आचार्य आशीष पाण्डेय

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आचार्य आशीष पाण्डेय

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प्राचीन नारी

प्राचीन नारी

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प्राचीन नारी संघर्ष रूपी ज्वालामुखी में भी ठंडक ढूंढ कर रहती थी या ये कहे कि प्राचीन नारी संघर्ष रूपी सागर से अमृत निकाल लेती थी अनेक कठिनाइयों का सामना करने के पश्चात भी प्राचीन नारी के मुख की चारुता अल्प नहीं होती थी। 

उसकी सौन्दर्यता,सौकर्यता,सौरष्यता तिलस्मिता,आकर्षण,विमोहन, स्तम्भन,पद्म परागिता,मुस्कुराहट,पुण्यता,साधुता,मंजुलता अनेक कष्ट में रहने पर भी शिथिल नहीं होती थी।

वे अग्नि के लपटों के समक्ष बैठी रहती थी फिर भी मुख पर झुलसाव नहीं होता था। मर्यादा का,आचरण का, संस्कार का,नीति नियमों का, प्रथाओं का, कुरीतियों का, उन्हें भली-भांति ज्ञान था और वे उसके अनुसार जीवन व्यतीत करती थी।। उन्हें उचित-अनुचित धर्म अधर्म, तथा व्यवहारविद थी उनका जीवन कितना कठिनाई पूर्ण था उसका अनुमान लगाना कठिन है बस मुख से इतना कह सकते हैं उनका जीवन बहुत कठिन पर उत्तमकोटि का था

पहले की स्त्रियां स्वच्छ वस्त्र पहनकर भोजन बनाती थी जिसे अब समाज ठकोसला की संज्ञा देता है और चप्पल जूता बहनकर,बिना पैर धोए भोजन में जुट जाती हैं वो इनके विचार से उत्तम कोटि का है पहले की नारिया दिन भर कार्य करती थी परिवार में रहने वाले बीसों सदस्यों को अकेले बनाकर खिलाती थी वो कितनी महान थी पर आज कि नारियों का हाल जान ही रहें हैं प्राचीन नारी दो घंटे सोती थी उसकी नींद पूरी हो या न किन्तु वो तीन बजे से ही जांत - चाकी पहरुआ पकड़ कर जुट जाती थी लोगों के लिए उनका संघर्ष सराहनीय है छोटे से घर में पूरा परिवार रह लेता था किन्तु अब? प्राचीन नारी का मुख लोग वृद्धावस्था तक नहीं देख पाते थे किन्तु अब? मुख की छोड़ो वो तो बहुत पीछे है कूटना पीसना, बनाना, खिलाना, माजना, धोना,बुहारना,और ऊपर से सेवा सबकी करना सासु का पैर दबाना,बाल झाड़ना, बच्चों की देखभाल करना,पति की सेवा करना और डाट खाना मार खाना ये सब वो हंस सह लेती थी और हंसकर कर लेती थी उनके चेहरे का निखार शिथिल नहीं होता था पहले की स्त्री पति का दिल अपने कर्तव्य पालन से जीतती थी किन्तु अब कि स्त्री अपने सौन्दर्य से जीतना चाहती है जीत भी लेती है किन्तु बस दो महीने जब उसके निखार का पूर्ण स्वाद चख लेता है तब वो पुरुष निर्लज्ज होकर किसी और निर्लज्जा की खोछ करने लगता है और आधुनिक पत्नी का प्रेम अल्प हो जाता है किन्तु वो प्रेम पति के मन से तब नहीं होगा जब वो नारी अपने कर्तव्यों को ध्यान में रखकर उसका निर्वहन करेगी। पहले कि स्त्री कूंए से पानी भरती थी चरखी चलाती थी गाय लगाती थी मट्ठा मारती थी किन्तु अब क्या है? जै प्राचीन हैं वो अब भी वैसा ही आचरण करती हैं किन्तु? पहले की स्त्रियों की आवाज़ कोई बाहर वाला नहीं सुन सकता था यहां तक पास में खड़ा व्यक्ति भी सास - बहू की बात नहीं सुन पाता था किन्तु अब? नारी स्वयं से आचरण,कर्तव्य,धर्म, मर्यादा, नीति, नियमों का पालन करेगी तो हो सकेगा और वह भूलोक कि छोड़ो द्युलोक में भी सम्मान के पात्र होगी। हमारे एक पड़ोसी हैं वे समाज से अपनी बहुओं को बचाने के लिए ताकी समाज उन्हें देख न सके उनसे बात न कर सके इसलिए वे चारो तरफ प्राचीर बनवा दिए किन्तु जब बहुएं आयी तो वे छत पे चढ़कर महायुद्ध करती हैं तात्पर्य यह है कि

नारी को कोई विवश नहीं किया है वो स्वयं को विवश महसूस कर रही है जिसके कारण उसे भ्रम हो गया है और आजादी के लिए नारा लगाती है प्राचीन नारी को क्या ज्ञान नहीं था बहुत था आज की नारियों से हजार गुना ज्यादा ज्ञान था उन्हें युद्ध नीति,राजनीति का भी ज्ञान था फिर भी वो बंधन का जीवन व्यतीत करेंगी नहीं किन्तु कर रह थी क्योंकि वो बंधन नहीं था उनकी महानता का एक अवर्णनीय प्रमाण था। जिस को आज की नारी ठुकरा रही है 


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