य को ब्रह्म लोक की प्राप्ति करा सकता है।। जिस प्रकार जल बिना नदी रुचिकर नहीं लगती है उसी प्रकार विना नारी के विधाता की सृष्टि रोचक नहीं लगती है। नारी जीवन दायिनी है तो जीवन हारिणी भी है। जिस प्रकार विधाता अपनी सृष्टि का संचालन करती है उसी प्रकार नारी भी अपनी सृष्टि का संचालन करती है। नारी हरिणी के सदृश्य चंचल है तो अजगर की तरह अंचंचल। नारी सर्व शक्ति युत भी है और अयुत भी। नारी का महत्व कौन है या ये कहता है। स्वयं नारी का भी अपना महत्व दें तो उज्ज्वलता संबंधी विचार। नारी नहीं तो सृष्टि तो हो सकती है जो आनंददायक रस वो सृष्टि नहीं दे सकती। नारी की शक्ति का मूल्यांकन निर्धारण विधाता के के लिए संभव नहीं है तो सामान्य जन के कहने ही क्या? नारी का सामर्थ्य तो विधाता को भी बालक रहने के लिए झूने के लिए विवश करता है तो सामान्य आदमी इससे क्या लड़ेगा। जब विधाता भी लड़ती हुई नारी से पराजय स्वीकार कर लेती हैं तो कोई क्यों नहीं करेगा। नारी अवलेहना परा शक्ति की उधेड़ना है जो एक मात्र विनाश को गति देती है। नारी का जीवन संबंध की संबंध डोर से बंधा है जो जरा भी सख्ती हुई है तो टूट सकती है नारी ही ऐसी है जो तोड़ती भी है और बचाती भी है। नारी का हृदय नदी का तट है जो कभी शान्त नहीं रहता। इसलिए नारी इस प्रकार से कार्य में प्रवीणा होती है। और जीवन के अंत तक इस प्रवीणता को बचाए शत्रु है इसलिए नारी महान है क्योंकि उसके पास महान गांभीर्य और सामर्थ्य है। संबंधों की नदी में नारी का जीवन घाट का धोबी हो गया है जो हमेशा यह आभास प्राथमिकता रहती है कि पाकिस्तान के साथ कैसा व्यवहार करता है। नारी की उपलब्धि पुरुष से अधिक है नारी चौकियों की सामर्थ्य में नहीं है। नारी स्वयं को अल्पभाष है जब कि नारी अल्प नहीं है नारी का ये सबसे बड़ा त्याग है जो आपके पति, देवर, ससुर या अन्य पुरुष रुपी रिश्ते को श्रेष्ठ स्थिति में अपना यश अपने से दीर्घ कर देता है। यह त्याग पुरुष का नहीं है यह त्याग नारी का ही है जो केवल वही कर सकती है नारी तो कभी बड़ा बनना ही नहीं चाहती है क्योंकि इसमें शामिल समर्पण की भावना है अधिक है और वह पुरुष को समर्पित करती है कि उसकी भावनाओं की कद्र करें क्योंकि जो आदरणीय पुरुष उसे देते हैं कोई भी नारी का समर्पण नहीं दे सकता है जो हर तरह से पुरुष को अपनी श्रेष्ठता से ऊपर उठाता है बनता है। नारी का हृदय दान का समन्दर है और नारी का हाथ खाली आकाश जो सब कुछ भरता भी खाली दिखता है और सब को जो हो सब कुछ देखता है। विधाता को सृष्टि करने की क्षमता भी नारी ही प्रदान करती है क्योंकि सृष्टि करने की क्षमता नारी में ही थी चाहे वो सामान्य हो या परा शक्ति हो। नारी की अभिलाषा कोई पूर्ण नहीं कर सकती पुरुष की अभिलाषा नारी पूर्ण कर सकती है।

नारी की ही सामर्थ्य है जो विधाता को भी चुनौती देती है और बच्चा पालने की चार दीवारी में कैद कर देता है। नारी के सामर्थ्य को उसी प्रकार नापा नहीं जा सकता जैसे आकाश की गहराई को नापा नहीं जा सकता है या ये कह नारी का सामर्थ्य आकाश की गहराई है। नारी का जीवन आदर्श पूर्ण है जो सदैव सन्निर्णय में संलग्न रहता है। नारी का अस्तित्व इस संसार में प्राण है जो नष्ट होने के बाद संसार का अस्तित्व समाप्त कर देता है। नारी का मन जल है जो ऋतु के अनुसार व्यवहार करता है। नारी सब कुछ देकर भी धनवान है पर पुरुष उससे सब कुछ लेकर भी निर्धन है। नारी पुरुष से अधिक है फिर भी वो कितना महान है श्रेष्ठ भी स्वयं को अल्पाहार है। नारी आदि थी और आदि रहेगी। नारी मेंढक मेघ है जो हर रिश्ते में महान है और जीवन दायिनी और सुख प्रदायिनी है।।


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