कसक
कसक
तमन्ना कलेक्टर बनने की पर किरानी क्या अर्दली भी न बन पाया। रह गया तो एक मलाल एक कसक ताउम्र के लिए ।
अब घर परिवार रोजी रोटी तो चलाना है। खेती बाड़ी भी कम। बिजनेस का हूनर नहीं, करें तो करे क्या?
पढाई-लिखाई तालिमी सीमा की अंतिम छोड़ तक। कोचिंग ट्यूशन एक विकल्प, परंतु स्थायित्व पर प्रश्न चिह्न। कब खान सर जैसे महान शख्सियत बगल में कोचिंग सेंटर खोलकर बैठ जाए । फिर धंधा चौपट।
अन्तर्द्वन्द में मन और पराकाष्ठा पर मन की पीड़ा। जिंदगी भर बंद कमरा से बाहर कभी निकला नहीं सो आम जनता के बीच कोई पहचान भी नहीं। मतलब वार्ड मुखिया तक के चुनाव में भी कोई गुंजाइश नहीं।
चोरी बेइमानी रग में नहीं। नैतिक शिक्षा की गहरी पैठ।
यह किसी कहानी का स्लाॅट नहीं बल्कि हकीकत है उन होनहार छात्रों का जो जी तोड़ मेहनत करने के बाद भी किसी सेक्टर में स्थान नहीं बना पाते हैं।
कभी समय दोष तो कभी व्यवस्था दोष। न जाने कब तक ऐसे छात्र मंत्री संतरी अफसर के स्वार्थ सिद्धि के कोपभाजन का शिकार होते रहेंगे।
बुझी हुई अस्थिपीड़ा एकाएक फिर टीस मार जाती है जब वैसे छात्रों से एकाएक मुलाकात हो जाती है जो दूर दूर तक भी कंपीटिशन में नहीं था परन्तु एन केन प्रकारेण जगह पर पहूंच बैठे हैं।
मन में एक हीन भावना अलग से ग्रसित करने लगती है आखिर मैं उम्र की इस दहलीज पर माता पिता का बोझ तो नहीं ? पर कर ही क्या सकते हैं।
जिंदगी है चल तो जाएगी ही। पर एक बोझ खुद पर या खुद एक बोझ जिंदगी पर।
निष्कर्ष व निदान
1.बच्चे को पिंजरे का तोता या किताबी कीड़ा न बनायें
2.एक आध कौशल शिक्षा जरूर दें
3.सामाजिकता से अवगत कराएं
4.बेलगाम बढ़ती जनसंख्या आने वाले समय में रोजगार की विकट समस्या पैदा करने वाली है। इसलिए फिजूलखर्ची से बचें और अगले पीढ़ी के लिए कुछ न कुछ संचित करने की कोशिश करें।
5.पूत कपूत तो क्यो धन संचय, पूत सपूत तो क्यो धन संचय” का सिद्धांत सही है पर समय के साथ धन संचय जरुरी है।