पुष्पा झुकेगा नहीं
पुष्पा झुकेगा नहीं
सिर्फ़ इक क़दम उठा था ग़लत राह-ए-शौक़ में l
मंज़िल तमाम उम्र मुझे ढूँढती रही ll
एक हाथ में आधार कार्ड और दूसरे हाथ में पानी बोतल। वैसे तो कोर्ट में हाजीर होने का समय एग्यारह बजे है परंतु टेंपु से थोड़ा जल्दी पहुंच गयी है आज।टाइम पास करने के लिए कचहरी प्रांगण के बाहर खड़ी खड़ी बिल्डिंग को यूं ही निहार रही है।लोगों का आना जाना शुरू हो गया है। यह इंडिया का कचहरी है। होम्योपैथी युनानी डाॅक्टर की तरह हर एक मर्ज की दवा मिलती है यहां।एफिडेविट के सहारे जन्म प्रमाण पत्र से मृत्यु प्रमाण पत्र के बीच का सारे प्रमाण पत्र।
सो भिन्न-भिन्न कैटेगरी के लोगों का आना जाना रहता है यहां। भले लोग भी और बुरे लोग भी।एक लफंदर टाइप लड़के ने तंज कसा - इतनी सुन्दर है तब पति इसे काहे छोड़ दिया रे बाबा।
दुसरे ने नहला पर दहला मारा- अरे बड़ी घालमेल है इस सुंदरता में । हो सकता है सुंदर हो पर शालीन न हो।
तीसरे ने बात संभालते हुए दोनों को फटकारा । भागते हो कि नहीं यहां से। बेचारी दुखियारी है तब न आई है यहां। नहीं तो किसको शौक है तुम्हारे जैसे लोगों के ताने सुनने का।
अर्दली ने तेज आवाज में पुकार लगाया -"रुनझुन बनाम किसन हाजिर हो ऽऽऽ"
दौड़ते पड़ते दोनो पक्ष कोर्ट में हाजिर होते हैं। मामला तलाकनामा का है। गलती किसकी है किससे हुई है यह उन दोनों से बेहतर कोई नहीं बता सकता है। तारीख पर तारीख पर कोई हल नहीं। मेडिएटर टीम के द्वारा लाख समझाया गया पर कोई सुनने को तैयार नहीं। स्टैंड बिल्कुल क्लीयर " पुष्पा झुकेगा नहीं".!
यह कोई कहानी नहीं बल्कि फैमिली कोर्ट के हर एक केस का मजमून है। आश्चर्यचकित करने की बात यह है की इस तरह के मामलों में पढे लिखे और समझदार दम्पतियों की तादाद या यूं कहे की प्रतिशत ज्यादा है।
अब सवाल है इस तरह के मामलों में पढ़ें लिखे लोगों या संपन्न लोगों का प्रतिशत ज्यादा क्यों?
यह एक अनुत्तरित प्रश्न है । परन्तु जहां तक मेरी समझ है ऐसा इसलिए होता है कि दाम्पत्य जीवन के प्रैवेसी में पढ़े लिखे, अनपढ़, समझदार और नासमझ सबकी सोच एक जैसी होती है। सब चाहता है कोई क़दम ऐसा न उठे जिससे जगहंसाई हो। बावजूद इसके कुछ दम्पतियों को देखा गया कि वह गाहे बगाहे इस तरह की ग़लती कर बैठते हैं। परिणाम होता है मनमुटाव की फूंसी। हल्की फुल्की बहस, और अंततोगत्वा थक हार कर न्यायालय का शरण। जहां लंबी लड़ाई के बावजूद मिलना कुछ नहीं है सिवाय पैसे, समय और प्रतिष्ठा की बर्बादी।
दस साल पंद्रह साल की लंबी लड़ाई का अंतिम परिणाम मिलता है तलाकनामा का एक कागज। एक ऐसा प्रमाण पत्र जो तो जीत का सर्टिफिकेट है परंतु असलियत में वह होता है हार का मेडल।