Rajeshwar Mandal

Abstract

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Rajeshwar Mandal

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प्रतिष्ठे प्राण

प्रतिष्ठे प्राण

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आर्थिक रूप से मध्यमवर्गीय परिवार से वास्ता रखने के कारण पैसे पर पकड़ कुछ ज्यादा है। एक बार यदि कहीं से कुछ आमदनी आ गया तो फिर पाॅकेट से निकालना मुश्किल । सो बड़ी ही हिसाब किताब से चलना पड़ता है। तब कहीं जाकर दू - चार हजार रुपए जमा होता है।

कभी कभी दोस्त यार चिढ़ाने लगता है। धत यार। क्या मरियल सा जिंदगी जीते हो। ये जिंदगी फिर मिलेगी न दोबारा सो खुलकर जीयो। पैसा तो मुट्ठी का मैल है। ब्रेन वाश होते ही अंबानी मन जागृत हो उठता है।

पिछले महीने ही इसी तरह ब्रेन वाश हो गया। ए टी एम निकाला और धांय धांय ए टी एम से पांच दस हजार रुपए निकाल कर चल दिए शापिंग के लिए। 

उधर माॅल में दुश्मन सब पहले से बैठे थे। जैसे माॅल में घुसा कि पांच गो शुभचिंतक चारों ओर से घेर लिया ।

 सर सर सर ये वाला पहिन के देखिए न ,आप पर खुब जमेगा। हमको तो लगता है आप ही के लिए कंपनी ने इसे डिजाइन किया है सर।

उधर से दुसरा बोला क्या सर आप भी न। जब एतना ले ही लिए है तो एक बार ये वाला फास्ट्रैक का रेक्टेंगल चश्मा ट्राई कर के देखिए न, उधर रहा ट्रायल रूम सर।

 क्या झकाश लग रहे हो सर। शाहरुख सलमान सब फेल। बोलो तो बिल बना दे। कंपनी आॅफर चल रहा है सर। अभी मात्र 5599/- ही पड़ेगा सर। दिवाली आॅफर चल रहा है सर। यही चीज़ दस दिन के बाद लीजिएगा तो 6999/- पड़ेगा सर।

 नगदी नहीं लाए हैं तो कोई बात नहीं है सर । फोन पे गुगल पे से ही ले लीजिए सर। मोबाइल में बैलेंस नहीं है सर तो क्रेडिट कार्ड से भी ले सकते हैं सर। आप तो अफसर जैसे लगते हो सर। क्रेडिट कार्ड तो होगा ही सर।

 हमको आज तक गली का कुता भी न पुछा था सो पांच मिनट में पचास बार सर सर सुनते ही मन गदगद हो गया। नहीं लेने वाला चीज भी लाजे लेना पड़ा। मन ही मन सोचने लगे खाली हाथ जाने पर क्या कहेगा ये लोग। धांय धांय सबका बिल एक साथ निकाला कूल 15599/- मात्र। 

माॅल से निकला कि नहीं दो चार गो दुश्मन गेट पर पहले से खड़ा था। क्या बात क्या बात। आज तो तुम तिजोरी खोल दिया ब्रदर। पार्टी तो बनता है। कितने दिन बाद मिले हो। फिर रेस्टोरेंट बिल 1599/- मात्र।

बचपन में सुनते थे निन्यानबे का चक्कर। अब समझ में आया माॅल वाले हरेक सामान के दाम के अंत में निन्यानबे काहे रखते हैं।

मन खुश भी नाखुश भी। नज़र कभी ड्रेस पर तो कभी पाकेट पर। जब उखली में मूंह डाल ही दिये तो डर किस बात कि।

दो चार दिन तो ठीक ठाक लगा। बाद में बड़का हेडेक। 

एस बी आई, सेन्ट्रल बैंक, एक्सिस बैंक सबका बैलेंस नील ।

अगले महीने बिजली बिल ड्यू, स्कूल फी ड्यू, दुध, पेपर, किराना दुकान सबका बिल ड्यू?

घर से अलग ताना। ई बुढापा में इनका शौक तो देखिए। सठिया गये है का जी। मिले मांड़ न पेप्सी का शौक।

कान पकड़े आज के बाद फिर माॅल नहीं के बराबर जाता हूं। और यदि जाता भी हूं तो कान को बहरा कर लेता हूं। कितनों ही सर कहे या लीचर कहे कोई फर्क नहीं पड़ता है। चुपचाप मुड़ी गोंतकर बाहर निकल जाते हैं।

आज की दास्तान यहीं समाप्त           


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