थ्री डी इमेज़
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मनोहर बाबू एक उच्च पदाधिकारी है। उनका विभाग आम जनों के सरोकार से जुड़ा हुआ है।
बात व्यवहार की बाबत बात की जाए तो मिलनसार और मृदुभाषी है। अच्छे पदाधिकारियों की सूची में प्रथम स्थान पर आते हैं। कोई ऐसा व्यक्ति नहीं होगा जिनके मोबाइल में उनका फोन नंबर अथवा हाय - हैलो का मैसेज न हो।
लोग एक दूसरे को मैसेज दिखाकर गर्व की अनुभूति करते और कराते रहते थे।
करीब तीन साल बीतने के बाद दो चार दिन पहले उनका स्थानांतरण हो गया। जिससे जितना हो सका बढ़ चढ़कर जोरदार तरीके से बिदाई गिफ्ट दी गई।
चौक चौराहों पर दो दिनों से जहां देखो उन्हीं की चर्चा। नागो बाबा के चाय दुकान पर ठेकेदारों बिचौलियों का जमावड़ा
लगा हुआ है। साहब के कार्यकाल में किसने कितना कमाया। चर्चा छिड़ते ही सब मौन हो गया। ऐसा लग रहा था कि सब कोई कुछ न कुछ छुपा रहे हैं।
कुछ देर के खामोशी के बाद सलीम चाचा बोले - हम बताएं, विश्वास करोगे। सब कौतूहल भरी निगाहों से उनकी तरफ देखने लगे। एक लंबी सांस लेते हुए बोले। खर्चा रुपया आमदनी अठन्नी।
किसी ने झट से टोका - मतलब?
प्रत्युत्तर में चाचा बोले गुलदस्ता का भी दाम नहीं निकल पाया।
इतना सुनते ही मानों सबने सुकून की सांस ली।
बारी बारी सब खुलते गये। मी टू ( मैं भी उसी श्रेणी में हूं)।
एक गहरी सन्नाटा.......!
किसी ने पीछे से मद्धम आवाज में बुदबुदाया। जितना सीधा समझते थे वैसा नहीं थे वो साहब। डायरेक्ट डील कर लेते थे। साहब सबके थे पर किसी के न थे । थ्री डी इमेज।