कहानी का बनना बिगड़ना
कहानी का बनना बिगड़ना
आज़किसी एक पाठक से यूहीं अचानक मिलना हुआ।मेरे नये किताब के बारें में वह पूछ रही थी। मैं भी अपनी आगामी किताब के बारें में उत्साह से बताने लगी। मुझे उनका मेरे लेखन के बारें में बात करना अच्छा लगा।किसे अच्छा नहीं लगेगा भला ?
मैनें बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, “कोई जेनुइन फीडबैक या कोई सजेशन है आपकी तरफ़ से?”वह कहने लगी, “आप की ज्यादातर कहानियाँ वर्किंग वूमेन को रिप्रेजेंट करती सी लगती है।मैनें कहा, “ऐसा तो नहीं हैं। मेरी कहानियाँ मेनली स्त्री विमर्श पर होती है जिसमे सभी स्त्रियों का समावेश होता है। मुझे नहीं लगता की वर्किंग वुमेन की ज्यादातर कहानियाँ होती हैं बल्कि आप जिन्हें हाउस वाइफ या होम मेकर्स कहते है उनकी भी कहानियाँ होती है।”वह कहने लगी, “क्योंकि आप वर्किंग हो इसलिए मुझे ऐसा लगता हैं…”मैनें कहा, “आप का सजेशन मैं ध्यान में रखूँगी, आगे से देखना, आप को मेरी कहानियों में चेंज मिलेगा।”
कहने को तो मैं कह आयी। लेकिन जो स्ट्रगल मुझे किसी वर्किंग वुमेन में नज़र आता था वह किसी हाउस वाइफ में नज़र नहीं आता था।मैं उनपर कोई कहानी कैसे लिखती? रोटी और चकला बेलन पर कोई कहानी कैसी बनेगी भला?
शायद बन भी जाये…
