योग
योग
उमर पचपन का और काया बचपन का। ये वाला फार्मूला नहीं चलेगा।
जब बचपन में पचपन का दिखना सही नहीं है तो पचपन में बचपन सा दिखना भी सरासर नाइंसाफी है। बात बराबर।
उमर हो गया है तो उमर के हिसाब से देह भी भारी भरकम होना चाहिए, नहीं तो मेला ठेला में कोई भी धकिया के आगे निकल जाएगा।
पातर दुबार शरीर बिमारी और गरीबी का निशानी है। उसपर से भी यदि आप साधारण कपड़ा पहिन लिए तो रेलवे स्टेशन पर कोई अठन्नी चौवन्नी थमाकर आगे निकल जाएगा।
शरीर थोड़ा मोट सोट है तो क
हिंयो लोग इज्जत देगा। भले ही फूल ड्रेस बट नील पाॅकेट क्यों न हो। पर प्रथम दृष्टया लोग आपको खाते पीते परिवार से ही समझेंगे।
रामदेव बाबा अपना बिजनेस चलाने के लिए योग कराओ रोग भगाए का सिद्धांत लाये है। पर हकीकत में ऐसा कोई बात नहीं है, यदि योग से रोग ठीक होता तो पतंजलि दवाई काहे बनाता।
इसलिए बात मेरी मानिए। कसरत वसरत छोड़िये। जो है जहां है जैसा है वाले नीलामी संदेश को आत्मसात करिये। खाइये पीजिए मस्त रहिए।