कहानी बुनती बातें
कहानी बुनती बातें


उन मुलाकातों का क्या?
उन बातों का क्या?
और उन जादुई अहसासों का क्या?
एक लंबा अरसा बीत गया है। आज इतने सालों के बाद मुझे इलहाम क्यो हो रहा है?
कॉलेज के दिनों की यादें आज क्यों मेरा पीछा नही छोड़ रही है?
अपनी इस ऐशोआराम की जिंदगी में मैं क्यों मुतमईन नही हूँ?
क्या नही है इस घर मे?एक ऊँचे ओहदे में काम करनेवाला पति!!!
गाड़ी,बंगला सब कुछ तो है उसके पास.....
उनके पास मेरे लिए वक़्त की कमी का क्या तक़ाज़ा करने वाली कोई बात है?
हाँ, यादें और उम्मीदों में जैसे कई फ़ासलें लग रहे है...उनकी चुभन के बारें में क्या कोई लिख सकता है भला? क्योंकि ग़िला किससे करूँ?और ग़िला करके क्या कुछ हासिल होगा मुझे?
शायद नही....दूरियों को मिटाना आसान तो हो सकता है लेकिन इस अंतहीन इंतज़ार का क्या?
वह धुआँ धुआँ होती गाँव की शाम की बात इस नमकीन फ़िजा वाले शहर में कहाँ?
वह छत पर होने वाली बातें इस बेहिस शहर की ऊँची इमारतों वाले फ्लैट्स में कहाँ?
सवाल भी कभी कभी कितने सवाल करते रहते है....कभी थकते ही नही वे.....
आज पति फिर बाहर किसी मीटिंग के सिलसिले में गये है और पता नही क्यों यह सारे सवाल बेवजह सवाल करने लगे हैं!